वाहन चालक के पद पर।
तेज तेज’ बस ‘लगे चलाने,
दिल्ली कलकत्ता पथ पर।
तीन बार सिगनल को तोड़ा,
चार हाथियों को रौंधा।
डर के मारे बीच सड़क पर,
भालू गिरा, हुआ औंधा।
विसिल बजाकर किसी तरह से,
चूहे ने ‘बस’ रुकवाई।
उसी समय पर दौड़े आये,
उठकर के भालू भाई।
दोनों ने जाकर थाने में,
रपट शेर की लिखवाई।
जब से अब तक बंद पड़े हैं,
थाने में शेरू भाई।
मनमानी अब किसी तरह की,
बिल्कुल नहीं चलेगी।
कितना भी ऊँचे कद का हो,
उसको सजा मिलेगी।
बच्चों के लयें इतनी सारी प्यारी प्यारी कल्पनायें कहाँ से सूझती हैं आपको, एक सचित्र पुस्तक मे ये कविताये संग्रह
करने लायक हैं।नानी दादियाँ बहुत ख़रीदेगी।
सेवा निवृत्ति के बाद बस पौत्र पौत्रियों के साथ समय बीतता है , बाल गीत कल्पना में उतरते रहते हैं और लिखता रहता हूं| फिर आप जैसे साहित्यकारोंसे प्रोत्साहन मिलता हि तो क्षमता बढ़ जाती है|