शिवराज की मीडिया ट्रायल पूर्ण हुआ !?

vyapamव्यापम पर बड़ी बहस और चर्चा हो रही है. पूरा देश व्यापम के कारनामों से हतप्रभ तथा चिंतित है. एक सभ्य समाज में व विकसित लोकतंत्र वाले राजनीति तंत्र में विषयों भ्रष्टाचार पर मुक्त, मुखर चिंतन के साथ ही भ्रष्टाचार के केंद्र बिन्दुओं की व्यापक कानूनी जांच अधिकृत जांच एजेंसियों द्वारा हो यह भी और विभिन्न स्तर पर सक्रिय प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष आरोपियों की गिरफ्तारी भी परम आवश्यक है. हमारें देश में भ्रष्टाचार के विषय में चर्चा-चिंतन का एक सुदीर्घ तथा सुस्पष्ट इतिहास रहा है, भ्रष्टाचार के विषयों पर हमनें सरकार प्रमुखों को बदलते भी देखा है और सरकारों को पलटते भी देखा है. एक सुखद बात जो इस देश में सौभाग्य से कभी नहीं देखनें में आई, वह यह कि व्यापक महत्त्व के विषयों पर तथा भ्रष्टाचार जैसे विषयों पर मीडिया, प्रायोजित चर्चाओं तथा वितंडों के आधार पर कभी व्यक्तियों को प्रचार तंत्र का अनावश्यक शिकार होते नहीं देखा तथा सरकार या मंत्रियों को को सामाजिक रूप से प्रताड़ित होते नहीं देखा. किन्तु लगता है कि लोकतंत्र के जिन सुखद तथ्यों की चर्चा मैंने उपरोक्त की है वे अब समाप्ति की ओर हैं. कम से कम व्यापम विषय में म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ जो मीडिया ट्रायल हो रहा है उसे देख कर तो ऐसा ही लगता है. प्रचार माध्यम, टीवी, समाचार पत्र आदि जिस प्रकार से व्यापम विषय में म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने का प्रयास कर रहें हैं उससे तो ऐसा जनता को जबरन ऐसा प्रतीत कराया जा रहा है कि व्यापम के सम्पूर्ण सूत्रधार वही हैं. तथ्यों, प्रमाण तथा परिस्थितियों के आधार पर आकलन करें तो पुर्वागृही तथा दुरागृही मीडिया के शिवराज पर लग रहे स्वयमेव ही समाप्त भी होते जा रहें हैं किन्तु जमीन से निकलकर मुख्यमंत्री निवास तक संघर्ष कर पहुंचे किसी नेता के साथ यदि म.प्र. में इस प्रकार का व्यवहार होता है तथा मीडिया ट्रायल के द्वारा किसी जननेता का कैरियर वध होता है तो इसके लिये प्रदेश की जनता को इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा. जिस रूप में दिग्विजय शासन के दस वर्षों में मध्यप्रदेश के दुर्गति भरे हालात रहे हैं तथा जिस प्रकार इसके बाद के दस वर्षों में मध्यप्रदेश का कायाकल्प हुआ है उस परिदृश्य को देखते हुए यदि किसी विकासवादी नेता का इस प्रकार कुचक्र चलाकर शिकार किया जाता है तो यह प्रदेश के लिए अत्यंत अशुभकारी ही होगा. यद्दपि म.प्र.की जनता इन सब कुचक्रों के बाद भी शिवराज सिंह में अपना विश्वास व समर्थन बनाए हुए हैं तथापि इस प्रकार के कुप्रयासों, कुचक्रों तथा मीडिया ट्रायलों का इस स्तर तक पहुंचना एक खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ने का संकेत तो करता ही है. दिग्विजय की पेश गई एक्सेल शीट के फर्जी, नकली व फेब्रिकेटेड होनें के निर्णय आनें के बाद तो जैसे म.प्र. में कांग्रेस हवा में रहनें का प्रमाण सिद्ध करती है.

वर्ष 2009 में आनंद राय नामक व्यक्ति की जनहित याचिका के लगनें से प्रारम्भ इस व्यापम मामले में शिवराज सिंह ने तत्काल ही एक विशेष जांच आयोग का गठन किया था जिसने 2011 में जांच रिपोर्ट भी दे दी थी. इस आयोग के निर्णयों के आधार पर ही 2011 में इसमें संलिप्त लोगों की गिरफ्तारियां होनें लागी थी जिससे नए नए सनसनीखेज तथ्य भी सामनें आनें लगे थे. व्यापम में व्याप्त में इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो स्पष्ट प्रदर्शित होता है कि एक पूरा गिरोह संगठित स्तर पर इन आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त था. यह भी स्पष्ट ही लगता है कि प्रदेश में भाजपा शासन आनें से पूर्व भी निश्चित तौर पर यह गिरोह सक्रिय था जी कि अब तक सक्रिय रहा. म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को तो इस मामलें में जांच आयोग बैठाने, उसकी रिपोर्ट के आधार पर सख्त कार्यवाही करनें तथा इस आयोग के आधार पर एक कदम आगे आकर स्वमेव स्पेशल टास्क फ़ोर्स का गठन करनें के लिए न केवल पहचाना जाना चाहिए अपितु प्रशंसित भी किया जाना चाहिए. यद्दपि प्रदेश की जनता उन्हें प्रशंसित, पुरस्कृत, प्रोत्साहन, विश्वास तथा आस्था को कई अवसरों पर प्रकट कर चुकी है तथापि मीडिया इस बात को केवल अनदेखा करनें के षड्यंत्र में दिखाई दे रहा है.

शिवराज सरकार द्वारा 2013 में गठित स्पेशल टास्क फ़ोर्स STF नें
नवंबर 2013 में बड़ा खुलासा किया कि ये फर्जीवाड़ा सिर्फ पीएमटी की परीक्षा में नहीं बल्कि व्यापम द्वारा आयोजित और कई अन्य परीक्षाओ जैसे प्री पीजी, फ़ूड इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, मिल्क फेडरेशन और पुलिस कांस्टेबल भर्ती में भी किये गए थे. ऐसे साक्ष्य मिले भी और प्रमाणित भी हो रहे थे कि व्यापम के अंदरूनी तंत्र तक इस कुत्सित गिरोह की पकड़ वर्षों से बनी हुई थी. जांच रिपोर्टों के आधार पर ही गिरफ्तारियां भी हुईं जिनकी निष्पक्षता से सम्पूर्ण घटनाक्रम में प्रदेश की जनता का विश्वास पुनर्स्थापित हुआ था. इन रिपोर्टों के आधार म.प्र. के तकनिकी शिक्षा मंत्री लाक्स्मिकांत शर्मा जैसे बड़े नाम की भी गिरफ्तारी हुई तथा साथ ही विनोद भंडारी, डा. जगदीश सागर, परीक्षा नियंत्रक व्यापम पंकज त्रिवेदी, लक्ष्मीकान्त शर्मा के स्टाफ के ओ पी शुक्ल, व्यापम के कंप्यूटर सिस्टम अधिकारी नितिन महेन्द्रा, अजय सेन, सी.के.मिश्रा, म.प्र. के बड़े खनिज खदान व्यवसायी सुधीर शर्मा, म.प्र. के राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेष यादव जैसे बड़े नामों सहित अनेकों विद्यार्थी भी गिरफ्तार हुए थे. इसी जांच के दौरान बढ़े सरकारी शिकंजे से दैनिक वेतन के आधार पर रखे गए कंप्यूटर जानकार प्रशांत पांडे को तो पैसे लेते रेंज हाथों पकड़ा गया था. व्यापम के ये सभी बड़े बड़े तथा छोटे मगरमच्छ मुख्यमंत्री शिवराज के शासन काल में पकड़े गए व गिरफ्तार कर बाकायदा न्यायालय में बिना देरी, बिना संकोच प्रस्तुत किये गए थे, तब यह प्रश्न उभरना स्वाभाविक है की यदि शिवराज सिंह को इस मामले में तनिक भी व्यक्तिगत रुचि नहीं थी. उनके समक्ष जो तथ्य आये उनका त्वरित समय पर वैधानिकता तथा नैतिकता पूर्ण निराकरण किया गया तथा विषय को अविलम्ब न्यायिक फोरम में रख दिया गया था.

इस विषय में यह ध्यान देनें योग्य है कि म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जो भी तथ्य प्रस्तुत कर रहे थे या हैं वे सभी इस कुख्यात आरोपी प्रशांत पांडे की दी सच्ची झूठी जानकारियों के आधार पर ही रचे बुनें गएँ हैं. इसी क्रम में संभवतः प्रशांत पांडे द्वारा फेब्रिकेटेड तथाकथित एक्सेल शीट को उन्होंने STF के समक्ष प्रस्तुत किया था जो कि बाद में एक फोरेंसिक जांच में झूठी तथा नकली तौर पर बनी हुई फर्जी एक्सेल शीट करार दिया गया था. दिग्गी राजा ने शिवराज सिंह को घेरने के प्रयास में दस कदम आगे जाकर हाई कोर्ट में सीबीआई जांच की अर्जी लगाईं जिसे माननीय उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया था कि इस मामले की जांच गठित एसटीऍफ़ द्वारा विधिवत तथा संतोषप्रद रीति नीति से की जा रही है. जांच के दौरान इस सम्बन्ध में यह तथ्य भी व्यवस्थित स्तर पर प्रकट हुए थे कि विभिन्न व्यावसायिक तथा अन्य परीक्षाओं में कोई संगठित गिरोह है जो कि मात्र म.प्र. में ही नहीं बल्कि देश के अनेकों राज्यों में काम कर रहा है.

सीबीआई जांच की मांग अपनें स्थान पर है तथा लोकतंत्र में यह कोई नया विषय नहीं है, किन्तु जिस प्रकार इस सम्पूर्ण मामले में शिवराज सिंह को अनावश्यक घेरने के प्रयास किये जा रहें हैं वह स्पष्टतः कुत्सित राजनीति का भाग प्रकट होतें हैं. शिवराज सिंह के शासन काल में जिस प्रकार मध्यप्रदेश में बेटी बचाओ, अन्नपूर्णा योजना, इंजिनियर स्वराज योजना से लेकर तीर्थ यात्रा योजना ने पुरे देश में अपना व्यापक समर्थ का निर्माण किया है व म.प्र. में वे निर्विवाद रूप से एक बड़े छत्रप के रूप में स्थापित हुयें हैं उसे देखते हुए यह लगता है कि विरोधियों के अंधे हाथ में व्यापम की बटेर लग गई है जिसे वे व्यापक रूप में राजनैतिक हथियार बना कर उपयोग करना चाहते हैं. एक पिछड़े व बीमार राज्य की गिनतीसे निकालकर म.प्र. को भारत के विकसित व अग्रणी राज्यों की पंक्ति में ला खड़ा करनें का जो कार्य शिवराज सिंह ने किया उससे विपक्षी दल बेहद हताश था. यह हताशा स्वाभाविक भी थी क्योंकि प्रदेश में प्रत्येक स्तर पर हुए चुनावों में विपक्षी दल कांग्रेस को अत्यधिक दुर्दशा का सामना करना पड़ रहा था. म.प्र. में अपराध दर का कम होना, महिला अपराधों में कमी होना, सिंचाई साधनों का बढ़ना, सिचित रकबों में वृद्धि, सड़क बिजली पानी में अभूतपूर्व सुधार व विकास, GDP में 121% का विकास, सकल विकास दर का 11.98% पर आना, कृषि उत्पादन में लगभग 25% की उछाल, शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां इस सब को देखते हुए कांग्रेस में उत्साहहीनता का वातावरण था. मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, युवा स्वरोजगार योजना, निःशुल्क पैथालाजी, मजदुर सुरक्षा योजना, राम रोटी योजना, ग्राम ज्योति योजना जैसी उपलब्धियों ने म.प्र. में विकास एक लम्बी नई लाइन खींच दी थी जिसे पार पाना विरोधियों के बस की बात नहीं रह गई थी. चुनावी पराजयों की श्रंखला ने कांग्रेसियों को तथा दिग्विजय सिंह को हाशिये पर ही नहीं बल्कि अप्रासंगिकता के स्तर पर ला खड़ा किया था. व्यापम मामला जैसे ही आया कांग्रेस को लगा कि उसे प्राणवायु मिल गई है. इसके बाद कुछ मृत्यु प्रकरणों ने इस मामले में की असंवेदन शीलता की हद को ही उजागर किया है. संदिग्ध मृत्युओं की जांच या उसकी मांग स्वाभाविक है किन्तु जिस प्रकार का क्रम चल रहा है वह तो जनता को भ्रमित करनें का लोकतांत्रिक अपराध है जिसे क्रमबद्ध रूप से चलाया जा रहा है. इस विषय में जनता क्या सोचती है यह तो समय पर प्रकट होगा किन्तु अभी तो जनमत के साथ कांग्रेसी मीडिया ट्रायल कर रही है यह स्पष्टतः प्रतीत हो रहा है. एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह ने इस विषय में सीबीआई जांच प्रस्तावित करके अपनें दायित्व के क्रम को निष्ठापूर्वक संपन्न कर दिया है, अब दूध का दूध और पानी का पानी तो होगा ही किन्तु इस क्रम में कांग्रेस नें जिन कुप्रथाओं और कदाचारों की स्थापना की है उसका नुक्सान प्रदेश के राजनैतिक वातावरण को लम्बे समय तक उठाना पड़ेगा.

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  1. सीबीआई के पास इतने आदमी नहीं हैं कि 2000 व्यापम केसों की जांच कर सके। सीबीआई जांच लगभग वैसा ही है जैसे कहें कि हर थाने में भ्रष्टाचार है अतः हर केस की जांच डीजी करें। कोई जरूरी नहीं कि ऊपर के अधिकारी ईमानदार हों। जैसे जैसे ऊपर जाते हैं घूस का रेट बढता जाता है। हर राज्य में प्रायः हर नियुक्ति में भ्रष्टाचार है। पर इतनी व्यापक जांच केवल मध्यप्रदेश में हो रही है। पर इसकी प्रशंसा के बदले सिर्फ उसी की निंदा हो रही है। सबसे कुख्यात उत्तर प्रदेश है जहां समाजवादी (=यादव) दल आते ही 90 प्रतिशत नियुक्ति यादव की और बाकी वोट के लिए अल्पसंख्यकों की करता है। वहां कभी जांच नहीं होती। लोग तंग होकर उनको हटाते है लेकिन नागनाथ के बदले सांपनाथ मिलते हैं।

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