आत्मघाती मार्ग पर कदम बढ़ाती शिवसेना

सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत की राजनीति जिस प्रकार से स्वार्थ केन्द्रित होती जा रही है, उसी प्रकार से राजनीतिक दलों के सिद्धांत भी बलि चढ़ते जा रहे हैं। राजनीतिक दल ऐसा करके अपने घोषित सिद्धांतों को भी विस्मृत करने का कार्य करते दिखाई देते हैं। ऐसा केवल अपनी बात मनवाने के लिए ही किया जा रहा है। अभी हाल ही में एक समाचार देखने को मिला कि महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है। शिवसेना और कांग्रेस के स्वभाव को देखा जाए तो यह आसानी से कहा जा सकता है कि इन दोनों राजनीतिक दलों का गठबंधन पूरी तरह बेमेल ही होगा। शिवसेना के इस प्रकार के कदम को देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि यह शिवसेना का आत्मघाती कदम ही है। क्योंकि शिवसेना की स्थापना हिन्दुत्व को शक्तिशाली बनाने के लिए हुआ था और कांग्रेस पार्टी के कई काम ऐसे रहे हैं, जो सीधे तौर पर हिन्दू विरोध की श्रेणी में आते हैं। यहां तक कि कांग्रेस ने कई बार मुस्लिम परस्त राजनीति को मुख्य केन्द्र मानकर अपनी राजनीति को अंजाम दिया है। ऐसी स्थितियों के बाद भी अगर दोनों में गठबंधन होता है तो यह कहना समीचीन होगा कि शिवसेना अपने स्थापित सिद्धांतों को भुलाकर स्वार्थ के रास्ते पर कदम बढ़ा रही है।
शिवसेना ऐसा क्यों कर रही है, इसके कारणों को तलाश किया जाए तो यही दिखाई देता है कि वह राजनीति में जिस प्रकार की भूमिका का प्रतिपादन दिखाना चाहती है, वह उसके मनमुताबिक नहीं हो रहा है। कहा यह जा रहा है कि ऐसा करके उद्धव ठाकरे भाजपा को सबक सिखाने की मुद्रा अपना रहे हैं। जबकि वर्तमान राजनीति की सत्यता यह है कि भारतीय जनता पार्टी आज देश का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। सबसे ज्यादा राज्यों में या तो भाजपा की अपनी सरकारें हैं या फिर उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। इसलिए घोषित तौर पर यह स्वीकार करने योग्य है कि भाजपा का राजनीतिक प्रभाव पूरे देश में बढ़ा है। जिस प्रकार का प्रभाव पूरे देश में बढ़ रहा है, उसे एक क्षेत्रीय दल की पहचान रखने वाले राजनीतिक दल शिवसेना की ओर से चुनौती मिलने की यह कवायद निश्चित ही सूरत को दीपक दिखाने ही कहा जाएगा।
महाराष्ट्र की राजनीति के इतिहास को देखा जाए तो यही दिखाई देता है कि बाला साहेब ठाकरे ने कांग्रेस की नीतियों के विरोध में ही शिवसेना का गठन किया था। हिन्दुत्व की रक्षा करना ही शिवसेना की राजनीति का मुख्य आधार रहा। यही नहीं शिवसेना का भाजपा से समन्वय का कारण भी यही हिन्दुत्व ही है। आज शिवसेना अगर कांग्रेस की तरफ कदम बढ़ाने का उतावली हो रही है तो यह तय है कि शिवसेना को हिन्दुत्व की राह से अलग होना पड़ेगा और ऐसा शिवसेना के नेता चाहेंगे नहीं। महाराष्ट्र की राजनीति का एक बड़ा सच यह भी है कि जब शिवसेना का प्रादुर्भाव हुआ, उस समय भाजपा महाराष्ट्र में कमजोर मानी जाती थी, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। भाजपा केवल अपने दम पर महाराष्ट्र में भी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में स्थापित हुई है। शिवसेना पूरी दम लगाने के बाद भी अपने पहले वाला स्थान प्राप्त नहीं कर सकी। शिवसेना के कमजोर होने के पीछे कहीं न कहीं शिवसेना की अपनी ही कमजोरियां ही जिम्मेदार हैं। हम जानते हैं कि जब शिवसेना के बाल ठारे जीवित थे, तब शिवसेना की राजनीति में नंबर दो की राजनीतिक पंक्ति में कई नेता थे। लेकिन बाद में शिवसेना भी परिवारवाद के सहारे चलने लगी तो उसके वरिष्ठ नेताओं को किनारे करने का सुनियोजित खेल खेला गया। जिसके कारण कई नेता शिवसेना से दूर होते चले गए और शिवसेना का प्रभाव कम होता गया। ऐसे में शिवसेना के वर्तमान मुखिया उद्धव ठाकरे अगर यह सोचते हैं कि अब भी भाजपा शिवसेना को बड़ा भाई मानकर व्यवहार करे तो यह बात गले नहीं उतरती है। क्योंकि शिवसेना का जादू पहले वाला नहीं रहा।
महाराष्ट्र की राजनीति की बात करें तो यह स्वाभाविक रुप से दिखाई देता है कि इस राज्य में भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का जनाधार है। चारों राजनीतिक दलों के पास राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव रखने वाले राजनेता हैं। लेकिन यह भी सच है कि शिवसेना का अस्तित्व केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित है। वह अपने आपको राष्ट्रीय राजनीति का दल मानकर व्यवहार करती है तो यह उसकी बड़ी भूल ही कही जाएगी। एक परिवार और एक राज्य तक सीमित हो चुकी शिवसेना अब अगर कांग्रेस के साथ कदमताल करने की श्रेणी में आने का मन बना रही है तो यह कदम किसी भी प्रकार से शिवसेना के लिए उत्थानकारी न होकर विनाशकारी ही होगा। हालांकि कांगे्रस की स्थिति यह है कि उसे अपने राजनीतिक उत्थान के लिए सहयोगियों की जरुरत है। इसके लिए कांग्रेस राज्य के विधानसभा चुनावों में शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने का प्रस्ताव भी दे सकती है। लेकिन लालच हमेशा हानिकारक ही होता है, इसलिए यह लालच भी शिवसेना के लिए अच्छा नहीं माना जागा।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि वर्तमान में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में जुगलबंदी है, ऐसे में अगर शिवसेना भी साथ में आती है तो स्वाभाविक रुप से सीटों की संख्या में तीन भागों में विभक्त होगी। ऐसी स्थिति में शिवसेना के खाते में कितनी सीटें आएंगी। विगत विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना अलग-अलग लड़े थे। भाजपा ने पहला स्थान प्राप्त किया था। इसलिए वर्तमान राजनीतिक स्थिति में भी भाजपा किसी न किसी रुप से शिवसेना से दो कदम आगे ही है। शिवसेना का वर्तमान स्वरुप इतने पेच निर्मित कर रहा है कि उसे पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए कठोर मेहनत करनी होगी, जो नामुमकिन ही है, क्योंकि महाराष्ट्र में ही शिवसेना की राजनीति करके राजनेता बने राज ठाकरे भी जोर लगा रहे हैं। जो शिवसेना के लिए ही चुनौती का काम कर रहे हैं। राज ठाकरे ने कहीं न कहीं शिवसेना को ही कमजोर किया है। वास्तव में उद्धव ठाकरे को कांग्रेस को साधने की बजाय अपनों को साधने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि किसी भी सफलता के लिए अपने ही ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आ जाएं तो शिवसेना पहले जैसी ताकत बन सकती है। कांग्रेस के साथ तो बिलकुल भी नहीं। क्योंकि दोनों की राजनीति में जमीन आसमान का विरोधाभास है।

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