राजकुमार साहू
देखिए, गरीबों को गरीबी के झटके सहने की आदत होती है या कहें कि वे गरीबी को अपने जीवन में अपना लेते हैं। पेट नहीं भरा, तब भी अपने मन को मारकर नींद ले लेते हैं। गरीबों को ‘एसी की भी जरूरत नहीं होती, उसे पैर फैलाने के लिए कुछ फीट जमीन मिल जाए, वह काफी होती है। गरीब, दिल से मान बैठा है कि अमीर ही उसका देवता है, चाहे जो भी कर ले, उसमें उसका बिगड़े या बने। गरीबी का नाम ही बेफिक्री है। फिक्र रहती है तो बस, दो जून रोटी की। रोज मिलने वाले झटके की परवाह कहां रहती है ?
गरीबों को झटके पर झटके लगते हैं। गरीबी, महंगार्इ के बाद, अब भ्रष्टाचार से झटके लग रहे हैं। गरीबों के हिस्से का पैसा अमीरों की तिजोरियों की शान बनता जा रहा है। अब तो इन पैसों ने अपना रूप भी बदल लिया है। कभी यह पैसा सफेद होता है, कभी काला। सफेदपोश अमीर अपनी मर्जी के हिसाब से पैसे का रंग बदलते रहता है। इतना जरूर है कि इन बीते सालों में न तो गरीबी का रंग बदला है और न ही गरीबों का। गरीबों की देश में इतनी अहमियत है कि ‘जनसंख्या यज्ञ में नाम शामिल होता है, मगर जब ‘योजना यज्ञ शुरू होता है, फिर उसमें ओहदेदारों की वर्दहस्त होती है। गरीब कहीं दूर-दूर तक दिखार्इ नहीं देता। गरीबी, भीड़ तंत्र की महज हिस्सा बनती है और गरीब, सफ ेदपोश अमीरों के लिए होता है, मजाक।
देश से गरीबी हटाने के दावे होते हैं, मगर गरीबी पर तंत्र हावी नजर आता है। जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही है, उसी गति से गरीबी भी बढ़ी है। देश में गरीबी के साथ अब हर क्षेत्र में उत्तरोतर प्रगति हो रही है। देश में महंगार्इ बढ़ रही है। कोर्इ भी भ्रष्टाचार करने में पीछे नहीं है। दुनिया मंत हम नाम कमा रहे हैं। भ्रष्टों की उच्चतम श्रेणी में कतारबद्ध हैं, जैसे कोर्इ तमगा मिलने वाला है। सरकार ने जैसे ठान ही ली है कि देश से गरीबी खत्म की जाएगी। भले ही सही मायने में ऐसा न हो, मगर कागजों में हर बात संभव होती है। जैसा सोच लिया, वैसा हो जाता है। यही कारण है कि गरीबों की आमदनी पर भी नजर पड़ गर्इ है। भूखे पेट की चिंता करने वाले गरीबों को इस बात का अब डर लगा रहता है कि कहीं उसके घर आयकर का छापा न पड़ जाए। सरकार ने आय निशिचत की है, उसके बाद बहुतो गरीब, अमीरों की श्रेणी में गया है। यह भी कम उपलबिध की बात नहीं है कि रातों-रात व एक ही निर्णय से, देश से गरीबी कम हो गर्इ और गरीबों को काफी हद तक असितत्व मिट गया।
भ्रष्टाचार और गरीबी में अब तो छत्तीस का आंकड़ा हो गया है। भ्रष्टाचार कहता है, वो जो चाहेगा, करेगा, जिसको जो बिगाड़ना है, बिगाड़ ले। ज्यादा से ज्यादा ‘तिहाड़ ही तो जाना पड़ेगा। वहां भी मजा ही मजा है। ऐश की पूरी सुविधा। बाहर इतराने को मिलता है तथा लोगों का कोपभाजन बनना पड़ता है। लोग रोज-रोज किरकिरी करते हैं। भ्रष्टाचार कहता है, अब तो पूरा मन लिया है कि गरीबी हटे चाहे मत हटे, गरीबों का भला हो या न हो, इससे उसे कोर्इ मतलब नहीं। बस, सफेदपोशों की तिजारियां भरनी है और अंदर जाने वालों का पूरा साथ देना है। उसके कुछ साथी, जरूर तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं, इससे उसका शुरूरी मन टूटने वाला नहीं है। वह इतराते हुए कहता है कि उसकी करामात का रहस्य की परत पूरी तरह खुलना बाकी है। जो कुछ दिख रहा है, वह कुछ भी नहीं है, केवल आंखों का ओझलपन है। जिस दिन वह खुलासा कर देगा, उस दिन देश में भूचाल आ जाएगा। भ्रष्टाचार दंभ भरता है, उसी के कारण महंगार्इ इतरा रही है और गरीबी से इसीलिए उसका बैर भी है।
वैसे भी गरीबी तथा गरीबों ने अब तक किसी का कुछ बिगाड़ पाया है। इस तरह मेरा कौन सा बिगड़ जाएगा। गरीबों को झटके खाने का शौक है, वह उसी में खुश रहता है। जब मैंने थोड़ा झटका दिया है, इससे न तो गरीबी को बुरा लगना चाहिए और न ही गरीबों को। गरीबों को जोर का झटका भी धीरे से लगता है, तभी तो बिना ‘उफ किए सब सहन कर जाते हैं।
देश में खान-पान की आवश्यक वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण मांग और पूर्ती से नहीं बल्कि ” राष्ट्रीय चरित्र सूचांक ” पर आधारित होना चाहिए क्यूंकि चरित्र का तो दिन प्रतिदिन गिरना निश्चित ही है सो कीमतें भी गिरेंगी. दूसरी और तमाम वेतन-भोगी कर्मचारियों का वेतन निर्धारण मात्र पेट्रोलियम पदार्थों के साथ ही सम्बद्ध होना चाहिए क्यूँ की उनके दाम बढ़ने निश्चित हैं. पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाये बिना तो सरकारें चल नहीं सकती.
आप का क्या विचार है….?