प्रतिमा दत्ता
संदीप पेशे से मेडीकल रिप्रजेंटेटिव | जॉब करते पांच साल बीत गये पर माली हालत सुधरने का नाम नही ले रही | चिंटू को साइकिल चाहिए तो बीबी के नये कपड़ों की फरमाइश |बीमार माता –पिता,बीबी बच्चे ,मकान किराया ,महीने के अंत तक हाथ खाली | डॉक्टरों को लुभाने के लिए कई दवा कम्पनियों के पास आकर्षक कमीशन ,उपहार थे | कई एम् आर अलग उपाय भी करते थे | संदीप की कम्पनी बहुत अच्छी थी लेकिन गिफ्ट –कमिशन जैसी कोई स्कीम न थी और न ही उसका जमीर गलत उपाय से पैसे कमाने की अनुमति देता था | मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयों से मुक्ति का कोई सिरा नजर नही आ रहा था | कल डाक्टर मन्ने के पास गया था विजिट करने | मरीजों की भीड़ लगी रहती उनके क्लिनिक में |जिस एम् आर को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो,धन्य हो जाये |संदीप के प्रति बहुत ही ठंडा रुख था उनका | आजकल तो डॉक्टरों को मेडिसिन के पहले कम्पनी की स्कीम जानने की उत्सुकता रहती है | बालकनी में खड़े- खड़े साईकिल मरम्मत की दूकान में बैठे टोनी पर संदीप की नजर पड़ी | वैसे उन दोनों के स्तर में काफी अंतर था,लेकिन सम्वेदना की डोर उन्हें आपस में बांधती थी, जो उन्हें परस्पर हमदर्द व हमराज भी बनाती थीं | संदीप अक्सर दुकान में टोनी के पास बैठता था | मस्त मौला टोनी ने संदीप की परेशानियों को सुना और हल भी निकाल डाला | बच्चे जन्म देने की जगह खोजते एक डॉगी ने टोनी के कबाडखाने में डेरा जमा लिया था, बस डॉगी पर उनकी नजर थी | जैसे ही उसके पिल्ले इस दुनिया में आये उसमे से एक गब्दू सा पिल्ला टोनी ने चुरा लिया | दूसरे दिन राम नगर का टूर निकाला,डॉक्टर मन्ने के घर जा पहुंचा | मन्ने साहब ने हमेशा की तरह व्यस्तता दिखाई,लेकिन संदीप इस बार जरा भी नही झिझके,न डरे ,सीधे टेबिल पर पिल्ले वाली टोकरी धर दी —
सर ,ये पप्पी लाया हूँ गुडिया के लिए ….सत्रह हजार से बड़ी मुश्किल से चौदह हजार पर राजी हुआ ….सर ..
डॉक्टरसाहब की व्यस्तता तुरंत फुर्र …टोकरी पर से थोडा सा कपड़ा हटाया | बच्चे तो हर प्राणी के प्यारे ही दीखते हैं | डॉक्टर साहब के चेहरे पर मुलायम सी मुस्कान छा गई, और उँगलियाँ कालबेल की घंटी पर…अंदर से चिंकी प्रकट हुई- क्या है पापा ? पापा के इशारे पर टोकरी में झाँकते ही चहक उठी –ओह सो क्यूट पापा …सो स्वीट ..थैंकयू अंकल ..टोकरी उठाकर चिंकी कमरे की तरफ लपकी मम्मी..ई..ई..
अरे, मम्मी से बोलना चाय-वाय तो भिजवायें अंकल के लिए …डॉक्टर साहब के स्वर में आत्मीयता घुल गई फ्री में महंगा गिफ्ट | उसके बाद, संदीप के कम्पनी के प्रोडक्ट की बिक्री सबसे उपर |.छह माह में ही उसकी आधी समस्याएं खत्म |
डिंग.. डोंग… क़ाल बेल की घंटी बजी | दरवाजे पर रामदीन प्रकट हुआ –
डॉक्टर साहब हैं ? बताना संदीप आये हैं ..
खाना खा रहे ..बैठिये .. पानी लाता हूँ..
अरे ,रामदीन वो क्या हुआ डॉगी को ?सर ने कल फोन किया था ..
.साहब, कहां से तो इ कुत्ता आयल है| छह माह से ..मोर जी के जंजाल ..नहलाव –धुलाव—खिलावो सब मोर जिम्मा ..बस.ओह्के.मुंह के सामने बैठे रहो | थोडा इधर उधर गये कि स्साला फुक्का फाड़ के चिल्लाये ,सुबह- शाम मैडमजी..साहब मन मोके डांटे … वह थोडा पास आकर फुसफुसाया परसों शाम चैन खोल, जम के दो सोंटा जमाया ..निकल भागीस…. उसके प्रसन्न चेहरें पर मुक्ति का भाव था
पानी लाता हूँ… रामदीन जाने को मुड़ा | संदीप मन ही मन हंसा, है तो गली का कुत्ता ही न | कितना भी जतन करे कोई …गली- गली भटकने में ही उसे ख़ुशी मिलेगी…|सोचा –अभी मेरे अच्छे दिन बाकी हैं ….टोनी से कांटेक्ट करना पड़ेगा ….|
मुझे भी यह देखने की बहुत तम्मना है कि भ्रष्टाचार कब समाप्त होता है?अभी तक तो उसका कोई लक्षण नहीं दिख रहा है. ऐसे भी टॉलस्टॉय ने बहुत पहले लिखा था कि गंदे हाथों से सफाई नहीं हो सकती( You can’t clean linen with dirty hands) सफाई करने केलिए कीचड में उतरना भले ही पड़े,पर रहना जलकमल पत्रवत ही पड़ेगा,तभी कुछ उम्मीद की जा सकती है.
शॉर्ट कट पढ़ रोऊँ या हंसूँ ? रोऊँ तो इस लिए रोऊँ कि अब तक घोर भ्रष्टाचार और अनैतिकता के बीच पढ़े लिखे लोग शॉर्ट कट मार अच्छे दिनों की तलाश में लगे रहे हैं। हंसता हूँ कि अब मोदी जी इन्हें मार्ग दर्शन देते पुरुषार्थ के सीधे रास्ते पर चल अच्छे दिनों का आश्वासन दे रहे हैं। पुरुषार्थ करते मनुष्य के अच्छे दिन सगर्व आते हैं अन्यथा लेखिका का डॉगी ही है जो जम के दो सोंटा खाय दर दर भटकने में ही ख़ुश रहता है।