श्वेताम्बरों का संथारा – दिगंबरों का संलेखना

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श्वेताम्बरों का संथारा – दिगंबरों का संलेखना और उपनिषद प्रणीत वेदान्त देशन का ‘अंतिम समाधि योग’ ये तीनों सिर्फ नाम ,रूप और ‘साधनों’ में ही भिन्न-भिन्न हैं ! सारवस्तु के रूप में इन तीनों का लक्ष्य एक ही है ! मैं व्यक्तिगत रूप से घोर नास्तिक होने के वावजूद ,सभी -धर्मों -मजहबों का बराबर सम्मान करता हूँ ! मैंने तो तय कर रखा है कि यदि किसी दुर्घटना में नहीं मरा , किसी बीमारी से भी नहीं मरा या किसी की हिंसा का शिकार नहीं बना ,तो मैं उचित समय आने पर ‘संथारा -संलेखना ‘ही करूँगा ! इसके लिए मुझे किसी भी धर्म के ठेकेदारों से अनुमति नहीं चहिये ! न्यायालय में दरख्वास्त की या याचिका की भी जरूरत नहीं है। मुझे संथारा करने के लिए सड़कों पर जुलुस निकांले की भी आवश्यकता नहीं है। इसके लिए मैं सड़कों पर जाम लगाकर किसी निर्दोष को अस्पताल तक पहुँचने में बाधक नहीं बनुगा ! न्यायालय की अवमानना भी नहीं करूंगा ! अपना सर भी नहीं मुंड़वाउंगा ! धर्म के पाखंड की डींग भी नहीं हाकूँगा ! मैं मरणोपरांत अपने शरीर को मेडिकल कालेज के सुपुर्द करने का शपथ पत्र भी दे चुका हूँ !

santharaइस सबके वावजूद में जब तक जीवित हूँ , सभी धर्म-मजहब वालों के पाखंड और दिखावे का डटकर विरोध करता रहूँगा ।यह मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है ! हिन्दू,मुसलमान ,सिख,ईसाई जैन-बौद्ध – ऐंसा कोई धर्म – मजहब नहीं है जो इंसानियत का पाठ न सिखाता हो ! किन्तु यह भी सच है कि सभी धर्म-मजहब पाखंडवाद और मूल्य्हीनता से ग्रस्त हो चुके हैं । अंधश्रध्दा और धन -लोलुपता का जाल जड़ों तक जा पहुंचा है। ये चीजें आलोचना से परे कैसे हो सकती हैं ? जो जैन मत अहिंसा ,अनेकांतवाद ,स्याद्वाद और वैज्ञानिक जीवन शैली के लिए विख्यात है. उस ‘अहिंसक’ समाज के विभिन्न गुटों की जूतम पैजार दुनिया में वेमिशल है !जिस किसी को जैनियों का यह महा संग्राम साक्षात देखना हो वे इन्तजार करें में उन्हें शीघ्र ही सूचित करूंगा ! या वे आगामी ‘व्रतों’ में इधर इंदौर आ जाये ! मेरी बात यदि असत्य लगे तो भरत मोदी, कासलीवाल , धनोतिया जी या डीके जैन से तस्दीक कर लें !

विगत सप्ताह गुजरात के पटेलों ने आरक्षण को लेकर और देश भर के जैनियों ने संथारा -संलेखना को लेकर जो जंगी -प्रदर्शनों का आयोजन किया था।उस पर मैंने एक संयुक्त आलेख लिखा था ! पटेल आंदोलन के बारे में मैंने जो कुछ लिखा वही सच निकला ! और वह सच सबने देख भी । लेकिन मेरी आलोचना पर किसी एक भी पटेल या फेसबुक मित्र ने आपत्ति नहीं जताई।

इसी तरह संथारा -संलेखना को लेकर भी मैंने संतुलित व यथार्थ समालोचनात्मक आलेख पोस्ट किया था , वैसे तो उस पर भी किसी ने कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की । मेरे दर्जनों जैन मित्रों और सैकड़ों ‘फेस बुक फ्रेंड्स’ ने भी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की ! किन्तु एक-दो जैन युवाओं को मेरी अभिव्यक्ति पसंद नहीं आई ! उन्हीं की तसल्ली के लिए यह स्पष्टीकरण आलेख पोस्ट किया जा रहा है। मैं एतद द्वारा उन्हें सूचित करटा हूँ कि – जिस दिन राजस्थान हाईकोर्ट ने ‘संथारा -संलेखना ‘ पर अनावश्यक फैसला दिया था उसी दिन मैंने -न्यायालय की गरिमा का सम्मान करते हुए भी निम्नाकिंत दोहों में समर्थन किता था !जो लोग समझते हैं कि ‘जैन सिद्धांत,जैन दर्शन केवल उन्ही की बपोती है, वे यह जान लें कि सिर्फ सर नेम लिख देने से , किसी जैन के यहाँ जन्म लेने मात्र से या दो-चार आगम ग्रन्थ पढ़ लेने मात्र से वे जैनत्व झाड़ने के अधिकारी नहीं हो जाते ! जैन धर्म और उसके विराट दर्शन पर मेरी सकारात्मक संवेदनाएं इस प्रकार हैं :-

संथारा सल्लेखना , श्रमण समाधि नाम..!
मानव मूल्यों के लिए , देते हैं जो प्राण ।

बलिदानी इतिहास में , पाते हैं सम्मान ।।
शोषण -अत्याचार से , लड़ते मनुज अनेक ।

क्रांति दीप्ति अक्षुण रखे ,वो तारा कोई एक ।।
निर्दोषों को मारते , नरपिशाच नादान।

ऐसे आदमखोर से ,बेहतर कागा श्वान।।
मेहनतकश को लग रहे ,श्रम शोषण के बाण ।

भृष्ट धनिक की चरणरज ,नेता का निर्वाण ।।
तज इच्छा ब्रत कर्म सब ,तजे देह अभिमान।

जीवन मुक्त जिजीविषा , निर्विकल्प यह ज्ञान ।।
निरवृत्ति निर्मोहिता ,निर्लिप्ति निष्काम ।

संथारा -सल्लेखना , श्रमण समाधि नाम ।।
श्रीराम तिवारी

3 COMMENTS

  1. जैन धर्म की संथारा प्रथा हो या किसी भी धर्म की आस्था से जुड़ा कोई विवादित मामला धर्म के मामलों में तर्क और सत्यता की कसौटी पर परखना मना है
    असली फसाद की जड़ यही है
    जिस से कम या ज़्यादा लगभग सभी धर्म ग्रस्त नज़र आते हैं

  2. तिवारीजी, धर्म के ठेकेदारों ने रूढ़ियों को हो धर्म का रूप दे दिय है. श्रावण मास में और चौमासे में ये ठेकेदार एकदम सक्रीय हो जाते हैं। किसानो,मजदूरों ,स्कूल, कॉलेजों में पढने वाले बच्चों को तो इन दिनों व्यस्तता रहती है किंटो ये ठेकदार सामान्य रूप से व्यवसायी और पुरोहित वर्ग के होते हैं तो इन्हे यही काम रहता है। आप देखिएगा ओक्टूबर से लेकर जून अंत तक ये कोई प्रदर्शन नहीं करेंगे.अतः इनके जुलुस ,यात्राएं ,विरोध सब अभी होंगे. जहाँ तक संथारे के बारे में न्यायालय का निर्णय है वह सही है प्रचार प्रसार कर कोई धार्मिक क्रिया करना लोकेषणा है. यदि संथारे का प्रचार करना ,उसे एक धार्मिक कर्मकांड बनाकर ४-६ दिन तक भक्तों का तांता लगाए रखना कहाँ तक धर्म है?

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