भारतीय भाषा सेनानी श्‍याम रुद्र पाठक का साथ दें

श्याम रुद्र जी की गिरफ्तारी पर सभी भारतीयों/राष्ट्रवादियों से अनुरोध है, समय निकाल कर अपनी-२ प्रतिक्रिया और विचार यहाँ रखें और सरकार के इस गैरजिम्मेदार कदम की खबर को अपने ट्विटर, फेसबुक, गूगल प्लस और व्हाट्सऐप पर सबके साथ साझा करें। २४ जुलाई २०१३ को पटियाला न्यायालय में उनकी पेशी है दिल्ली के आसपास वाले लोग उस दिन न्यायालय में सुबह १० बजे एकत्र हों. अधिक जानकारी के लिए संयोजक श्रीमती गीता मिश्रा ‘रतन से संपर्क करें : ९८९१५-५७०७७ in Eng: 98915-57077

shyam rudra pathak

श्याम रुद्र जैसे योद्धा के लिए हिंदी मीडिया ने भी कभी एक पट्टी की खबर भी नहीं चलाई

निरंकुश सरकार अथवा कांग्रेस पार्टी ने श्यामरुद्र पाठक जी की बात पर ध्यान देना तो दूर उन्हें कभी अपनी बात कहने के लिए मिलने भी नहीं बुलाया. वे हर दिन सोनिया गाँधी के नाम चिट्ठी लिखकर उनके प्रहरी को देते रहे पर एक का भी उत्तर नहीं दिया गया. वे साढ़े सात महीने से धरना दे रहे थे. हर रात उन्होंने पुलिस थाने में गुजारी. 

देश में भाषाओँ को लेकर अनेक संगठन हैं, अनेक क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार चैनल और अख़बार हैं पर किसी ने भी इस मुद्दे पर पाठक जी की आवाज़ को आगे पहुँचाने का काम नहीं किया. 

इन साढ़े सात महीनों में उनका स्वास्थ्य बहुत गिर चुका है वे हर दिन थाने से लौटकर कांग्रेस मुख्यालय के सामने धरना दे रहे थे, बाहर का भोजन खरीदकर खा रहे थे, उन्होंने सर्दी के तीन महीने फिर गर्मी के चार महीने फिर वर्षा को सहा- झेला, किसके लिए ? 

दुनिया भर में छोटे-२ देश अपनी भाषाओं को लेकर बड़े संवेदनशील हैं पर भारत के नागरिकों के रक्त में तो जैसे अंग्रेजी प्रवाहित हो रही है, कहीं कोई हल चल नहीं कहीं कोई रोष नहीं. सब अंग्रेजी देवी के चरणों में नत-मस्तक हैं. क्या हम अपनी हिंदी, तमिल, मराठी, कन्नड़, गुजराती, अथवा बंगाली के लिए इन सरकारों के सामने अपनी आवाज़ नहीं उठाएँगे? 

देश की हर भाषा पर संकट है, भाषाई विद्यालय बंद हो रहे हैं, उच्च शिक्षा में देशी भाषाओं का कोई अस्तित्व नहीं. क्या भारत सचमुच ‘इण्डिया’ बन गया है?

क्या मैकाले का सपना १००% सच हो चुका है? क्या हम सब दिखने में भारतीय पर अंग्रेज बन चुके हैं?

7 COMMENTS

  1. श्यामरूद्र मेरे अनुज का सहपाठी है और मुझे बहुत प्रिय है – उसमे एक जिद्द है अच्छी बात करने की इसलिए मुझे उसपर गर्व भी है -जो कई बार मैं नहीं कर सका- खासकर अनुजवधू के लिए मेरा सन्देश है की वह निराश न हो..मुझे उनसे मिले बहुत साल हो गए- मेरे स्वर्गीय पिताजी की भी थोड़ी भूमिका उसके नेतरहाट विद्यालय में प्रवेश के लिए संस्कृतज्ञ प्राचार्य त्रिपाठीजी को किसी प्रमाणपत्र समय देने के लिए सहमत करने में था . मैं राजनीती में नहीं हूँ और मेरे राजनीतिज्ञ मित्र मेरी बात सुनते भी नहीं हैं पर जो बीड़ा उसने उठाया है उसमे सच्चाई है और वह देश के लिए आवश्यक है

  2. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का एक अवलोकन है- हम भारतीयों जैसी निष्ठाहीन जाति कम मिलेगी जिसने इतना अधिक प्रवचन दिया हो और उतना ही कम क्रियान्वयन.. हिन्दी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता उसका दृष्टान्त है।.

  3. श्याम रूद्र पाठक जी की गिरफ़्तारी की जितनी भी निंदा की जाए कम हॆ/सभी राष्ट भाषाई प्रमियो से अनुरोध हॆ वह राजनेतिक दलों से समर्थन मांगे जो दल समर्थन करे उसको चुनाबो में समर्थन दे /

    • सही कहा।
      मैं अंग्रेजी का विरोध करता हूं।
      और चुनाव के लिए आर्थिक, या अन्य सहायता, उन लोगों को नहीं दूंगा, जो संसद में अंग्रेजी के अतिरिक्त, कोई दूसरी भाषा नहीं बोलते।

  4. नीरज की चार पंक्तियाँ याद आ रही हैं.:-
    मुफलिसी, भूख, गरीबी से दबे देश का दुःख,डर है कल मुझको कहीं खुद से न बागी करदे,
    जुल्म की छांह में दम तोडती साँसों का लहू,मेरी रग रग में कहीं आग अंगारे भरदे,
    क्या यही स्वप्न था देश की आजादी का,रावी तट पे क्या कसम हमने यही खायी थी,
    क्या इसी बात पे तडपी थी भगत सिंह की लाश, जेल की मिटटी गरम खून से नहलाई थी?
    न तो मीडिया, न ही संवाद एजेंसियां और न ही राजनीतिक दल कोई भी भाषा के मामले में बोलना नहीं चाहते हैं.कल राजनाथ सिंह जी ने हिंदी के पक्ष में बोल था और कहा था की अंग्रेजी के कारन हमारे बच्चे संस्कार विहीन बन रहे हैं.आज मीडिया ने खासकर टाईम्स ऑफ़ इण्डिया ने इस पर राजनाथसिंह की आड़ में भाजपा के विरुद्ध खूब भड़ास निकली है.चीन की तरह पूरी सफाई के लिए सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता है.लेकिन चीन की तरह हिंसक हुए बिना.

  5. भारतीय भाषा सेनानी श्‍याम रुद्र पाठक का मैं समर्थन करता हूँ. और कोशिश करूंगा की ज्यादा से ज्यादा जन तक उनकी बात को पहुचाऊं.

  6. संसार का ९ वाँ आश्चर्य।
    क्या आप अपने पुत्र को उसके ही घर के आंगन में खेलने पर थप्पड मारोगे?
    बस, कुछ ऐसा ही चमत्कार भारत में हुआ है, ६५ वर्षों से हो रहा है।
    भारत के न्यायालयों में भारतीय भाषाएं स्वीकार्य नहीं है।
    पंजाब न्यायालय में पंजाबी नहीं,
    महाराष्ट्र में मराठी नहीं।
    उत्तरप्रदेश में हिन्दी नहीं।
    हमें स्वतंत्र होने की क्या आवश्यकता थी?
    जाओ! जाओ! बुलाके लाओ अंग्रेज़ को।
    कहो माईबाप वापस आओ।
    हम पर राज करो।
    आप की बहुत याद आती है, प्रियतम।
    आपकी अंग्रेज़ी बिना हम बिन पानी की मछली हैं।
    हम स्वतंत्र होने के योग्य है ही नहीं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here