राजस्थान रिसर्जेंट पर पड़ सकती है ग्रहण की छाया
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अभी ललित मोदी काण्ड की स्याही ठीक से धुल ही नहीं पायी थी कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार पुनः एक खान घोटाले की लपेट में आ गयी हैं | जहाँ वसुंधरा राजे अपनी ललित मोदी मामले से धूमिल हुई छवि को साफ़ करने के लिए अपने एक अति उत्साही निवेश प्रोग्राम “ राजस्थान रिसर्जेंट” को लेकर दिन रात एक किये हुए थी कि अचानक सिंघवी खान घोटाले के बादल बरस पड़े , जिसने इस बहु प्रचारित कार्यक्रम को संदेह के घेरे में ले लिया है | उन्नीस एवं बीस नवम्बर , २०१५ को होने वाले राजस्थान रिसर्जेंट समिट के माध्यम से दुनियां भर के निवेशकों के जयपुर में होने वाले सम्मलेन से वसुंधरा ने लगभग तीन लाख करोड़ का निवेश पाने का लक्ष्य रखा था | परन्तु अब विश्लेषकों को लगता है कि गत माह के सिंघवी खान घोटाले ने इस पर ग्रहण की कालिमा फेर दी है | हालाँकि वसुंधरा राजे ने अभी भी अपनी अति उत्साही योजना को सफल बनाने में कोई हार नहीं मानी है और लगातार प्रयत्न जारी हैं | अभी १६ अक्टूबर को राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री राजे , केंद्रीय खनन एवं इस्पात मंत्री नरेंदर सिंह तोमर तथा केन्द्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पीयुष गोयल की हाजिरी में विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी कंपनियों के साथ प्रदेश में खनन एवं ऊर्जा क्षेत्र में पचास हज़ार करोड़ से अधिक के तेरह एम ओ यू हस्ताक्षरित किये हैं | इससे पूर्व तेरह अक्टूबर को भी केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकेटा नायडू की उपस्तिथि में बारह हज़ार करोड़ के एम् ओ यू साइन किये थे | बार बार केंद्रीय नेताओं की उपस्तिथि स्पष्ट दर्शाती है कि राजे अपनी छवि सुधारने को कितनी आतुर है | परन्तु सिंघवी खान घोटाले की छाया के कारण सरकार को दस बड़ी कंपनियों के साथ खनन क्षेत्र में करार करने से हाथ खींचना पड़ा है ,ताकि खान घोटाले के ग्रहण से राजस्थान रिसर्जेंट समिट को कुछ हद तक बचाया जा सके | नतीजन सरकार को दस हज़ार करोड़ रुपये कम के एम ओ यू साइन करने पड़े | उल्लेखनीय है कि श्री सीमेंट , इमामी सीमेंट , वंडर सीमेंट तथा लाफार्ज सीमेंट कंपनियों को दिसम्बर ,२०१४ में खान आबंटित की गयी थी , जिसके कारण ये कंपनिया शक के दायरे में आ गयी हैं | इनके इलावा छः अन्य कंपनियों के साथ भी एम ओ यू नहीं हो पाया जिनकी केंद्र सरकार से अभी अनुमति नहीं आ पाई है | इसलिए इस मुद्दे के जानकार लोगों का मानना है कि सिंघवी खान घोटाले का असर राजस्थान रिसर्जेंट की सफलता पर अवश्य ही पड़ेगा |
क्या है सिंघवी खान घोटाला ?
सोने के अंडे देने वाली खान आबंटन प्रणाली पर राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी विभाग की टीम की अंदरखाने चल रही निगरानी का ही नतीजा था कि लगभग बीस करोड़ की रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ हो पाया |विभाग को १६ सितम्बर को खनन विभाग के अतिरिक्त निदेशक पंकज गहलोत की कॉल रिकॉर्डिंग के जरिए इस महा रिश्वत काण्ड का सुराख़ लगा , जिसके सहारे खान घोटाले के कथित मगरमच्छ खान विभाग के प्रमुख सचिव आई ए एस अशोक सिंघवी पकड़ में आ पाए | प्राप्त जानकारी के अनुसार कॉल रिकॉर्डिंग के आधार पर सबसे पहले कथित बीस करोड़ की रिश्वत की प्रथम किश्त के अढाई करोड़ की राशी लेते हुए पंकज गहलोत को हिरासत में लिया गया | गहलोत की हिरासत के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल नवदीप सिंह तथा आई जी पुलिस दिनेश एम एन ने मुख्यमंत्री को गोपनीय जानकारी देकर अशोक सिंघवी को गिरफ्तार करने की अनुमति लेकर हिरासत में ले लिया |
आरोप है कि मात्र ७२ दिनों के भीतर ०१ नवम्बर ,२०१४ से लेकर १२ जनवरी , २०१५ के मध्य पहले आओ पहले पाओ के आधार पर केंद्र सरकार के निर्देशों के विपरीत खान विभाग के प्रमुख सचिव अशोक सिंघवी के कार्यकाल में एक लाख बीघा की बहुमूल्य ६५३ खान निजी व्यक्तियों व कंपनियों को बन्दर बाँट कर दी गयी | हालाँकि राजे सरकार ने विपक्ष के हो हल्ले के बाद १७ अक्टूबर को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आबंटित ६०१ खनन पट्टों को निरस्त कर दिया है तथा राज्यपाल से सिफारिश करके लोकायुक्त से जाँच के आदेश भी करवा लिए हैं |
परन्तु प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इस से संतुष्ट नहीं है और वह सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर से मिलकर सी बी आई की जाँच की मांग कर चुकी है |
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलेट का कहना है कि सरकार द्वारा ६०१ खानों के आबंटन को रद्द करना स्पष्ट दर्शाता है कि खानों का आबंटन गलत था | उन्होंने आरोप लगाया है कि वसुंधरा सरकार ने इस आबंटन के जरिये केंद्र
के निर्देशों के विरुद्ध अपने चहेतों को ६५३ खान आबंटन करके प्रदेश को पेंतालिस हज़ार करोड़ रुपये की चपत लगाईं है | पायलेट ने इस पूरे खान आबंटन प्रकरण की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सी बी आई जाँच की मांग की है और कहा है कि मुख्यमंत्री राजे को तुरंत नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिये |
उधर भारतीय जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष अशोक परनामी ने सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि हमें नहीं पता कांग्रेस किन ६५३ खानों की बात कर रही है , हमने सभी ६०१ आबंटित खानो की लीज रद्द कर दी है तथा लोकायुक्त को जाँच सौंप दी है |उन्होंने कांग्रेस पर भी डबल स्टैण्डर्ड अपनाने का आरोप लगाया है | परनामी का कहना है कि कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अपने मुख्यमंत्री काल में जोधपुर स्टोन पार्क में अपने भाई भतीजों को एक एक हेक्टेयर की सैंड स्टोन खाने बांटी थी , जो बाद में विधान सभा में विवाद उठाने के कारण रद्द करनी पड़ी थी | परनामी ने गहलोत पर अशोक सिंघवी को बचाने का आरोप भी लगाया है | उन्होंने कहा है कि हिंदुस्तान जिंक को गलत तरीके से खान आबंटन प्रकरण में राज्य के भ्रष्टाचार विरोधी विभाग ने वर्ष २०११ में अशोक सिंघवी के खिलाफ जाँच की थी |जाँच में ए सी बी ने इस मामले में सरकार को ६०० करोड़ रुपये के नुक्सान पहुँचाने के आरोप सिंघवी पर लगाए थे परन्तु गहलोत सरकार ने उस समय ए सी बी जांच को दबाकर इसे विभागीय जाँच के दायरे में रख दिया था |
उठते सवाल ?
अशोक सिंघवी पिछली राजे सरकार में भी खान सचिव रहे हैं तथा इस कार्यकाल में भी भाजपा सरकार की वापसी के बाद फिर खान विभाग में प्रमुख सचिव बना दिया गया | आखिर क्यों ? जब भाजपा के अध्यक्ष परनामी यह आरोप लगाते हैं कि भाजपा के इन दोनों कार्यकालों के बीच की अवधि में वर्ष २०११ में कांग्रेस के कार्यकाल में सिंघवी ने सरकार को ६०० करोड़ का कथित नुकसान पहुँचाया था तथा अशोक गहलोत ने ए सी बी की जाँच को विभागीय जाँच में तब्दील कर दिया था ,तो क्यों भाजपा सरकार संदिग्ध कार्यशैली के अधिकारी को महत्वपूर्ण पद पर बार बार लगाती रही है ?आखिर किस का वृहद हस्त है सिंघवी के सर पर ? यदि भाजपा सरकार व उसकी मुख्य मंत्री व मंत्री बेक़सूर हैं तो क्यों सरकार कांग्रेस की सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में सी बी आई जाँच की मांग को स्वीकार नहीं कर लेती ? क्यों नहीं भाजपा सरकार अपने दोनों कार्यकालों तथा बीच के कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान हुई सभी खान आबंटन की अनियमितताओं की सी बी आई से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराकर कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा कर देती ? क्यों नहीं होने देती दूध का दूध ,पानी का पानी ?
खनन कांड में वसुंधरा के हाथ रेंज हुए नहीं है तो किसी अन्य मंत्री के हाथ रेंज हुए हैं अन्यथा इतना बड़ा घोटाला इतनी सहजता से सम्भव नहीं हो पता , जब सिंघवी ने केंद्रीय कानून की सुगबगाहट के बाद धड़ाधड़ आंवटन किये उस समय ही वसुन्धता को यह रोक देना चाहिए था , लेकिन उन्होंने ऐसा , पहले अशोक गहलोत भी ऐसे ही कर्म कर चुके हैं , उनका विरोध करने वाली वसुंधरा यह सब होने देती रही तो अंगुलियां तो उठनी ही थी व उठेंगी भी ,
वैसे भी रिसर्जेंट के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च करने वाली सरकार और कुछ कर भी नहीं रही है रिसर्जेंट के नाम पर ऐश गाह राजस्थान में सरकारों का शगल बन चूका है , इसमें दोनों ही दलों की सरकारें पीछे नहीं रही है , इस समय समझोते खूब होते हैं लेकिन वास्तिवकता के धरातल पर मूलगत ढांचे के अभाव में सब सपाट ही नज़र आता है जो कि वह असफलता है जिसे तत्कालीन सरकारें कभी भी नहीं मानती