बीसवीं सदी में भारतीय इतिहास के छः काले पन्ने: भाग 8

0
157

रामदास सोनी

काला पन्ना जो लिखा जा रहा है

पिछली कड़ी में हमने इस्लामिक आतंकवाद के बारें में संक्षेप में चर्चा की। विचार श्रृंखला के इस अंतिम भाग में अब दूसरे प्रकार के आंतकवाद के बारें में थोड़ा सा चिंतन करें।

भारत में मार्क्सवाद की विचारधारा से उपजे हुए विभिन्न संगठनों के आंतकवादी दस्ते सामाजिक न्याय के नाम पर जो हत्या और शोषण कर रहे है उससे रोज हमारा पाला पड़ रहा है। 20-20, 40-40 की संख्या में पुलिस व अर्धसैनिक बल के जवानों को मार दिया जाता है। मुखबीर होने के नाम पर निरीह ग्रामीणों की हत्या कर दी जाती है; तहसीलदार से लेकर प्रमुख शासन सचिव तक, विधायक से लेकर प्रधानमंत्री तक एक छोटी सी बैठक करते है, मृत लोगों की पार्थिव देह पर फूल चढ़ा आते है। अपने देश की बुराई और पुलिस की कमजोरियों पर चर्चा करते है, शाम को मस्ती में डूबो देने, क्लबों व अपने- अपने बंगलों के शयन कक्षों में चले जाते है। आश्चर्य तो यह है कि 63 साल से आजाद इस देश में अभी तक आंतकवाद से लड़ने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं बन पाई है। पलटकर या पहल करके आंतकवादियों पर हमला करना तो छोड़िए आंतकवादियों द्वारा घटना करने पर वे साम्प्रदायिक सद्भावना का शांति मन्त्र जपने लगते है। यह समझ से परे है कि एक मुस्लिम आंतकवादी का भारत में निवास करने वाले एक सामान्य मुस्लिम से क्या सम्बंध है? उसे क्यों शांत रहने के लिए कहा जाता है? यह भी तो भारत का नागरिक है! इस्लाम उसकी पूजा पद्धति है। केवल पूजा पद्धति के कारण तो एक नागरिक का आंतकवादी के साथ सम्बंध नहीं हो सकता? अगर पूजा पद्धति के कारण कोई आंतकवादियों को संरक्षण देता है, उनकी मदद करता है या उनसे लेनदेन करता है तो फिर मामला अलग है।

इन दिनों केन्द्र की यूपीए सरकार, सत्तारूढ कांग्रेस पार्टी के सभी दरबारी चारण एक नये प्रकार के आंतकवाद को प्रतिस्थापित करने के लिए पूरी ऊर्जा से प्रयत्नशील है। उनका मानना है कि भारत में दंगा-फसाद, विस्फोट, मारकाट होती है उसके लिए हमेशा से हिन्दू समाज जिम्मेवार है। उनके शब्दों में देश को इस्लामिक या माओवादी आंतक से नहीं वरन् हिन्दू आंतकवाद से खतरा है। अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ को साधने के लिए देशहितों को दांव पर लगाना तो कोई भी इन कांग्रेसियों से सीखे। अपने खिसकते जनाधार को फिर से पाने की कवायद के तहत अगर देश को एक और विभाजन की विभीषिका से भी गुजारना पड़े तो इन्हे कोई संकोच नहीं है। हिन्दू आंतकवाद जैसे कल्पित शब्द को महिमामण्डित करने और अपनी बात को साबित करने के लिए वर्तमान में सोनिया गांधी की रहनुमाई में चलने वाली सरकार ने अपने कुछ लक्ष्य तय कर लिए है:- हिन्दू समाज के पूज्य सन्त, मन्दिर और राष्ट्रवादी लोग यानि सीधे शब्दों में कहे तो सन्त, हिन्दू संस्कृति और संघ। ये तीनों लक्ष्य संधान होने तक सरकार और कांग्रेस के निशाने पर रहेगें। दीपावली के दिन शंकराचार्य की गिरफतारी, बाबा रामदेव के अनशन पर बर्बर पुलिस कार्रवाई, स्वामी असीमानंद और साध्वी प्रज्ञासिंह को हिरासत में लेकर उनको हिन्दू आंतकवादी प्रचारित करना और इन सबसे ऊपर वर्ष 2000 में वेटिकन सिटी के पोप द्वारा इस सदी में उनका लक्ष्य भारत का सम्पूर्ण ईसाईकरण का रहेगा। इसी बात को पुष्ट करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गैर कानूनी ढ़ंग से बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा प्रायोजित साम्प्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा (न्याय प्राप्ति एवं पुनर्भरण) 2011, राजेन्द्र सच्चर कमेटी की रिपोर्टस को लागू करवाने का प्रयास आदि है। देशवासियों को आज विचार करने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में हाथी से लेकर चींटी तक के भरण-पोषण की चिंता करने वाला, सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानने वाला और प्रत्येक धर्म के लगभग विलुप्त होने के कगार पर पंहुचे अंशों को अपने यहां शरण देने वाला हिन्दू समाज क्या वास्तव में इतना अधिक असहिष्णु हो गया है कि आज वो दुनिया का संरक्षण करने के स्थान पर दुनिया का विनाश करने पर आतुर हो गया है। खैर इस बात का निर्णय तो भविष्य करेगा, हम अपने मुख्य विषय पर फिर से आते है-

मेरा यह मानना है कि इस देश में आंतकवाद का यह नंगा नाच उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि देश के नेता वोटो के लिए तुष्टिकरण की राह पर चलते रहेगें। सरकार के प्रशासनिक अधिकारी जब तक आंतकवादियों के हमलों की मार में नहीं आते जब तक उनमें आंतकवाद से लड़ने की प्रेरणा वैसे ही नहीं आयेगी जैसे 9/11 से पहले अमेरिका को नहीं मिली थी। आज आवश्यकता है इन राजनेताओं व अधिकारियों के अंदर से तुष्टिकरण को मिटाने की। इन दोनो में सुधार की संभावना अगर समाप्त हो गई हो तो इन्हे हटाकर नया नेतृत्व खड़ा करने की।

बाकी पांच काले पन्नों की तरह यह पन्ना भी भारत के चेहरे पर अपमान और अवसाद से भरा एक बदनुमा दाग ना बन जाये। इसकी पराजय हमें सालों तक सालती न रहे। वह क्षण आये उससे पूर्व हमें देश का नेतृत्व बदलना होगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश में नारे लगाये जाते है लड़ के लिया है पाकिस्तान, जीत के लेगें हिन्दूस्तान। इन इरादो को न केवल इन देशों की धरती से बल्कि विश्व धरासे ही मुक्त करना होगा। जीयो और जीने दो के मंत्र को साकार करने के लिए सही तथा तेज और तकनीक की आवश्यकता है। वह भारत को प्राप्त करनी ही होगी। भारत को अपनी प्राकृतिक भूमिका में आना ही होगा। वह भूमिका है प्रखर देशभक्ति से तीक्ष्ण प्रहारक क्षमता रखने वाले देश की। एक ऐसा देश, जिसकी ताकत इतनी घातक हो कि उसकी शक्ति का भय ही शांति का कारण बन जाये। जैसे शेर को कोई खुजला नहीं सकता, उससे कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता। ऐसी ही धाक किसी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक होती है। भारत में होने वाली किसी भी आंतकवादी घटना का समूल नाश करने के सामर्थ्य से ही यह पन्ना पूरा लिखा जाये। उससे पहले फाड़कर फेंका जा सकता है। उससे भी आगे जाकर विश्व के किसी भी कोने में स्थापित आंतकवाद के अड्डे को समाप्त करने की क्षमता भी भारत में खड़ी करनी होगी। ठीक वैसी ही क्षमता जैसे राम ने रावण के राज्य में जाने से पहले खड़ी की थी। राम की वह व्यूह रचना आंतक को समाप्त करने का एक अचूक, सफल और परिणामकारक प्रयास था। जो आज भी कारगर है। राम का बनाया वह मार्ग सौ प्रतिशत सफलता की गांरटी है। ताड़का हो या मारीच, शूर्पनखा हो या रावण, राम के उत्तर की युगानुकूल व्याख्या कर वैसे ही प्राणांतक प्रहारों की आज आवश्यकता है, जिसे देश का जन नेता, दल व बलों में बड़ी अधीरता से ढूंढ रहा है। ( समाप्त)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here