सियासत के बाद घर में भी दिखी ‘दरार’

0
177

मुलायम-अखिलेश के बीच तनातनी
mulayam

संजय सक्सेना

यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही है। ताजा खबर यह है कि मुलायम और उनके मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव अब अलग-अलग घरों में रहेंगे। कहा जाता है कि मुलायम ने हाल-फिलहाल में जिस तरह से अखिलेश की भावनाओं और बातों को अनदेखा किया है उसकी बड़ी वजह ‘घर’ में ही मौजूद थी,इसीलिये अखिलेश ने ‘घर’ छोड़ने का ही मन बना लिया। अखिलेश यादव और पिता मुलायम सिंह यादव के बीच नाराजगी कितनी गहरा गई है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ दिनों से दोंनो ने एक-दूसरे से बातचीत तक करना ही बंद कर दी हैं। बताते चलें अभी तक पिता-पुत्र लखनऊ में पांच विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित बंगले में साथ-साथ रहते हैं। यह बंगला पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मुलायम सिंह को राज्य सरकार की तरफ से मिला है। अखिलेश यादव का आधिकारिक आवास 5 कालिदास मार्ग पर है, लेकिन वह अपनी पत्नी डिंपल यादव और बच्चों के साथ मुलायम सिंह के 5 विक्रमादित्य मार्ग स्थित घर में ही रहते हैं।
पांच विक्रमादित्य मार्ग स्थित घर में अखिलेश के परिवार के अलावा मुलायम सिंह, उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता और छोटे बेटे प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव भी रहते हैं। सीएम बन जाने के बावजूद अखिलेश यादव और उनकी सांसद पत्नी डिंपल भी यहीं रहते रहे,लेकिन अब रिश्तों में पड़ी दरार के बाद एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो रहा है।सूत्रों की माने तो अखिलेश ने जल्द से जल्द चार विक्रमादित्य मार्ग स्थित बंगला तैयार करने का आदेश दिया है। बस शुभ मुहूर्त का इंतजार है।
मुलायम अपने ही पुत्र के प्रति इतनी बेरूखी कैसे दिखा सकते हैं,यह सवाल सत्ता के गलियारांें में चुटकी लेकर सुना-सुनाया जा रहा है। कहने को तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को बड़े दिल का नेता माना जाता है। नेताजी के बारे में आम धारणा यही है कि उन्हें दोस्ती निभाने का सलीका खूब आता है, लेकिन दुश्मनी निभाने का सरूर जरा भी नहीं है। बड़े से बड़े दुश्मन और दगाबाज को मा्फ करके अपने साथ लाने वाले मुलायम कई बार ‘बड़ा दिल’ होने का आभास करा भी चुके हैं, लेकिन न जाने क्यों हाल ही में सपा से बाहर किये गये पुत्र अखिलेश के कुछ करीबी नेताओं को लेकर पिता मुलायम की त्योरियां चढ़ी हुई हैं, जबकि इन युवा नेताओं की गुस्ताखी इतनी भर थी कि उन्होंने अखिलेश के समर्थन में नेताजी के सामने नारेबाजी की थी। कहने को तो नये-नये प्रदेश अध्यक्ष बने शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश के करीबियों को बाहर का रास्ता दिखाया था,लेकिन कहीं न कहीं इसमंे मुलायम की भी सहमति थी क्योकि शिवपाल ने अखिलेश के करीबियों को पार्टी से निकाले जाने की जानकारी पहले ही मुलायम को दे दी थी।
मालूम हो कि गत 19 सितम्बर एसपी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह यादव, आनन्द भदौरिया तथा संजय लाठर और मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरव दुबे एवं प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष बृजेश यादव और समाजवादी छात्रसभा के प्रान्तीय अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देवो को पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने समेत कई आरोप लगाकर पार्टी से निष्कासित कर दिया था। सुनील सिंह यादव, आनन्द भदौरिया और संजय लाठर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद विश्वासनीय माने जाते हैं। साल 2012 के दौरान अखिलेश के चुनाव प्रचार अभियान में वे उनके साथ थे।
अखिलेश के करीबियों को पार्टी से निकाले जाने का प्रकरण काफी नाटकीय था 2017 के विधान सभा चुनाव से पूर्व परिवार के भीतर पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई ने चचा (शिवपाल)-भतीजे (अखिलेश), पिता (मुलायम)-पुत्र (अखिलेश) को आमने-सामने खड़ा कर दिया है।भाई(मुलायम)-भाई(शिवपाल) एक हो गये थे। अखिलेश अलग-थलग पड़ गये हैं।बाप-चाचा ने मिलकर पहले अखिलेश से समाजवादी पार्टी की प्रदेश अध्यक्षी छीनी। चचा नये अध्यक्ष बन गये। इससे बौखलाये अखिलेश ने कड़े तेवर दिखाते हुए बाप-चचा के कुछ करीबी नौकरशाहों और सरकार में शामिल मंत्रियों को मत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया तो यह बात नेताजी को काफी नागवार गुजरी। उन्होंने सख्त रवैया अख्तियार किया तो चचा शिवपाल ने भतीजे पर पद दबाव बनाने के लिये भतीजे की सरकार की मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया।
पानी सिर से ऊपर जाता देख मुलायम ने मोर्चा संभला। अखिलेश के पंेच कसे गये तो शिवपाल को फिर उनका पुराना सम्मान हासिल हो गया, लेकिन भतीजे अखिलेश ने यह जरूर करा की चचा से लोक निर्माण विभाग जरूर छीन लिया। यह बात शिवपाल को हजम नहीं हुई तो उन्होंने अखिलेश के करीबियों को बाहर का रास्ता दिखाकर नई मुसीबत खड़ी कर दी। उधर, काफी दबाव पड़ने के बाद अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल यादव के करीबी उन नेताओं को फिर से मत्रिमडल में शामिल कर लिया, जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया था। बाप-चचा के आगे अखिलेश मुंह नही खोल सके थे,फिर भी अखिलेश ने प्रतिकार करते हुए अनुशासनहीनता के आरोप में हाल में समाजवादी पार्टी (एसपी) से निकाले गये अपने युवा साथियों की दल में वापसी की उम्मीद जाहिर कर दी और विश्वास जताया कि पार्टी का अनुभवी नेतृत्व इस बारे में विचार करेगा। मुख्यमंत्री ने ‘मेगा काल सेंटर’ के लोकार्पण के अवसर पर संवाददाताओं से कहा था ‘‘मैं समझता हूं कि नौजवानों ने हमारे पक्ष में नारे लगाये थे, किसी के खिलाफ नहीं. हमें उम्मीद है कि पार्टी के अनुभवी नेता इस पर विचार करेंगे और हमारे आंदोलन के साथी युवाओं को वापस पार्टी में लाया जाएगा.’’लेकिन अभी तक अनुभवी नेताओं का दिल नहीं पसीजा है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या दर्शन सिंह यादव, बलराम सिंह यादव, अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान से भी बड़ी गुस्ताखी अखिलेश के करीबी नेताओं ने की थी। इतना ही नहीं जिन लालू यादव के कारण मुलायम पीएम बनते-बनते रह गये थे, उनसे तो नेताजी ने पारिवारिक रिश्ता ही जोड़ लिया। मुलायम पीएम नहीं बन पाये तो इसकी एक वजह लालू के अलावा सोनिया गांधी भी थीं, लेकिन उनकी सरकार को मुलायम दस वर्षो तक बिना शर्त समर्थन देते रहे। हद तो तब हो गई जब बिहार चुनाव के बाद वहां के महागठबंधन के नेताओं के कहने पर यूपी में गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिये सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने बसपा सुप्रीमों मायावती के साथ मिलकर चुनाव लड़ने तक को स्वीकृति दे दी थी। यह और बात है मायावती ने इस ‘हिमाकत’ के लिये मुलायम और जो बिहार के नेता यूपी में गठबधंन की बात कर रहे थे उन्हें प्रेस कांफे्रस करके खूब खरी-खरी सुनाई थी। यहां तक कह दिया था कि अगर उनकी बेटी के साथ ऐसा (स्टेट गेस्ट हाउस कांड, जिसमें आरोप है कि सपा नेताओं ने मायावती को बंधक बनाकर अपमानित किया था और उनकी जान लेना चाहते थे ) हुआ होता तो क्या वह इसके लिये तैयार हो जाते।
बात पुरानी है। अस्सी के दशक में मुलायम सिंह ने इटावा वाले बलराम सिंह यादव (अब स्वर्गीय) पर यहां तक आरोप लगाया था कि वह (बलराम यादव) उन्हें(मुलायम)जान से मार देना चाहते है। दोंनो के बी खूब ‘तलवारें’ खींची थी। इसी प्रकार नब्बे के दशक दर्शन सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव की दुश्मनी को कौन भूल सकता है। दोनांे एक ही इलाके से आते थे। दबदबे के लिये दोंनो के बीच अक्सर ‘गैंगवार’ जैसे हालात हो जाते थे। एक बार दर्शन सिंह के कारण चुनाव आयुक्त टी0एन0 शेषन ने मुलायम का चुनाव तक रद्द कर दिया गया था। आज दर्शन सिंह सपा में हैं। बलराम सिंह यादव भी मुलायम के साथ आ गये थे और अंत तक उनके साथ रहे थे।
2008 से लेकर 20015 तक के दौर को देखा जाये तो इस दौरान मुलायम के कई करीबियों ने उनका साथ छोड़ा था। बेनी प्रसाद वर्मा को कौन भूल सकता है,उन्होंने कांगे्रस में रहते क्या नहीं का था नेताजी को। मगर आज वह मुलायम की मेहरबानी से न केवल सपा में हैं,बल्कि राज्यसभा सदस्य भी हैं। यही हाल अमर सिंह का है। अमर ने तो कई बार सार्वजनिक मंचों से दोहराया था कि मुलायम के कई राज उनके सीने में दफन हैं,खुल जाये तो नेताजी जेल चले जायेंगे। आज अमर भी मुलायम की मेहरबानी से सपा में और राज्यसभा सदस्य हैं। अमर सिंह को लेकर अखिलेश नाराज रहते हैं। अखिलेश,अमर को बाहरी व्यक्ति बताते हैं,लेकिन हाल ही में बेटे की नाराजगी की परवाह न करते हुए मुलायम ने अमर सिंह का पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव तक बना दिया। इसी प्रकार जब मुलायम सिंह और कल्याण सिंह के बीच दोस्ती बढ़ी थी तो आजम खान गुस्सा होकर पार्टी बाहर चले गये थे।उस दौरान मुलायम को खूब खरी-खरी कहते थे,परंतु आज वह सपा में नंबर तीन-चार की हैसियत रखते हैं।
लौट-फिरकर यही सवाल है कि क्या अखिलेश के करीबियों ने उक्त नेताओं से भी बड़ी गुस्ताखी की थी। अगर नहीं तो फिर मुलायम परिवार की ‘हांडी’ में ऐसा क्या पाक रहा है जो अखिलेश अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। कहीं माॅ खो देने के बाद अखिलेश की परिवार और पिताजी से दूरी और नाराजगी बढ़ तो नहीं गई है।

Previous articleकाला धन : कुछ सवाल?
Next articleचीन की गिरगिट वाली औकात?
संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here