संयुक्त राष्ट्र में गुलाम कश्मीर

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प्रमोद भार्गव
कश्मीर के मुद्दे पर भारत का लचीला रूख दूर हो रहा है और उसकी आक्रामकता दिखाई देने लगी है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ द्वारा कश्मीर का राग अलापने पर दो टूक उत्तर देते हुए कहा कि ‘उसे कश्मीर की चिंता है तो पहले पाक अधिकृत मसलन गुलाम कश्मीर खाली करे,जिस पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।‘ इसी तरह कश्मीर से सेना मुक्ति की मांग को खारिज करते हुए करारा जवाब दिया कि ‘जरूरत सुरक्षा बल हटाने की नहीं,पाकिस्तान से आतंकवाद खत्म करने की है।‘ निसंदेह कूटनीति के स्तर पर पाक की हर ईंट का जवाब भारत ने पत्थर से देना शुरू कर दिया है। इसी का परिणाम है कि पाक को संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण करने में सफलता नहीं मिली। बावजूद पाक ने भारत से बातचीत के जो चार सूत्र रखे थे,उनमें चालाकी बरतते हुए यह भी जोड़ दिया कि नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बंदी की निगरानी संयुक्त राष्ट्र का कश्मीर में तैनात पर्यवेक्षण दल करे। मसलन द्विपक्षीय समझौते की आड़ में कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने की कोशिश करने से पाक बाज नहीं आया। अलबत्ता पाक के कब्जे वाले कश्मीर में जनता पाक सरकार और सेना के खिलाफ खड़ी होती दिखाई दे रही है। यही नहीं यहां की जनता गिलगित और मुजफ्फराबाद समेत कई क्षेत्रों में न केवल सड़कों पर उतरी,बल्कि भारत के समर्थन में नारे लगाते हुए कहा कि ‘पाकिस्तान से कहीं अच्छा भारत है।‘बदली हुई यह स्थिति यदि भारत की रणनीति का हिस्सा है तो निसंदेह इस कूटनीति की सराहना करने की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में नवाज शरीफ़ ने कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में चार बिंदू रखे थे। एक भारत कश्मीर से सेना हटाए। दूसरे,संघर्ष विराम का उल्लघंन नहीं करे और सियाचीन को सेना से मुक्त करे। तीसरे,कश्मीर विवाद का तुरंत हल करे और चौथे इस समस्या के निदान में कश्मीरियों की रायशुमारी शामिल की जाए। लेकिन इन सूत्रों के साथ में संयुक्त राष्ट्र के परिवेक्षण दल से कश्मीर में निगरानी की बात को भी जोड़ दिया था। संयुक्त राष्ट्र की महासभा में इन सभी सूत्रों को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जिस तार्किक बेवाकी के साथ खंडन-मंडन किया उनके जवाब में शरीफ़ मुंह लटकाए रह गए। फलस्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वराज की इस जोरदार प्रस्तुति की सार्वजनिक प्रशंसा की। सवालों के जबाव सुषमा स्वराज और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कड़ाई से उत्तर देते हुए कूटनीतिक रूप भी अपनाया। श्रीमति स्वराज ने कहा कि ‘यदि पाकिस्तान को कश्मीर की चिंता है तो वह पहले गुलाम कश्मीर खाली करे।‘ इसी तरह कश्मीर से सेना हटाने की मांग को निरस्त करते हुए कहा कि ‘पहले पाक को खुद आतंकवाद से मुक्त होने की जरूरत है।‘ दूसरी तरफ विकास स्वरूप ने भी शरीफ़ के सवालों के कूटनीतिक उत्तर ट्वीट करके दिए। उन्होंने कश्मीर व फिलीस्तान के लोगों का विदेशी कब्जाधारियों द्वारा दमन के शरीफ़ के आरोप के जबाव में ट्वीट किया कि ‘पाक प्रधानमंत्री ने विदेशी कब्जे की बात तो सही कही है,लेकिन कब्जा करने वाले की तरफ उनका इशारा गलत है। हम अपील करते हैं कि पाक,पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को जल्द खाली करे।‘ दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के प्रथम सचिव अभिषेक सिंह ने पािकस्तानी बयानों का बिंदुवार खंडन करते हुए कहा कि ‘पाकिस्तान आतंकवाद को सरंक्षण देने की अपनी ही नीतियों का शिकार हो गया है,क्योंकि वह आतंकवाद की नीतियों को एक जायज औजार के रूप में ले रहा था,जो अब उसके गले की फांस बन गई है।‘ तय है,विदेश मंत्रालय की टीम ने भारत के पक्ष को मजबूती से रखने में सफलता हासिल कर ली है।
सुषमा स्वराज ने फिर भी उदारता दिखाते हुए अंत में कहा कि,चार सूत्रों की जगह इस समस्या के हल के लिए एक सूत्र पर्याप्त है। वह है कि ‘आंतकवाद को सरंक्षण देना बंद करिए और बैठकर बात करिए।‘ इस बेवाक जबाव से यह पैगाम दुनिया के पास गया है कि पीओके समेत संपूर्ण कश्मीर भारत का अभिभाज्य अंग है। हालांकि इस मुद्दे पर पीवी नरसिंह राव सरकार ने भी कड़क रुख अपनाया था। तब इस सरकार ने भारतीय संसद में बाकायदा इस मकसद का प्रस्ताव पारित किया था कि पाक अधिकृत कश्मीर के साथ वह भू-भाग जो पाक ने चीन को बेच दिया है,वह भी हमारा है। इस प्रस्ताव ने संपूर्ण कश्मीर पर हमारे दावे को मजबूत किया था। इसके बाद की अटल बिहारी वाजपेयी और दस साल तक केंद्र में काबिज रही मनमोहन सरकारें इस दावे को मजबूती से संयुक्त राष्ट्र के मंच पर उठाने में पीछे रहीं। यह सही भी है कि जब राजा हरिसिंह कश्मीर के शासक थे तब पाकिस्तानी कबाइलियों ने अचानक हमला करके कश्मीर का कुछ हिस्सा कब्जा लिया था। तभी से पाकिस्तान उसे अपना बताता आ रहा है,जो पूरी तरह असत्य है। यह अच्छी बात है कि नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारत के पक्ष में इस दावे को ताकत से अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाकर यह साबित कर दिया कि पाक अधिकृत कश्मीर न केवल उसका है,बल्कि वहां के लोग गुलाम कश्मीर को भारत में शामिल करने के पक्ष में भी आ रहे हैं।
पाक अधिकृत कश्मीर में पाक सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्षन हो रहे हैं,तो उसकी वजह वहां रह रहे नागरिकों का शोषण और दमन है। इस दमन की तस्वीर उस वीडियो से सामने आ गई है,जिसका प्रसारण हाल ही में टीवी समाचार चैनलों पर हुआ है। समाचार में बर्बर अत्याचार से जुड़े जो चलचित्र देखने को मिले वे रूह कंपा देने वाले हैं। एक क्लीपिंग में एक पाकिस्तानी सैनिक एक कश्मीरी के गले में कुत्ते के गले में बांधने वाला पट्टा डाले हुए हैं और उसे बेहरमी से घसीट रहे हैं। उसके पीछे चलने वाले तीन सैनिक उसकी पीठ पर जूते की नोक से ठोकर मार रहे हैं। इस पीडि़त व्यक्ति के ईदर्गिद भीड़ चल रही है,जो पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ नारे लगा रही है। एक दूसरे फूटेज में एक युवक को पाक फौजी घर में घुसकर बाहर खींच रहे हैं और घर की महिलाएं युवक को बख्श देने के लिए रोते हुए गिड़गिड़ा रही हैं। पाकिस्तानी सेना की जघन्य बर्बरता और खिलाफत से संबंधित इस वीडियो से हुए खुलासे को पाक सरकार फर्जी बता रही है और वीडियो की सत्यता परखने की मांग उठा रही है। वीडियो की प्रामाणिकता की मांग कतई गलत नहीं है,लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर में पिछले कुछ सालों से लगातार इस्लामाबाद के खिलाफ माहौल बन रहा है और आजाद कश्मीर की आवाज बुलंद हो रही है। इसलिए इस वीडियो की सच्चाई को एकाएक नकारा नहीं जा सकता है।
दरअसल पीओके पाकिस्तान के लिए एक तरह से बहिष्कृत क्षेत्र है। वहां के लोगों के साथ निम्न स्तर के पुलिसिया हथकंडे अपनाए जाते हैं। यहां महिलाओं को वोट का अधिकार नहीं है। नौजवानों के पास रोजगार नहीं है और लाचार व गरीब महिलाओं का जबरन वैश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। पीओके में एक बड़ी आबादी शिया मुसलमानों की है,जो शेष पाकिस्तान में शिया मस्जिदों पर हो रहे हमलों से आतंकित हैं। दूसरी तरफ पीओके के निकट खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत और कबाइली इलाकों में तालिबान और पाक फौज के साथ जारी संघर्ष का असर गुलाम कश्मीर पर प्रत्यक्ष व अप्रत्क्ष रूप से पड़ रहा है। फलस्वरूप खेती-किसानी,औद्योगिक-प्रौद्योगिक विकास,सड़कें,रोजगार और पर्यटन की सुविधाओं से यह क्षेत्र जुदा है। स्वास्थ्य और शिक्षा का भी यहां सर्वथा अभाव है। इसलिए यहां के लोग खासकर युवा पीढ़ी नियंत्रण रेखा के इस पार,मसलन जम्मू-कश्मीर के लोगों जैसे जीवन की महत्वाकांक्षा पालने लग गई है।
पीओके के जनमामनस में यह अंगड़ाई इसलिए करबट ले रही है,क्योंकि 2005 में जब पीओके में भूकंप आया था तो उसमें करीब 50,000 लोग मारे गए थे,लेकिन पाक सरकार ने भूकंप प्रभावित क्षेत्र में राहत के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए। इसी तरह पिछली साल जब पीओके समेत पूरे कश्मीर में झेलम नदी की बाढ़ ने तबाही मचाई तो भारत ने तो अपने कश्मीर में प्रभावितों के कल्याण के लिए युद्धस्तर पर सेना को लगाया। हेलिकाॅप्टरों से कश्मीरियों को बाढ़ग्रस्त इलाकों से निकाला और खाद्य सामग्री पहुंचाई। किंतु पाक ने भारत का अनुकरण नहीं किया और बाढ़ग्रस्त जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया। इसके उलट प्रधानमंत्री मोदी ने जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ को मानवीयता के आधार पर मदद का संदेश भेजा तो शरीफ़ ने उसे अहंकार के चलते ठुकरा दिया। नतीजतन पीओके में पाक के विरोध और भारत के समर्थन में पृष्ठभूमि तैयार होती चली गई। भारत के लिए यह ऐसा अवसर है,जिसे कूटनीति के स्तर पर भुनाने की जरूरत है,यह ठीक भी रहा कि भारत इन हालातों को अपने हित में करने की पुरजोर कोशिश में लग गया है।

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