निशीथ सकलानी
उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून स्थित चाय बागान भूमि की खरीद-फरोख्त को लेकर सरकारी धन को ठिकाने लगाने की चर्चाओं से इन दिनों पूरे प्रदेश में हड़कम्प मचा हुआ है।
स्मार्ट सिटी के नाम पर एक ओर जहां सैंकड़ों एकड़ चाय बागान की भूमि को खुर्द-बुर्द करने का सरकारी प्रयास चल रहा है। वहीं दूसरी ओर इस भूमि की खरीद को लेकर भी अब राज्य सरकार पर अंगुलियां उठने लगी हैं। एक तरफ राज्य सरकार केंद्र सरकार से ग्रीन बोनस की मांग कर रही है और दूसरी तरफ हजारों पेड़ों को काट कर हरियाली को तहस-नहस करने पर आमादा है। हैरानी तो इस बात की है जब कोई जमीन मात्र 220 करोड़ में आम बाज़ार में बिकने को थी तो सरकार उसमें से मात्र 1200 एकड़ के 1750 करोड़ क्यों दे रही है।
देहरादून की शान समझे जाने वाले चाय बगान की इस भूमि को लेकर पूर्व में भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा है। सबसे पहले यह जमीन पंडित नारायण दत्त तिवारी के शासन काल में सुखिऱ्यों में आई थी लेकिन तब से लेकर आज तक इसका सौदा नहीं हो पाया, इस जमीन को लेकर कभी सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का नाम चर्चाओं में रहा तो कभी किसी और औद्योगिक घराने को इससे जोड़ कर यह जमीन सुखिऱ्यों में रही। चर्चा है कि कुछ दिनों पहले तक चाय बगान की समूची जमीन देहरादून सहित दिल्ली व कोलकाता तक के दलालों के पास एक सौदे के रूप में थी जिसकी कीमत तब मात्र 220 करोड़ आंकी गयी थी लेकिन इतनी कीमत में भी ग्राहक नहीं मिल रहा था, क्योंकि इतनी बड़ी रकम लगाने वाले इस बात से संतुष्ट नहीं थे कि कैसे यहाँ खड़े हजारों पेड़ों को काटा जायेगा और कैसे इस जमीन पर खड़े चाय के पेड़ों को रौंदा जायेगा, इस भूमि के भू-उपयोग को बदले जाने को लेकर भी वह संशय की स्थिति में थे। इन तमाम कारणों को देखते हुए तब यह जमीन बिक नहीं पा रही थी, लेकिन केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना के आते ही मसूरी देहरादून प्राधिकरण सहित जमीनों पर नज़र रखने वाले सफेदपोशों की गिद्ध नज़र से यह बच नहीं पायी और उन्होंने इस जमीन को खरीदने की राह में आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए एमडीडीए के एक चर्चित अधिकारी को उन सारी प्रशासनिक व न्यायिक शक्तियों से लैस कर दिया ताकी इस जमीन के रास्ते में आ रही क़ानूनी अडचनों को दूर कर उनकी कमाई का मार्ग प्रशस्त हो सके, इसके बाद जमीन की बोली का खेल शुरू हुआ।
चर्चाओं के अनुसार पहले इस जमीन का सौदा 220 करोड़ में तय हुआ लेकिन राज्य सरकार ने भुगतान की राशि को 1720 करोड़ तक पहुंचा दिया। यह भी चर्चा है कि सरकार ने कुल 1200 एकड जमीन लेने का मन बनाया है। जबकि स्मार्ट सिटी के लिए मात्र 250 एकड़ भूमि की ही आवश्यकता बताई गयी है। एमडीडीए यह नहीं बता पा रहा है की वह शेष जमीन किसके किये और क्यों खरीद रहा है। गौरतलब है कि चाय बगान की यह जमीन आर्केडिया, हरबंशवाला, अम्बीवाला, उम्मेदपुर, सेंवला, बनियावाला इलाकों में आती है।
राजधानी में चर्चा का विषय बने चाय बागान को लेकर कहा जा रहा है कि इस डील में कई सफ़ेद कालर सहित सफ़ेदपोश लोगों का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है। अन्यथा इससे सस्ती जमीन तो राजधानी देहरादून के आस पास ऋषिकेश में खंडहर हो चुके आईडीपीएल की मिल सकती थी। चांैकाने वाली बात तो यह है कि चाय बगान की यह जमीन भारतीय मिलिट्री अकादमी के पास ही स्थित है और यह संस्थान देश के सर्वाधिक सुरक्षित रक्षा संस्थानों में शुमार है। यहाँ से प्रति वर्ष सैकड़ों सैन्य अधिकारी पास आउट होकर देश की सेवा के लिए सीमाओं सहित अन्यत्र तैनात के लिए जाते हैं यही कारण है कि यह संस्थान देश के चुनिन्दा रक्षा संस्थानों में एक है।
राज्य सरकार के अनुसार उसने चीन के विश्वविद्यालय के साथ चाय बगान इलाके में बनने वाली स्मार्ट सिटी के लिए समझौता करने का मन बनाया है। ऐसे में सैन्य अधिकारियों को चिंता है की इस बात की क्या गारंटी है कि चीन के लोग जो यहाँ विश्वविद्यालय बनाने आयेंगे उनके साथ उनकी गुप्तचर एजेंसीज के लोग नहीं आयेंगे? पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है जब आईएमए पिछले कई सालों से मांग रहा है कि यह जमीन देशहित में उनको सौंप देनी चाहिए तो उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। इसमें संदेह नहीं कि इस भूमि पर सरकार की स्मार्ट सिटी योजना से देश की सुरक्षा के साथ यहां खिलवाड़ हो सकता है। विचारणीय विषय यह है कि सिक्कम व नागालैंड में तो हम चीन के एक कदम पर भी भारत की सीमा में प्रवेश पर फ्लैग मीटिंग व हो हल्ला मचा देते हंै और यहाँ तो हम स्वयं ही चीनियों को वह भी भारतीय सैन्य अकादमी के पास ही आमंत्रित कर रहे हैं जो देश की सुरक्षा के लिए कतई भी ठीक नहीं। सबसे विवादास्पद मामला यह है कि एक ओर तो राज्य सरकार केंद्र से जंगलों को बचाने के एवज में ग्रीन बोनस की मांग करती आ रही है जबकि दूसरी ओर वह अपने ही यहाँ सैकड़ों सालों से देहरादून की शान रहे चाय बगान पर खुद ही कंक्रीट का जंगल उगाने के लिए इसे तहस नहस करने पर तुली है। केंद्र की निति के अनुसार जब मात्र 200 एकड़ में स्मार्ट सिटी बन सकती है तो 1700 एकड़ जमीन हथियाने का औचित्य समझ से परे है। भाजपा के नेता सतपाल महाराज का यह कहना सही है कि यह हैरिटेज श्रेणी में आता है और इसको उजड़ने के बाद चाय बागानों में काम कर रहे मजदूरों के सामने रोज़गार का संकट खड़ा हो जायेगा। उनका मानना है कि चाय बागान की भूमि पर स्मार्ट सिटी का निर्माण होने से यहाँ निवास करने वाले जीव जंतुओं का जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा और यहाँ की जैव विविधता भी संकट में पड़ जायेगी। इसलिए चाय बगान को बचाया जाना जरूरी है।
लेखक परिचयः-निशीथ सकलानी, सम्पादक, ‘अनंत आवाज’, राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका,
जब भी कुछ विकास की बात आती है तो कुछ लोग कोई तर्क दे कर उसे जायज ठहराते है तो कुछ लोग उसे तर्क के सहारे गलत ठहराने की कोशीस करते है। लेकिन इन तर्को, कुतर्को , आरोपो और आशंकाओ के चक्कर में रहेगे तो फिर विकास तो होने से रहा। स्मार्ट सिटी विकास के हब बनेगे ऐसा मुझे विश्वास है। भारत में लम्बे समय से शहरी और ग्रामीण सुविधाओ का विकास बेहद बेतरतीब ढंग से हुए है। नियोजित एवं योजनापूर्ण विकास के मॉडल आज से 25 वर्ष बाद युगांतकारी परिवर्तन लाएंगे।
यक्ष प्रश्न,इसको बचाने के लिए कौन आगे आएगा?