‘कार वालों पर मेहरबान सरकार’

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carअभी हाल में सत्र 2014-15 के लिए पेश किये गए अंतरिम बजट में कारों पर टैक्स कम कर वित्त मंत्री ने ‘कार-सेवा’ ही की है. यह भी तब जब कि देश के मध्य एवं उच्च वर्ग की सेवा के लिए विश्व के अनेक कार निर्माता स्वयं यहाँ पर कारें बनाने को आतुर हैं. राष्ट्रीय शहरी यातायात नीति (NUTP) भी निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन के प्रयोग को प्राथमिकता देती है. कारों की खरीद के लिए पैसों की व्यवस्था में भी सरकार ने कुछ योगदान किया. कुछ महीने पहले सरकार ने सातवें वेतन आयोग का गठन कर वास्तव में ‘कार सेवा’ ही की थी. मध्य वर्ग के लिए कार रखना एक Status Symbol है. ‘टेरी’ (१) के एक अध्ययन के अनुसार मुख्यतः उच्च-मध्य वर्ग परिवारों में आय बढने के साथ-साथ एक से अधिक कारें रखना सुविधा से अधिक जरूरत बन जाती है.

पिछले दस वर्षों में दिल्ली सरकार की उपलब्धियों में अनेकों फ्लाई-ओवर्स, पार्किंग स्थल आदि का निर्माण गिनाया जाता है. परंतू नयी कारों के रजिस्ट्रेशन पर कोई नियंत्रण न करने से आज भी सड़कों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति वैसी ही बनी हुई है. जापान जैसे समृद्ध देश में भी नयी कार का रजिस्ट्रेशन तभी किया जाता है जब कार मालिक पार्किंग सुविधा का प्रमाण देता है. सिंगापुर एवं हाँगकॉंग जैसे समृद्ध शहरी देशों का कुल उत्पाद दिल्ली तथा चेन्नई से कहीं ज्यादा होने पर भी कारों की संख्या कम है. भारत के प्रतिस्पर्धी चीन ने भी अपने अनेक बड़े शहरों में कार रजिस्ट्रेशन का कोटा तय किया हुआ है. दिल्ली और बंगलौर में लगभग तीस हज़ार कारें प्रति-माह रजिस्टर होती हैं जबकि शंघाई शहर में केवल 7 से 8 हज़ार देश के अनेक बड़े शहर बड़ी तेज़ी से दिल्ली एवं बंगलौर की बराबरी पर पहुँच रहे हैं.

देश पेट्रोलियम पदार्थों की अपनी जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है. यदि कारों की संख्या में इसी तरह की वृद्धि होती रही तो अगले 15 वर्षों में आयात पर यह निर्भरता बढ़ कर 90 प्रतिशत हो जायेगी. खाड़ी देशों की अस्थिरता के चलते देश के लिए यह एक बड़ी समस्या बन सकती है.

देश में महंगाई का मुख्य कारण देसी एवं विदेशी बजट का घाटा है. विदेशी बजट घाटे में पेट्रोलियम पदार्थों के आयात का, जो कि कुल आयात का लगभग एक तिहाई होता है, मुख्य योगदान रहता है. जिस तेज़ी से निर्यात बढ़ता है उससे कहीं अधिक तेज़ी से आयात बढ़ जाता है. रुपये के अवमूल्यन से भी विदेशी बजट घाटा बढ़ता है. निर्यात बढाने के लिए खनन का सहारा लेना पड़ता है, जिसके वैध और उससे कहीं ज्यादा अवैध खनन से गाँव उजडते हैं, जंगल कटते हैं और साथ ही देश की संपत्ति का भी निर्यात हो जाता है. विकास के लिए खनिज पदार्थ संपदा से कम नहीं होते हैं.

देसी घाटे का मुख्य कारण भ्रष्टाचार है, जिसमें टैक्स की चोरी, योजनाओं में भ्रष्टाचार आदि अनेक बिन्दु शामिल हैं. इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार देश के सार्वजनिक संस्थानों में अपने शेयर्स बेचती है, जिसे खरीदने में निजी पूंजी के अलावा विदेशी पूंजी भी शामिल रहती है. यह भी एक प्रकार से घाटा पूरा करने के लिए देश की संपदा को बेचना ही है.

इस देश की अधिकांश जनता ‘बे-कार’ अथवा बिना कार वाली है. अनियोजित क्षेत्रों में काम करने वाली यह जनता महंगाई से सबसे अधिक प्रभावित होती है, क्योंकि इसे कोई महंगाई भत्ता नहीं मिलता. काश इस देश की गरीब जनता को इन विषयों की समझ होती अथवा मई 2014 में जनता के नाम पर नए राज्य करने वालों में ईश्वर कुछ भावुकता पैदा करे.

 

(१) ‘टेरी’ The Energy and Resources Institute, TERI

 

 

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