क्यों कहूँ मैं कि सुबह का अलार्म मुझे सोने नहीं देता ?
जबकि वह तो सूर्य देव के स्वागत में मुझसे गुस्ताखी होने नहीं देता।
प्रथम किरण पर सवार भोर, करती है मुझे आत्म विभोर,
सुबह की वह भागदौड़, रसोई के कामों की होड़,
रोज एक नई स्पर्धा को जन्म देती है, जिसमें अक्सर मैं जीत जाती हूँ,
हर रोज़ नई चुनौतियों पर, जीत का खिताब मैं सजाती हूँ।
क्यों कहूँ कि सुबह का अलार्म मुझे सोने नहीं देता…….
हाथों में लेसन प्लान, हृदय भरे उमंगो की उड़ान,
विषय को रस से सँजोती हूँ, मासूम दिलों में सृजन का बीज बोती हूँ।
अमीर-गरीब अनुशासित-उद्दंड के भेदभाव से परे, सभी विद्यार्थी हैं मुझे प्यारे,
हारी बाजी को जीतने का सबक सिखाती हूँ, मैं अध्यापिका कहलाती हूँ।
उम्र के हर पड़ाव में अपने भीतर यौवन का स्पंदन पाती हूँ,
बच्चों के बीच बच्चा बनकर रोज़ जीवन का आनंद उठाती हूँ, मैं अध्यापिका कहलाती हूँ, मैं अध्या