संवेदनहीन होता समाज 

अक्सर बच्चे गलती करते हैं और बच्चों की गलती सुधारने के लिए इस दुनिया में माता-पिता होते हैं, बच्चे की पहली पाठशाला भी माता-पिता ही होते हैं, जहां से बच्चा शिष्टाचार सीखता है। माता-पिता वह तोहफा है जो हमें हर गलत काम करने से रोकते हैं और हमें सही राह दिखाते हैं, लेकिन किसी गलती की सजा इतनी बड़ी हो सकती है की कोई अपना पिता धर्म छोड़कर इंसानियत ही भूल जाएं और बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार करें की बच्चा सीख के बजाय उसी मार्ग पर चले जिस क्रूरता के मार्ग पर पिता है।

ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक वीडियो जिसमें एक पिता की बर्बरता साफ तौर पर देखने को मिल रही है। यह वीडियो राजस्थान के राजसमंद जिले का है। वीडियो में कथित तौर पर एक हैवान पिता अपने दो मासूम बच्चों की बेरहमी से पिटाई कर रहा है। हैवानियत की हद पार कर चुका यह पिता अपने बेटे के गले में फंदा डाल उसे लटकाकर पीट रहा है तो वहीं आरोपी अपनी मासूम बेटी की भी बेरहमी से बेंत से पिटाई कर रहा है। वीडियो में देखा जा सकता हैं कि एक 2 साल का लड़का अर्धनग्न हालत में रस्सी के सहारे फंदे पर झूल रहा है। फंदा उसके गले में है और उसने अपने हाथों से रस्सी को पकड़ रखा है। फंदे पर लटक रहे मासूम को वीडियो में दिख रहा शख्स (कथित तौर पर पिता) बेंत से पीट रहा है। पास ही में एक बच्ची (उम्र करीब डेढ़ से दो साल) खड़ी है और जल्लाद बन चुका पिता उसे भी बेंत से पीटने लगता है। वह मासूम की इस कदर पिटाई करता है कि वह बच्ची वहीं पेशाब कर देती है। हैवान पिता का दिल इतने में भी नहीं पसीजता है और वह एक बार फिर दोनों को बुरी तरह पीटने लगता है।

गौरतलब है कि हाल में निर्दयी समाज का एक और वाक्या सामने आया था। जिसमें पिता की बर्बरता के स्थान पर एक पुत्र की निर्दयता देखने को मिली थी। यह वाक्या गुजरात के राजकोट शहर का था। जहां एक कलयुगी बेटे ने अपनी बीमार मां से छुटकारा पाने के लिए उन्हें चौथी मंजिल से फेंक दिया। आरोपी पेशे से प्रोफेसर है। इस मामले की जब पुलिस ने जांच शुरु की और वहां लगे सीसीटीवी खंगाले तो जो सामने आया उसे देखकर पुलिसवाले भी दंग रह गए। अब आरोपी जेल की सलाखों के पीछे है। इसी तरह कर्नाटक राज्य के बंगलौर, जो की एक आईटी सिटी भी है, से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमे एक पिता अपने बेटे को बेरहमी से पीटे जा रहा है, बच्चा रोते हुए चिल्लाये जा रहा है और अपने पिता से माफी मांगे जा रहा है, परन्तु बच्चे का पिता निर्दयी बनकर बच्चे को फिर भी मारे जा रहा है।

सोचनीय है कि एक पिता जो अपने बेटे को जन्म देता है, जिसे कंधे पर बैठाकर घूमाने से गर्व की अनुभूति महसूस करता है। वहां लापरवाह होकर पिता कैसे अपने जिगर के टुकडे को राक्षस बनकर इतनी बुरी तरह से मार सकता है कि नौबत उसके जान जाने तक की आने लग जाए ? वहीं एक पुत्र अपनी जन्मदात्री माँ के प्राण लेने के लिए जरा भी संकोच नहीं करता है। जिस बेटे को जिन हाथों ने खिलाया, छाती से लगाकर दूध पिलाया, खुद गले में सो कर उसे सूखे में सुलाया वही बेटा हैवानियत की सारे हदें लांघकर इतना बेगैरत हो जाता है कि अपनी माँ के बेरहमी से प्राण ही ले लेता है। यकीकन ! आज देश के अलग-अलग राज्यों से ऐसी घटनाएं रोज देखने और सुनने में आ रही हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें खूब वायरल भी किया जा रहा है। हर कोई ऐसी निर्दयता और हैवानियत को देखकर दंग व हैरान हो रहा है। हर किसी के मन में यही सवाल पैदा हो रहा है कि एक पिता और एक पुत्र अपने नैतिक दायित्वों से इतर जाकर ऐसी करतूतों को कैसे अंजाम दे सकते हैं ? क्या ऐसे लोग इंसान कहलाने के लायक भी हैं ? ऐसी घटनाएं समाज की संवेदनहीनता को जगजाहिर करती हैं।

यह कहते हुए जरा भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हम आज ऐसे समाज में जी रहे है जहां हर इंसान फेसबुक पर अपनी मित्रता सूची को लंबी करने में जुटा है। घंटों-घंटों का समय फेसबुक और वाट्सएप पर दूर-दराज बैठे अज्ञात मित्रों से बातचीत करने में बिताया जा रहा है। नजदीकी लोगों से बात करने के लिए किसी के पास समय नहीं है। इसलिए संवेदनहीन समाज के तथाकथित सभ्य लोग किसी दुर्घटना में घायल हुए इंसान को बचाने की बजाय अपने पर्सनल स्मार्ट फोन से वीडियो बनाना ज्यादा जरूरी समझते हैं। यह समझ से परे है कि हम तकनीकी तौर पर उन्नति करके विकास कर रहे हैं या फिर अपने मूल्यों, दायित्वों और संस्कार से सिसककर अवनति को गले लगा रहे हैं ? यदि ऐसी घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही है तो हमारे देश और सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ा संकट है। दरअसल यह मामला न तो पुलिस का है और न देश की कानून व्यवस्था का है। यह मामला समाज का है। ऐसे मामलों में हमें सोचने की आवश्यकता है कि समाज में निरंतर हिंसा की घटनाएं क्यों बढ़ रही है ? कही दहेज के लिए बहूएं जलाई जा रही है तो कही बेटी के भ्रूण को गर्भ में मारा जा रहा है। बुज़ुर्ग डरे और सहमे जीने को क्यों विवश है ? प्रेम और भाईचारा क्यों दम तोड़ रहा है ? इन सब के पीछे हमारा संस्कारों से पलायन और नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीन रवैया ही दोषी हैं। हमें आधुनिकता के व्यूह में फंसे अपने रिश्तों, मर्यादाओं और दायित्वों को सुरक्षित बचाकर उन्हें जिंदा रखने की महती आवश्यकता है।

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