आज कोई याद मुझको !

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आज कोई याद मुझको, स्वप्न में आया किया;
प्रीति में हर्षा रुला कर, प्राण को परशा किया !

प्रणव की हल्की फुहारें, छोड़ वह गाया किया;
प्रवाहों की प्रगढ़ता में, प्रवाहित मुझको किया !
दूर से आयाम आ, आरोह का स्वर दे गया;
रूह हर हरकत विचरता, रोशनी मुझको दिया !

जागरण की चौखटों पर, खटखटाता वह गया;
आँख मूँदे शिशु वत, सहला सुला चाहा किया !
उझकता पलकों की सिहरन, स्मरण की झाँकियाँ;
थपथपा लख मुस्कराहट, ‘मधु’ का प्रभु रह गया !

रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’

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