बसंत पंचमी, 22 जनवरी 2018 पर कुछ विशेष…

हमारे देश भारत में वसंत पंचमी को अबुझ मुहूर्त माना जाता है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते है। ज्योतिष में पांचवी राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्यनारायण होते है। इसलिए वसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। इसलिए सभी कार्य इस दिन शुभ होते है।

वसन्त पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती जी की पूजा की जाती है। इसे पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और और कई राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र पहनती है।

प्राचीन भारत और नेपाल में पुरे साल को जिन छः मौसमों में बांटा जाता है उनमे सबसे मनचाहा मौसम बसंत ही था। इस मौसम में फूल खिलने लगते है, खेतों में सरसो लहलहा उठती है, जाऊ और गेहूं की बालियां खिलने लगती है, आमों के पेड़ पर बौछारें आ जाती है और हर तरफ रंग बिरंगी तितलियाँ मजंदराने लगती है। वसंत ऋतू का स्वागत करने के लिए पांचवे दिन बड़ा उत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन विद्यार्थी अपनी आराध्य यानी देवी सरस्वती का पूजन करते है।

वसंत ऋतु हमारे जीवन में एक अद्भुत शक्ति लेकर आती है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी ऋतु में ही पुराने वर्ष का अंत होता है और नए वर्ष की शुरुआत होती है। इस ऋतु के आते ही चारों तरफ हरियाली छाने लगती है। सभी पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं। इसी स्वाभाव के कारन इस ऋतु को ऋतुराज कहा गया है। इस ऋतु का स्वागत बसंत पंचमी या श्रीपंचमी के उत्सव से किया जाता हैं।
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क्या है पीले रंग में रंगने का राज ?
जानिए क्यों पहने जाते हैं पीले रंग के कपड़े ?

पीला रंग हिन्दुओं का शुभ रंग होता है। बसंत ऋतु के आरंभ में हर ओर पीलाही रंग नजर आता है। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के चावल बनाये जाते है। पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बनायीं आती है। खेतों में सरसों के फूल पीले रंग को प्रदर्शित करते हैं। हल्दी व चन्दन का तिलक लगे जाता है। सभी लोग ज्यादातर पीले रंग के ही कपड़े पहनते हैं।
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क्या हैं बसंत पंचमी का महत्त्व –

बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी होती है तथा इसी दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस बार यह तिथि 22 जनवरी 2018 (सोमवार) को बनती है। बसंत का अर्थ अहि वसंत ऋतू और पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। वसंत पंचमी या श्रीपंचमी यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है।

जिस प्रकार मनुष्य जीवन में यौवन आता है उसी प्रकार बसंत इस सृष्टि का यौवन है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ कहकर ऋतुराज बसंत को अपनी विभूति माना है।

वसंत पंचमी के बारे में बताया कि इस दिन विद्यार्थी, शिक्षक एवं अन्य सभी देवी सरस्वती का पूजन करें। गरीब छात्रों को पुस्तक, पेन, आदि विद्या उपयोगी वस्तु का दान करें। सरस्वती मंत्र का जाप करें कई स्थानों पर सामूहिक सरस्वती पूजन के भी आयोजन होते है।

इस दिन शक्तियों के पुनर्जागरण होता है। बसंत पंचमी के दिन सबसे अधिक विवाह होते एवं इस दिन गृह प्रवेश, वाहन क्रय, भवन निर्माण प्रारंभ, विद्यारंभ ग्रहण करना, अनुबंध करना, आभुषण क्रय करना व अन्य कोई भी शुभ एवं मांगलिक कार्य सफल होते है।

इस वर्ष 2018 में वसंत पंचमी / सरस्वती पूजा 22 जनवरी 2018, सोमवार के दिन मनाई जाएगी।

आइये जाने वसंत पंचमी 2018 पर सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त :-

वसंत पंचमी पूजा मुहूर्त = 07:17
मुहूर्त की अवधि = 5 घंटे 15 मिनट

पंचमी तिथि = 21 जनवरी 2018, रविवार को 15:33 बजे प्रारंभ होगी।
पंचमी तिथि = 22 जनवरी 2018, सोमवार को 16:24 बजे समाप्त होगी।

बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है।

यदि पंचमी तिथि दिन के मध्य के बाद शुरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में वसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाएगी। हालाँकि यह पूजा अगले दिन उसी स्थिति में होगी जब तिथि का प्रारंभ पहले दिन के मध्य से पहले नहीं हो रहा हो; यानि कि पंचमी तिथि पूर्वाह्नव्यापिनी न हो। बाक़ी सभी परिस्थितियों में पूजा पहले दिन ही होगी। इसी वजह से कभी-कभी पंचांग के अनुसार बसन्त पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है।
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आइये जान लेते हैं वसंत पंचमी या श्रीपंचमी से जुड़े कुछ पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्य :-
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पौराणिक इतिहास—–

कैसे हुआ देवी सरस्वती का जन्म ? क्यों की जाती है देवी सरस्वती की पूजा ?

कहा जाता है जब ब्रह्मा जी ने भगवान् विष्णु की आज्ञा पाकर सृष्टि की रचना की तब चारों ओर शांति ही शांति थी। किसी भी प्रकार की कोई ध्वनि नहीं थी। विष्णु और ब्रह्मा जी को ये रचना कुछ अधूरी प्रतीत हुयी। उस समय ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद वृक्षों के बीच एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुयी। जिन्हें हम देवी सरस्वती के नाम से जानते हैं। जिसके 4 हाथ थे। एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।

ब्रह्मा जी के अनुरोध पर जैसे ही देवी सरस्वती ने वीणा बजायी सारे संसार को वाणी की प्राप्ति हो गयी। इसी कारन ब्रह्मा जी  ने देवी सरस्वती को देवी की वाणी कहा। ये सब बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। विद्या की देवी सरस्वती से ही हमें बुद्धि व ज्ञान की प्राप्ति होती है। हमारी चेतना का आधार देवी सरस्वती को ही माना जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने वाली देवी सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता है।

इन सब कारणों के अलावा देवी सरस्वती की पूजा का एक कारण यह भी मन जाता है कि भगवान् विष्णु ने भी देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें ये वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा की जायेगी। सबसे पहले श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन माघ शुक्ल पंचमी को किया था, तब से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का प्रचलन है। फलस्वरूप आज भारत के एक बड़े हिस्से में देवी सरस्वती की आराधना बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से होती है।
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यह हैं ऐतिहासिक तथ्य–

मुहम्मद गौरी का अंत था–
पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के युद्ध के बारे में शायद ही कोई ना जानता हो। लेकिन क्या आपको पता है कि पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में हराया था और उस पर दया कर उसे जीवनदान दे दिया था। इसके बाद भी मुहम्मद गौरी ने अपनी नीचता का त्याग न करते हुए 17वीं बार फिर हमला किया और पृथ्वीराज चौहान व उनके साथी कवी चंदरबरदाई को कैद कर पाने साथ अफ़ग़ानिस्तान ले गया। वहां उसने पृथ्वीराज चौहान की आँखें फोड़ दीं।

मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को मृत्युदंड दिया। किन्तु उस से पहले उसने पृथ्वीराज चौहान की शब्दभेदी बाण चलाने की कला को देखने की इच्छा जताई। उसके बाद जो हुआ उस से कोई भी अनजान नहीं है। पृथ्वीराज चौहान ने मौके का फ़ायदा उठाया और साथी कवी चंदरबरदाई के इस संकेत :-

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

को पाकर जरा भी देर न की और बाण सीधा मुहम्मद गौरी के सीने में उतार दिया। और फिर दोनों ने एक दूसरे के पेट में छूरा घोंप कर अपना बलिदान दे दिया। यह घटना भी बसंत पंचमी के दिन की ही है।
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आइये क्या करें इस वसन्त पंचमी पर —

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है।

षोडशोपचार पूजा संकल्प–
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे,
अमुकनामसंवत्सरे माघशुक्लपञ्चम्याम् अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाहं सकलपाप – क्षयपूर्वक – श्रुति –
स्मृत्युक्ताखिल – पुण्यफलोपलब्धये सौभाग्य – सुस्वास्थ्यलाभाय अविहित – काम – रति – प्रवृत्तिरोधाय मम
पत्यौ/पत्न्यां आजीवन – नवनवानुरागाय रति – कामदम्पती षोडशोपचारैः पूजयिष्ये।

यदि बसन्त पंचमी के दिन पति-पत्नी भगवान कामदेव और देवी रति की पूजा षोडशोपचार करते हैं तो उनकी वैवाहिक जीवन में अपार ख़ुशियाँ आती हैं और रिश्ते मज़बूत होते हैं।
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करें रति और कामदेव का ध्यान—

ॐ वारणे मदनं बाण – पाशांकुशशरासनान्।
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त – विभूषणम्।।
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल – धारिणीम्।
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।
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कला और शिक्षा हेतु करें सरस्वती पूजा–
आज के दिन ऊपर दिए गए मुहूर्त के अनुसार साहित्य, शिक्षा, कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के साथ यदि सरस्वती स्त्रोत भी पढ़ा जाए तो अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं और देवी प्रसन्न होती हैं।

यह हैं सरस्वती मंत्र:— ऊं ऐं सरस्वत्यै नमः
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श्री पंचमी–
आज के दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें “श्री” भी कहा गया है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः क़ारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।

ऊपर दी गईं सभी पूजाएँ पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से करनी चाहिए।

एक बात जो आपको हमेशा याद रखनी है वह यह कि पंचमी तिथि उसी दिन मानी जाएगी जब वह पूर्वाह्नव्यापिनी होगी; यानि कि सूर्योदय और दिन के मध्य भाग के बीच में प्रारंभ होगी।
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जानिए वसंत पंचमी की विशेषताएं…

– माघ माह:-इस महिने को भगवान विष्णु का स्वरूप बताया है।

– शुक्ल पक्ष:-इस समय चन्द्रमा अत्यंत प्रबल रहता है।

– गुप्त नवरात्रीः-सिद्धी,साधना,गुप्त साधनाके लिए मुख्य समय

– उत्तरायण सूर्यः-देवताओं का दिन इस समय सूर्य देव पृथ्वी के निकट रहते है।

– वसंत ऋतु:-समस्त ऋतुओं की राजा इसे ऋतुराज वसंत कहते है यह सृष्टि का यौवनकाल होता है।

– सरस्वती जयंतीः ब्रह्मपुराण के अनुसार देवी सरस्वती इस दिन ब्रह्माजी के मानस से अवतीर्ण हुई थी।
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