नेशनल हेरल्ड मामले में सोनिया और राहुल की साख दांव पर

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शैलेन्द्र चौहान
नेशनल हेरल्ड अख़बार की स्थापना 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी. तब से यह अख़बार कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता रहा. बहुत सारे ट्रस्टों और ट्रस्टियों की वजह से अख़बार का मालिकाना और संपादकीय नियंत्रण हमेशा जटिल रहा. वित्तीय रूप से नेशनल हेरल्ड पहले दिन से ही विफल रहा. आज़ादी से पहले जवाहरलाल नेहरू इसमें बेहद सक्रिय थे। उस दौरान अख़बार तीन साल तक बंद रहा. इसका कारण तो ब्रितानी सेंसरशिप थी लेकिन कहा जाता है कि असली वजह पैसे की कमी थी. नेहरू ने एक बार लखनऊ में नेशनल हेरल्ड के कर्मचारियों के सामने स्वीकार भी किया था, “हमें बनियागीरी नहीं आई.” नेहरू का जुड़ाव 1938 में स्थापित इस अख़बार से इतना ज़्यादा था कि उन्होंने ऐलान कर दिया था, “मैं नेशनल हेरल्ड को बंद नहीं होने दूंगा चाहे मुझे आनंद भवन (इलाहाबाद में मौजूद पारिवारिक घर) बेचना पड़े”. आज़ादी के बाद नेशनल हेरल्ड तब तक आराम से चला जब तक फ़िरोज़ गांधी इसके महाप्रबंधक रहे और इसे नेहरू का समर्थन हासिल रहा. कई बार नेहरू ने बतौर प्रधानमंत्री अपने विचार स्पष्ट रूप से कहने के लिए नेशनल हेरल्ड का इस्तेमाल किया. अख़बार ने एम चलपति राव के नेतृत्व में पेशेवर स्तर का काम किया. राव न सिर्फ़ कमाल के संपादक थे बल्कि प्रेस काउंसिल और पत्रकारों के लिए वेज बोर्ड बनाने में उनकी सक्रिय भूमिका थी. 1983 में जब उनकी मृत्यु हुई तो वह काफ़ी हताश हो चुके थे क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नज़दीक माने जाने वाले कई लोगों के साथ उनके झगड़े चल रहे थे. अख़बार का मालिकाना हक़ एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी ‘एजेएल’ के पास था जो दो और अख़बार भी छापा करती थी. हिंदी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘क़ौमी आवाज़’. आज़ादी के बाद 1956 में एसोसिएटेड जर्नल को अव्यवसायिक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया और कंपनी एक्ट धारा 25 के अंतर्गत इसे कर मुक्त भी कर दिया गया. वर्ष 2008 में ‘एजेएल’ के सभी प्रकाशनों को निलंबित कर दिया गया और कंपनी पर 90 करोड़ रुपए का क़र्ज़ भी चढ़ गया. फिर कांग्रेस नेतृत्व ने ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की एक नई अव्यवसायिक कंपनी बनाई जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया. इस नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 प्रतिशत शेयर थे जबकि बाकी के 24 प्रतिशत शेयर अन्य निदेशकों के पास थे.कांग्रेस पार्टी ने इस कंपनी को 90 करोड़ रुपए बतौर ऋण भी दे दिया. इस कंपनी ने ‘एजेएल’ का अधिग्रहण कर लिया.
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने वर्ष 2012 में एक याचिका दायर कर कांग्रेस के नेताओं पर ‘धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ ने सिर्फ 50 लाख रुपयों में 90.25 करोड़ रुपए वसूलने का उपाय निकाला जो ‘नियमों के ख़िलाफ़’ है. याचिका में आरोप है कि 50 लाख रुपए में नई कंपनी बना कर ‘एजेएल’ की 2000 करोड़ रुपए की संपत्ति को ‘अपना बनाने की चाल’ चली गई. दिल्ली की एक अदालत ने मामले में चार गवाहों के बयान दर्ज किए और 26 जून 2014 को अदालत ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित नई कंपनी में निदेशक बनाए गए सैम पित्रोदा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा को पेश होने का समन भेज दिया.नेताओं की यह भी दलील थी कि ‘एजेएल’ के शेयर स्थानांतरित करने में किसी ‘ग़ैर क़ानूनी’ प्रक्रिया को ‘अंजाम नहीं दिया गया’ बल्कि यह शेयर स्थानांतरित करने की ‘सिर्फ एक वित्तीय प्रक्रिया’ थी.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस के नेताओं की ओर से दायर ‘स्टे’ की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि एक ‘सबसे पुराने राष्ट्रीय दल की साख दांव पर’ लगी है क्योंकि पार्टी के नेताओं के पास ही नई कंपनी के शेयर हैं. हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के लिए यह ज़रूरी कि वो मामले की बारीकी से सुनवाई करे ताकि पता चल पाये कि ‘एजेएल’ को ऋण किन सूरतों में दिया गया और फिर वो नई कंपनी ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ को कैसे स्तनांतरित किया गया.

2 COMMENTS

  1. जब 2012 में स्वामी के द्वारा यह याचिका लगा दी गयी थी तो अब इसका आरोप वर्तमान सरकार पर लगाना कोंग्रसी सोच के दिवालियेपन का प्रतीक है , कांग्रेस के नेता कोर्ट पर तो अपनी भड़ांस निकाल नहीं सकते इसलिए पी एम ओ को निशाना बना रहे हैं लेकिन अब उन्हें यह बात समझ आ गयी है कि जनता में उनके कारनामों के छिपाने के प्रयास गलत सन्देश दे रहे हैं , व जनता का कोई समर्थन नहीं मिल रहा है , मजाक बनाया जा रहा है तब दूसरे मुद्दों को ले कर हंगामा शुरू कर दिया है , कुल मिला कर संसद नहीं चलने देनी है सरकार को काम नहीं करने देना है , ऐसे निकम्मे विपक्ष को समाप्त किया जाना चाहिए , देश की जनता के पसीने की कमाई से आया पैसा इन लोगों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए बर्बाद करने का यह माध्यम बना लिया है , कांग्रेस यह मानती के कि राज करने का हक़ केवल उसी का ही है , घोटाले करने व उन पर पर्दा है लूटने प्रवति पर रोक लगाना जरुरी है जो जनता ही कर सकती है

  2. कठिनाई यह है कि राहुल गाँधी और श्री मति सोनिया गाँधी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सके कि वे अब सत्ता से बाहर है और उन्हें अब क़ानून का पालन करना पड़ेगा | राहुल अभी तक परिपक्व नहीं हो सके | वे चाहे संसद में बोल रहे होते है अथवा प्रेस से उन की बातचीत में उन की भाव भंगिमा एक दम नौ सीखिए जैसी होती है . आज अवश्य ही उन्हें किसी ने सलाह दी है जो आज उन्होंने हेराल्ड के मामले में अपना पैतरा बदल दिया | हम तो यही चाहते हैं कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे जिस से वे देश की सेवा कर सके |

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