कविता में व्यथा

उड़ते उड़ते तितली बोली,
दादाजी क्या हाल चाल है|
सुबह सुबह से लिखते रहते,
यह तो सचमुच ही कमाल है|
लिखो हमारे बारे में भी,
कठिन दौर से गुजर रहे हैं|
रस पीने अब कहाँ मिल्रॆगा,
फूल नहीं अब निखर रहे हैं|
पेड़ काट डाले लोगों ने,
फूलों के पौधे भी ओझल|
आज बचे जो भी थोड़े से,
वह भी शायद काटेंगे कल|
चिड़िया कोयल तितली भंवरे,
इसी सोच में अब हैं भारी|
दादाजी कविता में लिखना ,
यह थोड़ी सी व्यथा हमारी|
बिना पेड़ पौधों के होगा,
कहाँ हमारा ठौर ठिकाना|
दुनियाँ से यह प्रश्न पूछना,
दुनियाँ से उत्तर मंगवाना|
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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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