राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि

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-राम लाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है। भारत में ही नहीं, विश्वभर में संघ के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में लद्दाख से लेकर अंडमान निकोबार तक इसकी नियमित शाखायें हैं तथा वर्ष भर विभिन्न तरह के कार्यक्रम चलते रहते हैं। पूरे देश में आज 35,000 स्थानों (नगर व ग्रामों) में संघ की 50,000 शाखायें हैं तथा 9500 साप्ताहिक मिलन व 8500 मासिक मिलन चलते हैं। स्वयंसेवकों द्वारा समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए, उनमें आत्मविश्वास व राष्ट्रीय भाव निर्माण करने हेतु डेढ़ लाख से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। संघ के अनेक स्वयंसेवक सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समाज के विभिन्न बंधुओं से सहयोग से अनेक संगठन चला रहे हैं।

राष्ट्र व समाज पर आने वाली हर विपदा में स्वयंसेवकों द्वारा सेवा के कीर्तिमान खड़े किये गये हैं। संघ से बाहर के लोगों यहां तक कि विरोध करने वालों ने भी समय-समय पर इन सेवा कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। नित्य राष्ट्र साधना (प्रतिदिन की शाखा) व समय-समय पर किये गये कार्यों व व्यक्त विचारों के कारण ही दुनियां की नजर में संघ राष्ट्रशक्ति बनकर उभरा है। ऐसे संगठन के बारे में तथ्यपूर्ण सही जानकारी होना आवश्यक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म सं0 1982 विक्रमी (सन 1925) की विजयादशमी को हुआ। संघ के संस्थापक डॉ0 केशवराव बलिराम हेडगेवार थे। डॉ0 हेडगेवार के बारे में कहा जा सकता है कि वे जन्मजात देशभक्त थे। छोटी आयु में ही रानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर स्कूल से मिलने वाला मिठाई का दोना उन्होने कूडे में फैंक दिया था। भाई द्वारा पूछने पर उत्तार दिया ”हम पर जबरदस्ती राज्य करने वाली रानी का जन्मदिन हम क्यों मनायें?” ऐसी अनेक घटनाओं से उनका जीवन भरा पड़ा है।

इस वृत्ति के कारण जैसे-जैसे वे बड़े हुए राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ते गये। वंदे मातरम् कहने पर स्कूल से निकाल दिये गये। बाद में कलकत्तामेडिकल कॉलेज में इसलिए पढ़ने गये कि उन दिनों कलकत्ताा क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। वहां रहकर अनेक प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ काम किया। लौटकर उस समय के प्रमुख नेताओं के साथ आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे। 1920 के नागपुर अधिवेशन की सम्पूर्ण व्यवस्थायें सम्भालते हुए पूर्ण स्वराज्य की मांग का आग्रह डॉ0 साहब ने कांग्रेस नेताओं से किया। उनकी बात तब अस्वीकार कर दी गयी। बाद में 1929 के लाहौर अधिवेशन में जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ0 हेडगेवार ने उस समय चलने वाली सभी संघ शाखाओं से धन्यवाद का पत्र लिखवाया क्योंकि उनके मन में आजादी की कल्पना पूर्ण स्वराज्य के रूप में ही थी। आजादी के आंदोलन में डॉ0 हेडगेवार स्वयं दो बार जेल गये। उनके साथ और भी अनेकों स्वयंसेवक जेल गये। फिर भी आज तक यह झूठा प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि आजादी के आंदोलन में संघ कहां था?

डॉ0 हेडगेवार को देश की परतंत्रता अत्यंत पीड़ा देती थी। इसीलिए उस समय स्वयंसेवकों द्वारा ली जाने वाली प्रतिज्ञा में यह शब्द बोले जाते थे ”………………देश को आजाद कराने के लिए मै संघ का स्वयंसेवक बना हूं………” डॉ0 साहब को दूसरी सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि इस देश का सबसे प्राचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य प्राय: आत्म विस्मृति में डूबा हुआ है, उसको ”मैं अकेला क्या कर सकता हूं” की भावना ने ग्रसित कर लिया है। इस देश का बहुसंख्यक समाज यदि इस दशा में रहा तो कैसे यह देश खड़ा होगा? इतिहास गवाह है कि जब-जब यह बिखरा रहा तब-तब देश पराजित हुआ है। इसी सोच में से जन्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान, नि:स्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना।

यहां यह स्पष्ट कर देना उचित ही है कि डॉ0 हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं खड़ा हुआ। अत: इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरुद्ध हो जायेगा। हिन्दू संगठन शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं उनके लिए संघ को समझना कठिन ही होगा। तब उनके द्वारा संघ जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संगठन को, राष्ट्र के लिए समर्पित संठन को संकुचित, साम्प्रदायिक आदि शब्द प्रयोग आश्चर्यजनक नहीं है। हिन्दू के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनिया के सभी मत-पंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। वे यहां आये, बसे। कुछ मत यहां की संस्कृति में रच बस गये तथा कुछ अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ रहे। हिन्दू ने यह भी स्वीकार कर लिया क्योंकि उसके मन में बैठाया गया है-

रुचीनां वैचित्र्याद्जुकुटिलनानापथजुषाम्।

नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामपर्णव इव॥

अर्थ-जैसे विभिन्न नदियां भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेड़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें (परमपिता परमेश्वर) आकर मिलते है।

-शिव महिमा स्त्रोत्ताम, 7

इस तरह भारत में अनेक मत-पंथों के लोग रहने लगे। इसी स्थिति को कुछ लोग बहुलतावादी संस्कृति की संज्ञा देते हैं तथा केवल हिन्दू की बात को छोटा व संकीर्ण मानते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि भारत में सभी पंथों का सहज रहना यहां के प्राचीन समाज (हिन्दू) के स्वभाव के कारण है। उस हिन्दुत्व के कारण है जिसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी जीवन पद्धति कहा है, केवल पूजा पद्धति नहीं। हिन्दू के इस स्वभाव के कारण ही देश बहुलतावादी है। यहां विचार करने का विषय है कि बहुलतावाद महत्वपूर्ण है या हिन्दुत्व महत्वपूर्ण है जिसके कारण बहुलतावाद चल रहा है। अत: देश में जो लोग बहुलतावाद के समर्थक हैं उन्हें भी हिन्दुत्व के विचार को प्रबल बनाने के बारे में सोचना होगा। यहां हिन्दुत्व के अतिरिक्त कुछ भी प्रबल हुआ तो न तो भारत ‘भारत’ रह सकेगा न ही बहुलतावाद जैसे सिध्दांत रह सकेंगे। क्या पाकिस्तान में बहुलतावाद की कल्पना की जा सकती है?

इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस देश की राष्ट्रीय आवश्यकता है। हिन्दू संगठन को नकारना, उसे संकुचित आदि कहना राष्ट्रीय आवश्यकता की अवहेलना करना ही है। संघ के स्वयंसेवक हिन्दू संगठन करके अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। संघ की प्रतिदिन लगने वाली शाखा व्यक्ति के शरीर, मन, बुध्दि, आत्मा के विकास की व्यवस्था तथा उसका राष्ट्रीय मन बनाने का प्रयास होता है। ऐसे कार्य को अनर्गल बातें करके किसी भी तरह लांक्षित करना उचित नहीं।

संघ की प्रार्थना, प्रतिज्ञा, एकात्मता स्त्रोत, एकात्मता मंत्र जिनको स्वयंसेवक प्रतिदिन ही दोहराते हैं, उन्हें पढ़ने के पश्चात संघ का विचार, संघ में क्या सिखाया जाता है, स्वयंसेवकों का मानस कैसा है यह समझा जा सकता है। प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परंवैभव (सुख, शांति, समृध्दि) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परंवैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परंवैभव कहा है। स्वाभाविक ही सभी की सुख शांति की कामना की है। सभी के अंत में भारत माता माता की जय कहा है। स्वाभाविक ही हर स्वयंसेवक के मन का एक ही भाव बनता है। हम भारत की जय के लिए कार्य कर रहे हैं। एकात्मता स्त्रोत व मंत्र में भी भारत की सभी पवित्र नदियों, पर्वतों, पुरियों सहित देश व समाज के लिए कार्य करने वाले प्रमुख व्यक्तियों (महर्षि बाल्मीकि, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, गांधी, रसखान, मीरा, अम्बेडकर, महात्मा फुले सहित ऋषि, बलिदानी, समाज सुधारक वैज्ञानिक आदि) का वर्णन है तथा अंत में भारत माता की जय। इस सबका ही परिणाम है कि संघ के स्वयंसेवक के मन में जाति-बिरादरी, प्रांत-क्षेत्रवाद, ऊंच-नीच, छूआछूत आदि क्षुद्र विचार नहीं आ पाते।

जब भी कभी ऐसे अवसर आये जहां सेवा की आवश्यकता पड़ी वहां स्वयंसेवक कथनी व करनी में खरे उतरे हैं। जब सुनामी लहरों का कहर आया तब वहां स्वयंसेवकों ने जो सेवा कार्य किया उसकी प्रशंसा वहां के ईसाई व कम्युनिस्ट बन्धुओं ने भी की है। अमेरिका के कैटरीना के भयंकर तूफान में भी वहां स्वयंसेवकों ने प्रशंसनीय सेवा की। कुछ वर्ष पूर्व चरखी दादरी (हरियाणा) में दो हवाई जहाजों के टकरा जाने के परिणाम स्वरूप 300 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। दुर्भाग्य से ये सभी मुस्लिम समाज के थे लेकिन उनकी सहायता करने ‘सैल्युलरिस्ट’ नहीं गये। सभी के लिए कफन, ताबूत आदि की व्यवस्था, उनके परिजनों को सूचना देने का काम, शव लेने आने वालों की भोजन, आवास आदि की व्यवस्था वहां के स्वयंसेवकों ने की। इस कारण वहां की मस्जिद में स्वयंसेवकों का अभिनंदन हुआ, मुस्लिम पत्रिका ‘रेडियैंस’ ने ‘शाबास आरएसएस’ शीर्षक से लेख छापा। ऐसी अनेक घटनाओं से संघ का इतिहास भरा पड़ा है।

गुजरात, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, अंडमान-निकोबार आदि भयंकर तूफानों में सेवा करने हेतु पूरे देश से स्वयंसेवक गये, बिना किसी भेद से सेवा, पूरे देश से राहत सामग्री व धन एकत्रित करके भेजा, मकान बनवाये। वहां पीड़ित लोग स्वयंसेवकों के रिश्तेदार या जाति-बिरादरी के थे क्या? बस मन में एक ही भाव था कि सभी भारत माता के पुत्र हैं इसलिए सभी भाई-भाई है। अमेरिका, मॉरीशस आदि की सेवा में भी एक ही भाव- वसुधैव कुटुम्बकम्। शाखा पर जो संस्कार सीखे उसी का प्रगटीकरण है यह। इसे देखकर सर्वोदयी नेता श्री सुब्बाराब ने कहा- आरएसएस यानी रेडीनेस फॉर सोशियल सर्विस (नि:स्वार्थ सेवा के लिए तत्परता)।

दूसरा दृश्य भी देखें- जब राजनीतिज्ञों व तथाकथित समाज विरोधी तत्वों द्वारा विशेषकर हिन्दू समाज को विभाजित करने के प्रयास हो रहे हैं तब स्वयंसेवक समाज में सामाजिक समरसता निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं। महापुरुष पूरे समाज के लिए होते हैं- उनका मार्ग दर्शन भी पूरे समाज के लिए होता है तब उनकी जयंती आदि भी जाति या वर्ग विशेष ही क्यों मनायें? पूरे समाज की ही सहभागिता उसमें होनी चाहिये। समरसता मंच के माध्यम से स्वयंसेवकों ने ऐसा प्रयास प्रारम्भ किया है तथा समाज के सभी वर्गों को जोड़ने, निकट लाने में सफलता मिल रही है, वैमनस्यता कम हो रही है। दिखने में छोटा कार्य है किन्तु कुछ समय पश्चात् यही बड़े परिणाम लाने वाला कार्य सिद्ध होगा। मुस्लिम, ईसाई, मतावलम्बियों के साथ भी संघ अधिकारियों की बैठकें हुई हैं किन्तु कुछ लोगों को ऐसा बैठना रास नहीं आता अत: परिणाम निकलने से पूर्व ही ऐसे प्रयासों में विघ्नसंतोषी विघ्न डालने के प्रयास करते रहते हैं।

गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग, वनवासी, गिरिवासी, झुग्गी-झोपडियों व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का दु:ख दर्द बांटने, उनमें आत्मविश्वास निर्माण करने, उनके शैक्षिक व आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए भी सेवा भारती, सेवा प्रकल्प संस्थान, वनवासी कल्याण आश्रम व अन्य विभिन्न ट्रस्ट व संस्थायें गठित करके जुट गये हैं हजारों स्वयंसेवक। इनके प्रयासों का बड़ा ही अच्छा परिणाम भी आ रहा है। इस परिणाम को देखकर एक विद्वान व्यक्ति कह उठे- आरएसएस यानी रिवोल्यूशन इन सोशियल सिस्टम (सामाजिक व्यवस्था में क्रांति)।

राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी स्वयंसेवक खरे उतरे हैं। सन 47-48, 65, 71 के युद्ध के समय सेना को हर प्रकार से नागरिक सहयोग प्रदान करने वालों की अंग्रिम पंक्ति में थे स्वयंसेवक। भोजन, दवा, रक्त जैसी भी आवश्यकता सेना को पड़ी तो स्वयंसेवकों ने उसकी पूर्ति की। यही स्थिति गत कारगिल के युद्ध के समय हुई। इन मोर्चों पर कई स्वयंसेवक बलिदान भी हुए हैं। अनेकों घायल हुए हैं। इन्होंने न सरकार से मुआवजा लिया न ही मैडल। यही है नि:स्वार्थ देश सेवा। संघ का इतिहास त्याग, तपस्या, बलिदान, सेवा व समर्पण का इतिहास है, अन्य कुछ नहीं। सेना के एक अधिकारी ने कहा-”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का रक्षक भुजदंड है।”

राष्ट्रीय सुरक्षा का मोर्चा हो, दैवीय आपदा हो, दुर्घना हो, समाज सुधार का कार्य हो, रूढ़ि-कुरीति से मुक्त समाज के निर्माण का कार्य हो, विभिन्न राष्ट्रीय व सामाजिक विषयों पर समाज के सकारात्मक प्रबोधन का विषय हो…..और भी ऐसे अनेक मोर्चों पर संघ स्वयंसेवक जान की परवाह किये बिना हिम्मत और उत्साह के साथ डटे हैं तथा परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं, परिवर्तन आ भी रहा है।

इस अर्थ में विचार करेंगे तो स्वयंसेवक राष्ट्र की महत्वपूर्ण पूंजी है। काश! इस पूंजी का सदुपयोग, राष्ट्र के पुननिर्माण में ठीक से किया जाता तो अब तक शक्तिशाली व समृद्ध भारत का स्वरूप उभारने में अच्छी और सफलता मिल सकती थी।

अभी भी देर नहीं हुई है। विभिन्न दलों के राजनैतिक नेता, समाजशास्त्री, विचारक, चिंतक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर ‘स्वयंसेवक’ रूपी लगनशील, कर्मठ, अनुशासित, देशभक्ति व समाज सेवा की भावना से ओत-प्रोत इस राष्ट्र शक्ति को पहचानकर राष्ट्रीय पुनर्निमाण में इसका संवर्धन व सहयोग करें तो निश्चित ही दुनिया में भारत शीघ्र समर्थ, स्वावलम्बी व सम्मानित राष्ट्र बन सकेगा। पिछले 85 वर्षों से स्वयंसेवकों का एक ही स्वप्न है- भारतमाता की जय।

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं व वर्तमान में  भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) हैं)

21 COMMENTS

  1. “वन्दे मातरम”
    आदरणी रामलाल भाई साहेब, आदाब आपके अच्छे स्वास्थ की कामना की कामना करता हु आपका लेख पड़ के ख़ुशी हुई कुरान में .इस्लाम के आखरी नबी हजरत मोहम्मद साहब ने भी कहा है राष्ट्र प्रेम इमान का हिस्सा है! मोहम्मद साहब ने ये नहीं कहा की इस्लाम से या मज़हब से प्रेम इमान का हिस्सा है निस्चित ही राष्ट्रहित सर्वोपरी है भारत हमारी मात्र भूमि ( मादरे वतन ) है और हमें गर्व है की हम हिन्दुस्तानी (हिन्दू )मुस्लिम है और हमारा जीवन भारत माता को समर्पित है राष्ट्री स्वं सेवक संघ के बारे में जो गलत फहमिया थी वो दूर होती जा रही है संघ को मुस्लिम विरोधी(दुश्मन) संगठन कह कर प्रचारित किया जाता रहा है दूर रहके आप किसी भी व्यक्ति या संगठन को नहीं समझ सकते भारत का मुस्लमान संघ से जुड़ कर उसकी राष्ट्रवादी विचार धारा एकात्मवाद की भावना को समझ रहा है हिन्दुद्त्व धर्म ,मजहब नहीं जीवन पद्धति है संघ द्वारा गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग, वनवासी, गिरिवासी, झुग्गी-झोपडियों व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का दु:ख दर्द बांटने, और उनमें आत्मविश्वास निर्माण करने, तथा उनके शैक्षिक व आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए जो सेवा भारती, सेवा प्रकल्प संस्थान, वनवासी कल्याण आश्रम, समाजिक समरसता का जो कार्य कर रहा वो तारीफे काबिल है मै खुद संघ द्वारा चलाये जा रहे समरसता के कार्यकर्मो में शामिल रहता हु जो की बहुत ही प्रेणा दायक है निश्चित ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक के स्वप्न की भाती भारत माँ की सभी संताने कर्मठ अनुशासित देशभक्ति लगनशील समाजसेवा की भावना हो तो दुनिया में भारत सामर्थ स्वालम्बी व सम्मानित राष्ट्र बन सकेगा! भारत माता की जय…………………

  2. aadarniya bhai saahab,
    namaskaar,
    pichle kuch dino se sangh ko aatankwadi sanghthan kah kar or simi jaise sanghthano se tulna kar ke sangh ka or sangh ke niswaarth sewa ka ghor apmaan kiya ja rahaa hai,aise wakt me aapne sangh ki nispaksh or spasht chavi apne lekh me darshai he,aapse nivedan hai ki aap kripya kuch etihaasik sansmarno ka bhi samaavesh kare apne lekh me jisase sangh ke desh hit kaaryo se anbhigy vyakti ko sangh ki paribhasha or kaaryshaily samjhne ka karib se mouka mile,
    dhanywaad

  3. परम आदरणीय रामलाल जी भाईसाब,
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब एक विशाल वट वृक्ष का रूप ले चुका है, और कुछ नवजात खरपतवार अपने आनुवांशिक अवगुणों के कारण इस वट वृक्ष को धराशाई करना चाहते है. अब इसमें भला इनकी क्या गलती. अब ये कभी गलती से भी कभी शाखा गए हो तो इनको मालूम हो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है.

  4. श्री श्री श्री श्रीराम जी तिवारी जी की विद्वता कमाल की है … आप कहीं न कहीं से ऎसी कौड़ी जरूर खोज लेते हैं जिसके सहारे संघ या हिदुत्व को भला बुरा कह सकें .. महोदय आपने गुजरात अस्मिता के साथ ” बनाम शेष भारत ” लगा कर यह दर्शाने की कोशिश करी है जेसे गुजरात अस्मिता शेष भारत की अस्मिता से ऊपर है .. या यदि गुजरात अस्मिता को चोट लगी तो शेष भारत को नष्ट कर दिया जाएगा .. महोदय ने बड़ी चतुराई से इसे काश्मीर के अलगाववादीयों की बोली जैसा दिखाने का प्रयास किया है …. संघ-विरोध-विशेषग्य विद्वान् महोदय यह जानते ही होंगे कि देश की सेना में सिख रेजीमेंट, जाट रेजीमेंट, गोरखा रेजीमेंट, आदि नामों से अनेक टुकडियां हैं जिनके झंडे भी अलग अलग हैं … युद्ध लड़ने की प्रेरणा देते हुए जवानों को उनके अपने अपने प्रांत के महापुरुषों का, तथा अपनी अपनी रेजीमेंट के पूर्व विजेताओं का वास्ता देकर जीतने का उत्साह भरा जाता है …. जब वहां कोई टकराव नहीं है तो यहाँ भी ऐसे टकराव का निष्कर्ष निकालना बेमानी है .. राष्ट्र के प्रति संघ की अटूट भक्ति को समझने के लिए ज़रा १९७१ के भारत-पाक युद्ध के परिदृश्य में जाइए जहां पर राष्ट्र के हित को सर्वोपरि मान कर अटल बिहारी वाजपाई अपनी पार्टी की धुर विरोधी श्रीमती इंदिरा गांधी को दुर्गा स्वरूपा देवी की संज्ञा देते हुए सभी से उनके नेतृत्त्व में युद्ध जीतने के लिए कर्म करने का आह्वाहन करते हैं … देश के हितों के आगे अपने हितों को बलिदान करना संघ संस्कार है .. एक समय आपसे भी कहीं अधिक संघ-विरोधी विचार रखने वाले लोकनायक जय प्रकाश नारायण जब आपातकाल में संघ के स्वयंसेवकों के सीधे संपर्क में आए तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माना कि संघ एक राष्ट्र-भक्त संगठन है … ६ महीने की प्रतिदिन लम्बी चली सुनवाई के बाद दिल्ली उच्चन्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री पी के बाहरी ने सरकारी दलीलों व् सी बी आई के तर्कों को सुनने के बाद लगभग १९९३ में असंदिग्ध शब्दों में फैसला दिया कि संघ देश-भक्त संगठन है …. यदि किसी भोंपू की भूमिका में रहकर अपने आकाओं को खुश करना जैसी कोई मजबूरी नहीं है तो कुछ घिसे पिटे वाक्यों को छोड़ बारीकी से संघ को समझेंगे तो विश्वास है कि आपके विचार भी सत्य को मानेंगे …. जाने अनजाने कोई ध्रिष्ट्ता हो गई हो तो क्षमा-प्रार्थना …… गोपाल कृष्ण अरोड़ा

  5. रामलाल जी प्रणाम

    इतने व्यस्त होने के बाद भी आपने इतनी सुंदर ढंग से संघ व संघ के कार्यों की व्याख्या की है वह काबिले तारीफ है.
    सच है जैसा की पूज्य सरसंघचालक जी ने कहा है संघ की शाखा में जाये बैगेर संघ को समझा नहीं जा सकता. सुमित जैसे लोग उन्ही में से एक है उनके विचार तभी ऐसे हैं
    कमल खत्री (राष्ट्रीय कार्यालय मंत्री, सिन्धु दर्शन यात्रा समिति )

  6. आदरणीय राम लाल जी
    आप कुशल – मंगल होंगे. आपका निवेदन पढ़ कर खुशी हुई और शुभकामना दिए बिना रहा न गया. देश के लिए जितना करो उतना कम है फिर भी आपका लेख पढके गौरव महसूस करता हुँ और आपको इतने स्वर्ण अक्षर लिखने पर फिर से शुभकामना देता हु.
    सबका
    सुरेश वघसिया
    राष्ट्रीय कोशाध्यक्ष
    भारतीय जनता युवा मोर्चा

  7. आदरणीय रामलाल जी आपको यह जानकर अत्यंत दुःख होगा की आपके द्वारा प्रस्तुत सघ की तस्वीर के बरक्स्स एक ओर खतरनाक चीज है जो वासी कड़ी में उबाल पैदा करने को आतुर है ,आपने कहा …….संघ के स्वयम सेवक के मन में ,जात- प्रान्त -छुआछूत ……..के भेद नहीं होते …….यह बहुत सुखद सकारात्मक सूचना है …आइन्दा मोदी जी को कहें की ……गुजरात अस्मिता बनाम शेष भारत का नारा नहीं देवें ….मुंबई में संघ की छाँव में पलने वाले चाचा -भतीजों से कहें की …आमचीं मुंबई नहीं …..हमारा भारत कहें ..और यदि दिल बड़ा हो तो –
    यम निजः परोवेति …गणना लघु चेतसाम …
    उदार चरितानाम तू वसुधेव कुटुम्बकम …
    का श्लोक पढने को कहें ….वैसे ये बात sahi है की संघ की तो कोई कहीं तारीफ़ नहीं करता किन्तु आदरणीय रामलाल जी जैसे कुछ भले लोगों की कीमत पर हिंदुत्व के कंधे पर बन्दुक रखकर देश का उच्च वर्ग मलाई खा रहा है ….संघ चाहे तो चुटकियों में देश से रिश्वत ,गरीवी ,भृष्टाचार ख़त्म कर sakta है …sawaal ये है की wh ये कभी करना ही नहीं चाहता ..फिर सबकी aankh का तारा भी कैसे हो सकता है ?

  8. अद्भुत लेख, संघ के बारे में दुष्प्रचार से मुकाबला करने के लिए ऐसे लेखो की आज सख्त आवश्यकता है. संघ के प्रत्यक्ष कार्यो का प्रचार प्रसार भी करना उचित होगा, लेकिन रीति नीति और परंपरा के दायरे में रहकर ही.

    @सुमित जी, से यही कहूँगा की संघ के बारे में नकारात्मक विचार बहुत सारे लोगों का है, आप उसके अपवाद नहीं है, क्योंकि संघ कार्यों के प्रचार प्रसार की परंपरा नहीं है, लेकिन कभी ईमानदारी से संघ कार्य के बारे में जानने की कोशिश करेंगे तो आपके विचार भी बदल जायेंगे. भूतकाल में संघ के धुर विरोधियों ने संघ का लोहा स्वयमेव माना है.

    धन्यवाद.

  9. आदरणीय रामलाल जी बहुत ही अद्भुत, प्रेरणादायक व शानदार लेख संघ के बारे में| आपने संघ के पवित्र विचारों को हमारे सामने लाने का जो पवित्र कार्य किया है उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद|
    सुमित कर्ण की टिपण्णी पर डॉ. मधूसूदन जी और डॉ. कपूर साहब की महत्वपूर्ण टिप्पणियों से भी लोगों के मन में संघ के बारे में जो गलत भ्रांतियां हैं उन्हें दूर करने का एक पवित्र प्रयास है| मेरे सामने भी कई ऐसे तत्व आते हैं जिन्हें संघ के विषय में गलत भ्रांतियां हैं, वे आज संघ को एक कट्टरवादी संघठन ही समझते हैं| उनके लिए आपका यह लेख प्रेरणास्त्रोत साबित होगा|
    संघ की महानता यदि कागज़ पर लिखने बैठें तो शायद दुनिया में कागज़ ही ख़त्म हो जाए, फिर भी यह लेख सीमित होते हुए भी कारगर सिद्ध होगा|
    फिर से आपको बहुत बहुत धन्यवाद|

  10. संघ के बारे में सीमित लेख में बतलाने का अछा प्रयास है पर यह पर्याप्त नहीं. जब-जब देश पर संकट आये तब संघ की क्या भूमिका रही, यदि वह बतलाया जाए तोसंघ को समझना आसान होजायेगा. विद्वान लेखक ने विद्वत्तापूर्ण ढंग से संघ समझाने का प्रयास किया है जो केवल सैधान्तिक पक्ष ही एक सीमा तक समझाने में सक्षम है. देश पर आये संकटों में जो भूमिका संघ की रहती रही है, वैसी उत्तम भूमिका शायद ही किसी और संगठन की रही हो.अतः संघ की असलियत को तर्कों या बहस में समझने के बजाय उसके कार्यों से समझना सबसे सही ढंग होगा.
    *** प्रिय सुमित आप झूठे प्रचार का शिकार बन कर संघ के बारे में गलत धारणाएं पाले हुए हैं. नेहरु जी के बहुत प्रयास करने पर भी यह साबित नहीं हुआ था की गोटसे संघ का आदमी था. पर यह झूठा प्रचार नेहरु जी ने खूब करवाया था. आज तक यह झूठ शरारती तत्व दोहरा रहे हैं. यह आरोप सच न होने के कारण ही तो संघ से प्रति बाध हटा था. दंगों में सघ या हिन्दुओं का हाथ होने के प्रमान अधिकाँश मामलों में नहीं मिले. अब कुछ मामलों में मिले भी हैं तो ज़रा सोचिये की उसी ( नेहरू जी की ) मानसिकता की शिकार सरकार सत्ता में है, क्या ये उनकी साजिश नहीं हो सकती ? अनेक दशकों से अत्याचारों और हत्याकांडों को भुगतते-भुगतते कुछ हिन्दू प्रतिक्रिया में कुछ कर डालें तो ? जीवित समाज की एक स्वाभाविक प्रतिक्रया भी हो सकती है. इसमें संघ को निशाना बनाने के बजाये मूल कारण ( जिहादी आतंकवाद ) को दूर करने का प्रयास ही तो एक समाधान है. पर हो इससे उलट रहा है. हज़ारों की हर साल ह्त्या करने वालों के विरुद्ध जवईयों जैसा व्यवहार सरकार कर रही है. और प्रतिक्रया में छुट-पुट कुछ करने वालों को घोर अपराधी घोषित कर के उनपर अनेक अत्याचार सरकार व मीडिया की ओर से भी शुरू हो जाते हैं . इस सत्य को आप क्यूँ नहीं देख पा रहे ? प्रचार का शिकार बनकर नहीं, अपने विवेक से सच को जानने का प्रयास हम सबको करना होगा.

  11. ६ क्रमांक सुमित कर्ण जी, की टिप्पणी के संदर्भ में, कुछ विचार, सोच के लिए प्रस्तुत।
    (१) गांधी हत्त्या के बाद संघ परसे किसी भी शर्त बिना, प्रतिबंध उठा लिया गया था। केवल लेखित संविधान मांगा गया था। जब आज तक किसी अदालत ने गांधी-हत्त्या में संघ को दोषी नहीं पाया है। तो केवल आरोप लगाकर दोष देना, कहांका न्याय है? आज गांधी परिवारों से भी, कुछ सदस्य हिंदुत्व वादी संस्थाएं जो संघसे प्रेरित हैं, उनमें आने लगे हैं। मैं स्वतः सर्वोदयी/गांधी वादी प्रभावित गुजराती परिवारसे हूं। मुझे अपने पूर्वाग्रहों को त्यागने में काफी वर्ष लगे।पिताजी, उनके अंत तक कुछ सौम्य हुए थे, ऐसा मेरा ’अनुमान’ है।नए नए स्वयंसेवक, जो, मिडिया से प्रभावित और अधिक अतिवादी पाए हैं। यह मेरा उन्हे पहचाननेका निकष भी हैं। कुछ संघको सौम्य पाकर, बाहर चले जाते हैं, और हिंसात्मक गति विधियां करते हैं। संस्थाएं रचते हैं। संघ ऐसे शॉर्ट कट में विश्वास नहीं करता।
    (२) जिस गुजरातमें(गांधी जन्मे) और, गांधी-विनोबा-सर्वोदय का सबसे अधिक बोलबाला था। उस गुजरात का बदलाव, देख, आप कुछ अप्रत्यक्ष तर्क, और अनुमान लगा सकते हैं। शाकाहारी, निरुपद्रवी, अहिंसाचारी जैनियों की भारी संख्या वाला गुजरात, क्यों बदला? इन प्रश्नोंके उत्तरो की खॊजमें आपकाभी उत्तर है।
    (३)संघ किसी भी आतंकवाद को समर्थन नहीं देता। फिर भी सोचिए, कि, इतने बडे हिंदु बहुल देशमें, कुछ छुट पुट आतंकवादी घटनाएं, मूल अतिवादी इस्लामिक (?) आतंकवादी घटनाओं की प्रतिक्रिया के रूपमें क्या बिलकुल भी अपेक्षित नहीं? जब हिंदू मुसलमान से ८.५ गुना है, तो क्या उसकी हिंसा मुसलमानसे ८.५ गुना है? पूछें? क्या मुसलमान गुजरात दंगों मे हिंदु से ८.५ गुनी संख्या में आहत हुआ है? क्या कोई समाज ५८ यात्रियोंके जिंदा जला देनेके बाद, किसी प्रकारकी प्रतिक्रिया ना दे? बहुतोंके रिश्तेदार जिसमें मरे-जले हुए थे? {पाकीस्तान में इसी हिंदुके लघु मति रहने से क्या हुआ था?} बिलकुल चूप चाप बैठे? संभव नहीं। यह कॉमन सेन्स कहता है।
    (४) आपको कोई थप्पड मारे, (क्रिया) और आप प्रत्युत्तर में उसी व्यक्तिको थप्पड (प्रति क्रिया) मार दें। प्रश्न: क्या प्रतिक्रिया का होना क्रिया हुए बिना ही संभव है?
    (५) न्यायालय भी,जवाबी थप्पड को मूल थप्पड के बराबर नहीं आंकेगा।और आप तर्क शास्त्र का नियम जो कहता है।==> कि एक्शन के बिना रिएक्शन नहीं हो सकती।
    (६) आप बताइए, कि अगर इस्लामिक आतंकवाद ना होता, तो छुट पुट होता हुआ, हिंदू आतंकवाद होता क्या?
    (७) घोडा बग्गी को खिंचता है। (घोडा कॉज़ है, और बग्गी का पीछे खिंचा जाना इफ्फेक्ट है) बिना कॉज़ इफ्फेक्ट नहीं हो सकता?
    फिर क्या बग्गी घोडेको धक्का मार सकती है ?
    सोचिए। आपकी और टिप्पणियों को पढकर मुझे लगता है, कि आप सोच विचार कर टिप्पणी लिखते हैं। कुछ समय मिला, तो सोचा कि आपको इन बिंदुओंसे अवगत करा दूं। सहमति ना भी हो, तो कोई बात नहीं। आप की स्वतंत्रता पर कोई जबर दस्ती नहीं।

  12. बहुत ही सुन्दर आलेख है,संघ के संस्कार पाये एसे लोगो की संख्या बहुत ज्यादा है जो निष्किर्य भले हो गये है लिकिन आज भी उनमे संघ जिन्दा है,संघ जिस जिस के जीवन मे गया उसका जीवन ही बदल गया,जीवन के हर क्षेत्र मे वो व्यक्ति आगे बढ गया,संघ वो माहौल देता जहा हर व्यक्ति अपनी रुची के अनुसार समाज सेवा का प्रत्यक्ष कार्य करता है वो भी हंसते हंसते हुवे,संघ के किसी बडे अधिकारी के बैठक में बैठना बहुत मजेदार होता है हंसी के इतने फ़ुवारे फ़ुटते है कि पता नही चलता कि इतने बडे अधिकारि से बात कर रहे है,जब बैठक से बहार निकल कर घर जाते है तो घरवाले भी पुछने लग जाते है कि आज इतने खुश क्यो हो??सचमुच निस्वार्थ भाव से होने वाले किसी भी काम में बहुत आनन्द आता है फ़िर वो जब संघ कार्य हो तो कहना ही क्या?प्रचारक के रुप मे हमारे समाने जीवन्त आदर्श होता है जो अपने यौवन को अपने प्रौढता को इस राष्ट्र वेदी पर हंसते हंसते स्वाहा कर रहा होता है वो भी बिना किशि अंहकार के,केवल कर्तव्य निमित्त.
    जहा भी संघ की प्रभावी शाखा लगती है वहा का महोल ही बदल जाता है………………सचमुच संघ कार्य ईश्वरीय कार्य है……………………..

  13. @सुमित जी क्या १९२५ में संघ की स्थापना के पहले सांप्रदायिक दंगे नहीं होते थे अगर होते थे तो उसके बाद के दंगो में केवल संघ को क्यों घसीटा जाता है जबकि आप भी जानते है की दंगों के दौरान हिन्दू केवल हिन्दू और मुसलमान केवल मुसलमान होते है चाहे वो किसी भी संगठन में क्यों न हो और यही हिन्दू मुसलमान दंगों के बीत जाने के पश्चात एक साथ काम करते हैं
    आप अभी भी संघ के हिदुत्व और बहुलतावाद के विचार को नहीं समझ सके है

  14. उक्त लेख से तो आपने केवल आर एस एस के सकारात्मक पहलु पर गौर फ़रमाया है. परन्तु उसी आर एस एस के कुछ नकारात्मक पहलु भी है:-
    मक्का मस्जिद, मालेगाँव विस्फ़ोट और अजमेर दरगाह पर आतंकी हमले में आरएसएस को लिप्त पाया गया है. क्या हम इसी संगठन के नाथूराम गोडसे को भूल सकते हैं जिसने अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी को गोलियों से मार डाला था. उड़ीसा के कंधमाल, कर्नाटक और कई मुस्लिम-विरोधी नरसंहार और ईसाई-विरोधी नरसंहार में भगवा संगठनों की भूमिका को अच्छी तरह से जाना जा सकता है.मेरा मानना है की हमारे देश को एक ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो किसी विशेष संप्रदाय से सम्बध्द न हो अपितु सब धर्मो को साथ लेकर चले.

    • कांग्रेस ज्वाइन कर लो श्रेष्ठ रहेगा आपके लिए।

  15. R S S के पुनर्गठन और उसके उद्देश्यों को ईमानदारी से देश के हर गांवों में उतारने की जरूरत है ..इस देश में यही एक संस्था है जो कांग्रेस के भ्रष्टाचारवाद के घोरे को रोक सकती है …कास ऐसा हो जाये यही भगवान से कामना है …

  16. हिन्दू धर्म प्राचीन काल में क्या था ?, प्राचीन ऋषियों की परम्पराएँ क्या थीं ? उस धर्म को प्रकट करने से होगा कल्याण , वरना तो दार्शनिक बहुत हैं और उनके मत भी ये सभी भटकते रहेंगे. संघ भी एक दर्शन ही है .

  17. पूरे देश में आज 35,000 स्थानों (नगर व ग्रामों) में संघ की 50,000 शाखायें हैं तथा 9500 साप्ताहिक मिलन व 8500 मासिक मिलन चलते हैं।

    काश यह सच होता . …………. संघ सरिता को बहना ही चाहिए .लेकिन सत्ता रूपी बाँध इसे अवरुद्ध कर रहे है .

  18. जनमत जनशक्ति साथ हो
    राष्ट्रप्रेम की अनुभूति लिए तब
    करते सेवा जन – जन की
    तुम आना रण विजय घोष को ।

    छोड़ो उन बेगानों को जो नहीं मानते…
    करते स्वागत द्रोही जन का वे
    और बेचते नित राष्ट्र हमारा
    स्वार्थ लोलुप बन बाज़ारों में…

    जनमत जनशक्ति साथ हो
    भर हुंकार उठा दलित को
    समरस समाज की रचना कर
    तुम आना रण विजय घोष को ।

  19. वाह ….अद्भुत एवं प्रेरणादायक आलेख….सुन्दर चिंतन….
    आ. भाई साहब को बहुत-बहुत बधाई.

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