सपा अधिवेशन में दिखी ‘चिंता’ की लकीरें

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संजय सक्सेना

मुलायम कब कौन सी चाल चलते हैं, इस बात का अंदाजा किसी को नहीं रहता। समय के अनुसार उनके रहन-सहन, बोलचाल और यहां तक की सोच में भी बदलाव देखा जा है। मुलायम के बारे में कहा जाता है कि वह दोस्तों के दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन हैं। अगर वह किसी को गले लगाते हैं तो उसकी खामियां नहीं देखते और अगर दुश्मनी करते है तो फिर उसकी अच्छाई नहीं। मुलायम के यह गुण उनकी राजनीति में भी हमेशा देखने को मिले। लोग भूले नहीं होंगे कि अगस्त 2009 में आगरा के राष्ट्रीय अधिवेशन में मुलायम के बगलगीर हिन्दुत्व के प्रहरी समझे जाने वाले कल्याण सिंह सिंह समाजवादी टोपी पहने बैठे थे और सात समुंदर पर सिंगापुर में अपना इलाज करा रहे अमर सिंह ने सीडी भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। तब मुलायम, कल्याण के सहारे पिछड़ों और मुसलमानों का गठजोड़ बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने का सपना देख रहे थे, वहीं आजम खॉ सपा से बाहर अपने गृह जनपद रामपुर में बैठ कर सपा को नेस्ताबूत कर देने की कसम खा रहे थे।उस समय आजम अपने आप को मुसलमानों का ‘रहनुमा’ और मुलायम को सबसे बड़ा ‘छोखेबाज’ साबित करने में लगे थे। तो आगरा में जुटे सपाई अपने नेता जी के सुर में सुर मिलाते हुए आजम को मौकापरस्त साबित करने की मुहिम छेड़े थे, लेकिन गोरखपुर आते-आते सब कुछ बदल गया। कल्याण फिर दुश्मन नंबर वन बन गए तो आजम वफादारों की जमात में शामिल हो गए।

करीब डेढ़ साल के अंतराल के बाद गोरखपुर में जुटे सपाईयों के बीच नजारा बदल-बदला नजर आया। भले ही गोरखपुर में समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय की जगह राज्य स्तरीय अधिवेशन था, लेकिन सपाइयों और मुलायम में सत्ता के लिए छटपटाहट एक जैसी दिखी। आगरा के राष्ट्रीय अधिवेशन में सपाइयों की नजरें संसद में परचम फहराने की थी तो गोरखपुर के राज्य स्तरीय अधिवेशन में ‘निशाना’ उत्तर प्रदेश की सीएम की कुर्सी थी। आगरा से लेकर गोरखपुर तक नेता जी और उनके चाहने वालों में उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी।हॉ, मंच का स्वरूप जरूर बदल गया था। कल्याण को अपने साथ जोड़ना सबसे बड़ी भूल मान कर मुसलमानों से माफी मांग चुके मुलायम ने गोरखपुर में अपने पुराने राजनैतिक सखा आजम खॉ को अपने बगलगीर कर लिया था। आजम भी चहक-चहक कर मुलायम के कसीदे पढ़ने में लग थे।आगरा के राष्ट्रीय अधिवेशन में जहां मुलायम की राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पुन: ताजपोशी हुई थी, वहीं गोरखपुर में बेटे अखिलेश सिंह को एक बार फिर प्रदेश की बागडोर सौंपने का एलान किया गया।सपा के महासचिव आजम खॉ ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंपने का प्रस्ताव रखा तो राजनीति के गलियारें में कानाफुसी शुरू होने में देर नहीं लगी। गौरतबल हो आजम सपा से दूर रहने के दौरान कई मौकों पर सपा को एक परिवार की पार्टी बता कर निशाने पर लिया करते थे,लेकिन गोरखपुर में अखिलेश का नाम बढ़ाते समय उन्होंने अपने अतीत के बयानों और सोच को तवज्जो देना कोई जरूरी नहीं समझा।अधिवेशन के दौरान कभी आजम की आंखों में आंसू दिखे तो कभी अमर के प्रति नफरत का भाव।

सपा खेमें में अधिवेशन के दूसरे दिन अमर सिंह मामले में नो ‘कर्मेट’ की बात पीछे छूट गई। आजम ने अमर का नाम लिए बिना कई बार उन पर निशाना साधा और बोले सरेआम पतलून उतारना फ्रस्टेशन नहीं तो और क्या है ? उन्होंने अमर सिंह की ‘पूर्वांचल स्वाभिमान पद यात्रा’ को प्रदेश को कमजोर करने की साजिश करार दिया। सम्मेलन से एक दिन पूर्व गोरखपुर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए मुलायम ने पूर्वांचल की मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि बडे राज्य होने से केन्द्र दबाव में रहती है।उन्होंने पूर्वांचल राज्य के गठन से अधिक उसके विकास पर जोर दिया ।मुलायम की ही भाषा अधिवेशन के दूसरे दिन आजम खॉ और प्रो रामगोपाल यादव भी बोलते दिखे।अमर सिंह के बारे में सपा की जो सोच निकल कर आई उसके अनुसार अमर सिर्फ तोड़फोड़ वाले इंसान हैं। पहले अम्बानी परिवार को तोड़ा फिर बच्चन परिवार को। मुलायम के परिवार को भी तोड़ने की कोशिश की।अब यूपी के जरिए देश तोड़ने की साजिश कर रहे हैं। सम्मेलन में कई राजनैतिक और आर्थिक प्रस्ताव पास किए गए।इसके साथ ही तय किया गया कि केन्द्र की कांग्रेस और प्रदेश की बसपा सरकार के ‘गुनाह’ होगें सपा के मारक अस्त्र।मायावती सरकार का भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध,पत्थरों-स्मारकों पर सरकारी खजाना लुटाया जाना आदि सपा के मुख्य मुद्दे होगें। किसानों की बदहाली,खाद-बीज संकट,पानी बिजली और सिंचाई की सुविधाओं का अभाव जैसे मुद्दों के जरिए गांवों में सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया जाएगा। सपा नेताओं के उत्पीड़न और बसपाइयों की गुंडागर्दी के खिलाफ भी जनता को जागरूक किया जाएगा। वहीं कांग्रेस के प्रदेश में पैर पसारने के मंसूबों पर लगाम लगाने के लिए मंहगाई को तो धारदार हथियार बनाएगी ही इसके अलावा ‘ टू जी स्पेक्ट्रम’ और ‘कॉमनवेल्थ गेम्स’ जैसे महाघोटालों को भी हाईलाइट किया जाएगा।सीमाओं पर बढ़ता खतरा, आतंकवाद और नक्सली हिंसा रोकने में असफलता को भी सपा अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी। मुसलमानों और पिछड़ों को आरक्षण का शिगूफा भी एक बार फिर सपा के मंच से छोड़ा गया।

कहते हैं कि राजनीति के भी खेल निराले होते हैं।आगरा अधिवेशन में स्वास्थ्य कारणों से अमर ने हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन तब अधिवेशन स्थल और उसके आस-पास लगे उनके बड़े-बड़े कटआउट के साथ उनके सीडी के माध्यम से सिंगापुर से भेजे गए संदेश ने अमर की कमी महसूस नहीं होने दी थीं।लेकिन आगरा में मुलायम की ‘नाक के बाल’ बने अमर का गोरखपुर अधिवेशन में कोई नाम लेने वाला भी मौजूद नहीं था। शाायद इस बात की कसक अमर सिंह को भी रही होगी, नहीं तो वह उसी दिन,उसी समय जब समाजवादी पार्टी का तीन दिवसीय अधिवेशन चल रहा था, ‘पूर्वांचल स्वाभिमान पद यात्रा’ के बहाने अपनी ताकत दिखाने की जुगत नहीं करते। समाचार पत्रों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापन में अमर अपनी तस्वीर छपवा कर अमर शायद अपने ‘मुंहबोले बड़े भाई’ मुलायम को यह जताना चाहते थे कि भले ही वह उनके साथ न हो लेकिन ‘अमर’ को लाइमलाइट में रहने का अमृत्व प्राप्त है। इसे इतिफाक नहीं कहा जा सकता है कि मुलायम और सपाइयों की मौजूदगी में अमर ने कभी गोरखपुर की ही तहसील रहे महाराजगंज(अब जिला) से पदयात्रा निकालने की घोषणा की। एक तरफ अधिवेशन में सपा अमर की स्वाभिमान पद यात्रा का विरोध कर रही थी तो दूसरी तरफ अमर सिंह ने मुलायम को चुनौती देते हुए यहां तक कह दिया कि वे मुलायम को पूर्वांचल का हमदर्द तभी मानेगें, जब सैफई जैसा स्टेडियम यहां भी बनेगा। कल्याण सिंह को सपा के साथ जोड़ने के आरोपों से आहज अमर ने कहा कि 2012 के चुनाव से ठीक पहले मुलायम द्वारा कल्याण को सपा की लाल टोपी पहनाने सहित कुछ अन्य आरोपों का विजुअल जनता के सामने लाएंगे।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी के गोरखपुर से शुरू हुए तीन दिनके राज्य सम्मेलन में मुलायम के चेहरे पर पार्टी के जुझारू तेवर में कमी का दर्द साफ उभरा। उनके चेहरे पर संघर्ष की चिंता झलकी। अपनों की बेवफाई को लेकर बेचैनी को मुलायम छिपा नहीं पाए। मुलायम सिंह यादव ने अपने लंबे उद्धाटन भाषण में केंद्र की कांग्रेस और सूबे की बसपा सरकार दोनों को ही निशाने पर रखा।2012 के विधानसभा चुनाव के पहले होने वाले इस सम्मेलन के जरिए सपा नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं ने ऊर्जा का संचार करने की भरसक कोशिश की।दागियों को टिकट नहीं दिए जाने का भी अधिवेशन में संकल्प लिया गया। बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं ने समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नई उर्जा प्रदान करने का काम किया। पडरौना के पूर्व सांसद बालेश्वर यादव तथा वहीं से तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके बसपा नेता बी एन सिंह,बसपा नेता और सांसद बृजेश पाठक के भाई राजेश पाठक ने भी सपा का दामन थाम लिया।

अधिवेशन में मुलायम ने कांग्रेस को कटघरे में किया तो माया सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कांग्रेस और माया के बीच कुछ सांठगांठ की बात भी हवा में उछाल दी। मुलायम को इस बात का मलाल था कि क्यों कांग्रेस ने सपा से दूरी बना रखी है। मुलायम का यह कथन कि ‘हम तो केंद्र की सरकार चलवा भी रहे हैं फिर भी पता नहीं सपा से क्या चिढ़ है।’ उनके दर्द को उजागर कर रहा था। सीमा की सरुक्षा को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के साथ उन्होंने कहा कि हम लोग सामूहिक रूप से प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें ताकत और हिम्मत देंगे, ताकि वह सीमा पर बुरी नजर रखने वालों को मजबूती से ललकार सकें। मंहगाई के मुद्दे पर केंद्र से ज्यादा उन्होंने कृषि मंत्री शरद पवार को निशाने पर लिया ।

मायावती को खरी खरी: प्रदेश में खुद को सत्ता का विकल्प साबित करने में मुलायम कोई कोर कसर बाकी नहीं रखीं।शायद वह समझ रहे थें कि सत्ता पर उनका हमला जितना तेज होगा, कार्यकर्ताओं में जोश उतना ही हिलोरे लेगा।उन्होंने मायावती को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा मामलदार नेता उप्र की मुख्यमंत्री हैं। बसपा अध्यक्ष के प्रति केंद्र सरकार के नरम रवैए से भी मुलायम आहत दिखे। उन्होंने कहा कि बसपा प्रमुख के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति जैसा गंभीर मामला बन रहा है, पर पता नहीं, क्यों दिल्ली की सरकार सीबीआई को मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दे रही।उन्होंने माया पर अन्य कई घोटालो में भी शामिल होने का अरोप लगायां। मुलामय का कहना था कि सीबीआई ने माया के खिलाफ आय से अधिक सम्पति सहित अन्य कई मामलों में काफी प्रमाण भी जुटा रखे हैं, लेकिन ककेंद्र का मकसद है कि किसी तरह खुद की सरकार बची रहे भले ही आम जनता लुटती रहे।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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