अटल बिहारी वाजपेयी के 94 वें जन्म दिवस पर विशेष

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मुकेश तिवारी
राजनीति और लोकप्रियता में हर समकालीन से काफी उंचे पूर्वप्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को परमपिता परमेश्वर ने वह रूखाई कभी नहीं दी जो शिखर पर बैठे लोगों में अक्सर होती हैं। कडवा सच तो यह हैकि यही अदूभुत कला उनके जन जन का लोकप्रिय नेता होने की अहम वजह थी। व्यक्तित्व के रोम रोम में रची बसी ठेठ भारतीय संस् क्रति, भोजन से लेकर व्यवहार तक खालिस भारतीय संस्कार राजनीति के रपटीली राह पर सरपट चलते हुए भी साहित्य से गहरा नाता ,अनुभवों कों पंक्तियों में ढाल लेने की कवित्व प्रतिभा यह सब अटल जी के व्यक्तित्व के आयाम थे।जो उन्हें जमीन का नेता बनाते हैं। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में शिंदे की छावनी में कमलिंसह का बाग स्थित कृ्रष्ण बिहारी वाजपेयी के घर में जब अटल जी जन्में उस दिन क्रिसमस का दिन था। गिरजाघर की घंटियों के बीच अटल जी के घर में थाली बजी थी। उनके पिता उतर प्रदेश के बटेश्वर से ग्वालियर रियासत में शिक्षक की नौकरी करनें आये थे। मां कृष्ण की अटल सातवी संतान थे। धार्मिक और ज्योतिषी बाबा श्याम लाल वाजपेयी के संस्कारों, बटेश्वर मंदिर में देवी प्रार्थना और घुटी में मिली रामचरित मानस ने अटल जी को उतना ही धार्मिक बनाया जितना एक सामान्य भारतीय होता हैं। घनाक्षरी व सवैया छंदों के महारथी पिता कृ्रष्ण बिहारी वाजपेयी ने अटल जी को जो संस्कार दिए वह बचपन से लेकर चाहे वह आपातकाल की जेल यात्रा हो या फिर राजनीतिक जीवन के उतार चढाव हर जगह काम आते रहे।मध्यम वर्गीय शिक्षक के बेटे अटल को चरित्र का जो पाठ पढाया गया था वह उनकी अंतिम सांस तक साथ रहा ।पिता द्धारा पारिवारिक गुरू से अटल जी की पाटी पुजाई और फिर प्रारंभ हुई शिक्षक पिता की अपने बेटे को दीक्षा। गोरखी से मिडिल और विक्टोरिया कालेज से इंटर किया किया । कानपुर के डी ए वी कालेज सें राजनीतिशास़्त्र से ग्रेजुएशन किया । अटल जी ने कानून की पढाई अपने पिता के साथ की । दोनों एक साथ हास्टल में रहते थें और एक साथ क्लास जाते थे । बीच में उन्हें कानून की पढाई छोडनी पडी। अटल जी क्लास में नहीं होते तो प्रोफेसर पूछ बेठते , पंडित जी साहबजादे कहां है। वे जबाव देते कमरे की कुडी लगा कर आते ही होगे । 15 साल की उम्र में अटल जी संघ से जुड गए थे। नारायण राव तरटे उस वक्त ग्वालियर में प्रचारक थे । वाजपेयी के जीवन में आए सबसे महत्वपूर्ण लोगों में नारायण राव तराटे भी हैं। संघ के संस्कारों में अटल ने बच्चन के चर्चित गीत मिटृ का तन क्षण भर जीवन मेरा परिचय के आधार पर अपनी जग प्रसिद्ध कविता लिखी जो उन्होनें 1942 में लखनउ के काली चरण हाईस्कूल में लगे शिविर में पहली बार पढी थी। उक्त कविता थी । हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन ,रगं रग हिन्दू मेरा परिचय।अटलजी ने बीए में हिन्दी संस्कृत और अंग्रेजी तीनों सहित्य एक साथ पढे जो उन दिनों केवल आगरा विश्व विधालय में उपलब्ध थे। अटल जी ने एम ए में विश्वविघालय में द्धितीय स्थान हासिल किया और अपनी वाक प्रतिभा और निखरी तथा उन्हें कानपुरिया तहजीब की ठसक के साथ कन्नौजी और बैसवारी भाषा के संस्कारमिले । किशोरावस्था में पहली बार रटकर भाषण देने की छूट होने के बावजूद बालक अटल ने प्रत्युत्पनमति के आधार पर भाषण देने की जो गाठं बांधी थी वह फरवरी 2009 में स्टोक होने के पूर्व तक उनके साथ रही। स्कूल से लेकर कालेज तक ओजस्वी और चुटीले भाषण व वादविवाद प्रतियोगिताओं में निरतर भागीदारी ने अटल के ब्यक्तित्व के उस पहलू को सबसे ज्यादा निखारा जो उनकी लोकप्रियता का सबसे बडा आधार था। अटल संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेताथे । अटल जी नें 1998 में परमाणु विस्फोट का निर्णय कर भारत को नई पहचान दी । 25 दिसंबर 2014 को अटल जी को केन्द्र सरकार द्धारा उनके 90 वे जन्म दिवस पर भारत रत्न से नवाजने का फैसला किया गया और 27 मार्च 2015 को अटल जी को भारत रत्न देने के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी खुद उनके दिल्ली के 6 कृष्ण मेननमार्ग स्थित घर पर गए।
वाणी की ओजस्विता के साथ कलम की तेजस्विता का समन्वय किया अटल ने पांचजन्य व राष्ट्रधर्म का संपादन कर । रोचक बात यह हैकि अटल जी सिर्फ संपादकीय ही नहीं लिखते थें बल्कि लखनउ में अमीनाबाद की मारवाडी गली में दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म के बंडल भी बाधतें थें। राष्ट्रधर्म का प्रथम अंक अटल जी ने निकला था। राष्ट्रधर्म को मिली सफलता के पश्चात ही दीनदयाल उपाध्याय ने साप्ताहिक पांचजन्य प्रकाशित करने की जिम्मेदारी भी अटल जी को सौपी । अटल ने ही पांचजन्य का प्रवेेेशांक निकला। पत्रकारिता से उनका संबंध बाद में दैनिक स्वदेश काशी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका चेतना और अल्प समय तक दैनिक वीर अर्जुन के साथ रहा।1951में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नीव रखी तव अटल संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अक्टूबर1951 में जनसंघ के दिल्ली में हुए पहले अधिवेशन के पश्चात 1954 में अटल जी ने लखनउ से पहला लोकसभा चुनाव लडा पर हार गए। 1957 से मथुरा ,लखनउ और बलरामपुर से चुनाव लडा लेकिन मथुरा और लखनउ में वे पराजित हो गए बलरामपुर से जीतकर लोकसभा में पहुचें ।तब 33 साल के अटल जी सबसे युवा संसद थें । यह पहला अवसर था जब लोकसभा में जनसंघ के चार सदस्य थे और चारों नयें थे। प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं , दुनिया के सभी लोकतांतिक देशों के नेताओं के लिए माडल के तौर पर मानी जा सकती हैं। उन्होनें करोडों भारतीय कों अपने रसीले भाषणों से जिस तरह मंत्र मुग्ध किया है,वैसा देश के किसी नेता नें नही किया। अटल की इस भाषण कला ने जवाहर लाल नेहरू तक को अपना कायल बनाया ।तीसरी लोकसभा का चुनाव वह बलरामपुर से हारे लेकिन राज्य सभा में पहुंचे । 1962 से 1967 के दौर में युद्ध ,नेहरूजी का निधन, फिर शास्त्री जी के निधन की घटनाओं सहित लगभग 50 प्रतिपक्ष में रहने के बावजूद उनके भाषणों या लेखों में कभी भी कटुता दिखाई नहीं पडीं ।हालांकि उन्होनें सरकारी नीतियों की आलोचना करने या मजाक उडाने में कभी कोताही नहीं की। किसी भी लोकतंत्र के लिए गर्व की बात हो सकती हैं कि कोई नेता 60.-70 साल राजनीति करे ओैर उसके पूरे राजनैतिक जीवन में ऐसा एक भी उदाहरण आप न बता सके , जो कटुता या मर्यादाहीनता का पर्याय माना जा सके । प्रतिपक्ष में रहते हुए सत्तापक्ष के उजले को उजला कहने की उदारता कितने नेताओं में होती है। भारतीय संसद ने उन्हें सर्वश्रेष्ट सांसद की उपाधि उनकी इस सिद्धहस्ता की वजह से ही दी थी ।प्रतिपक्ष के नेता की उनकी भूमिका भारत ही नहीं दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों के नेताओं के लिए माडल के तौर पर मानी जाती है। अटल जी के भाषण संसदीय इतिहास की धरोहर है। चौथी लोकसभा में अटल पुनः बलरामपुर से जीते । जब 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाईतब, अटल को जेल जाना पडा जेल यात्रा ने अटल को राजनीति की कुछ नई नसीहतें दी और इसी दौरान कैदी जीवन की अपनी कविताए लिखी। 1977 में अटल जी विदेश मंत्री बने ।इसी साल यूएन में हि न्दी में भाषण दिया । कुल मिलकर अटल जी 1957 से 1998 तक 6 अलग -अलग सीटों से 10 बार लोकसभा और 2 बार राज्य सभा में पहुचे , वाजपेयी 50 साल सांसद रहे। वे 63 साल तक सक्रिय राजनीति में रहें ।अटल जी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे ।जिन्होने 5 साल सरकार चलाई। अटल जी भाजपा के एक मात्र नेता थे जिनकी तारीफ नेहरूजी करते करते थे, उनकी राजनीतिक परिपक्वता के चलते इंदिरा गाधी उनसेसलाह लेती थीं और इसी परिपक्वता के चलते नरसिम्हाराव ने यूएन भेजा। राजनीति की रपटीली राहों पर फिसलते -सभलते अटल आज जिस शिखर पर पहुंचे वहां पर भी उनके संस्कार साथ रहें ।एक सामान्य भारतीय की तरह अर्धम अपयश से भय वाजपेयी की ताउम्र पूजी रही । जो उन्हें हजारों नेताओं की भीड में सबसे अलग खडा करती है और अजात शत्रुराज नेता बनती हैं लेकिन संघर्ष का बोध उनके इस शिखर पर उनके पहुचने के बाद भी उनके साथ रहा।

2 COMMENTS

  1. *अटल* चुनौती अखिल विश्व को।
    भला बुरा चाहे जो माने॥
    डटे हुए हैं राष्ट्र धर्म पर ।
    विपदाओं में सीना ताने॥

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