-गिरीश पंकज
हम अपने मित्र लतखोरीलाल के घर पहुँचे। देखा तो वे सामान्य ज्ञान की किताबों से घिरे हुए हैं। मैं चकराया। इस प्रौढ़ावस्था में ये पट्ठा कौन-सी परीक्षा की तैयारी में भिड़ा हैं। पूछने पर शरमाते हुए बोले – ”हे…हे…बस, ऐसे ही…”
”अरे, शरमाओ मत, बता भी दो। कहीं से कोई अच्छी संभावना हो तो कोई बात नहीं।”
”बात दरअसल ये हे कि मैं करोड़पति बनने के चक्कर में हूँ।”
मैं हँसा, ” पूरी जवानी निकल गई, पति तो बन नहीं पाए, अब करोड़पति बनने के ख्वाब देख रहे हो। बधाई।”
”यार, करोड़पति बनने के बाद हर कहीं से ऑफर आने लगेगा। घूरे के भी दिन फिरते हैं।”
”लेकिन ये करोड़पति बनने का जुगाड़ कहाँ से फिट हो रहा है भई ?”
”लगता है तुम टीवी-फीवी नहीं देखते।”
”देखता तो हूँ दूरदर्शन।”
”बस, यही तो बात है। यही मार का गया इंडिया। फकीरपति बनाने वाले सरकारी टीवी से ऊपर उठो, भई। दूसरे चैनल देखो। केबल कनेक्शन ले लो। आजकल करोड़पति बनाने वाले कार्यक्रम खूब चल रहे हैं। कार्यक्रम खूब चल रहा है। देश की आधी आबादी इन दिनों करोड़पति बनने की जुगत में है।”
”कैसे?”
”वो ऐसे कि अपने फिल्मी कलाकार किसी न किसी चेनल पर करोड़पति बनाने वाले कोई न कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । वे लोगों से सामान्य ज्ञान की बातें पूछते हैं और सही जवाब देने वाले को हजारों लाखों रूपए तक मिल जाते हैं। आखिरी सवाल सही बताने वाले को मिलेंगे करोडो रुपए। बस, इस करोड़ के चक्कर में रोड की खाक छानते हुए जनरल नॉलेज की किताबें ले आए भइया। पढ़ रहे हैं। कभी बुलावा आ गया तो जाएंगे मुंबई। कुछ न कुछ कमा कर लौटेंगे।”
”तो आजकल ज़नाब की दिनचर्या क्या है ?”
”बस यही कि सुबह उठते साथ सामान्य ज्ञान की किताबें लेकर बैठ जाते हैं। और सोचते हैं लम्बूजी के हर सवालो का जवाब हमारे पास होना चाहिए।”
”लेकिन मैंने सुना है कि बड़े सरल-सरल प्रश्न पूछते है लम्बूजी ।”
‘हाँ, कठिन पूछेंगे तो कौन जाएगा भई। कार्यक्रम लोकप्रिय कैसे होगा ? आज सरल-सरल प्रश्नों के कारण ही तो जिसे देखो, वही सोच रहा है कि वाह, इतने सरल प्रश्न? इसका उत्तर तो है मेरे पास। काश, मुझे भी बुलावा आ जाए तो मैं भी करोड़पति बन जाऊं शायद।”
”मतलब, हमारी भावनाओं का भरपूर दोहन किया जा रहा है।”
”हाँ, तभी तो अधिकाधिक लोग कार्यक्रम देखेंगे। टीआरपी बढ़ेगी। विज्ञापन दिखाए जाएंगे । उत्पादों की जोरदार बिक्री होगी। लोगों की जेबें ढीली होंगी। कुछ कम्पनियां मालामाल होंगी. ”
”यार, तुमको तो सब कुछ पता है। फिर भी इस चक्कर में पड़े हुए हो?”
मित्र बोला, ”क्या करें, सोचता हूँ, कड़की के दौर में कहीं धुप्पल में दो-चार दस लाख रुपए भी झोली में आकर टपक जाएँ तो क्या बात है। मेरी मानो तुम भी सामान्य ज्ञान की किताबें खरीद लो। पढ़ लो। बुलावा आ गया तो तुम तो करोड़पति बन कर ही लौटोगे।”
मैंने कहा- ” मित्र करोड़पति बनने के लिए ऐसा शार्टकट अपने से संभव नहीं। अनपी मेहनत से दो जून की रोटी मिले, मैं उसी में तृप्त हूँ। कम से कम मैं दूसरे के हाथों का खिलौना नहीं बन सकता।”
मित्र को मेरी बातें समझ में नहीं आई। वह सामान्य ज्ञान की किताबों में भिड़ गया। मैं सोच रहा था इतना अध्ययन वह अपनी जवानी के दिनों में करता तो शायद कोई अच्छी नौकरी पा गया होता। तब करोड़पति बनने की लालसा जन्म ही नहीं लेती।
बहरहाल, मैं केवल पति बन कर ही सुखी हूँ। लेकिन आपको करोड़पति बनना है तो आप भी सामान्य ज्ञान की किताबें ले आइए। वैसे कभी कार्यक्रम में जाने का मौका मिल भी तो किताबी ज्ञान काम आने से रहा, क्योंकि जब एकदम सरल प्रश्न पूछे जाते हैं, वह भी चार-चार ‘आप्शन’ और ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ की गुंजाइश के साथ, तो आप इतने गए बीते भी नहीं हैं कि सही जवाब तक नहीं पहुँच सकें। लोग पहुंचते है, और दो-चार लाख या कुछ हजार रुपये लेकर ही लौटते है.
करोड़पति ,
आजकल करोड़पति बनाने वाले कार्यक्रम खूब चल रहे हैं। देश की आधी आबादी इन दिनों करोड़पति बनने की जुगत में है।”मैं हँसा, ” पूरी जवानी निकल गई, पति तो बन नहीं पाए, अब करोड़पति बनने के ख्वाब देख रहे हो। बधाई।” घूरे के भी दिन फिरते हैं।
फिल्मी कलाकार किसी न किसी चेनल पर करोड़पति बनाने वाले कोई न कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । वे लोगों से सामान्य ज्ञान की बातें पूछते हैं और सही जवाब देने वाले को हजारों लाखों रूपए तक मिल जाते हैं। आखिरी सवाल सही बताने वाले को मिलेंगे करोडो रुपए। बस, इस करोड़ के चक्कर में रोड की खाक छानते हुए जनरल नॉलेज की किताबें ले आए भइया। पढ़ रहे हैं। कभी बुलावा आ गया तो जाएंगे मुंबई। कुछ न कुछ कमा कर लौटेंगे।” वह सामान्य ज्ञान की किताबों में भिड़ गया। मैं सोच रहा था इतना अध्ययन वह अपनी जवानी के दिनों में करता तो शायद कोई अच्छी नौकरी पा गया होता। तब करोड़पति बनने की लालसा जन्म ही नहीं लेती।
बहरहाल, मैं केवल पति बन कर ही सुखी हूँ। लेकिन आपको करोड़पति बनना है तो आप भी सामान्य ज्ञान की किताबें ले आइए। वैसे कभी कार्यक्रम में जाने का मौका मिल भी तो किताबी ज्ञान काम आने से रहा, क्योंकि जब एकदम सरल प्रश्न पूछे जाते हैं, वह भी चार-चार ‘आप्शन’ और ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ की गुंजाइश के साथ, तो आप इतने गए बीते भी नहीं हैं कि सही जवाब तक नहीं पहुँच सकें। लोग पहुंचते है, और दो-चार लाख या कुछ हजार रुपये लेकर ही लौटते है.