श्रीराम का अनुकरण करते नरेन्द्र मोदी

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-वीरेन्द्र सिंह परिहार-

Modi's rally in Faizabad

श्रीराम जब राक्षसों का वध कर और लंका विजय कर अयोध्या वापस लौटे तो बंदरों और भालुओं का गुरू वशिष्ठ से परिचय कराते हुए कहा – ‘‘गुरू वशिष्ठ कुल-पूज्य हमारे। इन्ह की कृपा दनुज रन मारें।‘‘ दूसरी तरफ बंदरों और भालुओं का परिचय गुरू वशिष्ठ से कराते हुए कहा – ‘‘ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहॅ बेरे। मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिकार पिआरे।‘‘
कहने का आशय यह कि रावण, कुम्भकरण और तमाम राक्षसों के वध का श्रेय श्रीराम स्वतः न लेकर इसका श्रेय एक तरफ तो गुरू वशिष्ठ को देते हैं, तो दूसरी तरफ अपने सैनिकों अर्थात बंदरों, भालुओं को देते हैं। राष्ट्रीय स्वयं संघ के द्वितीय सरसंघ चालक माधव राव सदाशिव राव गोवलकर उपाख्य श्री गुरूजी कहा करते थे, ‘‘मैं नहीं तू ही‘‘ हमारी सोच होनी चाहिए। उनका मानना था कि मैं और तू कोई अलग चीज नहीं है, एक ही परमतत्व के अलग-अलग रूप हैं। तुझमें मैं और मैं मे तुम समाया है। हमारा भारतीय दर्शन भी यह पूरी तरह से मानता है कि दुनिया में समस्याओं की जड़ में ‘‘मैं‘‘ ही है, यानी की हर जगह स्वतः श्रेय लेने की प्रवृत्ति। इसके अलावा यह मैं की प्रवृत्ति अदम्य सत्ताकाक्षा और धनाकांक्षा की भी जननी है। हमारे शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि यह ‘‘मैं‘‘ ही सारी समस्याओं का नहीं, अहंकार का भी जड़ है। जिसके चलते व्यक्ति पूरी तरह आत्मकेन्द्रित हो जाता है, और सच्चाई को खुली आंखों से भी नहीं देख पाता। इसी को दृष्टिगत रखते हुए गीता में कृष्ण ने कहा- ‘‘कर्मण्यावाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन।‘‘ यानी कर्म करो, पर फल की आशा मत करो। यानी जो कुछ करो निर्विकार भाव से करो, दृष्टा की तरह करो, तटस्थ भाव से करों, कर्मो में लिप्त मत होओं। सुख-दुःख, जय-पराजय, लाभ-हानि में सम-दृष्टि रखो। श्रीराम इसके विशिष्ट उदाहरण है, क्योंकि जब उन्हें राज सिहांसन देने की घोषणा हुई तो उन्हें न तो कोई हर्ष हुआ, और न वनवास देने के चलते उन्हें कोई दुःख हुआ। उल्टे जब उन्हें युवराज घोषित किया जा रहा था, तो मैं नहीं तू की दृष्टि के चलते वह सोचते हैं – विमल वंश यह अनुचित एकू। बंधु बिहाई बडे़हि अभिषेकू। यानी कि और सभी भाइयों को किनारे कर सिर्फ बड़े भाई का ही अभिषेक होता है, जो कि अनुचित है।

कुछ श्री राम का अनुकरण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में भी देखने को मिल रहा है। भाजपा की राष्ट्रीय परिषद् को 9 अगस्त की दिल्ली में संबोधित करते हुये पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की एकतरफा जीत का श्रेय भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह एवं तात्कालिन महासचिव एवं उत्तर प्रदेश के प्रभारी तथा वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह को दिया। उनका कहना था कि इन दोनों की मेहनत का ही यह नतीजा है कि भाजपा को इतनी जबरदस्त जीत हासिल हुई। नरेन्द मोदी के अनुसार इस चुनाव में टीम भाजपा के कैप्टन राजनाथ सिंह थे, जबकि मैन ऑफ द मैच अमित शाह रहे। भाजपा की उपरोक्त विजय में राजनाथ सिंह एवं अमित शाह के योगदान को नकरा नहीं जा सकता। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते राजनाथ सिंह का सबसे बड़ा योगदान तो यही माना जा सकता है कि उन्होंने भाजपा में ही भारी विरोध के बावजूद पहले नरेन्द्र मोदी को संसदीय बोर्ड में शामिल किया, फिर चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया और अन्त में सितम्बर 2013 में ही उन्हे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। नरेन्द मोदी का प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित होना गेम-चेन्जर साबित हुआ, जिसके परिणामस्वरूप लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिलना रहा। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित ढंग से जो 73 सीटें मिली, उसमें अमित शाह की संगठन क्षमता और कुशल राजनीति का बड़ा योगदान रहा।

पर इन सबके बावजूद यह दीवारों पर साफ लिखा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली भारी सफलता का सबसे बड़ा श्रेय नरेन्द मोदी को है। तिमिराछिन्न माहौल में लोगो ने यह विश्वास किया कि मोदी देश में सुशासन लाकर देश को समृद्ध एवं ताकतवर बना सकते हैं। अब राहुल गांधी जैसे नादान व्यक्तियों को भले शिकायत हो कि देश में एक व्यक्ति की नरेन्द मोदी की सुनी जाती है। पर हकीकत यही है कि जहां खानदान में सारी सफलता का श्रेय खुद लिया जाता है, और असफलता का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना मौलिक अधिकार माना जाता है। इसके उलट नरेन्द मोदी सफलताओं का श्रेय सहयोगियों को देते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि कहीं असफलता मिलने पर उसकी जवाबदेही वह स्वतः लेंगे, वस्तुतः यह नरेन्द मोदी के बड़प्पन का ही नही सुशासन का भी मूलमंत्र है। तभी तो वह नौकरशाहों को कह सकते है वह किसी के दबाव या सिफारिश में काम न कर नियम-कानून के अनुसार निर्भय होकर काम करें और निर्भीक होकर अपनी राय एवं समस्या बतायें।

श्रीराम ने भी भरे दरबार घोषणा कि थी- ‘‘जो अनीति कहु भाषौ भाई। तो मोहि बरजहूं भय बिसराई।‘‘ यही तो प्रजातंत्र का मूलमंत्र है। मोदी भी इसी अन्दाज में भयमुक्त और निर्भीक समाज गढ़ने की दिशा में बढ़ते जा रहे हैं।

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