लघु उद्योग दिवस

small scale industriesडा. राधेश्याम द्विवेदी
किसी विशेष क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का निर्माण,उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (industry) कहते हैं। उद्योगों के कारण गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते है जिससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है। औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में नये-नये उद्योग-धन्धे आरम्भ हुए। इसके बाद आधुनिक औद्योगीकरण ने पैर पसारना अरम्भ किया। इस काल में नयी-नयी तकनीकें एवं उर्जा के नये साधनों के आगमन ने उद्योगों को जबर्दस्त बढावा दिया। उद्योगों के दो अहम पहलू हैं:
1. भारी मात्रा में उत्पादन (मॉस प्रोडक्सन) उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किये जाते हैं। इसके लिये स्वतः-चालित मशीनें एवं असेम्बली-लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है।
2. कार्य का विभाजन (डिविजन ऑफ् लेबर) उद्योगों में डिजाइन, उत्पादन, मार्कटिंग, प्रबन्धन आदि कार्य अलग-अलग लोगों या समूहों द्वारा किये जाते हैं जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता है। इतना ही नहीं, एक ही काम (जैसे उत्पादन) को छोटे-छोटे अनेक कार्यों में बांट दिया जाता है।
लघु उद्योग की परिभाषा:- भारत में प्रत्येक वर्ष 30 अगस्त को लघु उद्योग दिवस मनाया जाता है। यह दिवस लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और बेरोज़गारों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मनाया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश में आर्थिक विकास के लिए लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत के समग्र आर्थिक विकास में कार्यनीति महत्त्व को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योग क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है। तदनुसार लघु उद्योगों के लिए सरकार से नीति समर्थन की प्रवृत्ति लघु उद्यम वर्ग के विकास हेतु सहायक और अनुकूल रही है। सरकार ने समय-समय पर लघु तथा कुटीर उद्योगों की परिभाषा की है। लघु उद्योग वे उद्योग हैं, जो छोटे पैमाने पर किये जाते हैं तथा सामान्य रूप से मज़दूरों व श्रमिकों की सहायता से मुख्य धन्धे के रूप में चलाए जाते हैं। वे उद्योग जिनमें 10 से 50 लोग मज़दूरी के बदले में काम करते हों, लघु उद्योग के अंतर्गत आते हैं। लघु उद्योग एक औद्योगिक उपक्रम हैं, जिसमें निवेश संयंत्र एवं मशीनरी में नियत परिसंपत्ति होती है। यह निवेश सीमा सरकार द्वारा समय-समय पर बदलता रहता है। लघु उद्योग में माल बाहर से मंगाया जाता है और तकनीकी कुशलता को भी बाहर से प्राप्त किया जा सकता है।
लघु उद्योग:-लघु उद्योग इकाई ऐसा औद्योगिक उपक्रम है, जहाँ संयंत्र एवं मशीनरी में निवेश 1 करोड़ रुपये से अधिक न हो, किन्तु कुछ मद, जैसे- हौजरी, हस्त-औजार, दवाइयों व औषधि, लेखन सामग्री मदें और खेलकूद का सामान आदि में निवेश की सीमा 5 करोड़ रुपये तक थी। लघु उद्योग श्रेणी को नया नाम लघु उद्यम दिया गया है।
मझौले उद्यम-ऐसी इकाई, जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश लघु उद्योग की सीमा से अधिक किंतु 10 करोड़ रुपये तक हो, मझौला उद्यम कहा जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान:-लघु उद्योग एवं कुटीर उद्योग का भारतीय अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही भारत के लघु व कुटीर उद्योगों में उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन होता रहा है। यद्यपि ब्रिटिश शासन में अन्य भारतीय उद्योगों के समान इस क्षेत्र का भी भारी ह्रास हुआ, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात इसका अत्यधिक तीव्र गति से विकास हुआ है।
लघु उद्योग मंत्रालय:- ‘लघु उद्योग मंत्रालय’ भारत में लघु उद्योगों की वृद्धि और विकास के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। लघु उद्योगों का संवर्धन करने के लिए मंत्रालय नीतियाँ बनाता है और उन्हें क्रियान्वित करता है व उनकी प्रतिस्पर्धा बढ़ाता है। इसकी सहायता विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम करते हैं, जैसे- लघु उद्योग विकास संगठन (एसआईडीओ) अपनी नीति का निर्माण करने और कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण करने, कार्यक्रम, परियोजना, योजनाएँ बनाने में सरकार को सहायता करने वाला शीर्ष निकाय है। राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी) की स्थापना ‘भारत सरकार’ द्वारा देश में लघु उद्योगों का संवर्धन, सहायता और पोषण करने की दृष्टि से की गई थी, जिसका संकेन्द्रण उनके कार्यों के वाणिज्यिक पहलुओं पर था। मंत्रालय ने तीन राष्ट्रीय उद्यम विकास संस्थानों की स्थापना की है, जो प्रशिक्षण केन्द्र, उपक्रम अनुसंधान और लघु उद्योग के क्षेत्र में उद्यम विकास के लिए प्रशिक्षण और परामर्श सेवाएं में लगे हुए हैं। ये इस प्रकार हैं-1. हैदराबाद में ‘राष्ट्रीय लघु उद्योग विस्तार प्रशिक्षण संस्थान’ (एनआईएसआईईटी) 2. नोएडा में ‘राष्ट्रीय उद्यम एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान’ (एनआईईएसबीयूडी) 3. गुवाहाटी में ‘भारतीय उद्यम संस्थान’ (आईआईई) ।
केंद्र सरकार की सब्सिडी योजनाएँ:- लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और बेरोज़गारों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की सब्सिडी योजनाएं आरंभ की गई हैं। औद्योगिक क्षेत्र, खासकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं आरंभ की हैं, जिनके अंतर्गत पात्र उद्यमों को सब्सिडी प्रदान की जाती है। ऐसी कुछ सब्सिडी योजनाएँ विशिष्ट रूप से कतिपय औद्योगिक क्षेत्रों के लिए हैं, जबकि उनमें से कुछ, जैसे कि सीएलसीएसएस, अऩेक प्रकार के उद्योगों के लिए उपलब्ध हैं।सरकार और सार्वजनिक संस्थाओं की कुछ प्रमुख सब्सिडी योजनाएँ नीचे दी गई हैं।
1.वस्त्र उद्योग – प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (टफ्स):-वस्त्र मंत्रालय ने अप्रैल 1999 में वस्त्र और जूट उद्योग हेतु प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना प्राद्योगिकी उन्नयन निधि योजना आरंभ की, ताकि वस्त्र इकाइयों में नवीनतम प्रौद्योगिकी का प्रवेश सुगमतापूर्वक हो सके। इस योजना के अंतर्गत निम्नलिखित लाभ होते हैं :ऋणदात्री एजेंसी द्वारा आरटीएल पर प्रभारित सामान्य ब्याज की 5% ब्याज प्रतिपूर्ति, अथवा एफसीएल पर आधार दर से 5% विनिमय उतार चढ़ाव (ब्याज या चुकोती), अथवा लघु उद्योग क्षेत्र के लिए 15% ऋण आधारित पूंजी सब्सिडी, अथवा पॉवरलूम क्षेत्र के लिए 20% ऋण आधारित पूंजी सब्सिडी (1अक्तूबर 2005 से `फ्रंट एंडेड’ सब्सिडी का विकल्प दिया गया), अथवा विशिष्ट प्रसंस्करण मशीनरी हेतु 5%ब्याज प्रतिपूर्ति तथा 10% पूँजी सब्सिडी आईडीबीआई, सिडबी तथा आईएफसीआई क्रमश: गैर-लघु उद्योग वस्त्र क्षेत्र, लघु उद्योग वस्त्र क्षेत्र तथा जूट क्षेत्र हेतु नोडल एजेंसियाँ हैं। तथापि 1 अक्तूबर 2005 से, टफ्स के अंतर्गत 13 अतिरिक्त नोडल बैंक बनाए गए हैं, जो उनके द्वारा वित्तपोषित मामलों में पात्रता निर्धारित करेंगे और सब्सिडी जारी करेंगे।
2.खाद्य प्रसंस्करण उद्योग :- यह योजना निम्नलिखित गतिविधियों को कवर करती है: खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना/विस्तार/आधुनिकीकरण। खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में उसके सभी खंड – फल तथा सब्जियाँ, दूध उत्पाद, मांस, मुर्गीपालन, मछलीपालन, तिलहन तथा ऐसे अन्य कृषि-बागवानी क्षेत्र जो मूल्यवर्द्धन तथा शेल्फ लाइफ एनहेंसमेंट करते हैं जैसे खाद्य सुगंध तथा रंग, ओलियोरेसिन्स, मसाले, कोकोनट, मशरूम, होप्स आदि शामिल हैं। सहायता अनुदान के रूप में होती है, जो संयंत्र और मशीनरी तथा तकनीकी सिविल कार्य के 25% तक होती है किंतु यह सामान्य क्षेत्रों में अधिकतम 50 लाख रुपये तथा कठिन इलाकों में 33% तक किंतु अधिकतम 75 लाख रुपये हो सकती है।
3.कयर उद्योग का पुनरुज्जीवन:- कयर उद्योग के पुनरुज्जीवन, आधुनिकीरण तथा प्रौद्योगिकी उन्नयन के संबंध में एक केंद्रीय क्षेत्र योजना 2007-08 में प्रायोगिक आधार पर आरंभ की गई थी, जिसका उद्देश्य 11वीं योजना के दौरान कयर उद्योग की कताई तथा अति लघु/ पारिवारिक बुनाई इकाइयों का टिकाऊ विकास सुगम बनाना था। इसके लिए प्रथम चरण में समुचित वर्क शेड्स प्रदान करने और कताई क्षेत्र में परंपरागत पुराने रैट्स को मोटरीकृत रैट्स से प्रतिस्थापित कराने तथा अति लघु / पारिवारिक क्षेत्र में परंपरागत करघों को मशीनीकृत करघों से प्रतिस्थापित कराने की व्यवस्था थी। योजना का मुख्य उद्देश्य अन्य बातों के साथ-साथ, कताई और बुनाई क्षेत्रों में कयर के उत्पादन तथा प्रसंस्करण में आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कयर उद्योग का आधुनिकीकरण; उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के लिए उत्पादन और प्रसंस्करण प्रौद्यगिकी का उन्नयन ; और कामगारों तथा कताई करनेवालों / अतिलघु-पारिवारिक क्षेत्रों की आय में वृद्धि करने के लिए दक्षता तथा उत्पादकता में वृद्धि है। सहायता के मानदंड निम्नलिखित हैं: कताई इकाइयाँ: वित्तीय सहायता अथवा सरकारी अनुदान/सब्सिडी परियोजना लागत की 40% होगी, किंतु यह 80,000 रु. (अस्सी हजार रुपये) प्रति इकाई से अधिक नहीं हो सकती।अति लघु/ पारिवारिक इकाई: वित्तीय सहायता अथवा सरकारी अनुदान/सब्सिडी परियोजना लागत की 40% होगी, किंतु यह 2,00,000 रु. (दो लाख रुपये) प्रति इकाई से अधिक नहीं हो सकती।
4.ब्राउन फाइबर सेक्टर की कयर इकाइयों को वित्तीय सहायता:- कयर बोर्ड ब्राउन फाइबर सेक्टर की कयर इकाइयों को वित्तीय सहायता की एक योजना चलाता है। उक्त योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता की दर उपकरण तथा ढांचागत सुविधाओं की लागत की 25% है, जो कि कतिपय उच्चतम सीमाओं के अधीन हैं, जो इकाई के प्रकार पर आधारित है।
5.जनरेटर सेट/डीजल इंजन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना:-योजना का उद्देश्य ब्राउन फाइबर सेक्टर की फाइबर/कर्ल्ड कयर उत्पादन इकाइयों को एकबारगी सब्सिडी देना है, ताकि वे बिजली की आपूर्ति न होने या कम वोल्टेज होने की अवधि में उत्पादन जारी रख सकें और रबरीकृत कयर उत्पादों, कयर रस्सी, धागा तथा चटाइयों तथा मैटिंग क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ब्राउन फाइबर तथा कर्ल्ड कयर की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। एक इकाई के लिए सब्सिड की मात्रा जनरेटर सेट की लागत की 25%, किंतु अधिकतम 50,000 रुपये होगी। यह एकबारगी वित्तीय सहायता होगी और इकाई द्वारा किए गए खर्च के आधार पर दी जाएगी।
6.प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु ऋण आधारित पूंजी सब्सिडी योजना:-योजना अक्तूबर 2000 में आरंभ हुई औऱ 29. 09. 2005 से संशोधित हुई। संशोधित योजना का उद्देश्य सूक्ष्म और लघु उद्यमों द्वारा, अऩुमोदित उपक्षेत्रों / उत्पादों में सुस्थापित तथा बेहतर प्रौद्योगिकी लागू करने हेतु, प्राप्त किए गए संस्थागत वित्त पर 15% (2005 से पहले 12%) कैपिटल सब्सिडी प्रदान करना है। संशोधित योजना के अंतर्गत अनुमन्य कैपिटल सब्सिडी की गणना संयंत्र और मशीनरी के खऱीद मूल्य के आधार पर की जाती है। संशोधित योजना के अंतर्गत सब्सिडी की गणना हेतु पात्र ऋण की उच्चतम सीमा भी 40 लाख रुपये से बढ़ाकर 100 लाख रुपये कर दी गई है, जो 29. 09. 2005 से प्रभावी है। भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) इस योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करते रहेंगे।
7.आईएसओ 9000/आईएसओ 14001/एचएसीसीपी प्रमाणन के लिए प्रोत्साहन के जरिए लघु उद्योग क्षेत्र के लिए गुणवत्ता उन्नयन / पर्यावरण प्रबंधन:- लघु उद्योग क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में वृद्धि के उद्देश्य से, सरकार ने उनके प्रौद्योगिकी उन्नयन/गुणवत्ता सुधार तथा पर्यावरण प्रबंध के लिए एक प्रोत्साहन योजना आरंभ की। योजना के अंतर्गत उन लघु उद्योग/अऩुषंगी उपक्रमों को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, जो आईएसओ 9000/आईएसओ 14001/एचएसीसीपी प्रमाणपत्र प्राप्त कर चुके हैं। आईएसओ 9000 प्रतिपूर्ति हेतु योजना मार्च 1994 से चल रही है और अब आईएसओ 14001 प्रमाणन को भी इसमें शामिल करते हुए इसका विस्तार किया गया है। योजना में यह परिकल्पना है कि प्रत्येक मामले में आईएसओ-9000/आईएसओ-14000/एचएसीसीपी प्रमाणन प्राप्त करने के प्रभारों की प्रतिपूर्ति व्यय के 75%, किंतु अधिकतम 75,000 रुपये तक की जाए। योजना 31 मार्च 2012 तक लागू है।
8.सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों हेतु बाजार विकास सहायता योजना:- योजना के अंतर्गत विनिर्माता लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों को एमएसएमई स्टाल के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों/ प्रदर्शनियों में सहभागिता के लिए; उद्योग संघों/निर्यात संवर्धन परिषदों/ भारतीय निर्यात संगठन फैडरेशन द्वारा बाजार अध्ययनों के लिए ; एमएसएमई संघों द्वारा डंपिग रोधी मामले शुरू करने/लड़ने के लिए और लघु तथा सूक्ष्म इकाइयों द्वारा बार कोड हेतु पहले तीन वर्ष जीएसआई (पूर्ववर्ती ईएएऩ इंडिया) को अदा किए गए एकबारगी रजिस्ट्रेशन शुल्क के 75% (जनवरी 2002 से) और वार्षिक शुल्क के 75% (आवर्ती) (1 जून 2007 से) की प्रतिपूर्ति का निधीयन किया जाता है। अनुमन्य सब्सिडी निम्नवत है: भारत सरकार सामान्य श्रेणी के उद्यमियों को सूक्ष्म एवं लघु विनिर्माण उपक्रमों हेतु इकॉनॉमी श्रेणी से विमान किराए के 75% तथा स्पेस रेंटल के 50% की प्रतिपूर्ति करती है। महिला/अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति उद्यमियों तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के उद्यमियों के लिए भारत सरकार स्पेस रेंटल तथा इकॉनॉमी श्रेणी के विमान किराए के 100% की प्रतिपूर्ति करेगी। विमान किराए तथा स्पेस रेंटल चार्ज पर कुल सब्सिडी 1.25 लाख रुपये प्रति इकाई तक सीमित रहेगी।
9.बार कोड संबंधी वित्तीय सहायता:-वित्तीय सहायता का मूलभूत उद्देश्य सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की बाजार प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि करना है। इसके लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएं हैं : एमएसई द्वारा जीएसआई इंडिया को अदा किए गए एकबारगी पंजीकरण शुल्क तथा वार्षिक आवर्ती शुल्क (पहले तीन वर्ष) का 75% दिया जाना। एमएसईज़ में बड़े पैमाने पर बार कोड अपनाने को लोकप्रिय बनाना। बार कोड पर विचारगोष्ठी आदि के आयोजन के लिए एमएसईज़ को बार कोड के प्रयोग हेतु प्रेरित-प्रोत्साहित करना।
10.एनएसआईसी की सब्सिडी योजनाएँ:-कच्चा माल सहायता योजना का उद्देश्य कच्चे माल (घरेलू और विदेशी, दोनों) की खरीद के वित्तपोषण के जरिए लघु उद्योगों/उपक्रमों की मदद करना है। इससे लघु उद्योगों को यह मौका मिलता है कि वे गुणवत्ता उत्पादों के विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित कर सकें। योजना के उद्देश्यों हैं -कच्चे माल की खरीद हेतु 90 दिन तक वित्तीय सहायता।बड़े पैमाने पर खऱीद के लाभ, जैसे बृहत खरीद, नकद डिसकाउंट आदि पाने में लघु उद्योगों की मदद । एनएसआईसी आयात के मामले में सभी प्रक्रियाओं, प्रलेखनों तथा ऋण पत्र जारी करने संबंधी मामलों को देखती है।
11.विपणन सहायता:- योजना के अंतर्गत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) के जरिए विपणन सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वे निम्नलिखित गतिविधियों के जरिए अपने उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता तथा विपणनीयता बढ़ा सकें:एनएसआईसी द्वारा विदेशों में अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी प्रदर्शनियों का आयोजन तथा अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों/व्यापार मेलों में सहभागिता।घरेलू प्रदर्शनियों का आयोजन तथा भारत में प्रदर्शनियों/ व्यापार मेलों में सहभागिता।अन्य संगठनों/उद्योग संघों/एजेंसियों द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों के सह-प्रायोजन हेतु सहायता। क्रेता-विक्रेता बैठकें,गहन अभियान तथा विपणन संवर्धन कार्यक्रम,अन्य सहायता गतिविधियाँ।
12.कार्यनिष्पादन तथा क्रेडिट रेटिंग:-भारतीय बैंक संघ तथा रेटिंग एजेंसियों के परामर्श से लघु उद्योगों हेतु कार्यनिष्पादन तथा क्रेडिट रेटिंग की एक योजना तैयार की गई है। इसके कार्यान्वयन के लिए एनएसआईसी को नोडल एजेंसी बनाया गया है, जो सूचीबद्ध एजेंसियों के जरिए इसे कार्यान्वित करेगी।

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here