अजा-अजजा आरक्षण स्थायी व्यवस्था

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’-
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अजा-अजजा को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में मिला आरक्षण संविधान की स्थायी व्यवस्था, जबकि राजनेता और सरकार जनता को करते रहे भ्रमित
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कुछ दुराग्रही लोग आरक्षण को समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय हैं।
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26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिसे 65 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और इस दौरान विधिक शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसके बावजूद भी सभी दलों की सरकारों और सभी राजनेताओं द्वारा लगातार यह झूठ बेचा जाता रहा कि अजा एवं अजजा वर्गों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मिला आरक्षण शुरू में मात्र 10 वर्ष के लिये था, जिसे हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है। इस झूठ को अजा एवं अजजा के राजनेताओं द्वारा भी जमकर प्रचारित किया गया। जिसके पीछे अजा एवं अजजा को डराकर उनके वोट हासिल करने की घृणित और निन्दनीय राजनीति मुख्य वजह रही है। लेकिन इसके कारण अनारक्षित वर्ग के युवाओं के दिलोदिमांग में अजा एवं अजजा वर्ग के युवाओं के प्रति नफरत की भावना पैदा होती रही। उनके दिमांग में बिठा दिया गया कि जो आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिये था, वह हर दस वर्ष बाद वोट के कारण बढाया जाता रहा है और इस कारण अजा एवं अजजा के लोग सवर्णों के हक का खा रहे हैं। इस वजह से सवर्ण और आरक्षित वर्गों के बीच मित्रता के बजाय शत्रुता का माहौल पनता रहा।
मुझे इस विषय में इस कारण से लिखने को मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि अजा एवं अजजा वर्गों को अभी से डराया जाना शुरू किया जा चुका है कि 2020 में सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला आरक्षण अगले दस वर्ष के लिये बढाया नहीं गया तो अजा एवं अजजा के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो जाने वाला है।
जबकि सच्चार्इ इसके ठीक विपरीत है। संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था की गयी है, उसके अनुसार सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अजा एवं अजजा वर्गों का आरक्षण स्थायी संवैधानिक व्यवस्था है। जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही कभी बढाये जाने की जरूरत है। क्योंकि सरकारी नौकरी एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला हुआ आरक्षण अजा एवं अजजा वर्गों को मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। मूल अधिकार संवैधानिक के स्थायी एवं अभिन्न अंग होते हैं, न कि कुछ समय के लिये।
इस विषय से अनभिज्ञ पाठकों की जानकारी हेतु स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि भारतीस संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार वर्णित हैं। मूल अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा होते हैं, जिन्हें किसी भी संविधान की रीढ की हड्डी कहा जाता है, जिनके बिना संविधान खड़ा नहीं रह सकता है। इन्हीं मूल अधिकारों में अनुच्छेद 15 (4) में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के लिये आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है और अनुच्छेद 16 (4) (4-क) एवं (4-ख) में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति एवं पदोन्नति के आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है। जिसे न तो कभी बढाया गया और न ही 2020 में यह समाप्त होने वाला है।
यह महत्वपूर्ण तथ्या बताना भी जरूरी है कि संविधान में मूल अधिकार के रूप में जो प्रावधान किये गये हैं। उसके पीछे संविधान निर्माताओं की देश के नागरिकों में समानता की व्यवस्था स्थापित करना मूल मकसद था, जबकि इसके विपरीत लोगों में लगातार यह भ्रम फैलाया जाता रहा है कि आरक्षण लोगों के बीच असमानता का असली कारण है।
सुप्रीम कोर्ट का साफ शब्दों में कहना है कि संविधान की मूल भावना यही है कि देश के सभी लोगों को कानून के समक्ष समान समझा जाये और सभी को कानून का समान संरक्षण प्रदान किया जाये। लेकिन समानता का अर्थ आँख बन्द करके सभी के साथ समान व्यवहार करना नहीं है, बल्कि समानता का मतलब है-एक समान लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये संविधान में वंचित वर्गों को वर्गीकृत करके उनके साथ एक समान व्यवहार किये जाने की पुख्ता व्यवस्था की गयी है। जिसके लिये समाज के वंचित लोगों को अजा, अजजा एवं अपिवर्ग के रूप में वर्गीकृत करके, उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना संविधान की भावना के अनुकूल एवं संविधान सम्मत है। इसी में सामाजिक न्याय की मूल भावना निहित है। आरक्षण को कुछ दुराग्रही लोग समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय हैं।
अब सवाल उठता है कि यदि अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की स्थायी व्यवस्था है तो संसद द्वारा हर 10 वर्ष बाद जो आरक्षण बढाया जाता रहा है, वह क्या? इस सवाल के उत्तर में ही देश के राजनेताओं एवं राजनीति का कुरूप चेहरा छुपा हुआ है।
सच्चार्इ यह है कि संविधान के अनुच्छेद 334 में यह व्यवस्था की गयी थी कि लोक सभा और विधानसभाओं में अजा एवं अजजा के प्रतिनिधियों को मिला आरक्षण 10 वर्ष बाद समाप्त हो जायेगा। इसलिये इसी आरक्षण को हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है, जिसका अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रदान किये गये आरक्षण से कोर्इ दूर का भी वास्ता नहीं है। अजा एवं अजजा के कथित जनप्रतिनिधि इसी आरक्षण बढाने को अजा एवं अजजा के नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के आरक्षण से जोड़कर अपने वर्गों के लोगों का मूर्ख बनाते रहे हैं और इसी वजह से अनारक्षित वर्ग के लोगों में अजा एवं अजजा वर्ग के लोगों के प्रति हर दस वर्ष बाद नफरत का उफान देखा जाता रहा है। लेकिन इस सच को राजनेता उजागर नहीं करते!
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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