आंकड़े पैदा कर रहे हैं चिंता!

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लिमटी खरे

देश में कोरोना के संक्रमित मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 54 हजार को पार कर चुका है। जिस गति से यह बढ़ रहा है उसे देखते हुए यही लग रहा है कि एक लाख  होने में अब ज्यादा देर नहीं लगने वाली। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडू, राजस्थान,  मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां हालात काबू में आने के बजाए बिगड़ते दिख रहे हैं।

लगभग चालीस दिनों तक टोटल लॉक डाउन अर्थात पूर्ण बंदी के साथ ही केंद्र और सूबाई सरकारों के द्वारा शर्तों के साथ दी गई ढील के जरिए आम जनता को राहत पहुंचाने की पहल भले ही की गई हो पर देश के अनेक सूबों के कुछ शहरों में कोरोना संक्रमित मरीजों की तादाद जिस तेजी से बढ़ रही है वह चिंताजनक मानी जा सकती है। लगभग पांच दिनों में ही मरीजों की तादाद दहाई में बढ़ी है। यह बात इसे रेखांकित करती दिख रही है कि कोरोना का संक्रमण उम्मीद के अनुसार कम नहीं हो पा रहा है।

जिस तरह का ट्रेंड देश के चुनिंदा शहरो में दिख रहा है उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में मरीजों की तादाद बढ़ भी सकती है। सरकार भले ही यह दावा कर रहीं हों कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों के मिलने की तादाद कम है पर यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि देश में कोरोना की जांच का आंकड़ा अगर देखा जाए तो यह दर सबसे कम भारत में ही है।

देश में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडू, राजस्थान,  मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश में मरीजो की तादाद बढ़ती ही जा रही है। आंकड़ों पर अगर न भी जाया जाए तो इन सूबों की सरकारों के मुखियाओं की पेशानी पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। अब जरूरत इस बात की है कि जांच का दायरा तेजी से बढ़ाया जाना चाहिए।

केंद्र सरकार और सूबाई सरकारों के द्वारा अपने अपने स्तर पर सारे प्रयास किए जा रहे हैं, पर इसके बाद भी इसका संक्रमण कम होता नहीं दिख रहा है। हालातों की गंभीरता पर नजर रखते हुए कोरोना प्रभावित इलाकों के हिसाब से देश के विभिन्न जिलों को तीन हिस्सो में बांटा गया है। कंटेनमेंट, रेड, आरेंज और ग्रीन जोन में बांटे गए जिलों में आवश्यकता के अनुरूप ही सीमित दायरे में छूटा का  प्राववधान भी सरकार के द्वारा किया गया है।

सोमवार से टोटल लॉक डाउन में दी गई सशर्त छूट का आगाज हुआ है। इसके साथ ही अनेक हिस्सों से लोगों के द्वारा आपाधापी और लापरवाही के नजारे भी सामने आए हैं। बाजार विशेषकर शराब दुकानों पर जिस तरह भीड़ उमड़ी वह देखते ही बनी। इसके अलावा गुजरात के सुरेंद्र नगर में एक पान की दुकान खुलने पर वहां भीड़ का वीडियो भी दिल दहलादेने वाला माना जा सकता है।

यह सच है कि टोटल लॉक डाउन में छूट आपकी सुविधा के लिहाज से दी जा रही है। लोगों का चालीस दिन के लॉक डाउन का अनुभव बहत अच्छा नहीं माना जा सकता है। लोग जरूरी सामनों के लिए भी तरसते दिखे। जिलों में प्रशासन को इस बात की मुनादी करवाना चाहिए कि उनके क्षेत्र में कितने बजे से कितने बजे तक कौन कौन सी दुकानें खुल सकती हैं। वर्तमान में प्रशासनो के द्वारा आदेश भर जारी कर दिए जा रहे हैं।

हर जिले में राज्य का जनसंपर्क विभाग और कई जगहों पर केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय का पत्र सूचना कार्यालय है। इन कार्यालयों का काम ही सरकारी कामकाज, आदेशों आदि को विज्ञप्तियों को मीडिया के जरिए जन जन तक पहुंचाने का है। इन्हें अपने काम में कुछ समय के लिए ज्यादा पाबंद करने की जरूरत है। सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सऐप, यूट्यूब आदि के जरिए जहां लोगों की खासी पहुंच है, इन आदेशों का प्रचार प्रसार करवाना चाहिए तथा यह संदेश देने का प्रयास किया जाना चाहिए कि लोगों के पास पर्याप्त समय है, वे जल्दबाजी न मचाएं, भीड़ न लगाएं, सभी को जरूरत की सामग्री खरीदने का अवसर मिलने वाला है।

जिस तरह की स्थितियां अनेक स्थानों पर बनती दिख रहीं हैं, उससे यही लग रहा है कि इन परिस्थितियों में संक्रमण का खतरा बढ़ भी सकता है। टोटल लॉक डाउन से बाहर निकलना भी जरूरी है, पर इसके लिए सावधानी नागरिकों को ही बरतना है। नागरिक पैनिक न हो पाएं इसकी व्यवस्था जिलों के प्रशासन पर ही आहूत होती है। महज आदेश जारी करने से उस जिले के हर नागरिक तक आदेश नहीं पहुंच पाता है इस बात को भी समझने की जरूरत है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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