पेट राम ने खूब छकाया

इसको कहते लोग समोसा ,
उसको कहते लोग कचौड़ी |
लेकिन जिसमें मज़ा बहुत है ,
वह कहलाती गरम पकौड़ी |

गरम पकौड़ी के संग चटनी ,
अहा !जीभ में पानी आया |
रखी प्लेट में लाल मिर्च थी ,
तभी स्वर्ग सा सुख मिल पाया |

इतना खाया, इतना खाया ,
ख्याल जरा भी न रख पाया |
किन्तु बाद में पेट राम ने ,
मुझको जी भर खूब छकाया |

एक तरफ तो टॉयलेट था ,
एक तरफ मैं खड़ा बेचारा |
बार- बार कर स्वागत मेरा ,
टॉयलेट भी थक कर हारा |

घर के सभी बड़े बूढ़ों ने ,
आकर तब मुझको समझाया |
उतना ही खाना अच्छा है ,
जितना पेट हजम कर पाता |

ठूँस -ठूँस कर पेट भरोगे ,
कहाँ स्वस्थ तब रह पाओगे |
बीमारी को बिना दवा के,
ठीक नहीं फिर कर पाओगे |

इसीलिए तो कहा गया है,
खाना बस उतना ही खाओ |
गरम -गरम और बिलकुल सादा ,
जितना पूर्ण हज़म कर पाओ |

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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