बेकामी फटाखों पर लगे रोक

बेवजह की चीज खरीदते-खरीदते एक दिन ऐसा आता है कि जरूरत के लिए वजह की चीज बेचना पडता है, इसीलिए सोच-समझकर कदम उठाना वक्त की नजाकत है। उसी हिमायत की आज बहुत दरकार है, देश में चंहुओर व्यसन, फैशन और फंतासी जीवन की उधेडबून में खर्चीली, जहरिले और जानलेवा सामानों की भरमार है। जिसे आए दिन हम अपने घरों की शोभा बना रहे है इसी नाफिक्री में की आने वाले समय में हमारे भविष्य पर इसका क्या फर्क पडेगा इसका कोई असर दिखाई नहीं पडता। हमें तो बस आधुनिकता की दौड में अव्वल आना है। चाहे जो भी हो जाए उससे हमें क्यां हमें तो अपनी स्वार्थ सिद्धी चाहिए और कुछ नहीं। यही अख्तियारी मानसिकता रासायनिक, इलेक्ट्राॅनिक और विध्वसंक कूडा-करकट का ढेर लगा रही है जो हमारे जीवन के लिए जान लेवा साबित हो चुकी है। यह उन्मादी रवैया पर्यावरण प्रदूषण, प्रदूषित जल, असमयक बिमारी और अप्रिय घटना का कारक बनता है। इसका मंजर दिनानुदिन कई जिदंगियों को नेस्तनाबूत करते जा रहा है। पर हालात काबू होने के बजाए बद-बदतर बनकर सुरसासुर बन गए।
ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला हादसा मध्यप्रदेश के बालाघाट जिला मुुख्यालय से महज 5 किमी दूरी पर स्थित ग्राम खैरी में हालहि में घटित हुआ। जहां एक निजी फटाखा फैक्ट्री में विस्फोट होने की वजह से एक झटके में ही 25 लोग मौत के आगोश में बेदर्दी से समा गए। कार्य, कारण कुछ भी रहे हो पर बेकामी फटाखों ने बहुयामी लोगों को दुनिया से छिन लिया। काष! शौकिनों की बस्ती में मस्ती की बरात नहीं निकलती तो बेगुनाह कर्मवीर जिदंगी को बीच मझदार में छोड कर नहीं जाते। इसका जिम्मेवार जितनी लाफरवाही, उदासिनता तथा बेरूखी है उतना ही प्रशासन, उत्पादक और उपभोक्ता भी है। गर हम फटाखे फोडते और आतिशबाजी उडाते ही नहीं, तो फटाखे बनते ही नही ऐसा होता तो कई परिवार उजडने से बच जाते।
निर्ममता देश में ऐसी आकस्मिक घटनाएं आम हो गई है यहां-वहां बारूद के ढेर पर मौत दस्तक दे रही है लेकिन शासन-प्रषासन की कान में आज तक जंू तक नहीं रेंगी। आतिशबाजी और फटाखों पर लगाम लगाने कोई ठोस कार्रवाई जमीं पर नहीं आई प्रतिभूत उत्पाद और उपयोग के समय विनाष के तांडव ने कोहराम मचाया। ध्वनि प्रदूषित हुई, जन-धन और तन-मन के साथ देश की फिजा गमगीन हुई। इतने पर भी होश ठिकाने पर नहीं आए ना-जाने किस दिन की इंतजार कर रहे है कि बेकामी फटाखों पर रोक लगाने परहेज जता रहे है। इस धमाचौकडी में हमारा भी बहुत बढा हाथ है कि हम अपनी खुशहाली बिन आतिशआतिशबाजी और फटाखों के नही मना सकते। मनाएगे भी कैसे हमारी शान-ए-शौकत में दाग नहीं लग जाएंगा। शादी व उत्सव में आतिशआतिशबाजी और चुनाव जितने में फटाखे नहीं चलाएं तो क्यां चलाएं यही तो हमारी खुमारी है। इससे पार पाना हमारी जिम्मेदारी है वरना यह एक दिन नासुर बन सब को निगल जाएंगी।
सचमुच में हालाते बयान फटाखे बेकामी ही है अगर इनका इस्तेमाल नहीं भी हुआ तो कोई आफत नहीं आजाएंगी। फिर किस बात को लेकर फटाखों में हम मषगूल रहते है क्यां हमारे त्योहार, शादी-बारात, चुनावी जीत और खुषियों के मौके इन्हीं पर आश्रित है। बिल्कुल भी नहीं! हम इनके बिना भी आंनद उठा सकते है। पर जिदंगियों को खतरे में डालकर नहीं। क्यां हम इसके लिए तैयार है कि बारूद को तिलांजलि देकर अपनी हाभोहवा को तंदुरस्त रखे। आगे बढकर देशविरोधी शक्तियों के हाथों में बारूदों का असला जाने से रूखे। हाॅं! औद्योगिक उत्पादनों, खनन और रक्षा मसलों में जन-जीवन को परे रखते हुए सीमित उपयोग उद्देश्यमूलक साबित होगा। आइए हम सब मिलकर फटाखों और आतिशआतिशबाजी का तिरस्कार करें। रही बात इन उद्योगों में लगे लोगों को सरकारी मदद और योजनाओं से जोडकर रोजी-रोटी कमाने का रास्ता मुहैया करवाने की जवाबदेही सरकारी तंत्र को हरहाल में निभानी पडेगी।

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