बस करो बस की सियासत को ।

2
140

बस करो बस की सियासत को,
और न बढ़ाओ इस आफत को।
मजदूर पहले से ही परेशान है,
और न कम करो उसकी हिम्मत को।।

बेबस था पहले ही बेचारा मजदूर,
और न करो तुम उसको मजबूर।
पहले तो उसकी रोजी रोटी छीनी,
अब वह पैदल चलने पर मजबूर।।

मजदूर वाकिफ था तुम्हारे कारनामों से,
तुम मशगूल थे केवल रिश्वत खाने में।
तुम्हे आज ही होश क्यो आया है ?
क्या तुम पड़े थे किसी मयखाने में।।

दिखा रहे मजदूरों को सहानुभूति,
उस पर भी चला रहो हो राजनीति।
इससे पहले क्या तुम सोए हुए थे ?
क्यो आज हुई तुम्हे यह अनुभूति ?

जानता है मजदूर कौन है किसके हित में,
वोटों की राजनीति करते हो अपने हित में।
पहले तो भगाया शहरों से तुमने हमको
अब भेज रहे गावों को अपने हित में।।

हो रही हैं सियासत रियायत के
नाम पर ,
इसी सियासत के कारण बढ़ी है आफत।
और मत दिखाओ अपनी शराफत को,
और कितना दिखाओगे अपनी गिरावट को ?

अगर तुम्हे मजदूरों का ख्याल होता,
पहले से बसों का इंतजाम होता।
जब देखी मजदूरों की भीड़ भारी,
सर पर तुम्हारे कफन बधा होता।।

लाखो बस देश मै बेकार खड़ी है,
किसी की नजर उन पर न पड़ी है ।
गडी है नजर केवल राजनीति पर,
जबकि देश की मुश्किल घड़ी है।।

ये इंसान नहीं है केवल दारिंदे है,
बसों की आड़ में करते धंधे है।
पूछो इनसे इतनी बसे कहां से आई ?
करते है इनकी आड़ मै काली कमाई है।।

अगर बस परमिट मजदूरों के नाम होता,
इतना संग्राम कभी देश में न होता ।
बसे मजदूरों की अपनी ही चलती,
इनको पैदल सड़कों पर चलना न होता।।

आर के रस्तोगी

Previous articleस्वदेशी आंदोलन के अग्रणी महानायक राष्ट्रवादी दिव्यद्रष्टा बिपिन चन्द्र पाल
Next articleवक़्त ने ऐसा वक़्त कभी देखा नहीं था
आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

2 COMMENTS

  1. राम कृष्ण रस्तोगी जी, आपने तो अपनी कविता में अच्छा-खासा बस-माहात्मय लिख दिया है| अवश्य ही पाठक अभाग्यपूर्ण स्थिति को कांग्रेस द्वारा रचाई राजनीतिक नौटंकी स्वरूप देख उसकी निंदा करेंगे| कुछ एक पाठक ऐसे भी हैं जो स्वर्गीय श्री प्रभु लाल गर्ग जी (काका हाथरसी) द्वारा लिखी कविता, घूस माहात्मय, के प्रतिकूल रूप से प्रभावित आपकी कविता में मनोरंजन न मिलते आपकी नियत पर ही संदेह करेंगे|

    घूस माहात्मय – काका हाथरसी
    कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
    ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
    बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
    माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
    कहँ ‘काका’, क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
    जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा

    जब कवि राम ने बस का डाला फंदा |
    देखा सिंह जी ने फूटता कांग्रेस का धंधा ||

  2. कविता की आड़ में अपनी असली नियत छिपाने का अच्छा तरीका.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here