स्वतंत्रता संग्राम छावनी बाजार (बस्ती) की दास्तान

डा. राधे श्याम द्विवेदी

बस्ती अयोध्या राजमार्ग पर बस्ती से लगभग 40किमी.की दूरी पर 260 47’ उत्तरी अक्षांश तथा 820 23’ पूर्वी देशान्तर पर मनोरमा नदी की रामरेखा नामक उपधारा के तट पर बसा यह एक ब्रिटिश कालीन कस्बा है। राजस्व अभिलेख में तप्पा बेलवा, परगना अमोढ़ा का यह एक पुरवा/मजरा दिखाया गया है। उस समय यह गोरखपुर जिले का ही भाग था।

उत्तर मुगल काल में यह अमोढ़ा राज्य के अन्तर्गत आता था, जो बहुत समय तक अवध के नबाबों द्वारा नियंत्रित होता था। गोरखपुर जब ’नार्थ ंवेस्टर्न प्राविंस’ के अधीन अंग्रेजों को मिला तब भी यह क्षेत्र ब्रिटिश सरकार का भाग नहीं रहा। अमोढ़ा के राजा जालिम सिंह और उनकी पत्नी तलाश कंुवरि अंगे्रजो से लड़ते-लड़ते बीरगति प्राप्त किये थे। अमोढ़ा राज्य से लोहा लेने के लिए अंग्रेजों ने बस्ती अयोध्या राजमार्ग पर छावनी में सेना का एक शिविर स्थापित किया था। पड़ोसी गांव खेमरिया में सेना की बैरकें व शिविर बनाये गये थे। ब्रिटिश सरकार की फौजों को लगाने के कारण ही इस स्थान को छावनी के नाम से ही जाना जाने लगा। चंूकि यह अवध तथा ब्रिटिश सरकार की सीमा पर था इसलिए इस पर अंग्रेजों की विशेष निगाहें लगी रहती थी।

स्वतंत्रता आन्दोलन के 1857 के विद्रोह के समय पूरे देश में अंगे्रजों पर संकट के बादल मड़राने लगे थे। सभी अंग्रेज जान बचाकर भाग रहे थे। उन्हें व उनके परिवार पर संकट बरकरार था। बस्ती कल्टट्री पर पहले अफीम तथा ट्रेजरी की कोठी हुआ करती थी। जहां 17वीं नेटिव इनफेन्ट्री की एक टुकड़ी सुरक्षा के लिए लगाई गई थी। इस यूनिट का मुख्यालय आजमगढ बनाया गया था। जहां 5 जून 1857 को विद्रोह भड़क उठा था।

6 अंगे्रज भगोड़ों का एक दल नांव द्वारा अमोढ़ा होते हुए कप्तानगंज स्थित अंग्रेज कैप्टन के शरण में आया था। तहसीलदार ने उन्हें चेतावनी दिया था कि ’शीघ्र बस्ती छोड़ दंे।’ वे मनोरमा नदी को बहादुरपुर विकासखण्ड के महुआडाबर नामक गांव के पास नदी पार कर रहे थे। वहां के गांव वालों ने घेरकर 4 अधिकारियों एवं दो सिपाहियों की हत्या कर डाली थी । लेफ्टिनेंट थामस,ले. लिची ,ले.कैटिली व सार्जेन्ट एडवरस तथा दो सैनिक मार डाले गये थे। तोपचालक बुशर को कलवारी के बाबू बल्ली सिंह ने अपने पास छिपाकर तथा उन्हें कैद कर रखा था।

वर्डपुर के अंगे्रज जमीदार पेप्पी को इस क्षेत्र का मानद डिप्टी कलेक्टर 15 जून 1857 को नियुक्त किया गया था। उसकी सहायता के लिए 12वीं अश्व सेना का आधा दस्ता अश्वारोही भी लगा दिया गया था। उसने बुशर को छुड़वा लिया। 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर दिया गया था। महुआ डाबर नामक गांव को आग लगवा करके जलवा दिया था। जलियावाला बाग की तरह एक बहुत बड़ा जनसंहार यहां हुआ था। इन्हीं दौरान दिल्ली व अवध के नबाब के प्रतिनिधि राजा सैयद हुसेन अली उर्फ मोहम्मद हसन ( जो मूलतः टाण्डा , अकबरपुर के मूल निवासी थे ) ने कर्नल लेनाक्स ,उनकी पत्नी तथा बेटी को अपनी संरक्षण में ले रखा था। नये कलेक्टर पेप्पी ने इन्हें भी मुक्त कराया था। 12 अगस्त 1857 को मो. हसन के नेतृत्व में बागियों ने कप्तानगंज को अपने अधीन कर लिया था।

जिले में चारो तरफ अफरा-तफरी मचा हुआ था। दिसम्बर 1857 तक कोई विशेष कदम नहीं उठाये जा सके थे। फिर अंग्रेजों ने शान्ति की बहाली के लिए तीन दल बनाये थे । नेपाल के राजा जंग बहादुर के नेतृत्व में 900 गोरखाओं का एक दल कर्नल मैंकजार्ज के साथ लगाया गया था, जो 5 जनवरी को मूव किया था। दूसरे दल का नेतृत्व राफक्राफ्ट ने बिहार से तथा तीसरे का नेतृत्व ब्रिगेडियर जनरल फ्रैंक ने जौनपुर से किया था।  राजा जालिम सिंह के नेतृत्व में अमोढ़ा के देशी सैनिकों से 17 अप्रैल तथा 25 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों को बुरी तरह मात खाना पड़ा था।

छावनी से 6 किमी. तथा अमोढ़ा से 4 किमी. की दूरी पर घाघरा नदी के तट पर अवस्थित जहां धिरौली बाबू के कुलवन्त सिंह, हरिपाल सिंह, बलबीर सिंह, रियाल सिंह, रघुबीर सिंह, रामदीन सिंह तथा रामगढ़ के धर्मराज सिंह, गुण्डा कुंवर के सुग्रीव सिंह , बभनगांवा के अवधूत सिंह, वेलाड़ी के ईश्वरी शुक्ल, चनोखा, डुमरियागंज के जय नारायण सिंह, अटवा के जय सिंह, जौनपुर के सरदार मुहेम सिंह व मुसरफ खान,गोण्डाके भवन सिंह,करनपुर पौकोलिया के रामजियावन सिंह,दौलतपुर के लखपत राय तथा अन्यानेक आन्देलनकारियों ने 17 अपै्रल को रामगढ़ गांव में एक विशाल बैठक का आयोजन किया गया था। ’भविष्य में अंग्रेजो के विरुद्ध जनक्रांति कैसे चलायी जाय ?’ इस बारे में विचार किया गया। इसकी सूचना लेफिटनेंट कर्नल हगवेड को हों गया था। उसने सेना की एक टुकड़ी लेकर यहां पर धावा बोल दिया था। इस हमलें में बाकी रण बाकुरे तो बच निकले परन्तु धर्मराज सिंह पकड़ में आ गया। लेफिटनेंट कर्नल हगवेड ने उनकी कमर में कटीला तार बांधककर खुद घोड़े पर बैठकर उनको घसीटते हुए ले गया। छावनी के उत्तर दिशा में जाते समय उसकी कटार अचानक गिर गई। उसने धर्मराज सिंह को यह कटार उठाने का हुक्म दिया था। लेकिन बागी धर्मराज ने उसी कटार से कर्नल हगवेड की हत्या कर दी।

इन लोगों ने नौसेना के निरीक्षण में आये छः अंग्रेज अधिकारियों को पकड़कर मार डाला था तथा उनकी पत्नियों को ससम्मान छोड़ दिया था। फैजाबाद से सेना बुलाकर छावनी में एक छावनी बनाई गई और यहीं से विद्रोह को नियंत्रित किया गया था।

गोरखपुर के जिला अधिकारी ने पूरे गांव को जलाने तथा उनकी सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया था। वर्तमान समय में छावनी बाजार के मध्य स्थित पुलिस का थाना ब्रिटिश कालीन छावनी के प्रतीक के रूप में जाना जा सकता हैं। थान्हें के सामने उत्तर तरफ राजमार्ग पार करके करीब 50 मी. जाने पर एक पीपल का पुराना बृक्ष आज भी पुरानी घटनाओं का साक्षी बन खड़ा हुआ है। इसी पीपल के पेड़ पर 150 विद्रेहियों को 1887 ई. में फांसी पर लटकाया गया था। राफक्राफ्ट कप्तानगंज आ गया था तथा जून 1858 के आरम्भ तक यहां कैम्प किया था। अंग्रेजी सेना मो. हसन के पीछे पड़ी थी। वह भागते छिपते अंग्रेजी सेना के शरण में 4 मई 1859 को चला आया था। उसे क्षमा करते हुए सीतापुर की एक छोटी सी रियासत गुजारे में दी गई थी। गोपाल सिंह नामक सूर्यवंशी एक जमीदार को कप्तानगंज का तहसील देकर कृतकृत्य किया गया था। उसे  अनुदान में जमीन भी दिया गया था।

अनेक अंग्रेजों की कब्रें व स्मारक भी सरकार ने यहां बनवाये हैं। उ. प्र. लोक निर्माण विभाग ने लेफ्टिनंेट. एच. बी. ट्राय का मकबरा, उसके नाम की पट्टिका के साथ बनवा रखा है। यहां लेफिनेंट कर्नल हगवड फोर्ट का स्मारक भी बना हुआ बताया जाता है। इसी के पास शहीद स्मारक समिति बस्ती के संयोजक श्री सत्यदेव ओझा के प्रयास से धर्मराज सिंह के स्मारक का निमार्ण कराया गया है। हगवड फोर्ट की हत्या से पूरे इलाके में अंग्रेजों का आक्रोश बढ गया था। इसी समय बेलवा के इलाके से कई बागी आ धमके थें। इन लोगों ने जोरदार मोरचा खोल रखा था। इससे कर्नल राक्राफट बहुत भयभीत हो गया था कि आगे बढ़ने का साहस ही छोड़ दिया। यह अप्रैल 1857 कें अंत में कप्तानगंज वासप लौट आया था। यहां अन्य अंग्रेज सौनिकों के मकबरे विना नाम के बनवाये गये हैं। छावनी बाजार के पीपल के पेड़ पर अंग्रेजों के भय से भारतीय स्वतंत्रता के आन्दोलनकारियों की लाशें कई दिनों तक लटकती रहीं। इस वृक्ष को स्मारक स्वरूप सीमेंट के एक चबूतरे से घेर दिया गया है। यहां संगमरमर के दो शिलापट्टों पर शहीदों के नामों को लिखवाया गया हैं । एक पट्ट पर 9 नामों से युक्त है जिसे  बभनगांवां, अमोढ़ा के श्रीराम सिंह ने तथा दूसरे पर क्र. सं. 10 से 19 तक के शहीदों के नाम मुरादीपुर, बस्ती के हरिभान सिंह ने उत्कीर्ण कराया है। उत्कीर्णकर्तोओं ने अपने नाम भी उल्लखित कराये हैं। यहां के कुछ बागियों का पलायन भी हुआ था। ग्राम रिघौरा के विन्ध्यवासिनी प्रसाद सिंह ,सिकन्दर पुर के गुरूप्रसाद लाल , भुवनेश्वरी प्रसाद और लक्ष्मी शंकर के खानदान की सम्पत्ति बगावत के आरोप में जप्त हो गयी थी । यहां बलिदानी परिवार की संख्या हजारों में है, परन्तु इनका कोई क्रमिक इतिहास उपलब्ध नहीं है।

छावनी एक उपेक्षित तथा गुमनाम जिन्दगी वाला स्थल रह गया है। स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास का इतना गौरव पूर्ण इतिहास को संजाने के बावजूद इस स्थल के विकास का कोई भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। 1858 से 1972 तक यह पूर्णतः उपेक्षित स्थल ही रहा । बाद में कुछ प्रबुद्ध एवं देशप्रेम भक्तों ने प्रयास करके इसके उद्धार के प्रयास  शुरू किये। 1972 ई. में शिक्षा विभाग के अधिकारी श्री जंगबहादुर ने अध्यापकों के प्रयास से एक शिलालेख पर शहीदों के नामों का उल्लेख अंकित कराया। इस स्मारक की दशा ठीक नहीं है। यहां महात्मा गांधी के पुण्य तिथि 30 जनवरी को एक शहीदी दिवस का आयोजन कर एक छोटा मेला भी आयोजित किया जाने लगा है।

उत्कीर्णित शहीदों की सूची इस प्रकार है-

1. कैप्टन अवधूत सिंह, बभनगांवा ,अमोढ़ा, बस्ती

2. श्री ईश्वरी शुक्ल, बेलाड़े, बस्ती

3. श्री कुलवन्त सिंह, धिरौली बाबू ,बस्ती

4. श्री सुग्रीम सिंह, नद्दूपुर ( गुन्डा कंुवर)

5. श्री सन्त बक्श सिंह, चनोखा, डुमरियागंज, बस्ती

6. श्री जयसिंह, अटवा,बस्ती

7. श्री धर्मराल सिंह, राम गढ़

8. सरदार मुहेम सिंह,  जौनपुर

9. सूबेदार भवन सिंह,  गोण्डा

10. श्री हरिपाल सिंह, धिरौली बाबू, बस्ती

11. श्री बनबीर सिंह, धिरौली बाबू ,बस्ती

12. श्री रिसाल सिंह, धिरौली बाबू ,बस्ती

13. श्री रघुबीर ,धिरौली बाबू ,बस्ती

14. श्री सुखवन्त सिंह, धिरौली बाबू, बस्ती

15. श्री राम दीन सिंह, धिरौली बाबू ,बस्ती

16. श्री जय नरायन सिंह, भानपुर बाबू ,डुमरिया गंज, बस्ती

17. श्री राम जियावन सिंह, करनपुर, पैकोलिया, बस्ती

18. श्री लखपत राय, दौलतपुर, बस्ती

19. श्री मुसर्रफ खां, जौनपुर

1 COMMENT

  1. इस लेख मुहम्मद हुसेन का मूल स्थान टाण्डा ,अकबरपुर दिखाया गया है जो त्रुटिपूर्ण है। इनके वंशजों ने अपने पूर्वज के बारे में आपत्ति करते हुए सुधारने का आग्रह किया है मुहम्मद हुसेन दीवानखाना ,काजी मोहल्ला, सहसवान, जिला बदायूं के मूल निवासी थे, जहां उनके वंशज अभी भी निवास करते हैं पाठक कृपया इसे सुधार कर पढ़ें।

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