कहानी : प्रवालगढ़ । लेखक : आर. सिंह

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मियामी से चालीस किलोमीटर दक्षिण एक छोटा सा शहर है, . अटलांटिक महासागर के किनारे बसा हुआ यह शहर मियामी से की द्वीप जाने के रास्ते में आता है. की द्वीप जाते हुए बरबस ही ध्यान खींच जाता है, जब निगाह पड़ती है प्रवालगढ़ लिखे हुए नामपट्ट(साइन बोर्ड) पर. .पत्थरों से बने अहाते के दीवार के बीच एक ऊंचे से दरवाजे के ऊपर यह नामपट्ट है और उसीके अन्दर दिखते है, पत्थरों पर विभिन्न प्रकार के आकर्षक नक्कासी और कला के नमूने .ये बड़े बड़े पत्थर साधारण पत्थर नहीं हैं. ये प्रवाल पत्थर हैं. इन्हीं पत्थरों से बने कमरे भी हैं. अन्दर का दृश्य बहुत ही कलात्मक और सौन्दर्य पूर्ण है. पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है यह .दिन भर तांता लगा रहता है यहाँ पर्यटकों का, पर सांध्य बेला में यह बीरान हो जाता है. पांच बजे शाम को इसका फाटक बंद हो जाता है. उसके बाद यह भूतहा किला लगने लगता है. रात्रि बेला में कोई नहीं रहता यहाँ. लोगों की धारणा है कि रात में यहाँ रूहे भटकती हैं. विभिन्न आवाजें आती रहती है यहाँ. एक दो आवाजें तो लोगों ने साफ़ साफ़ सुनी है. “सोफी, जूली कब आयेगी?” उसी के साथ लडकी की आवाज उभरती है,”रॉजर पता नहीं,पर वह आयेगी अवश्य.” कभी कभी किसी के सिसकने की आवाज भी आती है. वह शायद सोफी की रूलाई होती है जो रॉजर के बेकरारी और अपनी बेवसी पर आंसू बहाती है. लोग कहतेहैं कि बड़ी दर्दनाक कहानी है इसकिले के निर्माण के पीछे.

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फ्लोरिडा का पूर्वी तट.अटलांटिक महासागर से उठती हुई लहरे अठखेलियाँ करती हुई आती है और किनारे के रेत से टकरा कर दूर दूर तक फ़ैल जाती हैं. किनारे पर बसे हुए मछुआरों के ये छोटे छोटे घर .प्रात कालीन लालिमा के फैलने के पहले ही ये मछुआरे उतर पड़ते हैं जाल लेकर महासागर में.उनकी छोटी छोटी नौकाये लहरों के थपेड़ों के संग ही आगे बढ़ती जाती है. अटलांटिक के लहरों के बीचसे उठता हुआ विभाकर महासागर के सम्पूर्ण प्राची तट को अपनी लालिमा में समेत लेता है. पता नहीं अपने रोजी रोटी में लगे हुए मछुआरे प्रकृति की इस अलौलिक लीला की तरफ ध्यान भी दे पाते हैं या नहीं .

इसी मछुआरे की वस्ती में कुछ घर ऐसे लोगों के भी हैं,जो संगतराश का कार्य करते हैं. ये राजमिस्त्री भी इसी गाँव के अंग हैं. अटलांटिक का यह तट जहां एक तरफ लहरों के बीच मछुआरों के जीने का सामान मुहैया कराता है वहीं सफ़ेद और काले पत्थर जो लहरों के थपेड़े खाकर चिकने और सुन्दर हो गए हैं, इन संग तराशों के जिन्दगी का सहारा बन गए हैं.

प्रात:कालीन सूर्य के दर्शन के साथ ही गाँव में चहल पहल छा जाता है और बालक बालिकाओं का झुण्ड आ जाता है महासागर के किनारे अठखेलियाँ करने. बच्चे विभिन्न क्रीडाओं में मग्न हो जाते हैं .कोई लहरों के संग खेलने लगता है तो कोई अपना रेत का महल खड़ा करने लगता है. ऐसे अनेको बच्चे यहाँ हैं ,पर इन तीनो बच्चों की मंडली अलग ही है.जुली और सोफी बहुत छोटी हैं,पर आपस में घुल मिल कर हमेशा बकर बकर करती रहतीं हैं, इन दोनों का ध्यान अगर भंग होता है तो रॉजर के कारण, जो शायद एक या दो वर्ष ही बड़ा होगा इन दोनों से. रॉजर जूली की और देखते हुए अपने किले बनाने में मस्त रहता है और दोनों सहेलियां रॉजर को देखने में.वह तो जुली को देखते हुए अपने काम में ऐसा मस्त हो जाता है जैसे उसे यह भी ख्याल नहीं आता कि सोफी भी जुली के साथ है.संगतराश का यह लड़का अपने ही स्वप्न में खोया लगता है. रेत का महल भी बनाता है तो उसमे एक सौन्दर्य बोध दिखता है. जुली उसको तन्मय देख कर उसी की और टकटकी लगाए रहती है.सोफी भी उसके साथ ही रहतीहै ,पर उसको इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहींहै. वह तो कभी लहरों की ओर दौड़ लगाती है तो कभी इन रेत के घरौंदों को लहरों द्वारा बहाकर ले जाती देख कर ताली बजा कर नाचने लगती है, पर जूली इन महलों को लहरों द्वारा बहाए जाते देखकर परेशान हो जाती है. वह रॉजर को कहती भी है कि वह ऐसा महल क्यों बनाता है जिसे लहरें तुरत बहाले जाती हैं.वह ऐसा सुदृढ़ महल क्यों नहीं बनाता जिसे लहरें बहा नहीं सके. रॉजर को पता नहीं चलता कि जूली क्या चाहती है, पर उसकी बातें सुन कर वह प्रसन्न हो जIता है.और कहता है कि वह उसके लिए बहुत सुन्दर और सुदृढ़ किला बनाएगा. जूली को तो लगने लगता है कि वह बड़ी हो गयी है और सचमुच में रॉजर ने प्रवाल का एक सुन्दर किला उसके लिए तैयार कर दिया है और उसमे रहने लगी है. जूली को इस तरह खोया हुआ देखकर रॉजर के हाथ रूक जाते थे और वह उसको एकटक देखने लगता था. सोफी इन सबसे अनजान लहरोंके साथ खेलते खेलते थक जाती तो आकर जूली के साथ बैठ जाती ,पर वह समझ नहीं पाती थी कि रॉजर क्या करता रहता है और जूली क्या देखती रहती है.

उस दिन जूली रॉजर का कार्य देखते देखते नाचने लगी. ऐसे तो यह छोटी बच्ची का नाच था. पर सब बच्चे उस तरफ आकृष्ट हो गए .रॉजर भी अपना किला बनाने का काम छोड़ कर उसका नाच देखने लगा. नाच ख़त्म होते ही रॉजर उसके पास आया और पूछा,’तुम मुझसे शादी करोगी?”

कोई भी इस बच्चे के मुँह से यह सुनकर हँसने लगता, ,पर जूली न तो हँसी, न घबराई.वह बोली, “हाँ करूंगी ,पर तुम मुझे रखोगे कहाँ?”

रॉजर बोला ,”अपने किले में, और कहाँ ?”

जूली हँसने लगी, “तुम्हारा किला तो बहुत छोटा है.उसमे मैं कैसे रहूँगी? फिर यह तो रेत का है, तुरत ढह जाएगा .”

“ठीक है मैं तुम्हारे लिए प्रवाल और पत्थर का सुदृढ़ किला बनाउंगा तब तो मुझसे शादी करोगी न?”यह रॉजर की आवाज थी.

जूली बोली ,”हाँ करूंगी अवश्य करूंगी.”

“भूलना नहीं”

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गाँव के अन्य बच्चों के संग वे भी बड़े होने लगे. उनकी पढाई भी आरम्भ हो गयी. रॉजर पढाई के साथ अपने पिता के काम भी सीखता रहा, क्योंकि उसे तो जूली के लिए किला भी बनाना था. जूली को तो पता नहीं यह याद था भी या नहीं ,पर जब रॉजर ने उसे एक दिन स्कूल से आते पकड़ा तो वह सकपका गयी. रॉजर ने सीधा प्रश्न दागा,”क्यों जूली तुम्हे शादी वाली बात याद है न?”

लगता है कि जूली को भी वह अच्छा लगता था और वह भी नहीं भूली थी उस दिन की बात को .वह तुरत बोली,” किला बनाओगे तब न शादी करेंगे.”

” हाँ हाँ किला अवश्य बनाऊंगा.”

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दिन बीतते देर नहीं लगती जुली और सोफी अब षोडशी हो गयी है और रॉजर तो अट्ठारह वर्ष का हो चुका है. जूली उस वस्ती की रानी बन गयी थी .कोई भी लडकी उतनी सुन्दर नहीं थी जितनी जूली. सोफी अभी भी उसके साथ थी, पर दोनों की सुन्दरता में कोई तुलना नहीं थी. रॉजर और जूली दोनों साथ बढे हुए थे, पर जहाँ रॉजर जूली पर जान छिडकता था ,वही जूली के लिए उसके चाहने वालों की सूची में उसका भी नाम था. सोफी यह सब समझती थी, पर बोलती नहीं थी कि यह सुनकर रॉजर का दिल टूट जाएगा. रॉजर ऐसा बांका जवान भी नहीं था ,जो जूली का मन मोह लेता. पांच फूट लंबाई का एक दुबला पतला साधारण युवक जो अपने ही स्वप्नों में खोया रहता था,यही पहचान थी उसकी.

रॉजर इसी उम्र में ऐसा संगतराश बन गया था, जिस पर उसके पिता फक्र करते थे. क्या सुन्दर मूर्तियाँ बनाता था वह? वह तो जूली की मूर्ति भी बनाना चाहता था पर वह तो हमेशा उसे अपनी आँखों के समक्ष दिखती थी..जब भी वह उसकी मूर्ति बनाने का प्रयत्न करता ,उसे लगता कि वह तो उसी के लिए ये मूर्तियाँ बनाता है, पता नहीं उसे अपनी मूर्ति पसंद आयेगी भी या नहीं .

जुली के सौन्दर्य की ख्याति फैलने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह सपने वाले किसी राजकुमार की जीवन संगिनी बनेगी. रॉजर को भी वह भूली नहीं थी. उसके दिल के किसी कोने में शायद अभी भी उसके लिए कुछ जगह थी. उसे कभी कभी लगता था कि रॉजर अभी उसके समक्ष खड़ा हो जाएगा और कहेगा कि जूली मुझसे शादी करोगी .ऐसे उसे पता था कि ऐसा नहीं होगा. रॉजर तो शायद उसके सामने आने का साहस ही न करे. सोफी अभी भी उसकी सहेली थी. वह रॉजर की भी मित्र थी .ऐसी मित्र जो रॉजर के एक एक पल का ध्यान रखती थी.

युवक युवतियों के समूह के वे अंग थे, पर रॉजर तो अपने ही सपनों में खोया रहता था. जुली के बारे में भी वह सोफी से ही पूछताछ किया करता था. सोफी जानती थी कि अब जूली बचपन वाली जूली नहीं रही, पर सच बोल कर उसका दिल तोड़ने का साहस वह नहीं कर सकती थी. आज बहुत अरसे बाद वे सब साथ थे.जुली थी ,सोफी थी, रॉजर था और थे गाँव के अन्य युवक युवतियाँ. आज नृत्य प्रतियोगिता थी. एक से एक जोड़े इकट्ठा हुए थे जो अपने को नृत्य में निपुण समझते थे. रॉजर को नृत्य में कोई दिल्चस्पी नहीं थी, पर सोफी उसे भी पकड़ कर लाई थी. रॉजर ने पूछा भी था कि क्या जूली वहां होगी. सोफी ने इतना ही कहा था कि वह अवश्य ही वहाँ होगी. सोफी उसे कैसे बताती कि इस साल प्रतियोगिता की मुख्य आकर्षण तो जूली ही है. बतलाने पर भी वह कितना समझता ,यह भी तो सोफी नहीं जानती थी. सोफी जानती थी कि रॉजर केवल जूली से प्यार करता है. अन्य किसी लडकी के बारे में वह सोचता भी नहीं है,फिर भी न जाने वह कौन सा आकर्षण था , जिसके चलते वह रॉजर का साथ नहीं छोड़ पाती थी. न जाने कौन सा सम्बन्ध जो उसे सर्वदा रॉजर के संग बांधे रहता था. वह रॉजर की मनोस्थिति से पूरी तरह अवगत थी. वह यह भी समझ रही थी कि रॉजर का इस तरह जूली के प्यार में पागल हो जाना उसके लिए अच्छा नहीं है, फिर भी उसे रॉजर से कुछ कहने का साहस नहीं होता था. उसे डर लगता था कि अगर रॉजर का दिल टूट गया तो क्या होगा? क्या बर्दास्त कर पायेगा वह इस सदमें को?रॉजर ने जब जूली को नृत्य करते देखा तो वह उसके सम्मोहन पांश में ऐसा बंध गया कि अपनी सुधबुध खो बैठा. वह यकायक जूली से लिपट गया. सोफी का कलेजा धक से हो गया. वह किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो गई. किसी अनहोनी की आशंका ने उसे पूर्ण रूप से भयभीत कर दिया. जूली को बहुत बुरा लगा. वह तो आसमान से गिर पडी. उसके तो स्वप्न टूटते नजर आये, फिर भी उसने अपने आपको संभाला और बोली,” रॉजर यह क्या पागलपन है?बच्चों जैसी हरकत क्यों कर रहे हो?”

रॉजर कुछ नहीं बोला वह उसकी ओर एक टक देखता रहा.अब तो जूली एक तरह से बिगड़ गयी और चिढ़ कर बोली,’तुम मेरा तमाशा क्यों बना रहे हो? तुम स्वयं तो तमाशा बन ही गए हो. अब मेरी ईज्जत क्यों मिट्टी में मिला रहे हो?”

रॉजर बोला, “जूली तुमने मुझसे शादी का वादा किया था. कब कर रही हो मुझसे शादी?”

“हाँ मैंने शादी का वादा किया था, पर वह किला कहाँ है जो तुम मेरे लिए बनाने वाले थे?”

सोफी यह सुन कर काँप उठी,. यह कैसी परीक्षा ले रही है जूली? यह क्या बच्चे जैसी बातें कर रही है.किला बनाना कैसे संभव है?बचपन की बात और थी. मालूम है उसे कि जूली अब रॉजर को नहीं चाहती .यह भी तो पता नहीं कि उसने कभी भी रॉजर को प्यार किया था या नहीं. पर यह तो सरासर ज्यादती है. रॉजर के प्यार का मजाक उड़ाना है.सोफी तो अपने विचारों में खो गयी थी, पर उसके कानों ने सुना, रॉजर कह रहा था, “किला बना लूँगा तो मुझसे शादी करोगी?”

‘ हाँ हाँ अवश्य करूंगी, पर तुम किला बनाओ तो सही.”

जूली जानती थी कि रॉजर किला नहीं बना सकता .ऐसे जूली को उसमे कोई ख़ास दिलचस्पी तो थी नहीं. पर रॉजर को न जाने क्यों लग रहा था कि अगर वह किला बना लेगा तो जूली अवश्य उसकी हो जायेगी. वह केवल यही बोला, ” जूली प्रतीक्षा करना. अब मैं किला बनाने के बाद ही तुमसे मिलूंगा. ” सोफी अश्रुपूर्ण नेत्रों से यह सारा खेल देख रही थी .रॉजर की हालत देख कर उसका हृदय विदीर्ण हो रहा था पर वह अपने को विवस महसूस कर रही थी. वह एक ऐसी स्थिति में थी कि उसे पता हीं नहीं चल रहा था कि वह करे भी तो क्या?न जाने यह कैसा लगाव था उसका रॉजर के साथ? सोफी जानती थी कि वह जूलीकोप्यारकरता है .फिर भी वह उसका साथ नहीं छोड़ पा रही थी. वह उसके संग साया की तरह लगी रहती थी.

रॉजर को अब एक ही धुन था, वह किला कैसे बनाए?

जमीन की कमी तो वहां थी नहीं. ऐसे उसके पिता ने एक बड़ा सा जमीन का टूकडा अपने अधिकार में रखा हुआ था. उसने उसी जमीन पर किला बनाने की ठान ली.

एक दिन सबेरे सबेरे लोगों ने देखा कि उस जमीन के सामने वाले हिस्से में एक दीवाल खड़ा हो गया है, जिसके बीच में एक दरवाजा है. दरवाजे के ऊपर लिखा हुआ है जुली महल. कुछ लोगों को कौतुहल अवश्य हुआ, पर किसी का पागलपन समझ कर उनलोगों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. सोफी ने भी इसे देखा. उसे भी पता नहीं चला कि रातोंरात यह निर्माण कार्य कैसे हो गया .कुछ कुछ तो वह समझ रही थी ,पर रात्रि के आगमन के साथ ही तो वह रॉजर से अलग हुई थी, उसे यह विश्वास नहीं हो रहा था. कि उसी अंतराल में उसने कैसे इतना निर्माण कार्य पूरा कर लिया? सोफी जब अपनी जिज्ञासा नहीं रोक सकी तो उसने रॉजर से पूछा भी पर उसने सोफी के प्रश्न को टाल दिया. उसने अवश्य यह प्रश्न किया कि अगर वह किले का निर्माण कर लेगा तो जूली उससे व्याह कर लेगी न.

सोफी जानती थी कि वह जूली को हमेशा के लिए खो चुका है, फिर भी वह रॉजर को यह नहीं बता सकी. उसने उस का मन रखने के लिए केवल यही कहा कि जूली ने वादा किया है, अतः करेगी हीं .रॉजर के खानेपीने का प्रबंध भी सोफी को करना पड़ता था. पता नहीं कैसे वह उसके भोजन का प्रबंध करती थी? ऐसे रॉजर एक अच्छा संगतराश था. उसकी बनाई मूर्तियाँ लोग बहुत पसंद करते थे ,पर उसने वह कार्य भी छोड़ दिया था. दिन में वह अधिकतर सोता रहता था .दिन में तो जूली ऐसे भी प्राय: उसके साथ ही रहती थी, पर रात होते ही वह अकेला हो जाता था सोफी प्रयत्न करके भी नहीं जान पायी थी कि जूली भवन का निर्माण कार्य कैसे बढ़ता जारहा था और नए नए प्रवाल पत्थर कहाँ से आ जाते थे. अब तो सोफी को लगने लगा था कि कुछ न कुछ बन कर रहेगा. सोफी के पूछने पर भी रॉजर उसे इसके बारे में कुछ नहीं बताता था. बीच बीच में बड़ी मासूमियत से उससे पूछता था,’ किला बन जाने पर जूली आयेगी न?”

सोफी को बहुत कठिनाई होती थी इसका उत्तर हाँ में देने में, पर उसे देना तो पड़ता हीं था. उसे तो ऐसा लगने लगा था कि इसी हाँ पर रॉजर के जिन्दगी की डोर बंधी हुई है और वह शायद इसमे किसी तरह का झटका बर्दाश्त नहीं कर पायेगा .ऐसे इस झूठ को बोलने में उसे मर्मान्तक पीड़ा होती थी.

लोगों का आश्चर्य बढ़ता जा रहा था. वे इस रहस्य को समझ नहीं पा रहे थे .उस खुली जमीन पर नित्य कुछ न कुछ हो जाता था और वह भी रात्रि बेला में. दिन में वहाँ किसी तरह की गतिविधि नजर नहीं आती थी. धीरे धीरे वहां एक इमारत आकार लेने लगी थी, पर यह कोई भी नहीं समझ पा रहा था कि यह सब हो कैसे रहा है और कौन कर रहा है यह सब .सोफी समझ रही थी कि अवश्य ही यह रॉजर की करामात है, पर वह भी नहीं समझ पा रही थी कि आखिर वह यह सब करता कब है .फिर सोफी ने देखा कि निर्माणाधीन किले का कुछ हिस्सा टूट गया है .उसके समझ में नहीं आया कि यह कैसे हुआ? बात तब उसके समझ में आयी जब उसने रॉजर का बड़बड़ाना सुना. ‘जूली को यह कभी पसंद नहीं आता. मैंने अच्छा काम नहीं किया था. अब मैं इसे नए सिरे से बनाउंगा. ”

अब तो सोफी को विश्वास हो गया कि रॉजर ही यह सब कर रहा है,पर कब करता है वह यह निर्माण कार्य?

प्रवाल के किले का निर्माण बढ़ता गया और साथ ही साथ बढ़ता गया लोगों का कौतुहल. लोगों के आश्चर्य का सबसे बड़ा कारण था किले के निर्माण में बड़े बड़े प्रवाल पत्थरों का उपयोग. प्रवाल पत्थर साधारण पत्थरों से थोडा हलके अवश्य होते हैं, पर ऐसे भी हलके नहीं होते कि वे आसानी से उठाया जा सके. उस पर भी ये बड़े बड़े पत्थर जिनको उठाने की कौन कहे खिसकाना भी कठिन था. न जाने कौन अलौकिक ताकत रॉजर में आगई थी जिसके सहारे वह इन पत्थरों को किले के निर्माण में प्रयोग करता जा रहा था. यह भी तो नहीं पता लग रहा था कि इस निर्माण कार्य में कौन उसकी सहायता कर रहा है, पर निर्माण कार्य नियमित रूप से हो ही रहा था. उस दिन रॉजर बहुत प्रसन्न था. किले में एक कक्ष का निर्माण हो गया था. उसे लगा कि जूली अवश्य आयेगे इसे देखने . सोफी से उसने कहा भी ,”सोफी देखो कितना सुन्दर कक्ष है. जूली को अवश्य पसंद आयेगा”.

वह प्रतीक्षा करता रहा ,पर जूली नहीं आयी. सोफी को लगा कि अब रॉजर हताश हो जाएगा और हताशा में कुछ कर न बैठे. सोफी तो रॉजर का बुरा सोच भी नहीं सकती थे, उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह रॉजर को क्या कह कर दिलाशा देगी.

रॉजर न जाने किस धातु का बना था कि इसकी नौबत हीं नहीं आयी .रॉजर ने एक दो दिनों तक जूली की प्रतीक्षा की. फिर न जाने उसके मन में क्या आया कि वह सोफी से बोला, “लगता है, यह कक्ष अभी छोटा है. मैंने तो किला बनाने का वादा किया था. यह तो किला दिखता नहीं .इसीलिये वह नहीं आयी .ठीक है .मैं इसे और सुन्दर और बड़ा बनाउंगा.”

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दिन बीतते गए. दिन महीनों में बदले और महीने साल में. अब तो अनेक वर्ष बीत गए. किले का निर्माण जारी रहा .उसमे एक से एक सुन्दर हिस्से जूडते गए. गजब था रॉजर का सौन्दर्य बोध. किला इतना भव्य और सुन्दर दिखने लगा था कि लोग उसे देख कर दाँतों तले उँगली दबा लेते थे.

रॉजर को तो पता भी नहीं चला कि वह कब जवान से वृद्ध हो गया. पर वाह री सोफी. उसने रॉजर का साथ नहीं छोड़ा वह तो तपस्विनी बन गयी थी. उसके जीवन का अब एक ही लक्ष्य था, रॉजर की देखभाल, उसकी सेवा. पता नहीं उसका साथ नहीं होता तो रॉजर का क्या होता? रॉजर ने बोलना भी लगभग बंद कर रखा था. बीच बीच में उससे इतना हीं पूछता था, “जूली आयेगी न?”

सब कुछ समझते हुए भी न जाने क्यों वह कह नहीं पाती थी कि वह व्यर्थ ही जूली की प्रतीक्षा कर रहा है

 

रॉजर अब बीमार रहने लगा था. सोफी उसे तिलतिल मरते हुए देख रही थी. वह किला भी पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र बनता जा रहा था. रॉजर प्रसन्न हो जाता था दर्शकों को देख कर. उसे लगता था कि इन्हीं लोगों के संग जूली भी किसी दिन वहां पहुँच जायेगी. अब किले ने बहुत सुन्दर शक्ल अख्तियार कर ली थी, पर रॉजर को संतोष कहाँ? वह तो इस बीमारावस्था में भी कुछ न कुछ करता जा रहा था. पर कबतक ? आखिर उसकी ताकत जबाब दे गयी. बहुत ही गंभीर अवस्था में उसे मियामी के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया.

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आज रॉजर मृत्यु शैया पर पडा है. डाक्टरों के अनुसार उसे फेफड़े का कैंसर है और वह चंद दिनों का मेहमान है.उस अवस्था में भी न वह किले को भूला हैऔर न भूल सका है जूली को. बोलने में भी उसे कठिनाई होती थी. एक तरह से नीम बेहोशी वाली हालत थी उसकी, पर उस दिन वह थोड़ा ठीक दिखा. सोफी उसके पास ही थी. यकायक बोला,'” यह क्या सोफी? तुम और मैं दोनों यहाँ हैं. किले में कौन है? अगर जूली आ गयी तो क्या कहेगी ? मुझे वहीं ले चलो.” सोफी की आँखों से झरझर आँसूं गिर रहे थे. सोफी ने आगे सुना. वह बोल रहा था, “जूली तुम आ गयी न .मुझे विश्वास था कि तुम अवश्य आओगी. देखो मैंने तुम्हारे लिए कितना सुन्दर किला बनाया है”.

इसके साथ ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए. लोगों ने कब उसे वहाँ से उठाया ,सोफी को तो शायद यह पता भी नहीं चला.

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कुछ दिनों तक लोगों ने एक पगली को मियामी की सड़कों पर भटकते देखा. फिर न जाने वह कहाँ चली गयी.

8 COMMENTS

  1. तिवारी जी दाल में काला मुझे तो नहीं दिखाई दे रहा है,पर अपना अपना दृष्टि कोण है,अतः इसके बारे में मैं क्या कह सकता हूँ?आपने कहानी को सराहा,मेरे जैसों के लिए यही बहुत बड़ा अनुग्रह है.

  2. आदरणीय ,सिंह साहेब जी आपकी कहानी आपकी ही रहेगी,मेरा मंतव्य भी आपने सही समझा किन्तु यह युक्ति भी स्वयम सिद्ध है कि ‘ जो मेरे संज्ञान में नहीं उस चीज का अस्तित्व नहीं’ अब यदि आपने इतना परिश्रम इस मौलिक रचना[कहानी] में किया ही था तो भारत,भारतीयता के दो शब्द भी इस कहानी में प्र्तायारोपित करने की मेहेरवानी करते तो मुझे भी ‘हवा में तीर’ छोड़ने की गुंजाइश ही न रहती. आपके स्पष्टीकरण के उपरान्त अब इस में किन्चित्त भी संदेह नहीं कि’कहीं दाल में काला’ जरुर है. फिर भी अब इस सन्दर्भ को विराम देने कि घोषणा के साथ आपको पुनः बेहतर कहानी लेखन के लिए साधुवाद देता हूँ.बधाई….

  3. तिवारी जी,सच पूछिए तो मुझे पहले से मालूम था कि आपके पास मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है.आपने तो हवा में एक तीर छोड़ा था.सोचे थे कि शायद निशाने पर लग जाए.जब नहीं लगा तो आपने जो टिप्पणी दी,उसके अतिरिक्त अन्या कुछ आप कह भी नहीं सकते थे.

  4. तिवारी जी,आप क्या कहना चाह रहे हैं, यह मेरी समझ में नहीं आया.मैंने तो एक सीधा प्रश्न किया था कि आप उस लेखक या कहानी का नाम बताइये,आपके मुताबिक जिसका अनुवाद यह कहानी है,पर आप न जाने क्या क्या इतिहास ले बैठे?सच पूछिए तो आपकी इस टिप्पणी को समझने में मैं पूरी तरह असमर्थ हूँ.मेरा प्रश्न अभी भी अनुतरित है.मैं नहीं समझता कि अंग्रेजी के तीन लेखकों का नाम मेरे प्रश्न का उत्तर है.
    रही बात परिवेश की तो इतनी स्वतंत्रता तो एक लेखक को होनी ही चाहिए कि वह अपनी कहानी का कोई भी परिवेश चुने.मेरी समझ में तो इसमे किसी को एतराज करने का कोई अधिकार नहीं है.

  5. डी एच लोरेन्स , ओ हेनरी, मोपासा इताय्दी में से यदि कोई नहीं तो ‘आर सिंह’ के होने में किसी को क्या इतराज हो सकता है? यह तो हिंदी जगत के लिए गौरव की बात है कि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में हमारे ‘वैश्विक’ कहानीकार अब ‘कंटेंट’ के लिए शिमला,उटी,मैसूर,नेनीताल कि जगह मियामी,फ्लोरिडा में भटक रहे हैं.,और हिंदमहासागर को छोड़ अतलांतिक में दुबकी लगा रहे हैं.. तथा अशोक,सिद्धार्थ,गौतम,यशोधरा,गीता,मनु को छोड़ जुली,रोज़र और सोफी जैसे परम पावन पात्रों को चिर्जीवता प्रदान कर रहे हैं.धन्य हैं आप और वन्दनीय है आपकी लेखनी…

  6. श्री तिवारी जी,मैं उम्मीद करता हूँ कि आपने मेरी टिप्पणी पढी होगी. मुझे उत्तर की प्रतीक्षा है.

  7. तिवारी जी को टिप्पणी के लिए धन्यवाद.मुझे अफ़सोस यही है की आपने इस मौलिक रचना को अनुवाद कहा..जिस रचना का आपने अपनी टिप्पणी में उल्लेख किया है,वह मेरी नज़रों से नहीं गुज़री है.मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि ऐसी कोई रचना है भी .अगर किसी भी अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा की किसी कहानी से इसकी समानता है तो यह महज इतफाक है.ऐसे वहाँ प्रचलित किम्वदंतियां अवश्य इस कहानी का आधार हैं,चूंकि किले की वास्तविक संरचना शायद बहुत कम लोगों ने देखी थी,अतः किले के बारे में अफवाहें अधिक हैं.ऐसा किला एक आदमी कैसे निर्मित कर सकता है,यह बहुत बड़ा कारण हैं,विभिन्न अफवाहों का…एक बात और स्पष्ट कर दूं.अगर यह अनुवाद होता या इसकी प्रेरणा किसी ख़ास कहानी या पुस्तक से ली गयी होती,तो उसका उल्लेख मैं यहाँ अवश्य कर देता,जैसा कि मैंने अपने अनुवादित लेख ये खोखले वादे (प्रवक्ता १४ जुलाई २०११) और कहानी रंजन (प्रवक्ता १९ अप्रैल २०११ )में किया है. तिवारी जी अगर आपके द्वारा उल्लेखित कहानी कहीं उपलब्ध है तो मैं उसे अवश्य पढना चाहूंगा.

  8. बहुत उम्दा कहानी है ,बढ़िया अनुवाद प्रस्तुत करने के लिए श्री आर सिंह जी को साधुवाद !
    यह अति उत्तम होता कि कहानी के मूल लेखेक [ एंग्लो-अमेरिकन] का नाम भी उल्लेखित कर देते!!

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