कहानी : वह विदेशी लड़की

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आर. सिंह

वह अचानक ही यहाँ मिल गयी थी. मैं अपने मित्र के साथ छुट्टियाँ बिताने सियाटल आया हुआ था मेरा मित्र सपत्निक यहाँ रहता था . मुझे अमेरिका आये हुए अधिक दिन नहीं हुए थे. पर मैं अमेरिका आने का प्रयत्न तो बहुत दिनों से कर रहा था.मेरा अमेरिका आने का स्वप्न तो और पुराना था.शायद यह सपना मैं तब से संजोये हुआ था ,जबसे कुछ समझने योग्य हुआ था.किशोरावस्था की यह चाहत पढाई समाप्त करते करते पागलपन की सीमा तक पहुँच गयी थी,फिर भी अनेक प्रयासों के बावजूद अमेरिका आते आते मैं छबीस की उम्र पार कर चुका था.

मैं योंही सियाटल के स्पेस नीडल के पास टहल रहा था कि वह दिखी .एक अजब का आकर्षण था उसमें.वह गोरी थी लम्बी थी ,छरहरे बदन की थी,पर अमेरिका में तो ऐसी बहुत लड़कियां अबतक मेरी नज़रों के सामने से गुजर चुकी थी.पर मेरी निगाह तो उसके चेहरे पर पड़ी थी और मैं ठगा सा रह गया था. क्या आकर्षण था उस चेहरे में और वैसी ही मासूमियत.उसकी उम्र लगभग बीस वर्ष की होगी पर चेहरे पर बच्चों जैसी मासूमियत और एक हल्की सी मुस्कुराहट.मैं तो उसकी एक झलक पर ही न्योछावर हो गया.लगा कि वह मेरे दिल में घर कर गयी. न जाने कौन सा आकर्षण था कि मैं तो उसकी ओर खींचा चला गया.मुझे अपनी ओर आता देख कर वह झिझकी नहीं .उसके चेहरे पर मुस्कुराहट अवश्य थोड़ी गहरी हो गयी और उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.मैं तो निहाल हो गया.लगा कि मैं दोनों हाथों से उस सुन्दर और कोमल हाथ को पकड़ कर अपने सीने से चिपका लूं,पर ऐसा करने का साहस मैं नहीं कर सका और झिझकते झिझकते उसकी ओर अपना हाथ बढ़ा दिया. मेरी झिझकने की अदा से उसके चेहरे की मुस्कराहट हल्की हँसी में बदल गयी.

“सोफिया” उसने अपना नाम बताया.

“राकेश”.

“क्या तुम भारतीय हो?”

मैंने स्वीकृति में सर हिलाया.मेरे सर हिलाने की अदा पर तो वह हँस पडी.

उसके अंग्रेजी उचारण से मुझे लग रहा था कि वह अमेरिकी नहीं है. मुझे अमेरिका आये हुए बहुत दिन नहीं हुए थे,पर यहाँ के लोगों के अंग्रेजी के उचारणके चलते अमेरिकियों से वार्तालाप में जो कठिनाई होती थी उससे तो लगता था कि मुझे अंग्रेजी आती ही नहीं .ऐसे भारत में अंग्रेजी की वाद विवाद प्रतियोगिता में मैं अनेक पदक प्राप्त कर चुका था, पर अमेरिका आकर ऐसा लगा कि इनसे अगर वार्तालाप करनी है है उनकी भाषा को अच्छी तरह् समझना है तो अभी बहुत कुछ सीखना पड़ेगा.

मैंने एक तरह से अँधेरे में तीर मारा,”तुम तो अमेरिकी नहीं लगती.”

‘नहीं मैं अमेरिका की नहीं हूँ.”

उसने आगे बताया कि वह वेनजुएला की रहने वाली है.

यह जानकारी तो मुझे थी कि वेनजुएला दक्षिण अमेरिका का एक छोटा सा देश है. अपने अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथअपने निवासियों के सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है वह देश.

तो मेरा अनुमान सही था.यह बाल सुलभ कोमलता और चेहरे की मासूमियत पर दृष्टि पड़ते ही मैं हैरान हो गया था. मुझे लग रहा था कि यह अमेरिकी नहीं है.अमेरिका आये कुछ दिन बीत चुके थे.मैंने यहाँ के विभिन्न ऊम्र वाली बहुत सी लडकियाँ देखी थी.साधारण पोशाकों से लेकर बिकनी वाली लडकियाँ भी मेरी नज़रों से गुजर चुकी थी.पर न जाने क्यों दस बारह वर्ष से अधिक ऊम्र वाली लड़कियों में कोमलता और मासूमियत नजर नही आती थी.

थोड़ी औपचारिक बातें हुई .यह भी पता चला कि वह अकेले हीं यहाँ कुछ दिनों के लिए भ्रमण केलिए आयी हुई है और अपने चाचा चाची के घर में ठहरी हुई है.

उसने बताया,”ऐसे मैं अपने चाचा चाची के साथ ही निकलती हूँ,पर इतना समय तो उनके पास है नहीं कि वे हमेशा मेरे साथ घुमते रहें कभी कभी जब घर में बैठे मन उब जाता है तो मैं अकेले ही निकल पड़ती हूँ.ऐसे यह स्थान मैं उन लोगों के साथ भी देख चुकी हूँ और उनके घर से दूर भी है,पर पहली बार देखने के बाद मुझे इतना पसंद आया कि मैं फिर यहाँ आ गयी”.

मुझे मालूम था कि जहां हमलोग खड़े थे वह सियाटल का सबसे लोकप्रिय स्थल है,अतः मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ.इधर उधर की थोड़ी बातें हुई.फिर हमलोग अलग अलग दिशाओं में चल दिए.

सोफिया ने उतनी ही देर में मेरे ऊपर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि मैं उसको रास्ते भर याद करता रहा. सोते समय भी वही ख्यालों में बसी हुई थी.

पता नहीं विधि का विधान भी कैसा होता है?दो दिनों बाद मैं सियाटल का विश्व प्रसिद्ध अक्वेरियम देखने पहुंचा.चूंकि मुझे सियाटल में अधिक दिनों तक नहीं रूकना था अतः मैं धीरे धीरे सब स्थानों को देखता जा रहा था.मेरे मित्र और उनकी पत्नी इच्छा होते हुए भी मेरा साथ नहीं दे सकते थे,क्योंकि उनकी छुट्टियाँ तो थी नहीं. वे लोग अक्सर घर से निकलते समय मुझे बस स्टैंड पर छोड़ देते थे,फिर मैं वहां से बस पकड़ लेता था .आज भी वही हुआ था.मैं वहां पहुंचा तो देखा कि सोफिया वहां पहले से मौजूद है.

मैं स्पेस नीडल के पास से लौटने के दो दिनों बाद यहाँ आया था.यह विधि का विधान था या कोई इतिफाक कि वह पहले ही से वहां मौजूद थी.

आज भी वह अकेली थी.लगता है कि यह संयोग उसे भी भा गया और मुझे देखते ही वह प्रसन्न हो गयी.मैं भी उसे देखकर मुस्कुराया पर वह तो खिलखिला कर हँस पड़ी.

इस हँसी ने तो मुझे पूर्ण रूप से सम्मोहित कर लिया.मैं उसके चेहरे की ओर देखता ही रह गया.चेहरे की मासूमियत और यह निश्छल हँसी ?लगा कि सोफिया ने मेरे दिल में स्थान बना लिया.आज पहले दिन वाली झिझक तो थी नहीं हमलोग बातें करते रहे और विभिन्न प्रकार के मछलियों और अन्य समुद्री जीवों का दर्शन करते रहे.आज तो मुझे ऐसा लग रहा था कि वह बातें करती रहे और मैं सुनता रहूँ.मेरा ध्यान मछलियों की ओर कम और उसकी ओर अधिक था.वह बीच बीच में मुस्कुराती भी रही और मैं उसकी मुस्कुराहटों पर न्योछावर होता रहा.मेरे इन विचारों से तो वह अवगत थी नहीं ,नहीं तो मेरे बारे में जाने क्या सोचती.

आज के मिलन का समय भी तो समाप्त होना ही था.बिछुड़ते समय तो ऐसा लगा कि कोई मेरा दिल निकाल कर ले जा रहा है.मैं तो आज उससे अलग भी नहीं होना चाह रहा था,पर विवशता थी.उसके चाचा चाची भी अधिक देर होने से घबडा सकते थे.पता नहीं ,वह मेरे बारे में क्या सोच रही थी.अलग होते समय भी उसके चेहरे पर मुझे मुस्कराहट ही नजर आयी.

आज तो घर लौटते समय वह बुरी तरह मेरे दिलो दिमाग पर छाई रही.बार बार उसका मुस्कुराता चेहरा और उस चेहरे पर बड़ी बड़ी नीली आँखें मुझे याद आती रहीं घर पहुँच कर मित्र और उसकी पत्नी से भी ज्यादा बात नहीं हुई.मैं उसी के बारे में सोचता सोचता विस्तर पर पड़ गया. सोच ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा.उसकी वह मुस्कराहट और नीली आँखें बार बार मेरे सामने आती रहीं बहुत देर तक नींद भी नहीं आयी.कब मैं निद्रा की गोद में गया,मुझे यह पता भी नहीं चला.

दूसरे या तीसरे दिन मैं पाईक प्लेस बाजार में था.यह बाजार पुराना होने के साथ साथ अपनी विशेषताओं के लिए भी प्रसिद्ध है.दो दिनों के संयोग के कारण मुझे न जाने क्यों लगने लगा था कि सोफिया मुझे आज यहाँ भी मिल जायेगी.मैं बहुत देर तक यहाँ इधर से उधर घूमता रहा,पर वह नहीं दिखी.ऐसे भी यह जगह इतनी छोटी नहीं है कि उसके यहाँ होने से भी मुलाकात की अधिक संभावना हो.ऐसे तो सियाटल इतना सुन्दर है और वहां इतने दर्शनीय स्थल हैं कि कहीं खड़े हो जाइए आप इस शहर के प्रकृति प्रदत सौन्दर्य पर मुग्ध हो जायेंगे,पर आज तो मैंसोफिया के ख्यालों में खोया हुआ था .दो दिनों के मिलन में उसने मेरे दिल में स्थान बना लिया था और मैं मन ही मन उसे प्यार करने लगा था.पर पता नहीं वह क्या समझेगी यह सोच कर मैं उससे कुछ कह भी नहीं पाया था.मैं वहां बहुत देर तक इधर उधर भ्रमण करता रहा.अनेक युवक युवतियां दिखे ,पर उसकी एक झलक भी नहीं पा सका ,जिसके लिए दिल तड़प रहा था.आँखे थक गयी उसकी बाट जोहते,पर वह नहीं ही दिखी.अंत में उदास कदमों से मैं वहाँ से लौट गया.

अगले दो तीन दिनों तक उससे मुलाकात नहीं हुई ,पर चौथे दिन जब मैं डाउन टाउन में घूमते हुए चीज केक फैक्टरी के सामने से गुजर रहा था तो वह फिर दिख गयी.आज के मिलन से तो मुझे विश्वास हो गया कि भगवान भी मेरी मदद कर रहा है ,नहीं तो ऐसा भी कोई संयोग होता है कि हम बार बार एक दूसरे से टकरा जातेहैं..आज तो हम लोग एक दूसरे का हाथ पकडे हुए ही रेस्तरां में दाखिल हुए .केक खाते खाते हमलोग बातें भी करते गए .आज तो उसकी बातें समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी.मैं तो ऐसा आनंद विभोर था कि मुझे उसके अतिरिक्त अन्य कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.मुझे तो लगा कि अब हम लोगों को प्रोग्राम बना कर एक दूसरे से मिलना चाहिए.लगता है कि उसके मन में भी यही विचार उठा .तय हुआ कि दूसरे दिन हमलोग वहीं मिलें जहां हम लोगों की पहली मुलाकात हुई थी. मैं तो इतना उतावला हो रहा था कि समय से पहले ही वहां पहुँच गया और उसकी प्रतीक्षा करने लगा.समय था कि बीतता जा रहा था पर प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त ही नहीं हो रही थी. पहले तो मुझे लगा कि समय पर वह आ ही जायेगी,पर निर्धारित समय के एक घंटे बाद भी वह नहीं पहुँची तो मैं बेहद निराश हो गया.दिल किसी तरह भी यह मानने को तैयार नहीं था कि वह मुझे धोखा दे सकती है,पर आखिर क्या कारण हो सकता है कि वह नहीं आयी?निराशा के गर्त में डूबते उतरातेआखिर मैं भारी कदमों से वहां से निकला .घर तक का रास्ता मैंने किस तरह तय किया ,यह मुझे स्वयं नहीं पता चला.मित्र और उसकी पत्नी मेरी बदहवाशी देख कर घबडाए भी,पर मैंने कहा कि तवियत थोड़ी सुस्त लग रही है,आराम करूंगा तो सब ठीक हो जायेगा.मन कुछ ऐसा अशांत होगया था कि दूसरे दिन भी मैं तबियत खराब होने का बहाना करके घर में ही पड़ा रहा.पर तीसरे दिन मुझे निकलना ही पड़ा.बाहर निकलने के लिए तो एकदम इच्छा नहीं थी,पर लगा कि अगर आज भी नहीं निकालूँगा तो मित्र और उनकी पत्नी न जाने क्या सोचेंगे

इसी तरह दो तीन दिन बीत गए और मैं सोफिया को भूलने का प्रयत्न करता रहा,पर वह तो भुलाए नहीं भूलती थी.उसका मासूम चेहरा और गहरी नीली आँखें मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी.

आज छुट्टी का दिन था और मैं अपने मित्र दम्पति के साथ वहाँ के एक प्रसिद्ध पार्क में आया था..यह पार्क इसलिए भी प्रसिद्ध है कि यहाँ एक जगह अनवरत लौ निकलती रहती है.इतनी बड़ी जगह मेंतो उससे मिलन की कतई आशा नहीं थी,पर वह तो यकायक न जाने कहाँ से प्रकट हो गयी? सबसे पहले तो उसने उस दिन नहीं मिलने के के लिए क्षमा माँगी.उसने बताया कि उस दिन उसके चाचा की तबियत अचानक खराब हो गयी और वह घर से निकल ही नहीं सकी.उसको बहुत बुरा लग रहा था पर वह लाचार थी.अब तो उसके लौटने के दिन भी नजदीक आ रहे हैं आज चाचा चाची के साथ पिकनिक पर भी वह इसीलिये आयी थी ,क्योंकि उसे लगा कि शायद मुझसे वहां मुलाक़ात होजाये

मित्र की पत्नी ने चुटकी ली,’अब समझ में आया कि उस दिन राकेश जी की तबियत अचानक क्यों खराब हो गयी थी”?

मित्र की पत्नी ने लगता है जान बूझ कर यह अंग्रेजी में कहा था.सोफिया भी मुस्कुराए बिना न रह सकी.

वह करीब आधा घंटे हमलोगों के साथ रही.उसने बताया कि अब दो चार दिनों में ही वह वेनजुएला लौटने वाली है. वह तो हमलोगों को वेनजुएला आने का निमंत्रण भी दे गयी. उसने अपना फोन नंबर भी दिया बाते करते करते भी मेरी ओर ही देखती रही.मैं तो चूंकि मित्र दम्पति के साथ था अतः थोड़ी आँखें भी चुराता रहा,पर वह इन सब बातों से अनजान बताती रही कि कैसे उसकी मुझसे मुलाकात हुई और कैसे दो तीन दिनोंमें ही हमलोग मित्र बन गए.मुझे लगा कि वह कुछ और कहेगी ,पर वह और कहती भी तो क्या?फिर उसने मेरे मित्र और उनकी पत्नी से हाथ मिलाया.मुझसे जब उसने हाथमिलाया तो मेरे शरीर में एक शिहरण सी हुई.मुझे तो ऐसा लगा कि उसके हाथों में भी कंपन थी.फिर हम एक दूसरे से जुदा हो गए.

ऐसे पता नहीं उस लड़की में ऐसा क्या आकर्षण था कि मेरे मित्र दम्पति भी उससे बहुत प्रभावित नजर आये.उसके जाने के बाद तो मुझे अपनी दुनिया ही लूटती नजर आयी,पर आशा की एक डोर भी मुझे दिख रही थी,वह था उसका फोन नंबर ,जो जाते समय उसने मेरी हाथों में थमाया था.मैं तो संकोच बस उसे अपना फोन नबर भी नहीं दे सका था.

वह तो चली गयी ,पर उसको दिल में बसाये हुए उसकी एक मधुर याद के साथ मैं सियाटल से लौटा.वह तो इस तरह मेरे दिल में बैठ गयी थी कि मैं उसके यादों के सहारे ही जीने लगा.मन नहीं माना तो मैंने करीब दस बारह दिनों के बाद उसको फोन किया , पहले तो किसी ने फोन नहीं उठाया.फिर उठाया भी तो न जाने किस भाषा में मुझे कुछ बताया जाने लगा.मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया .फिर वह आवाज बंद हो गयी.मुझे लगा कि फोन किसी और ने उठा लिया था और वह अपनी भाषा में कुछ कह रहा था.मैंने फिर प्रयत्न किया.फिर वही आवाज.सोचा कि चलो दूसरे दिन प्रयत्न करते हैं.नतीजा फिर वही.अब मैं पागल सा हो गया और लगातार फोन करने लगा,पर कोई परिणाम नहीं निकला.कुछ दिनों के बाद तो वह आवाज आनी भी बंद हो गयी.मुझे तो यह भी समझ में नहीं आया कि किसी दूसरे की सहायता लूं. मैं हताश हो गया और यह समझ लिया कि वह एक स्वप्न था और उसे स्वप्न समझ कर भूल जाना ही ठीक है, पर भूलना क्या इतना आसान था? सामान्य स्थिति में आने में भी कुछ वर्ष लग गए.मैं बैरागी या पागल तो नहीं हुआ ,पर इतने दिनों यंत्रवत जीता रहा.

फिर सब कुछ सामान्य हो गया पर अत्यंत दबाव के होते हुए भी मैं शादी के लिए स्वीकृति आठ वर्षों के बाद ही दे सका. मेरी सीधी साधी पत्नी को तो यह इसका अनुमान भी नहीं है कि मैं प्रेम की किस झंझावात से गुजर चुंका हूँ. सोफिया की याद मेरे जीवन में एक मधुर स्वप्न बन कर रह गयी.

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सोफिया से बिछड़े हुए ग्यारह वर्ष बीत चुके हैं.

आज तो यह भी नहीं लगता कि सोफिया नामक किसी लडकी से मुलाकात भी हुई थी और उसने दो तीन मुलाकातों में हीं मेरे दिल पर कब्जा कर लिया था.कभी स्मरण आता भी है तो लगता है कि वह एक स्वप्न था.

पर क्या वह सचमुच एक स्वप्न था?

मैं मियामी के लिए हवाई जहाज पकड़ने के लिए डल्लास एयर पोर्ट पर बैठा था.पत्नी भी साथ थी.अभी ब्‍याह के दो तीन वर्ष ही बीते थे अतः सम्बन्ध में ताजगी थी.हमलोग एक दूसरे से नोकझोंक में लगे हुए थे कि नजर एक गोरे दम्पति पर पडी.उनके साथ एक दो वर्ष के करीब उम्र वाला बच्चा भी था. वे लोग हमलोगों से थोड़ी दूर बैठ गए. इतने बड़े बच्चे के मुंह में चुसनी लगा देख कर आश्चर्य हो रहा था.पति तो ठीक था था,पर पत्नी?क्या डील डौल था उसका?लम्बी,गोरी,चौड़ा सा चेहरा,और फिर उसका मोटापा?उम्र पैंतीस वर्ष के आसपास लग रही थी.हो सकता है कि उम्र कम भी हो और मोटापे के कारण वैसा लग रहा हो.गोरी मोटी बाजुएँ और खड़े होने पर सफ़ेद हाथी.ऐसे भी मोटापे से मुझे एक तरह से चिढ सी है. अच्छेखासे लोग भी अत्यधिक मोटापे के कारण भयानक दिखने लगते हैं.हमलोग उसी दम्पति के बारे में बातें करने लगे. एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि वह महिला मेरी ओर देख कर मुस्कुराई,पर शायद यह मेरा मात्र भ्रम था.मुझे देख कर वह भला क्यों मुस्कुराने लगी?एक बात अवश्य मेरे ध्यान में आयी थी कि वे लोग अमेरिका वासी नहीं हैं,क्योंकि मैंने उनके पास पासपोर्ट देखा था.

संयोग ऐसा रहा कि वायुयान में मेरी पत्नी को तो अन्य भारतीय महिला के बगल में स्थान मिल गया,पर मुझे उसी महिला के बगल में स्थान मिला.उसके बगल में उसका बच्चा था.उसके पति का सीट भी थोडा अलग था.करीब ढाई घंटे की यात्रा थी.पहले तो मैंने स्थान बदलने की सोची और पत्नी को ईशारा किया,पर उसने ईशारा किया कि वह ठीक है .थोडा मुस्कुराई भी.मैं उस मुस्कुराहट का अर्थ पूरी तरह समझ रहा था.करीब एक घंटे तक तो वह अपने बच्चे के साथ ही लगी रही.फिर उसका बच्चा सो गया तब मेरी ओर मुडी और समय पूछा .मैंने समय बताया और बात को आगे बढाते हुए बोला,”अभी मियामी पहुँचने में शायद एक घंटा से कम ही लगे.'”

उसने धन्यवाद दिया.मुझे तो पासपोर्ट देख कर लग गया ही था कि वे लोग अमेरिकी नहीं हैं,अतः उत्सुकता बस पूछ दिया,”आपलोग कहाँ से आये हैं?”

वह बोली,”वेनजुएला से ”

वेंजुएला सुनकर मुझे एक झटका सा लगा और मेरे मुख से अचानक निकल पड़ा”वेनजुएला? “,पर बोलते बोलते मैं थोडा हतप्रभ भी हुआ कि महिला इस अचानक प्रश्न से न जाने क्या समझे,पर उसने इत्मीनान से हामी भरी और मुस्कुराई.उस चौड़े चेहरे पर भी वह मुस्कराहट कुछ जानी पहचानी लगी और पुरानी याद अचानक ताजा हो गयी,पर मैंने अपने सर को झटक दिया ,कहाँ वह छुई मुई लड़की और कहाँ यह?समानता केवल रंग और कद में थी.सोफिया भी इतनी ही लम्बी थी,पर मैं चुपचाप ही रहा.

वह बोली,”तुम तो भारतीय हो?”

इन दस ग्यारह वर्षों में मेरी स्थिति बदल चुकी थी.मैं ग्रीन कार्ड होल्डर हो गया था,पर वस्तुतः अभी भारतीय ही था.मैंने स्वीकृति में सर हिलाया.

मेरे सर हिलाते ही उसकी मुस्कराहट गहरी हो गयी और वह बोल पडी,”अभी भी तुम्हारी यह सर हिलाने वाली आदत नहीं छुटी?”

अब तो मुझे विश्वास हो गया कि यह वही वेनजुएला वाली लडकी यानि सोफिया है.मैं तो जैसे पर्वत की चोटी से नीचे गिर पड़ा.इन दस ग्यारह वर्षों में यह क्या से क्या हो गयी.

मुझे तो बोलने में भी थोडा समय लग गया,”तो तुम सोफिया हो?”

“हाँ राकेश,मैं सोफिया हीं हूँ .क्या सोफिया तुम्हें अभी भी याद है?”

अब मैं क्या कहता?अधिक बातें करने पर पता नहीं पत्नी क्या सोचती?फिर उसका पति भी है.ऐसे हमलोगों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं था,पर हमारी घनिष्टता का न जाने क्या अर्थ निकले.

उसने बताया कि कैसे मैंने उसके दिल में जगह बना ली थी और कैसे वह मेरे ख्यालों में खोई रहती थी.उसने मेरे फोन की भी बहुत प्रतीक्षा की थी,पर महीनों ,फिर वर्षों तक प्रतीक्षा के बाद भी फोन नहीं आया.फिर उसे जान मिला . जान पहचान धीरे धीरे प्रेम में बदल गया और चार वर्षों पहले उसने जान से ब्याह कर लिया . अब तो उन दोनों कादो वर्ष का बच्चा भी है.

मैं क्या कहता?मैं उसको कैसे बताता कि मै उसकी याद में कितना तडपा हूँ?

मैं बोला,”तुम्हारे जाने के दस बारह दिनों के बाद मैंने तुम्हे फोन कियाथा,और कुछ दिनों तक लगातार करता रहा था,पर न जाने तुम्हारे फोन में क्या गड़बड़ी हो गई थीकिकुछ दिनों तक एक ही आवाज आती रही.फिर वह भी बंद हो गयी.”

‘मैं समझ गयी,पर मुझे तो इसका संदेह भी नहीं हुआ था कि इतनी सी बात हमलोगों को सदा के लिए अलग कर देगी.असल में बहुत दिनों से वहां फोन सिस्टम के आधुनिकरण का काम हो रहा था और फिर सब फोन नंबर बदल गए थे,पर बहुत दिनों तक बताया जाता रहा था कि पुराने नंबर से नए नंबर में कैसे बात होगी.तुम कैसे नहीं बात कर सके?”

मुझे अपनी भूल समझ में आ गयी.मुझे वहाँ की स्थानीय भाषा में बार बार निर्देश दिया जा रहा था और मैं उसको समझने में असमर्थ रहा था.मैंने अपनी भूल के लिए क्षमा अवश्य माँगी,पर अब उसके पास इसके उत्तर में मुस्कुराने अतिरिक्त अन्य क्या बचा था? एक छोटी सी भूल ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी.मेरा पहला प्यार छीन लिया.सोफिया के साथ भी शायद ऐसा ही हुआ .अब तो हम दोनों ने जिन्दगी से समझौता कर लिया था और जीवन के शेष दिन उसी समझौते के साथ बिताने को मजबूर थे.मैंने उसे बताया कि मेरी शादी के दो वर्ष से अधिक हो गए और अब पत्नी के साथ पहली बार मियामी जा रहा हूँ.

वायुयान अब मियामी पहुँच चुका था.हम दोनों एक दूसरे को बाय बाय करके अपने अपने जीवन साथियों की ओर चल दिए.मेरी पत्नी को तो एहसास भी नहीं हुआ कि वह महिला मेरी पूर्वपरिचित थी.मुझे तो लगता है कि सोफिया ने भी अपने पति को कुछ नहीं बताया होगा.

2 COMMENTS

  1. अनिल गुप्ता जी यह तो आपको चालीस वर्षीय राकेश से पूछना होगा ,जिसने अभी दो वर्ष पहले एक भारतीय लडकी से शादी की है.मुझे तो यह भी पता नहीं है कि अभी वह कहाँ है?अपने कहानी या उपन्यास के पात्रों को अभी तक तो शायद ही कोई लेखक ढूंढ सका है.

  2. राकेशजी, इस बार आपने उसका सही फोन नंबर लिया या नहीं? मुझे उम्मीद है की उसने अपने पतिदेव को आपके बारे में अवश्य बता दिया होगा और उसके पति को इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं लगा होगा क्योंकि स्त्री पुरुष संबंधो को लेकर जितना दकियानूसीपन हमारे यहाँ है उतना बाहर के, विशेषकर पश्चिमी, देशों में नहीं है.

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