‘राज’ नीतिक आतंकवाद से भी सख्ती से निपटें

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नीरज कुमार दुबे

हाल ही में अफवाहें फैलाकर पूर्वोत्तर भारत के लोगों को देश के विभिन्न राज्यों से पलायन के लिए मजबूर करने वाली साजिशों के खिलाफ केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों ने तेजी से कार्रवाई की जिससे देश की एकता कायम रह सकी लेकिन दूसरी ओर उत्तर भारतीयों खासकर महाराष्ट्र में रह रहे बिहार के लोगों को स्पष्ट रूप से धमकी दे रहे राज ठाकरे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। राज ठाकरे ठीक उसी तरह ‘अलगाववाद’ की भावना भड़का रहे हैं जिस तरह हुर्रियत के कट्टरपंथी गुट घाटी में भड़काते हैं। आज जरूरत आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने की है जिनमें राज ठाकरे द्वारा फैलाया जा रहा ‘राजनीतिक आतंकवाद’ भी शामिल है।

आजकल मुंबई पुलिस के रहनुमा बनने का दिखावा कर रहे राज ने सभी बिहारियों को घुसपैठिया करार देने और उन्हें राज्य से खदेड़ देने की धमकी दी है। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा है क्योंकि बिहार के एक युवक की गिरफ्तारी पर बिहार सरकार ने मुंबई पुलिस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बात कही थी। राज ठाकरे ने हिंदी न्यूज चैनलों को भी बंद करवा देने की धमकी दी है क्योंकि उनके अनुसार वह उनकी बिहारी विरोधी टिप्पणियों के लिए उन्हें खलनायक की तरह पेश कर रहे हैं। राज ठाकरे के समर्थकों ने शुरुआत के तौर पर भोजपुरी फिल्मों का प्रदर्शन कर रहे सिनेमाघरों पर तोड़फोड़ की। संभव है कि इस मामले में इक्का-दुक्का गिरफ्तारी हुई भी हो लेकिन क्या धमकी वाले मामले में राज ठाकरे से पूछताछ और उनके खिलाफ कार्रवाई की गई?

राज ठाकरे जिस अंदाज में ‘भड़काऊ’ राजनीति कर रहे हैं क्या उस पर लगाम लगाने का माद्दा किसी में नहीं है? आज महाराष्ट्र की कई विपक्षी पार्टियों में से एक एमएनएस का यह नेता यदि विपक्ष में रह कर इस तरह की दादागिरी कर रहा है तो सोचिए यदि उसकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह क्या करेगा? राज ठाकरे उत्तर भारतीय विरोध तक ही सीमित नहीं हैं। राज ने एक टीवी कार्यक्रम में पाकिस्तानी कलाकारों के साथ मंच साझा करने के प्रति सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका आशा भोंसले को भी चेतावनी दी और उनसे ऐसा नहीं करने को कहा। खबरें हैं कि ऐसी ही चेतावनी माधुरी दीक्षित को भी दी गई है। कुछ समय पहले कुछ विदेशी कलाकारों की एमएनएस कार्यकर्ताओं ने पिटाई भी की थी और फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ कर निर्माताओं से सह-कलाकारों की भूमिका में महाराष्ट्र के लोगों को लेने को कहा था।

राज ठाकरे जिस ‘हौसले’ के साथ कभी उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलते हैं तो कभी बिहारियों के महापर्व ‘छठ पूजा’ का मजाक उड़ाते हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती उससे साफ है कि उन्हें राजनीतिक शह प्राप्त है। आरोप लगते हैं कि यह शह किसी और ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने उन्हें दी हुई है ताकि वह शिवसेना भाजपा के मतों में विभाजन करा सकें। कांग्रेस जानती है कि राज ठाकरे जितने मजबूत होंगे शिवसेना भाजपा उतने ही कमजोर होंगे। हाल ही में मुंबई पुलिस के प्रमुख को जब राज ने हटाने की मांग की तो दो दिन बाद ही उन्हें हटा दिया गया और कहा गया कि उनके तबादले की योजना पहले से ही थी और राज की मांग से इसका लेना देना नहीं है।

लेकिन हकीकत को बयां करने के लिए और भी वाकये काफी हैं। जब राज उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलते हैं तो महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता तो चुप बैठे रहते हैं लेकिन दिल्ली में उत्तरी राज्यों के नेता जरूर इसकी निंदा करते हैं क्योंकि उन्हें वहां पर अपने वोटों की फिक्र है। शिवसेना भी चूंकि मराठी मानुष की ही राजनीति करती है इसलिए उसकी ओर से विरोध का सवाल ही नहीं उठता। राकांपा की ओर से गृह मंत्रालय संभाल रहे आरआर पाटिल राज विरोधी के रूप में पहचाने जाने के कारण उनकी टिप्पणियों पर नाराजगी प्रकट करते हैं लेकिन उनकी ही पार्टी के अजित पवार जोकि राज्य के उपमुख्यमंत्री भी हैं, वह हिंदी दिवस संबंधी प्रश्न का भी मराठी में जवाब देते हुए कहते हैं कि मैं महाराष्ट्र का नेता हूं और मराठी में ही बोलूंगा। हैरत तो इस बात की होती है कि उत्तर भारत में ही प्रमुखतः जनाधार रखने वाली भाजपा के महाराष्ट्र के नेता भी राज ठाकरे की ओर से उत्तर भारतीयों के खिलाफ विषवमन के दौरान चुप बैठे रहते हैं दिल्ली में एकाध नेताओं से राज के बयानों की आलोचना करवा कर खानापूर्ति कर दी जाती है। दरअसल भाजपा को लगता है कि शिवसेना यदि कमजोर हुई तो राज का सहारा लिया जा सकता है। यदि राज ठाकरे के माध्यम से सभी पार्टियों के नेता राजनीतिक हित नहीं साध रहे हैं तो क्या नितिन गडकरी, पृथ्वीराज चव्हाण राज ठाकरे के बयानों की निंदा करने की हिम्मत दिखा सकते हैं?

भावनाएं भड़काने के लिए राज ठाकरे के खिलाफ विभिन्न अदालतों में मामले चल रहे हैं लेकिन सरकारी ढि़लाई के चलते ही उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो पा रहे। जब तक राज ठाकरे जैसे व्यक्ति को कड़ी सजा नहीं मिलेगी उनका हौसला बढ़ता जाएगा। जरूरत इस बात की है कि राज ठाकरे के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई महाराष्ट्र के बाहर की अदालत में की जाए क्योंकि लगता है कि महाराष्ट्र सरकार या तो राज ठाकरे को गिरफ्तार नहीं करवाना चाहती या फिर उनकी संभावित गिरफ्तारी से उनके समर्थकों के भड़क जाने से डरती है। यदि सरकार कड़ा रुख अख्तियार कर ले तो राज ठाकरे और उनके समर्थक चूं भी नहीं कर सकते लेकिन सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की साफ कमी है।

राज ठाकरे वैसे तो बड़े शेर बनते हैं लेकिन जब मुंबई में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला ’26/11′ को अंजाम दिया जा रहा था तब वह और उनके समर्थक हालात संभल जाने तक छिपे ही रहे। तब सीमा पार से आए आतंकवादियों से भिड़ने के लिए एनएसजी की जो टीम दिल्ली से भेजी गई थी उनमें बिहार के लोग भी थे जोकि प्रांतवाद या भाषावाद की भावना नहीं रखते थे। मुंबई और महाराष्ट्र के विकास में उत्तर भारतीयों का भी उतना ही योगदान रहा है जितना कि महाराष्ट्र के लोगों का। आज हिंदी फिल्म उद्योग में राज कर रहे कई प्रमुख अभिनेता, अभिनेत्री मूल रूप से उत्तर भारत के हैं। यही नहीं बॉलीवुड में इधर ऐसे सफल निर्देशकों की बाढ़ आई है जोकि उत्तर भारत खासकर बिहार से ताल्लुक रखते हैं। उत्तर और दक्षिण भारत की ऐसी सैकड़ों कंपनियां हैं जिन्होंने महाराष्ट्र में अपनी इकाई स्थापित कर लाखों लोगों को रोजगार मुहैया कराया हुआ है।

बहरहाल, महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय यदि आज आशंकित मन से हैं तो इसका प्रमुख कारण यही है कि उनका नेतृत्व करने वाला कोई प्रमुख नेता नहीं है। उत्तर भारतीयों को वहां सिर्फ वोटर के रूप में ही देखा जाता है। चुनावों के समय भले उन्हें याद किया जाता हो लेकिन उसके बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। हाल ही में जब पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ अफवाहें फैलाई गईं तो पूर्वोत्तर राज्यों के मंत्री कई राज्यों में हालात का जायजा लेने गये लेकिन ऐसा कुछ कभी भी महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर आए संकट के दौरान नहीं देखा जाता। उत्तर भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए मुंबई आना तो भाता है लेकिन अपने राज्य से जुड़े लोगों की सुध वह अपनी राजधानियों में बैठे बैठे बयान जारी कर ही ले लेते हैं।

यह सही है कि राज ठाकरे को आगामी विधानसभा चुनाव की दृष्टि से अपनी पार्टी का आधार बढ़ाने का पूरा हक है। लेकिन इसके लिए उन्हें सत्ता पक्ष या अन्य विपक्षी दलों को निशाने पर लेना चाहिए। सरकार की कारगुजारियों और एमएनएस के नेतृत्व वाली नगर पालिकाओं के कार्यों की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट करना चाहिए। प्रांतवाद या भाषावाद की भावनाएं भड़का कर राजनीतिक हित साधना गलत है।

आज जरूरत इस बात की है कि राज ठाकरे जैसे लोगों की वाणी पर लगाम लगाने में सरकारों की असफलता को देख कर अदालतों को स्वतः संज्ञान लेते हुए कड़ा फैसला सुनाना चाहिए क्योंकि बात सिर्फ बिहारियों की नहीं बल्कि भारत के एक राज्य के लोगों के प्रति दूसरे राज्य के लोगों के मन में भावनाएं भड़काने का है। आज जो व्यक्ति प्रांत और भाषा के नाम पर लोगों को भड़का रहा है कल को वह धर्म और जाति के नाम पर भी लोगों को भड़का सकता है। चुनाव आयोग को भी चाहिए कि वह राजनेताओं के विवादित बयानों पर चुनावों के समय ही नोटिस नहीं भेजे बल्कि किसी भी समय दिये गये नेताओं के विवादित बयानों पर विचार कर कड़ी कार्रवाई करे। यदि राज जैसे लोगों के बढ़ते हौसले पर लगाम नहीं लगाई गई तो कल को विभिन्न राज्यों में उनके जैसे लोग खड़े हो सकते हैं और फिर ‘अनेकता में एकता’ की हमारी विशिष्ट पहचान खतरे में पड़ सकती है।

भारत माता की जय

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