छात्र , संस्थान और विचारधारा

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जब तकनीकी रूप से देश के होनहारों को सुदृढ़ बनाने वाले संस्थानों का ही

राजनीतिकरण हो जाय तो आप समझ सकते है , उस देश की विकाश यात्रा का क्या हश्र होंगा.यह भारतीय राजनीत की बहुत बड़ी विडम्बना है कि देश कों तकनीकी रूप से परिपूर्ण युवाओं के फ़ौज उपलब्ध कराने वाले संस्थान भी आज इससे अछूते नहीं है . क्या जहाँ पर हमें शिक्षा व अच्छे आचरण का पाठ पढ़ाया जा रहा हों , वहाँ हंगामा उचित है ? इस बात का ध्यान हर छात्र को एक बार जरुर देना चाहियें . खासकर उन संस्थानों के जिन पर सरकार दिल खोलकर पैसा खर्च करती है . ये पैसे केवल सरकार के नहीं होते अपितु देश के उन समस्त नागरिकों का होता है  जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार को कर अदा करते है . एक अच्छे संस्थान की पहचान केवल पास आउट छात्रों के ftii puneअच्छे प्लेसमेंट से ही नहीं होता बल्क़ि उस संस्थान में अध्यनरत छात्रों का आचरण भी उस संस्थान को अग्रीम पंक्ति के संस्थानों में शामिल कराने में सहायक होता है . शिक्षा और अनुशासन एक दूसरे के पूरक होते है . अतः यह कहा जा सकता है कि एक के बिना एक हमेशा अधूरा रहता है . अग़र जिस संस्थान में अनुशासन ही न हो वहाँ पर कभी अच्छे युवाओं की फ़ौज नहीं तैयार की जा सकती , ऐसा हमारे शिक्षाविदों का मानना है . हमारी शिक्षा नीतियों में क्या ऐसी कमी छुट गई है जिससे आज ऐसी घटनायें बार – बार घटती रहती है . क्या शिक्षण संस्थानों में भी विचारधाराओं की कोई उपयोगिता है ? ऐसे यक्ष प्रश्न हमेशा वाद – विवाद को आमंत्रित करते रहे है और आगे भी करेगें .

पिछले लगभग सत्तर दिनों से एफटीआईआई पुणे में जो कुछ हो रहा , उससे पूरा देश हथप्रभ है . क्या विरोध प्रदर्शन का यह तरीका उचित है ? अगर इस पर हमारे छात्र विचार करे तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृति से बचा जा सकता है .ये कटु सत्य है कि केंद्र में सरकार के बदलते ही विभिन्न संस्थानों के डायरेक्टर व विश्वविद्यालयों के कुलपति भी बदलने लगते है . इस घटनाक्रम का सीधा प्रभाव उस परिसर के आबो हवा पर पड़ता है , तभी तों छात्र आंदोलन तक करने पर उतारू हो जाते है .अगर इसके मूल जड़ पर ध्यान दिया जाय तो इससें छात्र हितों को कोई ठेस पहुचें असंभव है .अगर कोई इस बदलाव से प्रभावित होता है तो केवल उस संस्थान या विश्वविद्यालय में कार्यरत स्टाफ़ , जो डायरेक्टर या कुलपति से सीधे जुड़ा होता है . फिर क्यों छात्र इसे सीधे अपने हितों से जोड़ लेते .क्या ये सत्य नहीं हैं कि ऐसे छात्र पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते है . आज आये दिन कई ऐसे संस्थान है जिन पर ऐसे आरोप लगतें रहते कि वहाँ पर विचारधाराओं से ग्रस्त फ़ौज उत्पादित हो रही हैं .अगर यह सत्य है तो क्या यह देश को विकाशशील से विकसित राष्ट्र बनानें में सहायक होंगा .

एफटीआईआई पुणे विश्व के उन अग्रणी संस्थानों में शामिल है जो फ़िल्मी दुनिया के क्षेत्र में युवाओं को तकनीकी रूप से आत्म निर्भरता प्रदान करते है .इस संस्थान की महत्ता इस बात से साफ परिलक्षित होती है कि सरकार इस संस्थान में अध्ययनरत प्रत्येक छात्रों पर प्रति वर्ष लगभग 12 लाख रुपयें खर्च करतीं है . यह राशि जो छात्रों पर खर्च की जाती है , मेडिकल कालेजों और आईआईएम में पढ़नें वाले छात्रों पर खर्च होने वालें पैसों की दोगुनी है . इस टकराव की शुरुआत तों निदेशक के बदलते ही शुरू हो गई थी लेकिन असली फ़िल्म तब शुरू हुई जब कैग रिपोर्ट आने के बाद संस्थान प्रशासन ने 2008 बैच के छात्रों पर कार्यवाहीं शुरू की . अब जब छात्रों को यह पता चला तों वें प्रबंधक का घेराव कर बैठें. इसके बाद जो हुआ वह जग जाहिर है कि किस तरह इस पूरे प्रकरण को राजनीतिक रंग दिया गया .अक्सर ऐसा होता है जब घर का झगड़ा सड़क पर आ जाये तो उसके कई मायने निकालें जाते है . अच्छा तो ये होता कि सरकार , संस्थान प्रशासन व छात्र मिल बैठ इस समस्या का समाधान निकाल लेते लेकिन यह बहुत ही बड़ी भूल है  इन सभी पक्षों की जो झुकने को तैयार नहीं .

आज केवल ये समस्या एफटीआईआई तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत के अन्य प्रतिष्ठित संस्थान ऐसी समस्याओं से आये दिन दो चार होते रहतें हैं. कभी छात्र राजनीति के नाम पर तो कभी संस्थान या विश्वविद्यालय प्रशासन से टकराव के नाम पर इन संस्थानों में अघोषित कर्फ्यू लगता रहता हैं . हद तो तब हो जाती जब रजनीतिक पार्टियाँ ऐसे छात्रों को अपने नये अंकुर के रूप में देखना शुरू कर देती है . क्या ये रजनीतिक दल इन घटनाओं के कारण होने वालें नुकशान के बारे में कभी सोंचती है . अगर ऐसा होता तो निश्चित रूप से ऐसी घटनाओं में जरुर कमी आती . केवल इन रजनीतिक पार्टियों को ही नहीं छात्रों को भी अपने तथा सहपाठियों के भविष्य को ध्यान में रखकर ऐसे विवादस्पद मुद्दों में संलिप्त होने से पहले एक बार विचार करना होंगा ताकि भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनाया जा सकें . सरकार को भी चाहिए कि ऐसे मामलों का निस्तारण करते समय ऐसा माहौल बनाया जाय कि आने वाले समय में फिर ऐसे विवादों की पुनरावृति न हो सकें .

 

नीतेश राय

 

1 COMMENT

  1. नीतेश जी,
    बुरा न मानें, आपका लेक तो paid Article सा लग रहा है.
    आपने तो सीधे शिक्षार्थियों पर आरोप लगदा दिया है.
    इतने वरिष्ठ लोगों ने उनका साथ दिया… इस पर आपने गौर नहीं फरमाया.

    क्या इस देश में इस भाजपा नेता के अलावा कोई भी इस पद के लिए उचित उम्मीदवार नहीं है या यही सबसे बढ़िया उम्मीदवार है?

    युधिष्ठिर की भूमिका निभा लेने मात्र से वह इस काबिल तो नहीं हो जाता.

    IIM, IIT Du पर जिस तरह का हमलसा हुआ क्या वह उचित था.. कामों पर जाइए…
    मंशा जानमिए तो सब साफ नजर आएगा.

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