प्रयास, उपलब्धि और सफलता

हम सब आज ऐसे युग में जी रहे हैं जहाॅं जिसे देखो वही बडी जल्दबाजी में है । लगता है सबके सब राजधानी एक्सप्रेस में बैठे हैं । एक दूसरे की जल्दबाजी देखते, स्वविवेक के इस्तेमाल से बचते एक भेडचाल सी चल रही है पूरी दुनिया में । परिवार में हर व्यक्ति अपने बच्चों को उनके पैदा होते ही रोबोट की भाॅंति उनके मेधावी छात्र के रूप में देखना चाहता है और अपने पैरों पर खडा होने के बाद बडा अफसर, व्यापारी, नेता या इसी प्रकार के अन्य तरीकों से आसमान छू लेना चाहता है । व्यवसायी संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता है तो सरकारी, गैर-सरकारी कर्मी जल्द से जल्द पदोन्नति पा लेना चाहते हैं । हर सफल उद्यमी अपने प्रतिद्धंदी को पीछे छोड देने की आस में हर संभव कदम उठा लेना चाहते हैं । इन सबके चलते सामाजिक जीवन पीछे छूटता जा रहा है तथा नैसर्गिक संस्कार और नैतिकता में कमी आती जा रही है । इस तरफ लोगों का ध्यान कम ही है । चारों तरफ एक दूसरे को पछाड देने की प्रतियोगिता जारी है । ऐसा इसलिये है कि हममें से कोई भी, कभी भी असफल या किसी से पीछे नहीं कहलाना चाहता । जबकि मेरी राय में सफलता एक खूबसूरत प्रेमिका की तरह है जो कभी भी साथ छोडकर जा सकती है, लेकिन असफलता उस अत्युत्तम माॅं की भाॅंति है, जो हमें विपरीत परिस्थितियों में होते हुए भी जीवन का सच्चा पाठ पढाती है । ध्यान रहे, बिना किसी सार्थक उत्साह के महान उपलब्धि पा लेना असंभव है ।

इन सबके पीछे यदि किसी का दोष है तो हमारे व्यक्तित्व के विकास के लिये निर्धारित समुचित तालीमी प्रणाली की कमी का, जो हमें विरासत में मिली है । हमारे व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिये जो तालीम जरूरी है, वह हमें सही अर्थों में मिलनी ही चाहिए । उदाहरण के लिये – हमें बचपन से बताया गया है कि जेंटलमेन का मतलब कोट, पैंट, टाई और जूते-मोजे पहने हुए एक सजा हुआ व्यक्ति । चाहे उसके आचार-व्यवहार कैसे भी हों । इसका मतलब यह हुआ कि एक किसान के बेटे की नजरों में उसका पिता कभी भी जेंटलमेन हो ही नहीं सकता । यह हमारी तालीमी गलती है । अन्य उदाहरणों में – अपने कोर्स की किताब यदि हम खोलकर देखें तो हमें माता का विलोम पिता, गुरू का विलोम चेला, दिन का विलोम रात मिलता है । मेरी समझ में यह कभी नहीं आया कि माता-पिता, गुरू-चेला, दिन-रात आदि तो एक दूसरे के पूरक हैं, उन्हें विलोम की संज्ञा कैसे दी जा सकती है ।

हो सकता है हम ऐसा इस भय के कारण करने लगते हैं कि कहीं दोबारा अवसर मिले अथवा नहीं । लेकिन उचित और सार्थक लक्ष्य को पा लेने के लिये अवसर कभी खत्म नहीं होते । ये अवसर केवल उनको हासिल होते हैं जो वक्त और प्रवाह की ताकत को साफ तौर पर पहचानने की क्षमता रखते हैं । जब हम किसी लक्ष्य को पा लेने की ओर आगे बढते हैं तो हमारे मन में कार्य को बीच में छोड देने के विचार आ सकते हैं, उस समय हमंें पुनः विचारना होगा कि हमने कार्य प्रारंभ क्यों किया था । कठिन लक्ष्य को पा लेने के लिये किये जाने वाले आसान प्रयास लापरवाही और अनौपचारिक लोगों की सोच हो सकती है, लेकिन कठिन लक्ष्य को पाने के तरीकों को आसान बना लेना एक मजबूत और दृढ संकल्पी अवधारणा कहलाती है ।

मानव जीवन की प्रत्येक परिस्थिति से निपटने का हौसला और दुस्साहस हमारे अंदर होना चाहिए । जब तक हम जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों ने नहीं गुजरेंगे, तब तक जीवन के सर्वोत्तम पहलुओं को पा लेने की कल्पना भी हमारे लिये असंभव है । क्योंकि, विजेता कभी मैदान नहीं छोडते और जो मैदान छोड देते हैं, वे कभी विजेता नहीं बन सकते । स्मरण रहे, कहने को तो जल से मृदु कुछ भी नहीं, लेकिन उसके बहाव के वेग से बडी-बडी चट्टानें तक टूट जाती हैं । एक विद्यार्थी के जीवन में भी ऐसा प्रयास होना चाहिए – यदि उसे कुछ समझ न आये तो सवाल करे, सहमत न होने की स्थिति मंे चर्चा करे । कोई बात नापसंद हो तो उसे विनम्रतापूर्वक नकारें, लेकिन मौन रहकर आत्म निर्णय कर लेना तो एकदम गलत है ।

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी स्वीकारना होगा कि जीवन के अनमोल सबक हमें केवल किताबों से ही नहीं मिल पायेंगे, इसके लिये जीवन के अनुभवों और परस्पर संबंधों की मदद लेना जरूरी है और यही सबक ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिये जीवन में सदैव कुछ न कुछ सीखते रहें ।

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