पत्थर में भगवान है,यह समझने में धर्म सफल रहा
पर इंसान में इंसान हे,वह समझने में धर्म असफल रहा
दूसरो को समझाने में इंसान सफल रहा
अपने को समझाने मे इंसान असफल रहा
इंसान ने भलाई की भला रहा , बुराई की बुरा रहा
इस बात को समझ कर भी, इंसान असफल रहा
बाबा इस देश के भक्तो को बहकाने में सफल रहा
पर अपने आप को समझाने में वह असफल रहा
सतयुग में कड़ी मेहनत सफलता की कुंजी रही
कलयुग में कड़ी मेहनत असफलता की कुंजी रही
आर के रस्तोगी
जब भी अवसर मिलता है.
आपकी व्यंग्यात्मक कविता ढूँढता हूँ.
कतिपय पंक्तियों में आप बहुत कुछ कह देते हैं.
आप का परिचय भी आज जाना.
वैसे तो, आप की कविता भी धीरे धीरे आप का परिचय करा ही रही है.
बहुत बहुत धन्यवाद.