सफल जीवन के लिये हौसला जरूरी

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-ललित गर्ग-
दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसने दुख न भोगा हो। हर व्यक्ति कभी सुख और कभी दुःख भोगता रहता है। एक गाड़ी के दो पहिये की भांति सुख दुःख साथ-साथ चलते हैं। यह भी बड़ा सत्य है कि आदमी सुख चाहता है, दुःख नहीं। चाही वस्तु मिले तब तो ठीक बात है पर अनचाही वस्तु मिलती है तब प्रश्न होता है कि यह दुःख कहां से आया? आदमी सुख चाहता है, सुख के लिए प्रयत्नशील रहता है, सामग्री भी सुख की जुटाता है फिर दुःख क्यों आता है? क्योंकि सुख बाहर नहीं, अपने भीतर ही है। जरूरत है उसे पहचानने की, पहचान कर उसका सामना करने की।

अक्सर हम जीवन के भंवर में फंस जाते हैं। ऐसा लगता है कि संभावनाओं से भरे हुए सारे दरवाजे बंद होते जा रहे हैं। निराशा ही निराशा और चहूं ओर अंधेरे ही अंधेेरे घेर लेते हैं जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है, ये वो अवसर रूपी दरवाजे होते हैं, जिनसे हमें उम्मीद होती है। अक्सर ऐसी स्थिति पहले निराश करती है, फिर कुंठा देती है और तन-मन को हताशाओं से भरने लगती है। बिखराव शुरू हो जाता है, चरित्र बदलने लगता है। आचार्य तुलसी ऐसी निराशाजनक स्थितियों के बीच भी सकारात्मक सोच को उजागर करते हुए प्रतिबोध देते हैं कि यदि सोच विधायक होगी तो विरोध भी विनोद प्रतीत होगा अन्यथा अनुकूलताओं में भी कोई-न-कोई प्रतिकूलता का दर्शन हो जायेगा। सम्पदा में भी विपदा का अनुभव होगा तथा प्रकाश भी अंधकार में बदल जायेगा।’

आचार्य तुलसी जैसे महान् लोगों की प्रेरणा से अनेक लोग वितरीत स्थितियों में मजबूत होते हैं, इन्हीं से प्रेरणा और ऊर्जा पाते हैं। असफलता से ही सफलता का रास्ता निकालते हैं और खराब समय को ही अच्छे समय का रास्ता बना लेते हैं और अपने जीवन को स्वर्णिम ढंग से रूपांतरित करने वाला समय बना देते हैं। दुःख में से सुख, प्रतिकूलताओं में से अनुकूलता एवं विषाद में से हर्ष को पा लेने वाले ही महान् होते हंै। कहते हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियों से निकलकर सफलता तक जाने वाली हर यात्रा अनोखी और अद्वितीय होती है। सवाल इस बात का नहीं होता कि आप आज क्या हैं, क्या कर रहे हैं, क्या उम्र और समय है- बस एक हौसला चाहिए। जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होगी, जब आप वैसा कुछ करेंगे।

यह बार-बार साबित हुआ है कि जो खराब हालात में धैर्य और खुदी को बुलंद रखता है, उसके रास्ते से बाधाएं हटती ही हैं, बेशक देर लग जाए। अगर पत्थर पर लगातार रस्सी की रगड़ से निशान उभर आते हैं, तो अकूत संभावनाओं से भरी इस दुनिया में क्या नहीं हो सकता? जहां सभी के लिए पर्याप्त अवसर और पर्याप्त रास्ते हैं, अक्सर हम बाधाओं से तब टकराते रहते हैं, जब सही रास्ते की तलाश कर रहे होते हैं और सही रास्ता मिलने पर सफलता की ओर हमारे पैर खुद ही बढ़ने लग जाते हैं, लेकिन अक्सर इस तलाश में ही बहुत सारे लोग निराश हो जाते हैं, धैर्य खो देते हैं और किस्मत को कोसने लगते हैं। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि प्रतिकूल परिस्थिति आयी, व्यक्ति को दुःख हो गया। अनुकूल परिस्थिति आयी, व्यक्ति को सुख हो गया। किन्तु सुख-दुःख का कारण वह परिस्थिति नहीं बल्कि व्यक्ति स्वयं होता है। सुख-दुःख का अर्जन व्यक्ति स्वयं करता है। इसलिये सुख के आकांक्षी व्यक्ति के लिये जरूरी है कि वह स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करें। क्लियरवाॅटर ने सटीक कहा है कि हरेक पल आप नया जन्म लेते हैं। हर पल एक नई शुरुआत हो सकती है। यह विकल्प है- आपका अपना विकल्प। किस तरह आप स्वयं के निर्माता बनते हैं।

हमारी स्वयं की समझ को बढ़ाना जरूरी है, इसी से जीवन में खुशियों को लाया जा सकता है। अंग्रेजी में एक कहावत है- ‘पूरी दुनिया में गलीचा बिछाने की बजाय खुद के पैरों में चप्पल पहने से रास्ता अपने आप सुगम बन जाता है।’ फ्रेंच फिलाॅसफर रेने देकार्त का मार्मिक कथन है कि एक अच्छा दिमाग भर होना काफी नहीं है। अहम बात यह है हमें इसका बेहतर इस्तेमाल करना भी आता हो।

खुशी हमें उपहार के रूप में नहीं मिलती, इसके लिए हमें प्रयत्न करना पड़ता है। हमें सोच को सकारात्मक बनाना होता है। सुख हमारे प्रयत्नों का बाई प्रोडेक्ट है। सुख पाना मानव का स्वभाव है, जब आप दूसरों को सुख देते हैं, तो निश्चित रूप से आपको सुख और संतोष मिलने लगता है। डिजरायली ने एक बार कहा था-‘‘जीवन बहुत छोटा है और हमें संतोषी नहीं होना चाहिए।’’

सत्य है कि जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। यदि आप सपने ही नहीं देखोंगे तो उन्हें साकार कैसे करोंगे। यदि आप अपने अंदर खुद को भरोसा दिलाएं कि आपके पास वह सब हो सकता है, जो आप चाहते हैं तो आखिरकार आपके पास वह सब होगा, जो आप चाहते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप कुछ नया करने की और उड़ान भरने की तैयारी करें। फ्रांकोइस गाॅटर ने कहा-‘‘फूल अपने आप खिलते हैं-हम बस उसमें थोड़ा पानी डाल सकते हैं।’’ इसी तरह, हर व्यक्ति आखिरकार अपनी क्षमता और अपनी नियति के अनुसार काम करता है।

शेक्सपीयर कहते थे, हमारा शरीर एक बगीचे की तरह है और दृढ़ इच्छाशक्ति इसके लिए माली का काम करती है, जो इस बगिया को बहुत सुंदर और महकती हुई बना सकती है। एक और विचारक रूपलीन ने कहा है कि किसी भी तरह की मानसिक बाधा की स्थिति खतरनाक होती है। खुद को स्वतंत्र करिए। बाधाओं के पत्थरों को अपनी सफलता के किले की दीवारों में लगाने का काम करिए।

हम ही स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं, निर्माता हंै। हमारे भाग्य की बागडोर हमारे ही हाथ में है। दूसरा कोई उसे थामे हुए नहीं है। न किसी के आगे झुको और न किसी पर दोषारोपण करो। न तो ऐसा सोचो कि अमुक आदमी हमारे भाग्य को बिगाड़ दिया और न यह सोचो की अमुक ने हमारा भाग्य बना दिया है। जब व्यक्ति ऐसा सोचता है, तब व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होता है। अपने आचरण पर उसका ध्यान आकर्षित होता है कि मैं किस प्रकार आचरण करूं? कहीं मेरे आचरण के द्वारा, मेरे व्यवहार के द्वारा मेरा भाग्य कुंठित तो नहीं हो रहा है, कहीं मैं स्वयं तो अपने दुर्भाग्य का कारण नहीं हूं? जब व्यक्ति की सोच स्वयं के प्रति जागरूक बन जाती है, स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करने लगता है, तब व्यक्ति संतुलित और सुखद जीवन की ओर अग्रसर होता है।

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