पोर – पोर थर-थर करे, प्रिय की सुधि से आज |
क्या भूलूं उन क्षणों से, हर क्षण प्रिय है ‘राज’ ||
प्रथम पहर मधुयामिनी , प्रियतम थामा हाथ |
पोर – पोर बिहंसा सखी, हर किलोल के साथ ||
वस्त्रों संग छूटे सभी, तन-मन के तटबंध |
अंतरमन तक हो गए, जन्मों के संम्बंध ||
मलयानल से चल पड़ी, चन्दन जैसी गंध |
पूर्ण रात्रि टूटे सभी, पुन:-पुन: तटबंध ||
रात्रि पलों में खो गई, आई अगली भोर |
सुधियों में निज छोडकर, चला गया चितचोर ||
प्रिय की सुध से ही रचे , नैनन मांहि गुलाब |
विरह व्यथा में डूबकर, निकल पड़ा सैलाब ||
प्रिय की सुधि में इस तरह, गया हृदय का चैन |
वापस ज्यों आता नहीं, मुख से निकला बैन |
छूट गया जल सेवना, छूटा कब से अन्न |
विरह-व्यथा से आपकी, तनमन मरणासन्न ||
राज सक्सेना