सुधियां- डा.राज सक्सेना

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true_love_partपोर – पोर थर-थर करे,  प्रिय की सुधि से आज |

क्या भूलूं उन क्षणों से, हर क्षण प्रिय है ‘राज’ ||

 

प्रथम पहर मधुयामिनी , प्रियतम थामा  हाथ |

पोर – पोर बिहंसा सखी, हर किलोल के साथ ||

 

वस्त्रों संग छूटे सभी, तन-मन के तटबंध |

अंतरमन तक हो गए, जन्मों के संम्बंध ||

 

मलयानल से चल पड़ी, चन्दन जैसी गंध |

पूर्ण रात्रि टूटे सभी, पुन:-पुन: तटबंध ||

 

रात्रि  पलों  में  खो  गई, आई अगली भोर |

सुधियों में निज छोडकर, चला गया चितचोर ||

 

प्रिय की सुध से ही  रचे , नैनन मांहि गुलाब |

विरह व्यथा में डूबकर, निकल पड़ा सैलाब ||

 

प्रिय की सुधि में इस तरह, गया हृदय का चैन |

वापस ज्यों आता नहीं, मुख से निकला बैन |

 

छूट गया जल  सेवना, छूटा कब से  अन्न |

विरह-व्यथा से आपकी, तनमन मरणासन्न ||

राज सक्सेना

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