-प्रभुदयाल श्रीवास्तव-
चिड़ियों ने जब चूं-चूं बोला,
पूरब ने अपना मुंह खोला|
उदयाचल अपने कंधे पर,
ले आया सूरज का डोला|
पीपल पर कोयल चिल्लाई,
तब कौओं को भी सुध आई|
कांव-कांव कहकर चिल्लाये,
उठो सबेरा जागो भाई|
फूलों पर भौंरे मंडराये,
लगी भूख है रस मिल जाये|
जीने का आधार चाहिये,
थोड़ा सा ही बस मिल जाये|
गाय रंभाने लगी सार में,
खड़ा बिजूक हंसा हार में|
नौकर सारे लगा दिये हैं,
मालिक ने फिर से बिगार में|
चौराहों पर खड़ी हो गई,
वरदी में बच्चों की टोली|
आओ बच्चो जल्दी बैठो,
जाना है शाला बस बोली|