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सुनके ज़्यादा भी करोगे तुम क्या ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
(मधुगीति १८११२५ स)सुनके ज़्यादा भी करोगे तुम क्या,ध्वनि कितनी विचित्र सारे जहान;भला ना सुनना आवाज़ें सब ही,चहते विश्राम कर्ण-पट देही !सुनाया सुन लिया बहुत कुछ ही,सुनो अब भूमा तरंग ॐ मही;उसमें पा जाओगे नाद सब ही,गौण होएँगे सभी स्वर तब ही !राग भ्रमरा का समझ आएगा,गुनगुना ब्रह्म भाव भाएगा;सोच हर…