अंधविश्‍वास और विज्ञान का भारत

वंदना नेताम

हाल ही में राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने छात्रों के लिए आकाश 2 लांच किया। इसके साथ ही भारत ने एक बार फिर साइंस और टेक्नालॉजी के क्षेत्र में दुनिया भर में अपना परचम लहराया है। एक तरफ जहां यह परमाणु पनडुब्बी से लैस विश्‍व के चुनिंदा देशों में शुमार हो चुका है वहीं चांद के बाद अब मंगल ग्रह पर भी यान भेजने की तैयारी कर अपनी ताकत का संदेश दे चुका है। न सिर्फ साइंस बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी भारत विष्व के सबसे मजबूत देशों में उभर कर सामने आया है। दुनिया भर में छाई आर्थिक मंदी के बावजूद भारत के विकास दर में स्थिरता ने विश्‍व मंच पर इसे एक नई पहचान दी है। अपने इन्हीं सुदृढ़ नीति के कारण वर्तमान में भारत दुनिया भर के विकासशील और पिछड़े देशों का नेता बन चुका है। अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर भारतीय नेताओं को न सिर्फ तरजीह दी जाती है बल्कि उनकी बातों को भी गौर से सुना जाता है। मज़बूत राजनीतिक, आर्थिक और विदेश नीति के कारण ही भारत को संयुक्त राष्‍ट्र संघ की स्थाई सदस्यता के लिए लगातार समर्थन प्राप्त हो रहा है।

आजादी के छह दषक बाद ही हिंदुस्तान ने विश्‍व में अपनी एक अलग पहचान और जगह बनाई है। लेकिन इसके बावजूद आज भी यह मुल्क इंडिया और भारत में बंटा हुआ है। बड़े बड़े शॉपिंग मॉल, महंगी लग्जरी गाडि़यां, पब और नाइट क्लब की चकाचैंध के साथ आसमान छूती इमारतों से पटे षहरों में जहां चमचमाता इंडिया नजर आता है तो वहीं दूसरी ओर भूख, गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन की चादर में ठिठुरता भारत के दर्षन भी होते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के बावजूद यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्‍वास का बोलबाला है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में डायन, भूतप्रेत, जादू टोना और नजर का लगना जैसे टोटका आम जनजीवन का हिस्सा है। ऐसे क्षेत्रों में डॉक्टरों से अधिक ओझा, तांत्रिक और बैगा गुनिया की चलती है। एक सर्वे के अनुसार देश के इन क्षेत्रों के 72 प्रतिशत ग्रामीण स्थानीय स्तर पर सरकार की ओर से प्रदान स्वास्थ्य सुविधाओं के बावजूद तांत्रिकों पर अधिक विश्‍वास करते हैं।

बंगाल का काला जादू भले ही आज किदवंती बन चुका है परंतु छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में जादू टोना और तांत्रिकों की पकड़ अब भी मजबूत है। राजधानी रायपुर से करीब 130 किमी दूर छिंदगांव में आज भी डॉक्टरों से अधिक झाड़-फूंक करने वालों के पास भीड़ रहती है। गांव वाले पेट में अचानक उठने वाले दर्द, चक्कर आना अथवा कुपोषण को बीमारी नहीं बल्कि देवी देवता का प्रकोप मानते हैं। उनका विश्‍वास होता है कि कहीं पूजा पाठ में कमी रह गई है और देवता नाराज़ हो गए हैं। यही कारण है कि इनसे छुटकारा पाने के लिए वह डॉक्टर के मुकाबले बैगा गुनिया यानि तांत्रिक के दर पर हाजरी देते हैं। तांत्रिक गांव वालों पर अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए उनके भोलेपन का जमकर फायदा उठाते हैं और उन्हें ऐसी बीमारी भगवान का प्रकोप बताकर पहले तो डराते हैं और फिर देवता का गुस्सा शांत करने के लिए बलि के नाम पर आर्थिक रूप से लूटते हैं। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। विकास के सोपान पर तेजी से कदम बढ़ाने के बावजूद इस राज्य में आदिवासी पंरपरा आज भी जिंदा है। यहां आज भी अतिथि देवो भवः का पालन करते हुए मेहमानों को देवता का स्थान दिया जाता है। आधुनिकीकरण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के बावजूद यहां का आदिवासी समाज अपनी परंपरा के साथ जड़ से जुड़ा हुआ है। ऐसे समाज में जादू टोना और तंत्रविद्या का महत्वपूर्ण स्थान है।

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जादू टोना की आड़ में गांव के दबंग इन तांत्रिकों के साथ मिलकर गरीब विषेशकर विधवा की जमीन हड़पने का कार्य भी करते हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में तंत्रविद्या का ऐसा घिनौना रूप देखने को नहीं मिलता है। परंतु बिहार और उत्तर प्रदेष में आए दिन डायन के नाम पर महिलाओं के साथ अत्याचार और शोषण की खबरें सुनने को मिल जाती हैं। कभी कभी तो डायन का प्रकोप भगाने के नाम पर इनके नाम इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली हरकतें तक अंजाम दी जाती हैं। ऐसी महिलाओं को शक के आधार पर मैला पिलाया जाता है और निवस्त्र कर गांव में घुमाया जाता है। ऐसे घृणित कार्य अक्सर दलित महिलाओं के साथ ही किए जाते हैं जिसमें गांव के अन्य लोगों की मूक सहमति होती है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि तंत्र विद्या और अंधविश्‍वास बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण शिक्षा की कमी है। लेकिन कई बार तंत्रविद्या पर विश्‍वास करने वालों में शिक्षित वर्ग भी नजर आता है। दिल्ली और मुंबई जैसे देश के बड़े महानगरों में भी बंगाली बाबा की धड़ल्ले से चलने वाली दूकानें इस बात का इशारा है कि पढ़ा लिखा उच्च तबका भी अंधविश्‍वास का शिकार है। ऐसे में समाज की इस बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए सबसे जरूरी है जागरूकता को बढ़ावा देना अन्यथा अंधविश्‍वास की जाल में उलझा भारत 21वीं सदी के इस दौर में विज्ञान में उन्नति करता इंडिया से बहुत पीछे छूट जाएगा। (चरखा फीचर्स)

4 COMMENTS

  1. कु. वंदना नेताम द्वारा प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो की ओर से लिखा निबंध, अंधविश्‍वास और विज्ञान का भारत, को मैं केवल विज्ञान के नाम पर अधिकांश भारतीयों को लज्जित करता देखता हूँ| तिस पर विडंबना तो यह है कि abhishek vishwakarma और Dr Sunil जैसे लोग लज्जित हो प्रचलित अंधविश्वास के कारण को जाने और उसका समाधान ढूंढें, वे स्वयं अंधविश्वास में बैठे किसी दैवी शक्ति द्वारा इस दिशा में कुछ ऐसा चाहिए कुछ वैसा करना होगा की प्रतीक्षा में बैठे हैं|

    अब यदि abhishek vishwakarma ने लोकसभा चुनावों के मौसम में छः वर्ष पुराने निबंध को प्रवक्ता.कॉम पर फिर से उछाला है तो मैं चाहूँगा कि इस महत्वपूर्ण विषय पर हम खुल कर बात कर सकें| विषय पर चर्चा की तैयारी में मेरा पहला प्रश्न है कि केवल कभी-कभार चित्रों में देख पाने के अतिरिक्त लांच किये आकाश 2 के बारे में कु. वंदना नेताम को कितनी जानकारी है और आकाश २ क्योंकर साइंस और टेक्नालॉजी के क्षेत्र में दुनिया भर में अपना परचम लहराये हैं?

  2. बहुत सुन्दर लेख है , दरचल हमे किसी भी सत्य का उद्घाटन तथा सामाजिक समस्या का समाधान करने के लिए ऐसे दार्शनिक तरीके से बिसार करना बहुत ही आवश्यक है। bhartiya samaj aur andhvishwas in hindi

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here