सुरजकुंड पाठशाला और नमो की घुट्टी!

-रंजीत रंजन सिंह-
Newly elected BJP MPs workshop at Surajkund

भाजपा के नव-निर्वाचित सांसदों को प्रशिक्षित करने के लिए आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला रविवार को समाप्त हुआ। ऐतिहासिक जीत के बाद हरियाणा के सुरजकुंड में आयोजित इस कार्यशाला में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन मुद्दों पर सांसदों का ध्यान आकर्षित किया, उसकी कमी भारतीय राजनीति में अरसे से देखी जा रही थी। दरअसल आजादी के बाद से ही कांग्रेस वंशवाद की रजाई में लिपटी रही, और पार्टी किसी भी योग्य व्यक्ति को सत्ता के शिखर तक नहीं पहंुचने दी। पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता का स्थानांतरण होते गया। 1991 में मजबूरी में पार्टी ने राजनीति से सन्यास ले चुके पी.वी. नरसिंहा राव को प्रधानमंत्री बनाया। पिछले 10 साल एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाकर रखा गया जिसकी क्षमता खुद भी चुनाव जीतकर आने की भी नहीं थी। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में प्रधानमंत्री का पद राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से एक कमजोर व्यक्ति को दे दिया गया, जिसकी अपनी कोई निर्णय क्षमता नहीं थी और सारे निर्णय 10 जनपथ ने लिए। इस दौरान देश की आम जनता ने खुद को एक कमजोर देश का नागरिक और जनप्रतिनिधियों से दूर महसूस किया। कांग्रेस के दिमाग में हमेशा एक बात रहती थी कि सरकार चलाना सिर्फ उसी की वश की बात है। कांग्रेस की इसी घमंड ने उसके जनप्रतिनिधियों को जनता से दूर रखा और आम जनता हर बार खुद को ठगी हुई महसूस की। शायद इसी बात का जिक्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सुरजकुंड में शनिवार को कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने के बाद नवनिर्वाचित सांसद बढ़ी हुई जिम्मेदारियों को समझें। श्री मोदी ने सांसदों से कहा कि वे संसद के भीतर या बाहर अपने आचरण का ध्यान रखें, मतभेद को सार्वजनिक रूप से व्यक्त न करें, अपने कर्तव्यों के प्रति मिशन भाव विकसित करें, किसी विषय को गहराई से समझने के लिए स्वाध्याय का सहारा लें और कम से कम एक विषय का गहराई से अध्ययन करें। श्री मोदी ने सांसदों से दो टूक कहा कि राजनीतिक शुचिता, वक्तव्यों की चीज न रह कर जमीनी हकीकत होनी चाहिए। अपने कार्य व्यवहार से क्षेत्र में आदर्श प्रस्तुत करना होगा क्योंकि जनता इससे प्रेरणा लेती है।

श्री मोदी ने सांसदों को दस मंत्र देकर साफ-साफ बता दिया कि उन्हें क्या करना है क्या नहीं। साथ ही नमो की इस पाठशाला में सांसदों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों के प्रति उनकी जिम्मेदारियों की भी याद दिलाई गई, ताकि भारतीय लोकतंत्र को दुनिया का सबसे बेहतरीन लोकतंत्र बनाया जा सके। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सांसदों को अहंकार से बचने की नसीहत दी। एक संदेश भी दिया गया कि जनता के बीच काम करना होगा। नमो की इस इस पाठशाला में जिन मुद्दों को लेकर सांसदों को प्रशिक्षित किया गया, उससे एक नई आहट सुनाई पड़ती है। परंपरा से हटकर, सच्चाई को कबुल करते हुए श्री मोदी और भाजपा ने अपने सांसदों को सफलता की घृट्टी तो पिलाई ही, मीठे-मीठे लफ्जों में नसीहत और चेतवानी भी दी। भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी को पता है कि अच्छे काम और अच्छे माहौल के बावजूद भाजपा 2004 में लोकसभा चुनाव में किस तरह हार गई थी और तमाम नाकामियों के बावजूद 2009 में कांग्रेस 2004 के मुकाबले ज्यादा सीटें लाकर सत्ता पर कब्जा बरकरार रखी थी। यानी भाजपा को लोग बिना अच्छे काम के स्वीकार नहीं करेंगे। पार्टी और सराकर का काम करना ही होगा। श्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा अपने बदौलत 272 से ज्यादा सीटें जीतकर आई है तो निश्चित तौर पर जिम्मेदारियों का एहसास श्री मोदी को है और अपने सांसदों के माध्यम से वे संसद की गरिमा को बढ़ाते हुए अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहते हैं। इस तरह के कार्यशाला का आयोजन एक ऐतिहासिक पहल है और इसका आयोजन बार-बार होना चाहिए, जिसमें सांसदों के काम का भी आंकलन हो। इसके माध्यम से श्री मोदी ने खुद को देश का अगुआ होने का भी एहसास दिलाया है, जिसकी कमी पिछले 10 सालों से खल रही थी।

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