अब तो इस तालाब का पानी बदल दो

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durga shaktiवीरेन्द्र सिंह परिहार

दुर्गा शक्ति नागपाल का निलम्बन एक ऐसा प्रकरण है,जिससे यह पता चलता है, हमारी शासन-व्यवस्था का किस हद तक पतन हो चुका है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश की गौतम बुद्ध नगर की आर्इ.ए.एस. अधिकारी जो कि प्रशिक्षु एस.डी.एम. थी, वह एक दमदार अधिकारी थी। उन्होने खनन-माफिया को ठिकाने लगा दिया। स्वाभाविक है कि जब पूरे देश में खनन-माफिया एक समानान्तर सरकार बन चुके है, ऐसी स्थिति में उन्हे और उनके आकाओ को बड़ा अनुचित लगा। जैसा कि स्वाभाविक है, इस अवैध खनन-माफिया में सत्तारूढ़ दल ही ज्यादा संलग्न रहते है, और इस हिसाब से उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार को यह बड़ा ही नागवार गुजरा कि एक प्रशिक्षु अधिकारी उसके आदमियों की लूट में इस तरह से चटटान बनकर खडी हो जाए। क्योकि आजकल ऐसी लूटों का पैसा जहाँ ऊपर तक पहुंचता है, वही चुनावों में भी धन-बल और जन-बल दोनो सहज ही उपलब्ध हो जाते है। फलत: दुर्गा शक्ति को सबक सिखाने के लिए जब कोर्इ सही बहाना नहीं मिला तो एक मस्जिद की दीवार के अवैध निर्माण को गिराने के बहाने निलंबित कर दिया गया। बहाना यह कि इससे साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो सकता था, फलत: साम्प्रदायिक सौहाद्र बिगड़ जाता। इसमें पहली चीज तो यह कि जैसा कि डी.एम. और दूसरी रिपोर्टें है। उक्त अवैध निर्माण की दीवार दुर्गा शक्ति ने नहीं, बलिक गाव वालों ने ही गिरा दिया था। दूसरे थोडे़ समय के लिए यदि ऐसा मान भी लिया जाए कि दुर्गा शक्ति ने उस दीवार को गिरवा दिया तो कौन सा गलत कार्य कर दिया? आखिर में वह दीवार अवैध रूप से अतिक्रमण कर बनायी जा रही थी। ऐसी स्थिति में एस.डी.एम. होने के नाते दुर्गा शक्ति का यह दायित्व था कि वह उक्त अवैध निर्माण को रोके। अब यदि ऐसा कहा जाता है कि उन्होने दीवार गिरवा दी तो यह तो प्रशंसा के योग्य कृत्य था, न कि दण्ड के योग्य। फिर भी समाजवादी पार्टी इस तरह से दुर्गा शक्ति को दणिडत कर एक तीर से दो शिकार करना चाहती है। पहला तो यह कि अधिकारी अपने दायरे में रहे। वह हमारे आदमियों की लूट की राह में बांधा न बने, नहीं तो अंजाम समझ लेना चाहिए। किसी न किसी बहाने हम तुम्हे सबक सिखा ही देगे। दूसरी बात यह कि जहाँ मुसलमानों के वोट को लेकर भयावह मारा-मारी चल रही हो, वहाँ मुसलमानों को यह संदेश देना कि देखो-हम तुम्हारे कितने बड़ें शुभचिंतक है। तुम भले अवैध निर्माण करो, पर उसे रोकने की जुर्रत किसी अधिकारी में नहीं है। अब इसका एक बड़ा निहितार्थ तो यह भी है, कि इस देश में मुसलमानों को यह भी कहा जा सकता है कि सही-गलत चाहे तुम जो भी काम करो, हम तुम्हारे साथ है। यहां तक कि कुछ लोग चाहे आतंकवाद फैलाएं, बम-विस्फोट करे। तभी तो देश में अब यह स्थिति बन गर्इ है कि देश की सुरक्षा एजेनिसया किसी आतंकवादी को घटना के पूर्व पकड़ने को तैयार ही नहीं है। इसलिए यह देश आतंकवादियों का चारागाह बन चुका है। लेकिन दुर्गा शक्ति के मामले में असलियत में ऐसा था नहीं, फिर भी मुसलमानों को यह बताने की कोशिश की जा रही है। गनीमत यह है कि उस क्षेत्र के अधिकांश मुसलमानों ने इस बात को समझा है कि उन्हे विकास की प्रक्रिया से वंचित कर इस तरह से साम्प्रदायिकता के मंकड़जाल में फंसाया जा रहा है। तभी तो भारी संख्या में मुसिलमों ने उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम का विरोध किया है। वैसे असलियत तो इसी से सामने आ गर्इ कि वहा के सपा नेता नरेन्द्र भाटी जब कह देते है कि हमने 41 मिनट में दुर्गा शक्ति का निलम्बन करा दिया। यानी कि अवैध उत्खनन रोकने के चलते उसे इतनी जल्दी निलंबित करा दिया। बड़ी बात यह कि समाजवादी पार्टी के लोग कुछ ऐसा कह रहे है, जैसे कि स्थानान्तरण एवं निलम्बन बहुत छोटी बात हो। यानी जब मन आए तो, किसी को भी निलंबित कर दो। अब सपा के महासचिव राम गोपाल यादव कहते है कि केन्द्र सरकार अपने सभी आर्इ.ए.एस.वापस बुला ले। उत्तर प्रदेश सरकार बिना उनके ही काम चला लेगी। देखने की बात यह है कि यह कितना दुस्साहिक और खतरनाक बात है। इसका मतलब तो यह है कि रामगोपाल यादव एवं उनकी समाजवादी पार्टी को ऐसे अधिकारी नहीं चाहिए, जो संविधान और विधि-सम्मत काम करे। उनको तो ऐसे अधिकारी चाहिए जो उनके इशारे पर नाचे। कुल मिलाकर रामगोपाल यादव जैसे लोग कानून के पक्षधर न होकर जंगल-राज के पक्षधर है।

कुछ ऐसा ही मामला राजस्थान के जैसलमेर जिले के पुलिस अधीक्षक पंकज चौधरी के स्थानांतरण का है। क्योकि श्री चौधरी ने आपराधिक प्रवृत्ति के कांग्रेसी विधायक सालेह मुहम्मद के पिता गाजी फकीर की हिस्ट्री शीट पुन: खोलने की जुरर्त की थी। उल्लेखनीय है गाजी फकीर पर स्मगलिंग, समाज विरोधी ही नहीं, राष्ट्र विरोधी कार्यो के भी आरोप है। जिसमें पाकिस्तान से आए कुख्यात आतंकवादियों को शरण देने का आरोप भी है। लेकिन 1965 की बनी ये फाइल 1984 में गुम हो जाती है। 1990 में फिर किसी तरह फाइल बनी लेकिन 2011 में एस.पी. रैंक के अधिकारी द्वारा ही उक्त फाइल बंद कर दी जाती है। अब एक र्इमानदार अधिकारी पंकज चौधरी फाइल पुन: खोल देता है, तो उसका स्थानांतरण कर दिया जाता है। ठीक उसी तर्ज पर जैसे हरियाणा के आर्इ.ए.एस. अशोक खेमका द्वारा रार्बट वाड्रा की जमीनों के डील की फाइल खोल देने पर स्थानान्तरण और निलम्बन दोनो ही झेलना पड़ा था। तर्क यही है कि ये सामान्य प्रशासनिक कदम है। गनीमत है कि पंकज चौधरी के मामले में दुर्गा शक्ति की तरह साम्प्रदायिक तनाव फैलने की आशंका का तर्क नहीं दिया गया।

वस्तुत: ये सभी कदम इतने खतरनाक है कि इससे यह पता चलता है कि  इस देश में कोर्इ लोकतंत्र और कानून का शासन नहीं, बलिक एक कुलीन-तंत्र और गिरोह-तंत्र चल रहा है। अब जब देश की शीर्ष अदालत संसद और विधानसभाओं में अपराधियों का प्रवेश वर्जित करती है। केन्द्रीय सूचना आयोग सभी राजनैतिक दलों को आर.टी.आर्इ. के तहत आने का फैसला देते है, तो कमोवेश सभी राजनैतिक दल इसके विरूद्ध गोलबंद हो जाते है। तो क्या अन्ना हजारे का यह कहना सही है कि राजनीतिक दल ही हमारे देश की मूल समस्या है? समस्या यह भी है कि वगैर राजनीतिक दलों के लोकतंत्र चल ही नहीं सकता। वस्तुत: इन सबका सबसे बड़ा समाधान तो जागरूक जनमत है, जो इन घटनाओं को लेकर देखने को मिल भी रहा है। दूसरे इसका दूसरा विकल्प संसदीय प्रणाली की जगह अध्यक्षीय प्रणाली है, जिसमें सरकार के प्रमुख का चुनाव मतदाता सीधे करे। राइट टू रिकाल और राइट टू रिजेक्ट का मतदाताओं को यदि मिल सके तो इस दिशा में बड़ी मदद मिल सकती है। पर फिलहाल अभी ये सब तो एक सपना ही-है। पर कुल मिलाकर देश में जो स्थिति दिख रही है, उसके आधार पर दुष्यन्त कुमार के शब्दों में यह कहा जा सकता है कि-

”अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,

ये कमल के फूल मुरझाने लगे है।।

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