रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण की पहल

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-प्रमोद भार्गव-
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रक्षा सौदों में 49 फीसदी एफडीआई की छूट देने के बावजूद केंद्र सरकार ने हथियारों की खरीद और हेलिकॉप्टरों के निर्माण में स्वदेशीकरण की उल्लेखनीय पहल की है। सरकार ने स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने की बात कही भी थी। 21 हजार करोड़ की रक्षा साम्रगी खरीद की मंजूरी रक्षा अधिग्रहण परिशद की पहली बैठक में दी गई। रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने इस अवसर पर भरोसा जताया कि इस दिशा में पूरी पारदर्शिता बरतते हुए और तेजी लाएंगे।

इस खरीद में नौसेना के पांच बेड़ा सहायक पोतों की खरीद के लिए 9 हजार करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। खरीद के लिए निविदाएं बुलाई जाएंगी। तटरक्षक बल और नौसेना के लिए 32 उन्नत किस्म के किंतु हल्के हेलिकॉप्टर ‘धु्रव‘ की आपूर्ति के लिए 7 हजार करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। इनमें से 16 तटरक्षक बलों को और 16 नौसेना को आवंटित किए जाएंगे। ये हेलीकॉप्टर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से खरीदे जाएंगे। इसके साथ ही परिवहन विमानों के निर्माण की भी एक योजना को मंजूरी दी है, जिसमें केवल निजी क्षेत्र की कंपनियां भागीदारी करेंगी। अन्य सैन्य समान भी सार्वजानिक एवं निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियों से ही खरीदे जाएंगे। इस प्रोत्साहन से सेना में साजो सामान के उत्पादन में स्वदेषीकरण को बढ़ावा मिलेगा और रिश्वतखोरी के रूप में जो धन विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में जमा हो जाता था, उस पर बंदिश लगेगी।

हथियारों की खरीद के सिलसिले में सेना में अर्से से विवाद गहरा रहे थे। दूसरे, हथियारों की जबरदस्त कमी महसूस की जा रही थी। पूर्व थल सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर यह जताया भी था कि सेना के पास गोला-बारूद व सैन्य रक्षा के उपकरणों की कमी है। इस चिट्ठी का खुलासा प्रधानमंत्री के पास पहुंचने से पहले ही हो गया था। यही नहीं देश की आजादी के बाद यह भी पहली बार हुआ था कि इन्हीं थल सेनाध्यक्ष ने खुले रूप से स्वीकारा था कि 600 टेट्रा ट्रक खरीदे जाने के मामले में उन्हें 14 करोड़ रूपए की घूस देने की कोशिश की गई। यह कोशिश भी किसी और ने नहीं, बल्कि सेना से सेवानिवृत्त एक सेना अधिकारी ने की थी। लेकिन तत्कालीन सरकार इस करार को रद्द करने और आरोपियों पर शिकंजा कसने पर ढिलाई वरतती रही। जाहिर है,रक्षा सौदों में अनियमितता अब छिपा तथ्य नहीं रह गया है। बोफोर्स तोप सौदों में दलाली मामले के बाद फौजी साजो सामान की खरीद में पारदर्शिता लाने के नजरिए से कई समीतियां बनीं। उनकी सिफारिशें भी लागू हुईं,लेकिन खरीद में बिचौलियों का हस्तक्षेप बने रहने के कारण कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी चलती रही। बिचौलियों पर थोड़ा बहुत अंकुश लगा तो इन्होंने सलाहकार के रूप में दलाली की कंपनियां खड़ी कर दीं। सेना और विदेश सेवा के सेवानिवृत्त लोग इसमें सक्रिय हो गए। इटली की फिनेमेकेनिका कंपनी और उसकी सहयोगी अगस्ता वेस्टलैंड से 12 हेलिकॉप्टरों की खरीद ने इस कड़ी को पुख्ता किया है। इस सौदे में पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी और उनके विदेष में रह रहे परिजन षामिल पाए गए हैं। अब तो सीबीआई ने इस मामले में त्यागी और उनके रिश्तेदारों पर एफआईआर भी दर्ज कर ली है। 3600 करोड़ की इस हेलिकॉप्टर खरीद में 362 करोड़ रूपए रिश्वत में लिए गए। इसी तरह का एचडीडब्लयू पनडुब्बी सौदे में भी घूसखोरी का पर्दाफाश हुआ था।

भ्रष्टाचार की इन खरीदों का पर्दाफाश होने के बाद, सौदे लटक गए। नई खरीदी आदेश भी नहीं दिए गए। जिसकी कीमत भारतीय सेना की तीनों कमानें और सुरक्षा बल चुका रहे हैं। गोया, निगरानी और मारक क्षमता वाले विमानों, टोही उपकरणों और मारक हथियारों की लगातार कमी होती चली जा रही थी। जबकि भारत हथियार खरीदने वाले देशों में अव्वल है। 2007 से 2011 के बीच भारत ने 11 अरब डॉलर के हथियार खरीदें हैं। जो दुनिया में हथियारों की हुई ब्रिकी का 10 फीसदी हैं। अंदाजा यह है कि आने वाले 10 सालों में भारत 100 अरब डॉलर के लड़ाकू विमान, युद्धपोत और पनडुब्बियां खरीदेगा। 10 अरब डॉलर के हेलिकॉप्टरों की खरीद भी संभव है।

दरअसल भारत का स्वदेशी स्तर पर हथियारों का निर्माण न के बराबर है। हमारे पास न तो हथियारों के डिजाइन बनाने की कल्पनाषीलता और न ही उत्पादन क्षमता। हालांकि हम व्यक्तिगत उपयोग वाली पिस्तौलें और सेना के लिए राइफलें बनाते हैं। लेकिन न तो वे उच्च गुणवत्ता की हैं और न ही जरूरत की पूर्ति हम कर पाते हैं। हालांकि टाटा, महिंद्रा और लार्सन एंड टूबो कंपनियों ने माध्यम मारक क्षमता वाली अच्छी किस्म की राइफलें विकसित की हैं। सेना उनके हथियार खरीदेगी तो वे इस दिशा में हथियारों की और किस्में भी विकसित कर सकते हैं। क्योंकि निजी और घरेलू रक्षा संस्थानों के पास बौद्धिक क्षमता तो है, पर धन की कमी हथियारों की मौलिक डिजाइन बाधा बनी हुई है। यदि इन्हें प्रोत्साहित किया गया तो सेनाओं की सर्विलांस, राडार और साइबर संबंधी मांगों की पूर्ति स्वदेश में ही करने में सक्षम हो जाएंगे। इसमें कामयाबी के लिए लालफीताशाही और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाना होगा।

मोदी सरकार ने आमबजट में 2 लाख 29 हजार करोड़ रूपए रखे रक्षा मंत्रालय को दिए हैं। साथ ही रक्षा में एफडीआई 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी कर दी है। इससे निवेश की उम्मीद बढ़ेगी। संप्रग सरकार ने जब रक्षा में निवेश 26 फीसदी किया था, तब हम इस धन की मदद से ब्रह्मोस मिसाइल बनाने में कामयाब हुए थे। यदि अब निवेश आता है तो कार्बाइन और राइफल बनाने से इसकी शुरूआत की जा सकती है। हालांकि रक्षा में निवेश को लेकर कई तरह की आशंकाए उठ रही हैं। मारक क्षमता की गोपनीयता भंग हो जाने की बात कही जा रही है। लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में चिंता की जरूरत इसलिए नहीं है, क्योंकि अभी हम पूरी तरह हथियारों की आपूर्ति आयात करके करते है। तय है, जिन कंपनी से हम हथियार लेते हैं, वे कभी भी हमारी सामरिक क्षमता की जानकारी दूसरे देशों को दे सकते हैं। जब कंपनियां हमारे नियंत्रण में हैं ही नहीं तो उन्हें भारत में पूंजी लगाकर हथियार बनाने की छूट देना अतार्किक पहल नहीं हैं। फिर ये कंपनियां हमारी देशी कंपनियों की भागीदारी से ही रक्षा उपकरणों का निर्माण करेंगी और उन पर प्रशासनिक नियंत्रण भी भारतीय कंपनियों का रहेगा। तय है, निवेश की सुविधा विशुद्ध रूप से एक वाणिज्यिक व्यवस्था है।

इसके साथ ही हमें आत्मनिर्भरता की दिषा में आगे बढ़ते हुए सार्वजानिक क्षेत्र की सुस्त पड़ी संस्था‘रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान‘ को भी सक्रिय करने की जरूरत है। यदि यह संस्थान हथियार उत्पादन के क्षेत्र में स्वावलंबी हो जाता है तो हम देशी कंपनियों के साथ मिलकर हथियारों का निर्यात शुरू कर सकते हैं। इसके लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन एक प्रेरणादायी उदाहरण है। अब इसरो अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर है, लिहाजा उसने दूसरे देषों के उपग्रह प्रक्षेपित करने का कारोबार शुरू कर दिया है। इस वाणिज्यिक व्यवस्था से हमें अरबों की विदेशी पूंजी मिलना शुरू हो गई है। डीअरडीओ को इससे सबक लेने की जरूरत है।

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