स्वेच्छा से ही घटेगा प्लास्टिक का उपयोग

योगेश कुमार गोयल

            केन्द्र सरकार द्वारा प्रदूषण पर रोकथाम तथा स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए अभी ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ (एकल उपयोग वाली प्लास्टिक) पर पूर्ण प्रतिबंध न लगाते हुए प्लास्टिक के खिलाफ जन-जागरूकता अभियान छेड़ने का आव्हान किया गया है ताकि लोग स्वेच्छा से इससे दूरी बनाएं। फिलहाल सरकार पॉलीथीन बैग के उत्पादन, भण्डारण तथा उपयोग के नियमों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश देगी और तीन वर्ष बाद एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर सख्ती शुरू की जाएगी। हालांकि कुछ समय से माना जा रहा था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर सरकार इस प्रकार के प्लास्टिक के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर इसे आम व्यवहार से पूरी तरह दूर करने के कड़े कदम उठाएगी लेकिन दो अक्तूबर को केन्द्र सरकार द्वारा देश की जनता से ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ की आदतों पर नियंत्रण का आव्हान किया गया और सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान को जन जागरूकता तक ही सीमित रखते हुए इस पर पूर्ण रोक नहीं लगाने का निर्णय लिया गया। इसका एक कारण यही रहा कि एकाएक इस तरह का प्रतिबंध देश में लागू कर देने से खासकर अर्थ जगत में चहुं ओर अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो जाता और पहले ही मंदी के दौर से गुजर रही देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगता। अचानक उठाए जाने वाले ऐसे कदम से लाखों लोगों की नौकरी भी खतरे में पड़ जाती। दरअसल देश में प्लास्टिक उत्पादों का प्रतिवर्ष करीब चार लाख करोड़ रुपये का कारोबार होता है, जिसमें से 30-40 हजार करोड़ का कारोबार सीधे प्लास्टिक उद्योग सेे ही होता है। प्लास्टिक उद्योग से देशभर में 11 लाख प्रत्यक्ष और करीब 50 लाख अप्रत्यक्ष रोजगार जुड़े हुए हैं।

            हालांकि एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध के उद्देश्य में एक अच्छी सोच निहित थी किन्तु चूंकि एकाएक लगाए जाने वाले ऐसे प्रतिबंध से उपजने वाली परेशानियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा पूरी तैयारियां नहीं की गई थी, इसीलिए यह प्रतिबंध व्यावहारिक भी नहीं होता। बेहतर है कि सरकार द्वारा फिलहाल प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए प्रतिबंध के बजाय जन-जागरूकता अभियान पर चलाए जाने का ही निर्णय लिया गया है। सरकार द्वारा अब 2022 तक एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध की तैयारी की जा रही है और ये तीन साल जनता को जागरूक करने तथा प्लास्टिक का बेहतरीन पर्यावरणीय विकल्प खोजने के लिए पर्याप्त होंगे। इस दौरान प्लास्टिक कप, बोतल, स्ट्रा इत्यादि के इस्तेमाल पर धीरे-धीरे रोक लगाई जाएगी और प्लास्टिक की रिसाइकलिंग के लिए स्टार्टअप को प्रोत्साहन दिया जाएगा। हालांकि भारत में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत अमेरिका तथा चीन के मुकाबले काफी कम है लेकिन संकट बहुत बड़ा है। अमेरिका में यह सालाना खपत प्रति व्यक्ति 106 किलाग्राम और चीन में 38 किलोग्राम है जबकि भारत में यह 11 किलोग्राम है। देश में प्रतिवर्ष 1.4 करोड़ टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, जिसमें से 40 फीसदी रिसाइकल नहीं हो पाता।

            एकल उपयोग वाली प्लास्टिक को ही प्रतिबंध के दायरे में लाए जाने का सबसे बड़ा कारण यही है कि देश में कुल प्लास्टिक कचरे का करीब पचास फीसदी यही प्लास्टिक होता है। आंकड़े देखें तो समुद्रों में ही दस करोड़ टन प्लास्टिक कचरा फैंक दिया गया और इसी प्लास्टिक कचरे से समुद्री जीवों पर भी गंभीर संकट मंडरा रहा है। कई शोधों से यह भी पता चल चुका है कि मनुष्यों से लेकर व्हेल सहित अनेक समुद्री जीवों की आंतों में भी सूक्ष्म प्लास्टिक के कण मिले हैं। आश्चर्य एवं चिंता की बात यह है कि प्लास्टिक के तमाम खतरों को जानते-बूझते हुए भी न आमजन की ओर से इसके उपयोग से बचने के प्रयास होते दिखते हैं और न ही सरकारों द्वारा इससे मुक्ति के लिए इससे पहले कोई ठोस कार्ययोजना अमल में लाई जाती दिखी है। प्लास्टिक का उपयोग भले ही सुविधाजनक होता है किन्तु इस तथ्य को नजरअंदाज करना समूची प्रकृृति के लिए खतरनाक है कि प्लास्टिक जल, वायु और जमीन सहित हर प्रकार से पर्यावरण को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक में इतने घातक रसायन होते हैं, जो इंसानों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आ रहे हैं, जिसके खतरनाक प्रभावों से जलचर प्राणियों के अलावा पशु-पक्षी भी अछूते नहीं रहे हैं और मनुष्यों में कैंसर जैसी बीमारियां जन्म ले रही हैं। दरअसल प्लास्टिक खेतों की मिट्टी के अलावा तालाबों, नदियों से होते हुए समुद्रों को भी बुरी तरह प्रदूषित कर चुका है। इन्हीं खतरनाक प्रभावों के मद्देनजर सरकार द्वारा एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।

            महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित देशभर के डेढ़ दर्जन राज्यों में पहले से ही प्लास्टिक की प्लेट, चम्मच, कप, स्ट्रा इत्यादि सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है लेकिन उस पर अमल होता कम ही दिखा है। दरअसल बगैर जन-आन्दोलन के इस तरह के खतरनाक प्लास्टिक से पूर्णतः मुक्ति पाना असंभव ही है और यही कारण है कि पिछले कुछ समय से मांग की जा रही है कि इस तरह के प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने से पहले सरकार उसका सस्ता और पर्यावरण हितैषी विकल्प देश की जनता को दे ताकि वे स्वयं पर्यावरण हितैषी सस्ते विकल्प की ओर आकर्षित हों और स्वेच्छा से सिंगल यूज प्लास्टिक से दूरी बनाना शुरू कर दें। कपड़े की थैलियां, दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले मोटी प्लास्टिक के डिब्बे, मोटे कागज के लिफाफे, मिट्टी के बर्तन बहुत महंगे विकल्प साबित हो रहे हैं और इस प्रकार की वस्तुओं के लिए ग्राहकों से अतिरिक्त कीमत भी नहीं वसूली जा सकती, इसलिए बेहद जरूरी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के सस्ते और पर्यावरण हितैषी विकल्प जल्द से जल्द खोजे जाएं।

            प्लास्टिक की थैलियां, प्लेट, गिलास, चम्मच, बोतलें, स्ट्रा, थर्मोकोल इत्यादि सिंगल यूज प्लास्टिक के ऐसे रूप हैं, जिनका उपयोग प्रायः एक ही बार किया जाता है और इस्तेमाल के बाद फैंक दिया जाता है। इस प्रकार के प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायन पर्यावरण के साथ-साथ लोगों और तमाम जीव-जंतुओं व पशु-पक्षियों के लिए बहुत घातक साबित होते हैं। पॉलीथिन चूंकि पेपर बैग के मुकाबले सस्ती पड़ती हैं, इसीलिए अधिकांश दुकानदार इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित प्लास्टिक कचरे में से सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा सिंगल यूज पलास्टिक का ही होता है और इसका खतरा इसी से समझा जा सकता है कि ऐसे प्लास्टिक में से केवल 20 फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है, करीब 39 फीसदी प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है, जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है और यह जमीन में केंचुए जैसे जमीन को उपजाऊ बनाने वाले जीवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर देती है। 15 फीसदी प्लास्टिक जलाकर नष्ट किया जाता है और प्लास्टिक को जलाने की इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में वातावरण में उत्सर्जित होने वाली हाइड्रो कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड तथा कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसें फेफड़ों के कैंसर व हृदय रोगों सहित कई बीमारियों का कारण बनती हैं। ब्रसेल्स आयोग के सदस्य फ्रांस टिमरमंस के अनुसार प्लास्टिक की थैली सिर्फ पांच सैकेंड में ही तैयार हो जाती है, जिसका लोग अमूमन पांच मिनट ही इस्तेमाल करते हैं, जिसे गलकर नष्ट होने में पांच सौ साल लग जाते हैं। प्लास्टिक की एक थैली को नष्ट होने में 20 से 1000 साल तक लग जाते हैं जबकि एक प्लास्टिक की बोतल को 450 साल, स्ट्रा को 200 साल, प्लास्टिक कप को 50 साल, नायलॉन को 40 साल, प्लास्टिक की परत वाले पेपर कप को 30 साल और प्लास्टिक बैग को नष्ट होने में करीब 20 साल लगते हैं जबकि मानव कंकाल 10 साल, सिगरेट का टुकड़ा 5 साल और अखबार 6 सप्ताह में ही गल जाता है। प्रतिवर्ष प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में करीब 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है।

            प्लास्टिक किस कदर समुद्रों की सेहत भी बिगाड़ रहा है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि समुद्र के प्रति मील वर्ग क्षेत्र में लगभग 46 हजार प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं के अलावा समुद्री जीवों पर भी प्लास्टिक के कहर की बात करें तो हर साल एक लाख से ज्यादा जलीय जीवों की मौत प्लास्टिक निगलने के कारण होती है। प्लास्टिक के बारे में यह जान लेना भी बेहद जरूरी है कि अधिकांश प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता और यही कारण है कि हमारे द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। वर्तमान में प्रतिवर्ष करीब 15 हजार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है और हर साल हम इतनी ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक कचरा इकठ्ठा कर रहे हैं, जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने कहा भी था कि यदि सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं रोका गया तो भू-रक्षण का नया स्वरूप सामने आएगा और जमीन की उत्पादकता को वापस प्राप्त करना नामुमकिन होगा।

            यही कारण है कि प्लास्टिक के उपयोग के प्रति लोगों को हतोत्साहित करने के लिए व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत महसूस की गई है। गांधी जयंती के अवसर पर लोगों को जागरूक करने के लिए दिल्ली में दूध और दुग्ध उत्पादों की निर्माता कम्पनी मदर डेयरी द्वारा दिल्ली और पड़ोसी शहरों से एकत्रित किए गए बेकार प्लास्टिक से रावण का एक 25 फुट ऊंचा पुतला तैयार किया गया, जिसे जलाने या मिट्टी में दबाने के बजाय ध्वस्त कर पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया गया। ऐसा करके कम्पनी द्वारा उपभोक्ताओं को प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया गया। सुखद संकेत यह है कि पिछले कुछ दिनों से चलाए जा रहे जन-जागरूकता अभियान का जमीनी स्तर पर असर दिखने भी लगा है और अभी इस दिशा में लोगों को जागरूक करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। प्लास्टिक प्रदूषण से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय यही है कि लोगों को इसके खतरों के प्रति सचेत और जागरूक करते हुए उन्हें प्लास्टिक का उपयोग न करने के लिए प्रेरित किया जाए। वर्ष 2014 में देश में सिर्फ 38.7 फीसदी लोगों के पास ही शौचालय सुविधा थी और सरकार द्वारा चलाए गए अभियान के कारण इस वर्ष 99 फीसदी आबादी तक यह सुविधा पहुंच चुकी है, इन पांच वर्षों में देश में रिकॉर्ड 91.6 करोड़ शौचालय बनाए गए। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस प्रकार 2 अक्तूबर 2014 को केन्द्र सरकार द्वारा शुरू किए गए अभियान के चलते देश खुले में शौच से मुक्त हुआ, उसी प्रकार एकल उपयोग वाली प्लास्टिक से भी देश को मुक्ति मिलेगी।

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