स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती पर आदरांजलि

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श्रीराम तिवारी

स्वामीजी आपने कहा था ” हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों , आधुनिक विज्ञान युग के नियामक नियंताओ! सुनो! जब तुम यूरोपियन ,अफ्रीकन,अमेरिकन और अरेबियन -असभ्य बंदरों की भांति पेड़ों पर ,पर्वत कंदराओं में , काठ के मचानों पर उछल कूंद किया करते थे ,तब तुम्हारे पूर्वजों के समकालिक हमारे पूर्वज -भारतीय मनीषी – ऋषिगण विराट गुरुकुलों में , खेतों में ,उज्जवल धवल सरिताओं की निर्मल धारा के मध्य ’ब्रहमांड का उदयगान’ किया करते थे। वे साहित्य – कला -संगीत ज्योतिष,व्यकरण,गणित,आयुर्वेद मर्मग्य ,वेद मन्त्र दृष्टा अपने दैनिदिन स्वध्याय में में ’सर्वे भवन्तु सुखिन :…….अयम निज:परोवेति ……..वसुधैव कुटुम्बकम …….कृण्वन्तो विश्वम आर्यम”……… का उद्घोष किया करते थे ” ’ हे अमेरिका यूरोप वासियों! भारत को ज्ञान की नहीं आजादी की जरुरत है ,उसे दे सको तो रोटी दो ,कपडे दो तकनीक दो और लौटा सको तो उसका प्राचीन गोरव वापिस लौटा दो , उसकी स्वतंत्रता! ……. भारत तो परमेश्वर के अवतारों की पावन पुन्य धरा है”…….

 

यदि आज स्वामी विवेकानंद होते तो कुछ यौ कहते- हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों आज जब तुम आर्थिक मंदी की मार से पीड़ित होते हुए भी अपने-अपने राष्ट्रों की सांस्कृतिक विरासत को पूंजीवादी प्रजातांत्रिक प्रक्रिया जनित असमानता के वावजूद क्रान्ति की ललक से स्वर्णिम युग की दहलीज पर ले जा चुके हो, आज जब तुम्हारे मुल्क में बिना किसी भय के माँ – बहिन-बेटी पत्नी प्रेयसी कंही भी कभी भी आ-जा सकती है आज जब तुम्हारे मुल्कों में लैंगिक असमानता लगभग समाप्ति पर है,आज जब तुम्हारे राष्ट्रों में यौन वर्जनाओं का पुरातन पुरुष सत्तात्मक आधार प्राय: समाप्ति की ओर है, तब मेरे भारत में -सम्पूर्ण देश में ,उसकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ,उसकी सडकों पर चलती हुई बसों में नारी के केवल शरीर को ही नहीं अपितू उसकी आत्मा तक को बुरी तरह रौदा जा रहा है। हम भारत वासियों ने सांस्कृतिक पतन और सामाजिक अधोगति और आर्थिक असमानता के कीर्तिमान स्थापित कर लिए हैं। हमारे यहाँ दुनिया के टॉप 100 में से 10 मिलियेनार्स हैं,हमारे यहाँ दुनिया की 50 ताकतवर महिलाओं में से 20 भारतीय हैं। हमारे यहाँ दुनिया के सबसे ज्यादा स्विस बैंक खाता धारक हैं, हमारे यहाँ वर्षों तक महिला प्रधान मंत्री रही,हमारे यहाँ महिला राष्ट्रपति रही,हमारे यहाँ- सत्ता धारी गठबंधन की सर्वोसवा महिला , विपक्ष की महिला नेत्री,महिला लोकसभा अध्यक्ष, महिला सांसद,महिला विश्व सुन्दरी,महिला उद्द्य्मी,महिला राज्यपाल,महिला मुख्यमंत्री, महिला विदेश सचिव,महिला राजदूत,महिला इंजीनियर ,महिला डॉक्टर,महिला प्रोफ़ेसर से लेकर महिला क्लर्क,महिला नर्स महिला दाई सब कुछ है, हमारे स्वाधीनता संगाम में नारी शक्ति की आहुति और अतीत में भी अनेक कुर्वानियाँ नारियों के नाम लिखी गईं हैं। फिर भी हे दुनिया के भाइयो!बहिनों! हम भारतीय आज इस धरती पर सबसे ज्यादा नारी उत्पीडन के लिए कुख्यात हो चुके हैं, हमारे खाप पंचायत वाले, हमारे रिश्वतखोर,हमारे सत्ता के दलाल,हमारे भृष्ट हुक्मरान हमारे वोट अर्जन राजनैतिक दल , नारी को आज भी केवल और केवल भोग्य समझते हैं, हे विश्व के महामानवो! मैं 150 साल पहले अपनी देव भूमि,पुन्य भूमि गंगा जमुना की पावन धरती को हिमालय की गोद में ”एक वर्ग विहीन,शोषण विहीन,लैंगिक -आर्थिक- सामाजिक -समानता पर आधारित खुशहाल उन्नत भारत राष्ट्र की अभिलाषा लेकर आया था। मेरे गुरु परमहंस रामकृष्ण की असीम अनुकम्पा से मेने सारे संसार में इस प्राचीन राष्ट्र के खोये हुए स्वाभिमान को जगाया था। मुझे वेहद दुःख है की मेरा ’भारत महान ’ आज कन्या भ्रूण हत्या,नारी-उत्पीडन,गेंग-रेप और महिलाओं पर अमानवीय अत्याचारों की अनुगूंज से शर्मशार हो रहा है,मेरी आत्मा का चीत्कार सुनने वाले शायद इस भारत भूमि पर अब बहुत कम बचे हैं , मेरा आशीर्वाद है उनको जो मेरे पवित्र संकल्प को पूरा करने के लिए आज भी धृढ प्रतिज्ञ हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था ,भारतीय मीडिया ,भारतीय युवाओं को मेरा सन्देश हैं कि वे बिना झुके,बिना डरे, बिना स्वार्थ -भय के भारत में नारी के सम्मान को पुन: स्थापित करने-सामाजिक,लैंगिक,आर्थिक असमानता मिटाने के लिए एकजुट हों-जागृत हों,संघर्षरत हों!!

 

दोहा:-

लिंग भेद असमानता , सत्ता मत्त गयंद .

नारी उत्पीडन लखि, व्यथित विवेकानंद ..

 

संस्कृति उत्तर आधुनिक, दिखती है पाषाण .

आडम्बर उन्नत किया,मन -मष्तिक शैतान ..

 

नारी-नारी सब कहें,नारी नर की खान .

नारी से नर प्रकट भये, विवेकानंद सामान ..

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