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प्रभांशु ओझा मजरूह सुल्तानपुरी का बड़ा प्रसिद्ध शेर है कि –मै तो अकेला ही चला था ज़निबे मंजिल मगर ,लोग मिलते गए और कारवां बनता गया. सच ही है की अगर किसी कार्य का दिल से जूनून और जज्बा हो आपके मन में तो उसकी शुरुवात बिना किसी का इंतजार…