नेहरू लोहिया के खट्टे मिठ्ठे रिस्ते

nehru-lohiaडॉ. अजय पाण्डेय

डॉ. लोहिया डाक्टरेट लेकर लौटे थे, तब उनकी उम्र 27-28 साल की थी। वे बहुत प्रतिभावान थे। वे नेहरू के पास छोटे भाई की तरह आये थे। वे आनन्द भवन में नेहरू परिवार में काफ़ी रहे भी थे। उन्हें कांग्रेस के विदेश विभाग का सचिव बनाया गया था। वे लगातार नेहरू के निर्देश पर उनके साथ काम करते रहे थे। वे लोकतांत्रिक समाजवाद जर्मनी से ही सीखकर आये थे। जर्मनी में ही ’ सोशलिस्ट इंटरनेशनल ’ का प्रधान ऑफ़िस रहा है। अभी भी है। यह याद रखना चाहिये कि ये लोकतांत्रिक समाजवादी साम्यवाद विरोधी होते हैं। इन्हीं की मदद से हिटलर जीता था और भयंकर तानाशाह बना था। उसने कम्युनिस्टों का कत्लेआम कराया था । समाजवादी समझते थे कि हिटलर उन्हें बक्स देगा। यह उनका भ्रम था, हिटलर ने समाजवादियों को भी पीटा
कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण वामपन्थ के नेता थे। इनके साथ लोहिया, अशोक मेहता भी थे। नेहरू खुद समाजवादी थे। पर नेहरू का समाजवाद यह जर्मनी वाला समाजवाद नहीं था। नेहरू का विश्वास कार्ल मार्क्स में भी था। वे ’वैज्ञानिक समाजवाद’ मानते थे, यह उन्होंने खुद कई जगह लिखा है। कांग्रेस में दक्षिणपन्थ के नेता सरदार पटेल और राजेन्द्र प्रसाद थे। पंडित नेहरू की स्थिति इन सबसे ऊपर थी। पर वे समर्थन समाजवादियों का करते थे। 1947 में जयप्रकाश और लोहिया के नेतृत्व में समाजवादी कांग्रेस से बाहर आ गये। इन्होंने समाजवादी दल बनाया। दक्षिणपन्थियों में आचार्य कृपलानी भी अपने साथियों को लेकर बाहर आ गये। उन्होंने ’कृषक मजदूर प्रजा पार्टी’ बनाई। बाद में दोनों मिलीं और ’प्रजा समाजवादी पार्टी’ बनाई। इन्हें पंडित नेहरू की विदेश नीति पसंद नहीं थी। ये सोवियत रूस से इतने घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं चाहते थे। ये साम्यवाद विरोधी थे। पर देश में ये तुरन्त आर्थिक क्रांति चाहते थे, जो अव्यवहारिक थी। पहले ही आम चुनाव में समाजवादियों की बुरी तरह हार हुई। तब नेहरू ने उनसे कहा कि तुम लोग कांग्रेस में आ जाओ तो मुझे ताकत मिलेगी। हम मिलकर दक्षिणपन्थियों से लड़ लेंगे। तब जयप्रकाश नारायण ने कार्यक्रमों की लिस्ट दी जिसे नेहरू ने मान लिया। तब जयप्रकाश नारायण अपने चार साथियों के साथ नेहरू मंत्रिमंडल में जाने को राजी हो गये थे। इसमें लोहिया भी थे। पर डॉ. लोहिया के हठ के कारण यह समझौता टूट गया।
तब से लोहिया नेहरू के कट्टर विरोधी हो गये। वे तुरन्त क्रांतिकारी कार्य करवाना चाहते थे, पर कम्युनिस्ट पार्टियों को साथ न लेकर जनसंघ जैसी प्रतिक्रियावादी पार्टी को साथ लेते थे। वे सिलसिलेवार आन्दोलन नहीं करते थे, उपद्रव और अक्सर स्टंट करते थे। नेहरू पर अशिष्ट भाषा में हमले करते थे। वर्ग- संघर्ष को तैयार नहीं थे और संसदीय लोकतंत्र में भी निष्ठा नहीं थी। वे पता नहीं क्या चाहते थे? बुद्धिमान थे, विचारक थे, अच्छा लिखते-बोलते थे। उन्होंने इतिहास पर भाषण दिये थे, जो ’इतिहास चक्र’ नाम की पुस्तक में सगृहीत हैं। उनके विचार काफ़ी पुस्तको में हैं। पर डॉक्टर लोहिया का कुल मिलाकर एक ही वाद रह गया- नेहरू तथा उनकी पुत्री का हर मामले में विरोध। यह विरोध कार्यक्रमों को लेकर होता तो एक बात थी। इस विरोध का मूल वाक्य था -नेहरू ने देश का नाश कर दिया। नेहरू की खानदानी सल्तनत को मिटाओ। वे एक बार लोकसभा के सदस्य हुये। वहां भी उन्होंने अशिष्ट भाषण दिया। नेहरू ने टिप्पणी की- मैने डॉ. लोहिया को काफ़ी साल बाद देखा। मैं उनसे बेहतर बातों की अपेक्षा कर रहा था। पर मैं निराश हुआ।
लोहिया, नेहरू और इन्दिरा गांधी की रोज आलोचना करते थे, पर नेहरू और इन्दिरा ने कभी कोई शब्द लोहिया के खिलाफ़ नहीं कहा -यानी उनकी अवहेलना की। लोहिया पंडित नेहरू के खिलाफ़ चुनाव लड़ते थे। पंडित नेहरू एक शब्द भी लोहिया के खिलाफ़ नहीं बोलते थे।
लोहिया के सम्बन्ध अमेरिका से अच्छे थे। एक अमेरिकी महिला की पुस्तक है- ’लोहिया एंड अमेरिका मीट’। इसमें लोहिया की अमेरिका यात्रा का विवरण था। अमेरिकी शासक नेहरू की गुटनिरपेक्षता तथा समाजवादी देशों से मित्रता और स्वतंत्र विदेश नीति पसन्द नहीं करते थे। डॉ.लोहिया नेहरू का कड़ा विरोध करते थे। इसलिये वे प्रिय थे।
डॉ. लोहिया वर्ण-संघर्ष की भी बात करते थे। वे जनेऊ तुड़वाते थे। पर जनेऊ तोड़ने से कहीं वर्ण मिटते हैं? ईसाइयों में भी ब्राह्मण ईसाई और गौड़ ईसाई – यह वर्ण भेद है।
लोहिया का नारा था गैरकांग्रेसवाद ! कांग्रेस को सत्ता से हटाओ। पर वे सामाजिक-आर्थिक क्रांति का कोई वैकल्पिक कार्यक्रम नहीं देते थे। शायद वे क्रांति भी नहीं चाहते थे- हालांकि उन्होंने लिखा है सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण कार्ल मार्क्स का ही सही और वैज्ञानिक है, महात्मा गांधी का नहीं। पर वे वर्ग संघर्ष की तैयारी भी नहीं करते थे। वे वास्तव में पूंजीवाद का सफ़ाया भी नहीं चाहते थे।
वे आंदोलन करते थे, कानून तोड़ते थे तो जेल जाते थे।

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