बर्फी की शादी

जिस दिन होना थी लड्डू की बर्फीजी से शादी,

बर्फी बहुत कुरूप किसी ने झूठी बात उड़ा दी|

गुस्से के मारे लड्डूजी जोरों से चिल्लाये|

बिना किसी से पूँछतांछ वापस बारात ले आये|

लड्डू के दादा रसगुल्ला बर्फी के घर आये|

बर्फीजी को देख सामने मन ही मन मुस्काये|

बर्फी तो इतनी सुंदर थी जैसे कोई परी हो|

पंख लगाकर आसमान से अभी अभी उतरी हो|

रसगुल्लाजी फिदा हो गये उस सुंदर बर्फी पर|

ब्याह कराकर उसको लाये वे चटपट अपने घर|

लड्डू क्वांरा बेचारा अब लड़ता रसगुल्ला से|

रसगुल्ला मुस्कराता रहता बिना किसी हल्ला के|

सुनी सुनाई बातों पर तुम कभी ध्यान मत देना|

क्या सच है क्या झूठ सुनिश्चित खुद जाकर‌ कर लेना|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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